Avyakta Murli”05-04-1970(2)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं) 

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सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो

वह एक शब्द है लाइट। लाइट का अर्थ एक तो ज्योति भी है और लाइट का अर्थ हल्का भी है। तो हल्कापन और प्रकाशमय भी। अलंकारी भी और आकारी भी। ज्योति स्वरुप भी, ज्वाला स्वरुप भी और फिर हल्का, आकारी। तो एक ही लाइट शब्द में दोनों बातें आ गई ना। इसमें कर्त्तव्य भी आ जाता है। कर्त्तव्य क्या है? लाइट हाउस बनना। लाइट में स्वरुप भी आ जाता है। कर्त्तव्य भी आ जाता है।

हरेक टीचर्स को बापदादा द्वारा पर्सनल ज्ञान रत्नों की सौगात मिली

टिका क्यों लगाया जाता है? जैसे तिलक मष्तिष्क पर ही लगया जाता है, ऐसे ही बिन्दी स्वरुप यह भी तिलक है जो सदैव लगा ही रहे। दूसरा भविष्य का राज्तिकल यह भी तिलक ही है। दोनों की स्मृति रहे। उसकी निशानी यह तिलक है। निशानी को देख नशा रहे। यह निशानी सदा काल के लिए दी जाती है। जैसे सुनाया था पॉइंट, वैसे यह तिलक भी पॉइंट है। समेटना और समाना आता है? समेटना और समाना यह जादूगरी का काम है। जादूगर लोग कोई भी चीज़ को समेट कर भी दिखाते, समाकर भी दिखाते। इतनी बड़ी चीज़ छोटी में भी समाकर दिखाते। यही जादूगरी सीखनी है। प्रैक्टिस यह करो। विस्तार में जाते फिर वहां ही समाने का पुरुषार्थ करो। जिस समय देखो कि बुद्धि बहुत विस्तार में गई हुई है उस समय यह अभ्यास करो। इतना विस्तार को समा सकते हो? तब आप बाप के समान बनेंगे। बाप को जादूगर कहते हैं ना। तो बच्चे क्या हैं? शीतल स्वरुप और ज्योति स्वरुप, दोनों ही स्वरुप में स्थित होना आता है? अभी-अभी ज्योति स्वरुप, अभी-अभी शीतल स्वरुप। जब दोनों स्वरुप में स्थित होना आता है। तब एकरस स्थिति रह सकती है। दोनों की समानता चाहिए यही वर्तमान पुरुषार्थ है।

यह पुष्प क्यों दे रहे हैं? अनेक जन्मों में जो बाप की पूजा की है वह रेतुर्न एक जन्म में बापदादा देता है। जो न्यारा होता है वही अति प्यारा होता है। अगर सर्व का अति प्यारा बनना है, तो सर्व बातों से जितना न्यारा बनेंगे उतना सर्व का प्यारा। जितना न्यारापन उतना ही प्यारापन। और ऐसे जो न्यारे प्यारे होते हैं उनको बापदादा का सहारा मिलता है। न्यारे बनते जाना अर्थात् प्यारे बनते जाना। अगर मानो कोई आत्मा के प्यारे नहीं बन सकते हैं उसका कारन यही होता है कि उस आत्मा के संस्कार और स्वभाव से न्यारे नहीं बनते। जितना जिसका न्यारापन का अनुभव होगा उतना स्वतः प्यारा बनता जायेगा। प्यारे बनने का पुरुषार्थ नहीं, न्यारे बनने का पुरुषार्थ करना है। न्यारे बनने की प्रालब्ध है प्यारा बनने। यह अभी की प्रालब्ध है। जैसे बाप सभी को प्यारा है वैसे बच्चों को सारे जगत की आत्माओं का प्यारा बनने है। उसका पुरुषार्थ सुनाया कि उसकी चलन में न्यारापन। तो यह पुष्प है जग से न्यारे और जग से प्यारे बनने का। इस ग्रुप में हर्ष-पन भी है, अभी हर्ष में क्या ऐड करना है? आकर्षणमूर्त बने हैं वही आकारी मूर्त्त बनते हैं। बाप आकारी होते हुए भी आकर्षणमूर्त थे ना। जितना-जितना आकारी उतना-उतना आकर्षण। जैसे वह लोग पृथ्वी से परे स्पेस में जाते हैं तब पृथ्वी की आकर्षण से परे जाते हैं। तुम पुरानी दुनिया के आकर्षण से परे जायेंगे। फिर न चाहते हुए भी आकर्षणमूर्त बन जायेंगे। साकार में होते हुए भी सभी को आकारी देखना है। सर्विस का भी बहुत बल मिलता है। एक है अपने पुरुषार्थ का बल। एक औरों की सर्विस करने से भी बल मिलता है। तो दोनों ही बल प्राप्त होते हैं। बापदादा का स्नेह कैसे प्राप्त होता है, मालूम हैं? जितना-जितना बाप के कर्त्तव्य में सहयोगी बनते हैं उतना-उतना स्नेह। कर्त्तव्य के सहयोग से स्नेह मिलता है। ऐसा अनुभव है? जिस दिन कर्त्तव्य के अधिक सहयोगी होते हैं, उस दिन स्नेह का विशेष अधिक अनुभव होता है? सदा सहयोगी सदा स्नेही। स्वमान कैसे प्राप्त होता है? जितना निर्माण उतना स्वमान। और जितना-जितना बापदादा के समान उतना ही स्वमान। निर्माण भी बनना है, समान भी बनना है। ऐसा ही पुरुषार्थ करना है। निर्माणता में भी कमी नहीं तो समानता में भी कमी नहीं। फिर स्वमान में भी कमी नहीं। अपनी स्वमान की परख समानता से देखनी है।

