(06)दीपावली-06/ ज्ञान-दीप जगाए बिना दीवाली निरर्थक
ज्ञान का दीप जगाए – बिना दिवाली निरर्थक है दिवाली मनाना व्यर्थ
दीपावली का वास्तविक अर्थ
यह दीपों का त्यौहार स्थूल रूप में हम दीप जलाते हैं और अपने वातावरण में समझते हैं कि हमने प्रकाश कर दिया। यह प्रकाश उत्सव, यह दीप उत्सव वास्तव में किस प्रकाश का यादगार है? कौन से दीप जगाने का प्रतीक है? यह सच्चाई समझने की आवश्यकता है।
यह दीपक थोड़ी देर के लिए प्रकाश करेगा, प्रदूषण फैला जाएगा, और उसके बाद फिर अंधेरा हो जाएगा। क्या यह स्थायी प्रकाश है? क्या यह परमानेंट रूप से हमें रोशनी दे सकता है? इस बात को हमें बहुत अच्छी तरह से समझना होगा।
नरकासुर की कथा और वास्तविकता
“नरक” शब्द स्वयं स्पष्ट करता है कि यह दुख की दुनिया का प्रतीक है। यह एक ऐसा राक्षस है जो हमारे जीवन में दुख लाता है। जब हम इस पर विजय प्राप्त करते हैं, तभी हमारे जीवन में खुशी, उमंग और उत्साह आता है।
आज के समय में हम देखते हैं कि एक दिन दीप जलाकर त्यौहार मना लिया जाता है। परंतु क्या यह वास्तविक सुख है? अमावस की रात को दीप जलाना एक सामाजिक परंपरा बन गई है, लेकिन जब हर जगह बिजली की रोशनी है, तो फिर दीप जलाने का क्या औचित्य है? वास्तविक खुशी तो आत्मा की अनुभूति से प्राप्त होती है।
ज्ञान का दीप जलाना
खुशी मनाने के लिए ज्ञान और समझ आवश्यक है। हमारे जीवन में जो असुर, राक्षस और गंदी आदतें हैं, उनको हमें निकालना होगा। इसके लिए हमें अपने जीवन में ज्ञान का दीपक जलाना होगा। जब हमारे भीतर ज्ञान की रोशनी होगी, तभी हम अपने संबंधों और संपर्क में आने वाली आत्माओं को भी इस रोशनी से जागृत कर सकते हैं।
उनके जीवन से वे आसुरी गुण, जो उन्हें दुखी बनाते हैं, समाप्त हो जाएं – यही नरकासुर की पराजय का वास्तविक महत्व है। ज्ञान का संबंध इस शरीर से नहीं, बल्कि आत्मा से है। ज्ञान लेना आत्मा का कार्य है और ज्ञान देना परमात्मा का कार्य है। वह आकर हमें ज्ञान का प्रकाश देते हैं, जिससे हमारे जीवन का अंधकार समाप्त होता है।
दैवी गुणों की विजय
हमारे चारों ओर आसुरी वातावरण व्याप्त है। यदि हम अपने अंदर दैवी गुणों को धारण करें, तो हमारे जीवन और वातावरण में आसुरी गुण समाप्त हो जाएंगे। यही दिवाली का सही अर्थ है – दैवी गुणों को धारण करना। जब हम यह गुण अपनाएंगे, तब हम सच्ची खुशी का अनुभव कर सकेंगे।
अज्ञानता की घोर अमावस्या
अमावस्या अज्ञानता और अंधकार का प्रतीक है। सतयुग, त्रेता और द्वापर के बाद जब कलियुग आता है, तब सारी आत्माएँ अज्ञानता की गहरी रात में चली जाती हैं। परमात्मा आकर ज्ञान की रोशनी देते हैं, जिससे अंधकार मिटता है और फिर आत्मा का नया जीवन आरंभ होता है।
दीपदान का वास्तविक अर्थ
ईश्वरीय ज्ञान कहता है कि दीपदान करो, लेकिन इसका अर्थ केवल मिट्टी या चांदी का दीपक देना नहीं है। वास्तविक दीपदान का अर्थ है – किसी के जीवन में ज्ञान की रोशनी लाना। ज्ञान वह धन है, जो जितना बांटा जाए उतना बढ़ता है और अनंत सुख देता है।
लक्ष्मी का वास्तविक अर्थ
