Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो
बच्चे बाप से बड़े जादूगर है। बापसे बड़े जादूगर इसलिए, जो बाप को जो बनाने चाहते वह बना सकते हैं। बाप के लिए तो गायन है कि जो चाहे सो बना सकते लेकिन को जो चाहे सो बना सकते, वह कौन? बच्चे। अव्यक्त होते भी व्यक्त में लाते यह जादूगरी कहें? अव्यक्त होने के दिन नजदीक हैं तब तो अव्यक्त की लिफ्ट मिली है। ज्ञानमूर्त्त और यादमूर्त्त दोनों में समान बनना है। जब चाहे तब ज्ञान मूर्त्त जब चाहे तब याद मूर्त्त बनें। जितना जो खुद याद मूर्त्त हो रहता रहता है उतना ही वह औरों को बाप की याद दिला सकते हैं। याद मूर्त्त बन सभी को याद दिलाना है। समय का इंतज़ार करती हो या समय तुम्हारा इंतज़ार करता है? समय के लिए अपने को इंतज़ार नहीं करना है। अपने को सदैव ऐसे ही एवररेडी रखना है जो कभी भी समय आ जाये। इंतज़ार को ख़त्म करके इंतज़ाम रखना है। जब अपना इंतज़ाम पूरा होता है फिर इंतज़ार करने की आवश्यकता नहीं रहती। उसको ही कहा जाता है एवररेडी। सब में एवररेडी। सिर्फ सर्विस में नहीं, पुरुषार्थ में भी एवररेडी। संस्कारों को समीप करने में भी एवररेडी। विशेष स्नेह है इसलिए विशेष बनाने की बातें चल रही हैं। वृक्ष में जो पीछे-पीछे फुल और पत्ते लगते हैं वे कैसे होते हैं? पहलेवाले पुराने होते हैं और पीछे वाले बड़े सुंदर होते हैं। तो यह भी पीछे आये हैं लेकिन प्यारे बहुत हैं। पीछे वाले नर्म बहुत हैं। यहाँ नर्म में क्या है? जितना नर्म उतना गर्म। अगर सिर्फ नर्म होंगे कोई छीन भी लेगा। कोमल बनने के साथ कमाल करनी है। कोमलता और कमाल दोनों ही संग होने से कमाल कर दिखाते हैं? यह सारा ग्रुप कमाल करके दिखानेवाला है। ऐसा लक्ष्य रखना है जो कोई कमाल करके दिखाए। तब कहेंगे बड़े, बड़े हैं लेकिन छोटे समान अल्ला। जैसा-जैसा कर्म करेंगे वैसा नाम पड़ेगा। अगर श्रेष्ठ काम करेंगे तो नाम पड़ेगा। श्रेष्ठमणि। श्रेष्ठमणि को सर्व कार्य श्रेष्ठ करने पड़ते हैं। मन, वाणी, कर्म में सरलता और सहनशीलता यह दोनों आवश्यक हैं। अगर सरलता है सहनशीलता नहीं तो भी श्रेष्ठ नहीं। इसलिए सरलता और सहनशीलता दोनों साथ-साथ चाहिए। अगर सहनशीलता के बिना सरलता आ जाती है तो भोलापन कहा जाता है। सरलता के साथ सहनशीलता है तो शक्ति स्वरुप कहा जाता है। शक्तियों में सरलता और सहनशीलता दोनों ही गुण चाहिए। अभी की रिजल्ट में यही देखते हैं कि कहाँ सहनशीलता अधिक है कहाँ सरलता अधिक है। अब इन दोनों को समान बनाना है। मधुरता भी चाहिए। शक्ति रूप भी चाहिए। देवियों के चित्र बहुत देखते हैं तो उसमें क्या देखते हैं? जितना ज्वाला उतनी शीतलता। कर्त्तव्य ज्वाला का है सूरत शीतलता की है। यह है अन्तिम स्वरुप।
जैसे बुद्धि से छोटा बिन्दु खिसक जाता है। ऐसे यह छोटा बिंदु भी हाथ से खिसक जाता है। जितना-जितना अपने देह से न्यारे रहेंगे उतना समय बात से भी न्यारे। जैसे वस्त्र उतारना और पहनना सहज है कि मुश्किल? इस रीत न्यारे होंगे तो शरीर के भान में आना, शरीर के भान से निकलना यह भी ऐसे लगेगा। अभी-अभी शरीर का वस्त्र धारण किया, अभी-अभी उतारा। मुख्य पुरुषार्थ आज इस विशेष बाप पर करना है। जब यह मुख्य पुरुषार्थ करेंगे तब मुख्य रत्नों में आएंगे। यह बिन्दी लगाना कितना सहज है। ऐसे ही बिन्दी रूप हो जाना सहज है।
