आत्मा-पदम (22)क्या नैसर्गिक संस्कारों में परिवर्तन संभव है
A-p 22 Is it possible to change natural sanskars
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

आत्मा-पदम (22): क्या नैसर्गिक संस्कारों में परिवर्तन संभव है?
ओम शांति
1. भूमिका
नैसर्गिक संस्कारों का अर्थ समझना अत्यंत महत्वपूर्ण है। नैसर्गिक का अर्थ होता है स्वाभाविक, कुदरती, अर्थात वह जो जन्मजात हो और आत्मा के मूल संविधान में समाहित हो। हर आत्मा के अपने संस्कार होते हैं, जो उसके अनादि स्वरूप से जुड़े होते हैं।
2. नैसर्गिक संस्कार की परिभाषा
नैसर्गिक संस्कार वे होते हैं जो आत्मा के मूलभूत, अविनाशी संस्कार होते हैं। इन संस्कारों में न आत्मा परिवर्तन कर सकती है और न ही परमात्मा।
नैसर्गिक संस्कारों की विशेषताएँ:
- आत्मा अनादि है, इसलिए उसके संस्कार भी अनादि काल से जुड़े होते हैं।
- सतो, रजो, तमो अवस्थाओं में इनमें बदलाव आता है, परंतु मूल परिवर्तन नहीं होता।
- 5000 वर्ष की रिकॉर्डिंग के अनुसार संस्कार स्वतः मर्ज और इमर्ज होते रहते हैं।
3. ड्रामा अनुसार परिवर्तन
- बाबा की शिक्षाओं पर चलकर हम संस्कारों में बदलाव अनुभव करते हैं, लेकिन यह संस्कारों का इमर्ज और मर्ज होना मात्र है।
- यदि आत्मा गलत संगत में जाती है तो भी संस्कारों में परिवर्तन प्रतीत होता है, परंतु यह केवल पुराने संस्कारों के पुनः उभरने का खेल है।
4. संस्कारों का इमर्ज और मर्ज होना
- जो संस्कार इमर्ज होने होते हैं, वे समय आने पर उभर जाते हैं।
- जो संस्कार किसी कारणवश निष्क्रिय हो जाते हैं, वे मर्ज हो जाते हैं।
5. व्यवहारिक संस्कार की परिभाषा
व्यवहारिक संस्कार वे होते हैं जो समय, परिस्थिति और वातावरण के अनुसार बदलते हैं। हमें लगता है कि हम अपने संस्कार बदल रहे हैं, परंतु वास्तविकता में ये पहले से ही रिकॉर्डेड हैं और अपनी पूर्वनिर्धारित गति से चलते हैं।
6. संस्कारों का खेल
- सतयुग और त्रेतायुग में देवी गुणों के संस्कार होते हैं।
- द्वापर और कलियुग में विकारी संस्कार इमर्ज होते हैं।
- हमें लगता है कि हम अपने संस्कार बना रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह पहले से ही बना हुआ ड्रामा है।
7. लिंग और योनि से जुड़े नैसर्गिक संस्कार
- योनि शरीर की बनावट से जुड़ी होती है, जबकि लिंग बौद्धिक और भावनात्मक स्तर से संबंधित होता है।
- आत्मा अपने कार्मिक अकाउंट के अनुसार जन्म धारण करती है और शरीर की रचना करती है।
- मेल, फीमेल, या थर्ड जेंडर बनना आत्मा के कर्मों पर निर्भर करता है।
- पशु-पक्षियों में भी नर से मादा और मादा से नर बनने की घटनाएँ देखी जाती हैं।
8. जड़ और चेतन का भेद
- जड़ वस्तुएँ आत्मा रहित होती हैं, इसलिए उनमें मन और बुद्धि नहीं होती।
- वनस्पतियों में भी नर और मादा होते हैं, जैसे पपीते के वृक्ष में।
- जड़ वस्तुएँ फीलिंग, भावना और प्रतिक्रिया नहीं कर सकतीं।
9. संस्कारों की स्थिरता
- सरसों का बीज हमेशा सरसों ही बनेगा, किसी और चीज में परिवर्तित नहीं होगा।
- यदि बीज पूर्ण विकसित नहीं हुआ तो पौधा भी कमजोर होगा।
- बुद्धि होने पर ही आत्मा अपने संस्कारों में परिवर्तन ला सकती है, अन्यथा वे अपने मूल स्वरूप में ही रहते हैं।
10. परम अवस्था का रहस्य
- परम अवस्था में आत्मा संस्कारों को नियंत्रित कर सकती है, परंतु मूल संस्कार बदले नहीं जा सकते।
- संस्कार शरीर की संरचना, पत्तों की आकृति और रस ग्रहण करने की क्षमता को निर्धारित करते हैं।
निष्कर्ष
नैसर्गिक संस्कार अनादि और अविनाशी होते हैं। हमें जो परिवर्तन प्रतीत होते हैं, वे वास्तव में संस्कारों के मर्ज और इमर्ज होने का खेल है। आत्मा अपने कर्मों के अनुसार ही जन्म और संस्कार प्राप्त करती है। यदि आत्मा शुद्ध और दिव्य संस्कार अपनाए तो वह स्वयं को उच्च अवस्था में ले जा सकती है, परंतु उसके मूल संस्कार कभी नष्ट नहीं होते।
आत्मा-पदम (22): क्या नैसर्गिक संस्कारों में परिवर्तन संभव है?
प्रश्न और उत्तर
1. नैसर्गिक संस्कार क्या होते हैं?
