(03)The true Diwali

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सच्ची दीपावली(The true Diwali)

कार्तिक की अमावस्या को भारतवर्ष के घर-घर में प्रकाश दीप जगमगा उठते हैं और बाल-वृद्ध आनन्द से भर जाते हैं। सभी अपने-अपने घरों की तथा कपड़ों की सफ़ाई करते हैं। व्यापारी वर्ग इस शुभ दिवस पर पुराने खाते को बन्द कर नया खाता खोलते हैं। मान्यता है कि धन की देवी श्री लक्ष्मी इस रात्रि में भ्रमण करती हैं और अलौकिक गृहों को धन-धान्य से परिपूर्ण कर देती हैं। अपने भाग्य की परीक्षा लेने के लिए लोग जुआ भी खेलते हैं। रात्रि के अन्तिम प्रहर में माताएं सूप की कर्कश ध्वनि से दरिद्रता को निकालती हैं तथा गाँव के बाहर सामूहिक रूप से उसे जला देती हैं।क्या आपने कभी विचार किया है कि श्री लक्ष्मी के स्वागत के लिए प्रति वर्ष दीपमाला जला कर भी भारतवर्ष क्यों दरिद्र हो गया है? जगमगाते दीपों को देखकर भी श्री लक्ष्मी क्यों हमसे रूठ गयी हैं? जलते हुए दीप उनको आकृष्ट क्यों नहीं कर पाते? वे कौन-सा दीप जलाना चाहती हैं? वस्तुतः आत्मा ही सच्चा दीपक है। विकारों के वशीभूत हो जाने के कारण आत्मा का प्रकाश आज मलिन हो गया है। मनुष्य की अन्तरात्मा तमसाच्छन्न है। ऐसे विकारी मनुष्यों के बीच श्री लक्ष्मी का शुभागमन कैसे हो सकता है? लेकिन कितनी विडम्बना है कि आत्म-दीप प्रज्वलित कर कमल पुष्प सदृश अनासक्त बन कमलासीन श्री लक्ष्मी का आह्वान करने की जगह हम मिट्टी के दीप जला कर बच्चों का खेल खेलते रहते हैं। का-मन्दिर की सफ़ाई करने की जगह बाह्य सफ़ाई से ही हम खुश हो जाते हैं। तभी तो श्री लक्ष्मी हमसे रूठ गयी हैं। कमल सदृश बन कर हम कमला को प्राप्त कर सकते हैं।अमावस्या की काली रात्रि की तरह आज चतुर्दिक घोर अज्ञान अन्धकार छाया हुआ है। कहीं कुछ सूझ नहीं रहा है। मत मतान्तर के जाल में मानव मात्र भ्रमित है। सभी आत्माओं की ज्योति बुझ चुकी है। ऐसे समय में सदा जागती ज्योति निराकार परमपिता परमात्मा शिव सर्वात्माओं की ज्योति जगाने के लिए कल्प पूर्व की भांति इस धराधाम पर अवतरित हो चुके हैं और प्रायः लोप गीता ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। निर्विकारी बन उस सदा जागती ज्योति से अपनी आत्मा का दीपक जगा कर ही हम सच्ची दीपावली मना सकते हैं। तब ही इस देवभूमि भारतवर्ष पर श्री लक्ष्मी-श्री नारायण के दैवी स्वराज्य की पुनर्स्थापना होगी जहाँ रत्न जड़ित स्वर्ण महल होंगे और घी-दूध की नदियाँ बहेंगी। इस युगान्तरकारी घटना की पावन स्मृति में ही हम दीपावली का त्योहार मनाते हैं। इस अवसर पर सदा जागती ज्योति निराकार परमात्मा शिव का प्रतीक एक बड़ा दीप जलाया जाता है और उसी से अन्य दीपकों को ज्योति जलाई जाती है। अन्य किसी देवता के मन्दिर में सदा दीप नहीं जलता है लेकिन आज भी भगवान् विश्वनाथ के मन्दिर में अनवरत दीप जलता रहता है क्योंकि एक मात्र निराकार परमात्मा शिव ही सदा जागती ज्योति हैं।निराकार परमपिता परमात्मा शिव के साकार माध्यम प्रजापिता ब्रह्मा के मुख से ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग की शिक्षा प्राप्त कर जब हम निर्विकारी बनते हैं तो हमारा एक नया जन्म ‘मरजीवा जन्म’ होता है।हमारे पुराने आसुरी स्वभाव, संस्कार और सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं तथा नये देवी स्वभाव, संस्कार और सम्बन्ध बनते हैं। इसी की स्मृति में आापारी इस दिन पुराने खाते को बन्द कर नया खाता खोलते हैं। अवढर दानी, भोलानाथ भगवान् शिव के साथ व्यापार करने वाले आध्यात्मिक का परम कर्त्तव्य है कि साधकों का अब वे आसुरी अवगुणों का खाता बन्द कर दैवी गुणों के लेन-देन का खाता खोलें जिससे आगामी सतयुगी सृष्टि में वे श्री लक्ष्मी का वरण कर सकेदीपावली के दिन जुआ खेलने का बहुत महत्त्व है। कहते हैं कि जो इस दिन जुआ नहीं खेलता है उसकी अधम-गति होती है। इसका भी गम्भीर आध्यात्मिक रहस्य है। जुए में कुछ सम्पत्ति हम दाँव पर लगाते हैं जो कई गुना होकर हमें मिलती है। पावन सतोप्रधान सतयुगी सृष्टि की स्थापनार्थ जब पतित पावन परमात्मा शिव इस सृष्टि पर अवतरित होते हैं तो वे हम जीवात्माओं को आदेश देते हैं कि अपने कौड़ी तुल्य तन-मन- धन को ईश्वरीय सेवा में लगा दो तो 21 जन्मों के लिए तुमको कंचन काया, सतोप्रधान मन और अखुट धन-सम्पत्ति की प्राप्ति होगी। धन्य हैं वे नर-नारी जो इस कल्याणकारी पुरुषोत्तम संगमयुग पर ऐसा ईश्वरीय जुआ खेलते हैं। बाकी तो सभी ‘विषय-सागर’ में गोता खाने वाले अधम और पशु-तुल्य हैं।दीपावली के आध्यात्मिक रहस्यों को न जानने के कारण आज मनुष्य उसे सामाजिक उत्सव के रूप में ही मानते हैं और महान् आध्यात्मिक उन्नति से वंचित रह जाते हैं। कहां यह ईश्वरीय जुआ और कहाँ वह स्थूल जुआ जिसके कारण कितने लोगों को जेल की यातना सहनी पड़ती है।आइये, अब हम प्रतिज्ञा करें कि ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग  की शिक्षा द्वारा मन-मन्दिर की सफाई कर सदा जागती ज्योति निराकार परमात्मा शिव से आत्मा की ज्योति प्रज्वलित करेंगे, ‘आसुरी अवगुणी और संस्कारों का खाता बन्द कर देवी गुण सम्पन्न बनेंगे तथा अपने तर अध्धिन को मानव मात्र के आध्यात्मिक उत्थान में लगा देंगे। फिर तो इस पुण्यभूमि भारतवर्ष पर श्री लक्ष्मी-श्री नारायण के दैवी स्वराज्य की पुनस्थापण हो जायेगी जहाँ दुःख-अशान्ति का नामोनिशान भी नहीं रहेगा। शेर- बकरी एक घाट पर जल पियेंगे और अखुट धन-सम्पत्ति से नर-नारी मालामाल हो जायेंगे। इतना महान् अन्तर है मिट्टी के जड़ दीप जलाने और चैतन्य आत्मा की ज्योति प्रज्वलित करने में।

