Avyakta Murli”02-08-1973(2)

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

यथार्थ विधि से सिद्धि की प्राप्ति

अगर योग की सब्जेक्ट में ऑब्जेक्ट है तो और भी किसके संकल्प को परिवर्तन में लाने के समर्थ बना सकते हैं। तो वे ज़रूर रिसपेक्ट देंगे। तो इस रीति हर सब्जेक्ट में चेकिंग करनी है। हर सब्जेक्ट में व संकल्प में ऑब्जेक्ट और रिस्पेक्ट  इन दोनों की प्राप्ति का अनुभव जो भी करते हैं तो वही परफेक्ट कहेंगे। परफेक्ट अर्थात् कोई भी इफेक्ट से दूर, इफेक्ट से परे हैं तो परफेक्ट हैं। चाहे शरीर का, चाहे संकल्पों का और चाहे कोई भी सम्पर्क में आने से किसके भी वायब्रेशन वा वायुमण्डल का, सभी प्रकार के इफेक्ट से परे हो जायेंगे तो समझो सब्जेक्ट में पास अर्थात् परफेक्ट हैं तो ऐसे बन रहे हो ना? लक्ष्य तो यही है ना?

अब अपनी चैकिंग ज्यादा होनी चाहिए। जैसे दूसरों को कहते हो कि समय के साथ स्वयं को भी परिवर्तन में लाओ, वैसे ही सदैव अपने को भी यह स्मृति में रहे कि समय के साथ-साथ स्वयं को भी परिवर्तन में लाना है। अपने को परिवर्तन में लाते-लाते सृष्टि का भी परिवर्तन हो जायेगा क्योंकि अपने परिवर्तन के आधार से ही सृष्टि को परिवर्तन में लाने का कार्य कर सकेंगे। यहाँ यही श्रेष्ठता है जो दूसरे लोगों में नहीं है। वह तो सिर्फ दूसरों को परिवर्तित करने के यत्न में हैं। यहाँ स्वयं के आधार पर सृष्टि में तुम परिवर्तन करते हो। तो जो आधार है उसके लिये अपने ऊपर इतना अटेन्शन देना है। अब सदैव यह स्मृति रहे कि हमारे हर संकल्प के पीछे विश्व-कल्याण का सम्बन्ध है।

जो आधार मूर्त्त है, यदि उनके संकल्प समर्थ (सामर्थ्य) नहीं तो उनके समय के परिवर्तन में भी कमजोरी पड़ जाती है। इस कारण आप जितनाजितना स्वयं समर्थ बनेंगे, उतना ही सृष्टि को परिवर्तन करने का समय समीप ला सकेंगे। ड्रामा-अनुसार समय भले ही निश्चित है, लेकिन वह ड्रामा भी किसके आधार से बना है? आखिर आधार तो होगा ना? उसके आधार-मूर्त्त तो आप हो। अभी तो आप सभी की नज़रों में हो। चैलेन्ज किया है ना दो वर्ष का? जब यह बातें सुनते हो तो थोड़ा-बहुत संकल्प चलता है कि अगर सचमुच विनाश नहीं हुआ तो? यह भी हो सकता है कि ‘दो वर्ष में न हो’-यह संकल्प-रूप में क्या नहीं चलता है? चलो सामना कर लेंगे, यह दूसरी बात है। इसका मतलब हुआ कि संकल्प में कुछ है तब तो आता है ना? बिल्कुल आपको पक्का है कि दो वर्ष में होगा? अच्छा समझो आप लोगों से कोई पूछते हैं कि विनाश न हो तो क्या होगा? फिर आप क्या कहेंगे? जिस समय समझाते हो तो यह स्पष्ट समझाना चाहिए कि ऐसे नहीं कि दो वर्ष में कम्पलीट विनाश हो जायेगा, नहीं। दो वर्ष में ऐसे नज़ारे हो जायेंगे कि जिससे लोग यह समझेंगे कि बराबर यह विनाश हो रहा है और विनाश शुरू हो गया है। एक बात सहज लग गई तो दूसरी बात सहज लगेगी ही। विनाश में समय तो लगेगा ना? जब स्वयं सम्पूर्ण हो जायेंगे तो कार्य भी सम्पूर्ण होगा कि सिर्फ स्वयं ही सम्पूर्ण होंगे?