उत्तर: नैसर्गिक संस्कार वे होते हैं जो आत्मा के मूलभूत, अविनाशी संस्कार होते हैं। ये संस्कार आत्मा के अनादि स्वरूप से जुड़े होते हैं और इनमें कोई भी मूल परिवर्तन संभव नहीं है।
2. क्या आत्मा अपने नैसर्गिक संस्कारों को बदल सकती है?
उत्तर: नहीं, आत्मा अपने नैसर्गिक संस्कारों को नहीं बदल सकती। यह संस्कार अनादि और अविनाशी होते हैं, केवल उनकी अवस्थाओं (सतो, रजो, तमो) में बदलाव होता है।
3. संस्कारों का इमर्ज और मर्ज होना क्या होता है?
उत्तर: संस्कारों का इमर्ज होना तब होता है जब कोई विशेष संस्कार समय अनुसार प्रकट हो जाता है, जबकि मर्ज होने का अर्थ है कि वह संस्कार कुछ समय के लिए निष्क्रिय हो जाता है। यह प्रक्रिया आत्मा की रिकॉर्डिंग के अनुसार होती रहती है।
4. क्या हमारे संस्कार वास्तव में बदलते हैं?
उत्तर: नहीं, संस्कार वास्तव में नहीं बदलते, बल्कि समयानुसार इमर्ज और मर्ज होते रहते हैं। हमें जो परिवर्तन प्रतीत होता है, वह संस्कारों के पुनः उभरने का खेल मात्र है।
5. क्या ड्रामा अनुसार संस्कार बदलते हैं?
उत्तर: बाबा की शिक्षाओं पर चलने से हमें लगता है कि संस्कार बदल रहे हैं, लेकिन वास्तव में यह संस्कारों के इमर्ज और मर्ज होने का ही खेल है।
6. व्यवहारिक संस्कार क्या होते हैं?
उत्तर: व्यवहारिक संस्कार वे होते हैं जो समय, परिस्थिति और वातावरण के अनुसार बदलते हैं। ये मूल नैसर्गिक संस्कारों से अलग होते हैं और इन्हें आत्मा अपने अनुभवों और जीवनशैली के आधार पर विकसित करती है।
7. सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर और कलियुग में संस्कार कैसे भिन्न होते हैं?
उत्तर:
- सतयुग और त्रेतायुग में आत्मा के संस्कार शुद्ध और दिव्य होते हैं।
- द्वापर और कलियुग में देह-अभिमान और विकारी संस्कार उभरते हैं।
8. लिंग और योनि से जुड़े संस्कार कैसे निर्धारित होते हैं?
उत्तर: आत्मा अपने कार्मिक अकाउंट के अनुसार जन्म धारण करती है और उसी के अनुसार लिंग प्राप्त करती है। योनि शरीर की बनावट से जुड़ी होती है, जबकि लिंग बौद्धिक और भावनात्मक स्तर से संबंधित होता है।
9. क्या आत्मा एक योनि से दूसरी योनि में जा सकती है?
उत्तर: नहीं, मानव आत्मा केवल मानव योनि में ही जन्म ले सकती है। पशु और पक्षियों की आत्माएँ अपनी-अपनी योनियों में ही जन्म लेती हैं।
10. जड़ और चेतन में क्या अंतर है?
उत्तर:
- जड़ वस्तुएँ आत्मा रहित होती हैं, उनमें मन और बुद्धि नहीं होती।
- चेतन आत्माएँ अनुभव कर सकती हैं, सोच सकती हैं और प्रतिक्रिया दे सकती हैं।
11. क्या जड़ पदार्थों में भी नर और मादा का भेद होता है?
उत्तर: हाँ, वनस्पतियों में नर और मादा का भेद होता है, जैसे पपीते में नर और मादा वृक्ष होते हैं, लेकिन वे चेतन नहीं होते, इसलिए उनमें मन और भावना नहीं होती।
12. क्या संस्कारों में स्थिरता होती है?
उत्तर: हाँ, संस्कार मूल रूप से स्थिर होते हैं। जैसे सरसों का बीज हमेशा सरसों ही बनेगा, वैसे ही आत्मा के मूल संस्कार भी नहीं बदलते।
13. परम अवस्था में आत्मा का संस्कारों से क्या संबंध होता है?
उत्तर: परम अवस्था में आत्मा अपने संस्कारों को नियंत्रित कर सकती है, लेकिन मूल संस्कारों को बदला नहीं जा सकता। आत्मा अपने दिव्य संस्कारों को जाग्रत करके उच्च स्थिति प्राप्त कर सकती है।
14. यदि संस्कार बदले नहीं जा सकते, तो आध्यात्मिक प्रयासों का क्या लाभ है?
उत्तर: आध्यात्मिक प्रयासों से हम श्रेष्ठ संस्कारों को इमर्ज कर सकते हैं और विकारी संस्कारों को मर्ज कर सकते हैं, जिससे आत्मा अपनी ऊँचाई को प्राप्त कर सकती है।
15. निष्कर्ष रूप में, क्या नैसर्गिक संस्कार बदले जा सकते हैं?
उत्तर: नहीं, नैसर्गिक संस्कार बदले नहीं जा सकते, वे आत्मा के साथ अनादि और अविनाशी रूप में जुड़े रहते हैं। आत्मा अपने कर्मों और आध्यात्मिक प्रयासों से अपने श्रेष्ठ संस्कारों को जाग्रत कर सकती है और ऊँच पद प्राप्त कर सकती है।
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