आत्म-ज्ञान का दीप जलायें,नित्य मनायें प्रभु मिलन ।

दिव्य गुणों की दीवाली से चमक उठे हर घर-आंगन ।। राजयोग के इसी किरण में स्वर्ग धरा पर है उतरा.

  • प्रश्न: दीपावली कब मनाई जाती है?
    उत्तर: दीपावली कार्तिक की अमावस्या को मनाई जाती है।
  • प्रश्न: इस दिन लोग अपने घरों में क्या करते हैं?
    उत्तर: लोग अपने घरों और कपड़ों की सफ़ाई करते हैं और दीप जलाते हैं।
  • प्रश्न: इस रात्रि लक्ष्मी माता का क्या महत्व है?
    उत्तर: मान्यता है कि लक्ष्मी माता इस रात्रि भ्रमण करती हैं और अलौकिक गृहों को धन-धान्य से परिपूर्ण करती हैं।
  • प्रश्न: क्यों कहा जाता है कि भारतवर्ष दरिद्र हो गया है?
    उत्तर: जलते हुए दीपों के बावजूद आत्मा का प्रकाश विकारों के कारण मलिन हो गया है, जिससे लक्ष्मी माता का आगमन नहीं हो पा रहा।
  • प्रश्न: सच्ची दीपावली मनाने के लिए हमें क्या करना चाहिए?
    उत्तर: आत्मा का दीपक जलाकर, निर्विकारी बनकर, और ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति करके सच्ची दीपावली मनानी चाहिए।
  • प्रश्न: दीपावली पर जुआ खेलने का क्या महत्व है?
    उत्तर: जुए में संपत्ति लगाने से आध्यात्मिक लाभ होता है, जो 21 जन्मों की कंचन काया की प्राप्ति में मदद करता है।
  • प्रश्न: सच्ची दीपावली का त्योहार क्यों मनाना चाहिए?
    उत्तर: यह त्योहार आत्मा की ज्योति को जागृत कर दैवी गुणों को अपनाने और समाज के आध्यात्मिक उत्थान के लिए मनाना चाहिए।
  • प्रश्न: दीपावली के अवसर पर निराकार परमात्मा शिव का क्या महत्व है?
    उत्तर: निराकार परमात्मा शिव सदा जागती ज्योति हैं, जो आत्माओं की ज्योति जगाने और ज्ञान देने के लिए अवतरित होते हैं।
  • प्रश्न: सच्ची दीपावली की तैयारी कैसे करनी चाहिए?
    उत्तर: मन-मंदिर की सफाई करके, आसुरी गुणों का खाता बंद कर और देवी गुणों को अपनाकर करनी चाहिए।
  • प्रश्न: अंत में हम क्या प्रतिज्ञा कर सकते हैं?
    उत्तर: हम ईश्वरीय ज्ञान और सहज राजयोग की शिक्षा द्वारा आत्मा की ज्योति प्रज्वलित करने और मानवता के उत्थान में योगदान देने की प्रतिज्ञा कर सकते हैं।