बापदादा का अपने से साक्षात्कार कराने लिए क्या बनना पड़ेगा? कोई भी चीज़ का साक्षात्कार किस में होता है? दर्पण में। तो अपने को दर्पण बनाना पड़ेगा। दर्पण तब बनेंगे जब सम्पूर्ण अर्पण होंगे। सम्पूर्ण अर्पण तो श्रेष्ठ दर्पण, जिस दर्पण में स्पष्ट साक्षात्कार होता है। अगर यथायोग्य यथाशक्ति अर्पण हैं तो दर्पण भी यथायोग्य यथाशक्ति है। सम्पूर्ण अर्थात् स्वयं के भान से भी अर्पण। अपने को क्या समझना है? विशेष कुमारी का कर्त्तव्य यही है जो सभी बापदादा का साक्षात्कार कराएं। सिर्फ वाणी से नहीं लेकिन अपनी सूरत से। जो बाप में विशेषताएं थीं साकार में, वे अपने में लानी हैं। यह है विशेष ग्रुप। इस ग्रुप को जैसे साकार में कहते थे जो ओटे सो अर्जुन समान अल्ला। तो इस ग्रुप को भी समान अल्ला बनना है। ऐसे करके दिखाना जैसे मस्तिष्क में यह तिलक चमकता है ऐसे सृष्टि में स्वयं को चमकाना है। ऐसा लक्ष्य रखना है। सर्विस में सहयोगी होने के कारण बापदादा का विशेष स्नेह भी है। सहयोग और स्नेह के साथ अभी शक्ति भरनी है। अभी शक्तिरूप बनना है। शक्तियों में विशेष कौन सी शक्ति भरनी है? सहनशक्ति। जिसमे सहन शक्ति कम उसमे सम्पूर्णता भी कम। विशेष इस शक्ति को धारण करके शक्ति स्वरुप बन जाना है। तृप्त आत्मा जो होती है उनका विशेष गुण है निर्भयता और संतुष्ट रहना। जो स्वयं संतुष्ट रहता है और दूसरों को संतुष्ट रखता है उसमे सर्वगुण आ जाते हैं। जितना-जितना शक्तिस्वरुप होंगे तो कमजोरी सामने रह नहीं सकती। तो शक्तिरूप बनकर जाना। ब्रह्माकुमारी भी नहीं, कुमारी रूप में कहाँ-कहाँ कमजोरी आ जाती है। शक्ति-रूप में संहार की शक्ति है। शक्ति सदैव विजयी है। शक्तियों के गले में सदैव विजय की माला होती है। शक्ति-रूप की विस्मृति से विजय भी दूर हो जाती है इसलिए सदा अपने को शक्ति समझना।

“सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो”

1. सवाल: “लाइट” शब्द का क्या अर्थ है?
उत्तर: “लाइट” का अर्थ है ज्योति और हल्का। यह आकारी और अलंकारी दोनों रूपों में व्यक्त होता है, जिसमें प्रकाश और हल्कापन समाया होता है।

2. सवाल: लाइट का कर्त्तव्य क्या है?
उत्तर: लाइट का कर्त्तव्य है “लाइट हाउस” बनना, अर्थात् प्रकाश फैलाने वाला बनना और स्वयं के रूप में प्रकाश का अनुभव करना।

3. सवाल: बापदादा का स्नेह कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: बापदादा का स्नेह तब मिलता है जब हम उनके कर्त्तव्य में सहयोगी बनते हैं। जितना अधिक सहयोग करते हैं, उतना अधिक स्नेह प्राप्त होता है।

4. सवाल: “न्यारा बनने” का क्या मतलब है?
उत्तर: “न्यारा बनने” का मतलब है कि हम अपनी विशेषताओं में कुछ ऐसा अद्वितीय और अलग बनें, जिससे हम सर्व का प्यारा बन सकें।

5. सवाल: तिलक क्यों लगाया जाता है?
उत्तर: तिलक मष्तिष्क पर लगाया जाता है ताकि वह हमारी स्मृति में बना रहे। बिन्दी स्वरुप तिलक भी हमें सदा अपने उद्देश्य और स्थिति की याद दिलाता है।

6. सवाल: समेटना और समाना कैसे करना है?
उत्तर: समेटना और समाना जादूगरी जैसा कार्य है। हमें विस्तार से समेटने का अभ्यास करना है। जब हम अपनी बुद्धि को विस्तार से समेट सकते हैं, तब हम बाप की तरह बन सकते हैं।

7. सवाल: स्वमान कैसे प्राप्त होता है?
उत्तर: स्वमान प्राप्त करने के लिए हमें निर्माण और समानता दोनों में निरंतर प्रगति करनी होती है। जैसे-जैसे हम बाप के समान बनते जाते हैं, हमारा स्वमान बढ़ता है।

8. सवाल: विशेष ग्रुप का क्या उद्देश्य है?
उत्तर: विशेष ग्रुप का उद्देश्य बापदादा के साक्षात्कार को स्वयं के रूप में प्रकट करना है। हमें अपनी सूरत से ही यह साक्षात्कार प्रकट करना है।

9. सवाल: सहनशक्ति की क्या महत्ता है?
उत्तर: सहनशक्ति विशेष शक्ति है। यह शक्ति हमें सम्पूर्णता की ओर ले जाती है। जब हमारी सहनशक्ति बढ़ती है, तो हम संतुष्ट और निर्भय रहते हैं।

10. सवाल: शक्तिरूप बनने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: शक्तिरूप बनने से हमारी कमजोरी समाप्त हो जाती है, और हम हर परिस्थिति में विजयी रहते हैं। शक्ति सदैव विजय की माला पहनती है।

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