यदि लक्ष्मी धन की देवी हैं, तो क्या वह बिना कर्म के किसी को धन दे सकती हैं? वास्तव में सबसे बड़ी लक्ष्मी ज्ञान लक्ष्मी है। जब तक हम इस ज्ञान को अपनाते रहेंगे, हमारे जीवन में सच्ची खुशी बनी रहेगी। यही सबसे बड़ी लक्ष्मी है, जो सदैव हमारे साथ रहेगी।
निष्कर्ष
सच्ची दिवाली तभी सार्थक होगी जब हम आत्मा रूप में अपने भीतर ज्ञान का दीप जलाएँगे। यह ज्ञान का प्रकाश हमें वास्तविक सुख की अनुभूति कराएगा और जीवन में स्थायी शांति एवं समृद्धि लाएगा।
ज्ञान का दीप जगाए – बिना दिवाली निरर्थक है दिवाली मनाना व्यर्थ
प्रश्न और उत्तर
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दीपावली का वास्तविक अर्थ क्या है?
- दीपावली का वास्तविक अर्थ आत्मा में ज्ञान का प्रकाश जलाना है, जिससे अज्ञानता का अंधकार मिटे और दैवी गुण प्रकट हों।
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क्या मिट्टी के दीयों से स्थायी प्रकाश प्राप्त हो सकता है?
- नहीं, ये दीए थोड़े समय के लिए जलते हैं और फिर बुझ जाते हैं, जबकि ज्ञान का दीप स्थायी रोशनी देता है।
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नरकासुर की कथा का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
- नरकासुर राक्षस हमारे भीतर की आसुरी प्रवृत्तियों का प्रतीक है। जब हम इन पर विजय प्राप्त करते हैं, तब सच्चा सुख और शांति मिलती है।
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वास्तविक सुख कहाँ से प्राप्त होता है?
- वास्तविक सुख आत्मा की शुद्ध स्थिति और ज्ञान की अनुभूति से प्राप्त होता है, न कि बाहरी रोशनी और भौतिक वस्तुओं से।
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ज्ञान का दीप जलाने का क्या महत्व है?
- ज्ञान का दीप जलाने से आत्मा का अज्ञान रूपी अंधकार मिटता है, जिससे जीवन में सच्ची खुशी और शांति आती है।
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दैवी गुणों की विजय का क्या अर्थ है?
- जब हम अपने अंदर दैवी गुणों को धारण करते हैं, तो आसुरी गुण अपने आप समाप्त हो जाते हैं, यही दिवाली का सच्चा अर्थ है।
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अज्ञानता की अमावस्या से बाहर कैसे निकला जा सकता है?
- परमात्मा से ज्ञान प्राप्त कर, आत्मा को जागरूक बनाकर और सत्कर्मों को अपनाकर हम अज्ञानता के अंधकार से मुक्त हो सकते हैं।
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दीपदान का वास्तविक अर्थ क्या है?
- दीपदान का वास्तविक अर्थ किसी के जीवन में ज्ञान का प्रकाश लाना है, जिससे वह आत्मिक रूप से जागरूक हो सके।
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लक्ष्मी का वास्तविक स्वरूप क्या है?
- सच्ची लक्ष्मी ज्ञान लक्ष्मी है, जो हमें आत्मिक समृद्धि और सच्ची खुशी देती है, जिससे जीवन में स्थायी शांति आती है।
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दिवाली को सार्थक कैसे बनाया जा सकता है?
- दिवाली तब सार्थक होगी जब हम अपने भीतर ज्ञान का दीप जलाएँगे और दूसरों को भी ज्ञान का प्रकाश देने का प्रयास करेंगे।