एडवान्स पार्टी का क्या कार्य चल रहा है? आप लोगों के लिये आज सारी फील्ड तैयार कर रहे हैं। उनके परिवार में जाओ, न जाओ लेकिन जो स्थापना का कार्य होना है उसके लिये वह निमित्त बनेंगे। कोई पॉवरफुल स्टेज लेकर निमित्त बनेंगे। ऐसे पॉवर्स लेंगे जिससे स्थापना के कार्य में मददगार बनेंगे। आजकल आप देखेंगे दिन-प्रतिदिन न्यु-ब्लड  का रिगार्ड ज्यादा है। जितना आगे बढ़ेंगे, उतना छोटों की बुद्धि काम करेगी जो की बड़ों की नहीं। बड़ी आयु की तुलना में फिर भी छोटेपन में सतोप्रधानता रहती है। कुछ-न-कुछ प्योरिटी की पॉवर होने के कारण उनकी बुद्धि जो काम करेगी वह बड़ों की नहीं करेगी। यह चेंज होगी। बड़े भी बच्चों की राय को रिगार्ड देंगे। अब भी जो बड़े हैं वह समझते हैं कि हम तो पुराने जमाने के हैं। यह आजकल के हैं उनको रिगार्ड न देंगे और उन्हें बड़ा समझ नहीं चलायेंगे तो काम नहीं चलेगा। पहले बच्चों को रोब से चलाते थे। अभी ऐसे नहीं। बच्चों को भी मालिक समज़ कर चलाते हैं। तो यह भी ड्रामा में पार्ट है। छोटे ही कमाल कर दिखायेंगे। एडवान्स पार्टी का तो अपना कार्य चल रहा है लेकिन वह भी आपकी स्थिति एडवान्स में जाने के लिए रूके हुए हैं। उनका कार्य भी आपके कनेक्शन से चलना है।

सारे कार्य का आधार आप विशेष आत्माओं के ऊपर है। चलते-चलते ठंडाई हो जाती है। आग लगती है फिर शीतल हो जाती है। लेकिन शीतल तो नहीं होना चाहिए ना? बाहर का जो रूप है, मनुष्य वह देखते हैं, समझते हैं यह तो चलता आता है, बड़ी बात क्या है? परम्परा से खेल चलता ही आ रहा है। लेकिन यह चलते-चलते शीतलता क्यों आती है? इसका कारण क्या है? परसेन्टेज बहुत कम है, लेक्चर्स तो करते हैं, लेकिन लेक्चर्स के साथ-साथ फीचर्स भी अट्रेक्ट करें तब लेक्चर्स का इफेक्ट हो। तो अपने को हर सब्जेक्ट में चेक करो। आजकल लेक्चर्स में आप जब कम्पीटीशन  करो तो इसमें कई और भी जीत लेंगे लेकिन जो प्रैक्टिकल में है उसमें सभी आपसे हार जायेंगे।

मुख्य विशेषता प्रैक्टिकल लाइफ की है। प्रैक्टिकल कोई भी बात आप बताओ तो वे एकदम चुप हो जायेंगे। तो जब लेक्चर्स से प्रैक्टिकल का भाव प्रगट हो, तब वह लेक्चर्स देने से न्यारा दिखाई दे। जो शब्द बोलते हो वह नयनों से दिखाई दे कि यह जो बोलते हैं वह प्रैक्टिकल है। यह अनुभवी मूर्त्त है तब उसका प्रभाव पड़ सकता है। बाकी सुन-सुन कर तो सभी थक गये हैं, बहुत सुना है! अनेक सुनाने वाले होने के कारण सुनने से सभी थके हुए हैं। कहते हैं सुना तो बहुत है, अब अनुभव करना चाहते हैं और अब कोई प्राप्ति कराओ। तो लेक्चर में ऐसी पॉवर होनी चाहिए जो वह एक-एक शब्द अनुभव कराने वाला हो। जैसे आप समझाते हो ना कि अपने को आत्मा समझो न कि शरीर। तो इन शब्दों को बोलने में भी इतनी पॉवर होनी चाहिए जो सुनने वालों को आपके शब्दों की पॉवर से अनुभव हो। एक सेकेण्ड के लिए भी यदि उनको अनुभव हो जाता है तो अनुभव को वह कभी छोड़ नहीं सकते, आकर्षित हुआ आपके पास पहुँचेंगा।

जैसे आप बीच-बीच में भाषण करते-करते उनको सायलेन्स में ले जाने का अनुभव कराते हो तो इस प्रैक्टिस को बढ़ाते जाओ। उनको अनुभव में लाते जाओ। इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग्य दिलाना चाहते हो तो भाषण में जो प्वायन्ट्स देते हो, वह देते हुए वैराग्य वृत्ति के अनुभव में ले आओ। वह फील करे सचमुच यह सृष्टि जाने वाली है, इससे तो दिल लगाना व्यर्थ है। तो जरूर प्रैक्टिकल करेंगे। उन पण्डितों आदि के बोलने में पॉवर होती है। एक सेकेण्ड में खुशी दिला देते और एक सेकेण्ड में रूला देते। तब कहते हैं इनका भाषण इफेक्ट करने वाला है। सारी सभा को हँसाते भी हैं, सभी को शमशानी वैराग्य में लाते तो हैं ना? जब उनके भाषण में भी इतनी पॉवर होती है तो क्या आप लोगों के भाषण में वह पॉवर नहीं हो सकती? अशरीरी बनाना चाहो तो क्या वह अनुभव करा सकते हैं कि वह लहर छा जाये? सारी सभा के बीच बाप के स्नेह की लहर छा जाये। इसको कहा जाता है — प्रैक्टिकल अनुभव कराना।

अब ऐसे भाषण होने चाहिए तब कुछ चेन्ज होगी। वे समझें कि इन के भाषण तो दुनिया से न्यारे हैं। वह भले भाषण में सभा को हँसा लेते या रूला देते, लेकिन अशरीरीपन का अनुभव नहीं करा सकते और न बाप से स्नेह पैदा करा सकते। कृष्ण से स्नेह करा सकते हैं लेकिन बाप से नहीं करा सकते। उन को पता ही नहीं है, तो निराली बात होनी चाहिए। अच्छा समझो गीता के भगवान् पर प्वाइन्ट्स देते हो। लेकिन जब तक उनको बाप क्या चीज है, हम आत्मा हैं और वह परमात्मा है, जब तक यह अनुभव नहीं कराओ तब तक यह बात सिद्ध भी कैसे होगी? ऐसा कोई भाषण करने वाला हो जो उनको अनुभव कराये कि आत्मा और परमात्मा में रात और दिन का अन्तर है। जब अन्तर महसूस करेंगे तो गीता का भगवान् भी सिद्ध हो ही जायेगा। सिर्फ प्वाइन्ट्स से उनकी बुद्धि में नहीं बैठेगा, उससे तो और ही लहरें उत्पन्न होने लगेंगी। लेकिन अनुभव कराते जाओ तो अनुभव के आगे कोई बात जीत नहीं सकती। भाषण में अब यह तरीका चेंज करो। अच्छा।

मुरली का सारयाद की शक्ति द्वारा ऑब्जेक्ट प्राप्त होती है। योगी जो भी संकल्प करेंगे वह समर्थ होंगे। जो भी कोई समस्या आने वाली होगी, उनका पहले ही योग की शक्ति से अनुभव होगा कि यह होने वाला है। तो पहले ही से पता होने के कारण कभी भी हार नहीं खायेगा।

जो आधार-मूर्त्त हैं यदि उनके संकल्प में सामर्थ्य नहीं तो उनके समय के परिवर्तन में भी कमज़ोरी पड़ जाती है। जितना-जितना स्वयं समर्थ बनेंगे, उतना ही सृष्टि को परिवर्तन करने का समय समीप ला सकेंगे।

यथार्थ विधि से सिद्धि की प्राप्ति

प्रश्न 1: योग की सब्जेक्ट में ऑब्जेक्ट प्राप्त करने से और किसके संकल्प को परिवर्तन में लाने की शक्ति मिलती है?
उत्तर: अपने संकल्पों को समर्थ बनाकर दूसरों के संकल्पों को भी परिवर्तन में लाने की शक्ति प्राप्त होती है।

प्रश्न 2: परफेक्ट आत्मा की मुख्य पहचान क्या है?
उत्तर: परफेक्ट आत्मा किसी भी इफेक्ट से परे रहती है, चाहे वह शरीर, संकल्प या वातावरण से हो।

प्रश्न 3: स्वयं के परिवर्तन से सृष्टि के परिवर्तन का क्या संबंध है?
उत्तर: जब आत्मा स्वयं को परिवर्तन में लाती है, तब उसके प्रभाव से संपूर्ण सृष्टि भी परिवर्तन में आ जाती है।

प्रश्न 4: योगबल से भविष्य की घटनाओं का अनुभव कैसे किया जा सकता है?
उत्तर: योग की शक्ति से पहले ही अनुभव हो जाता है कि कौन-सी परिस्थिति आने वाली है, जिससे आत्मा हार नहीं खाती।

प्रश्न 5: एडवांस पार्टी की भूमिका क्या है?
उत्तर: एडवांस पार्टी स्थापना कार्य के लिए फील्ड तैयार कर रही है और शक्तिशाली आत्माओं का सहयोग लेकर कार्य कर रही है।

प्रश्न 6: लेक्चर प्रभावशाली कब बनता है?
उत्तर: जब शब्दों में आत्म-अनुभूति की शक्ति होती है और श्रोताओं को शब्दों के माध्यम से प्रैक्टिकल अनुभव कराया जाता है।

प्रश्न 7: भाषण के दौरान अशरीरी अनुभव कराने का क्या महत्व है?
उत्तर: जब श्रोता अशरीरी अवस्था का अनुभव करते हैं, तब वे परमात्मा की अनुभूति कर पाते हैं और गहन परिवर्तन होता है।

प्रश्न 8: सफल भाषण की विशेषता क्या होनी चाहिए?
उत्तर: भाषण में ऐसी शक्ति होनी चाहिए कि श्रोता सिर्फ सुनें ही नहीं, बल्कि गहराई से अनुभव करें और परिवर्तन का संकल्प लें।

प्रश्न 9: गीता के भगवान को प्रमाणित करने के लिए कौन-सा तरीका प्रभावी है?
उत्तर: आत्मा और परमात्मा के अनुभव को गहराई से कराना, जिससे गीता का भगवान स्पष्ट रूप से सिद्ध हो सके।

प्रश्न 10: समय परिवर्तन और आत्मा के सामर्थ्य का क्या संबंध है?
उत्तर: जितना आत्मा समर्थ बनती है, उतना ही सृष्टि के परिवर्तन का समय समीप आता है।

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