ब्राहमणों की लेन देन कौन सी होती है? स्नेह लेना और स्नेह देना। स्नेह देने से ही स्नेह मिलता है। स्नेह के देने लेने से बाप का स्नेह भी लेते और ऐसे ही स्नेही समीप होते हैं। स्नेह वाले दूर होते भी समीप हैं। बापदादा के समीप आने लिए स्नेह की लेन-देन करके समीप आना है। इस लेन-देन में रात दिन बिताना है। यही ब्राह्मणों का कर्त्तव्य है, तो ब्राह्मणों का लक्षण भी हैं। स्नेही बनने लिए क्या करना पड़ेगा? जितना जो विदेही होगा उतना वो स्नेही होगा। तो विदेही बनना अर्थात् स्नेही बनना क्योंकि बाप विदेही है ना। ऐसे ही देह में रहते भी विदेही रहने वाले सर्व के स्नेही रहते हैं। यही नोट करना है कितना विदेही रहते हैं। ऐसा श्रेष्ठ सौभाग्य कब स्वप्न में भी था? तो जैसे यह स्वप्न में भी संकल्प नहीं था ऐसे ही जो भी कमजोरियां हैं उन्हों का भी स्वप्न में संकल्प नहीं रहना चाहिए। ऐसा पुरुषार्थ करना है। लक्ष्य भी रखो कि यह कमजोरियां पूर्व जन्म के बहुत जन्मों की हैं। वर्तमान जन्म के लिए ऐसी कमजोरियों का प्रायःलोप करो। मास्टर सर्वशक्तिमान हो? सर्वशक्तिमान के बच्चे अर्थात् सर्वशक्तिमान। ऐसे कभी नहीं कहें कि मैं यह नहीं कर सकती। सब कुछ कर सकती हूँ। कोई भी असंभव बाप नहीं। कोई मुश्किल बात भी सहज। उनके लिए कुछ मुश्किल होता है? नहीं। मास्टर सर्वशक्तिमान बनना है। एक शक्ति की भी कमी न रहे। जहाँ अकेला बनो वहाँ साथ समझो। कहाँ अकेला भेजें तो साथ समझेंगे ना। अगर शिवबाबा साथ है तो फिर कहाँ अकेली हो तो अकेलापन लगेगा नहीं। अकेले रहते भी साथ का अनुभव हो। यह अभ्यास ज़रूर करना चाहिए। और साथ रहते भी अकेला समझे, यह भी अभ्यास चाहिए। साथ भी रह सकें और अकेला भी रह सकें। अकेला अर्थात् न्यारा। संगठन अर्थात् प्यारा। न्यारे भी हों तो प्यारे भी हों। अभ्यास दोनों चाहिए। बाप अकेला रहता है या साथ में रहता है? अकेला रहना ही साथ है। बाहर का अकेलापन और अन्दर का साथ। बाहर के साथ से अकेलापन भूल जाते हैं। लेकिन बाहर से अकेले अन्दर से अकेले नहीं।
सभी से श्रेष्ठ मणि कौन होते हैं? मस्तकमणि कौन बनता है? जो मस्तक में विराजमान हुई आत्मा में ज्यादा समय उपस्थित रहता है। वह थोड़े होते हैं। मस्तक में थोड़े, ह्रदय में बहुत होते हैं। सभी से पहले नज़र कहाँ जाती है? ऐसे मस्तकमणि बनना है। मस्तकमणि वह बनते हैं जो सदैव आस्तिक रहते हैं। वह सदैव हाँ करते हैं। जो आस्तिक है, वही मस्तकमणि हैं। कोई भी बात में ना शब्द संकल्प में भी न हो। ऐसे गुण वाले मस्तक में आ जाते हैं।
गायन योग्य कौन बनते हैं और पूजन योग्य कौन बनते हैं? एक ही बात से दोनों योग्य बनते हैं या दोनों के लिए दो विशेष बातें हैं? कई ऐसी भी देवियाँ हैं जिनका गायन बहुत है पूजन कम है। और कई देवियों का दोनों होता है। तो जो कब कैसे, कब कैसे रहते हैं उनका पूजा एकरस नहीं रहता और जो सदा पानी स्थिति में रहते तो उनका पूजन भी सदा रहता है। एकरस रहनेवाले का पूजन एकरस होता है। पुरुषार्थ में कब शब्द नहीं रहना चाहिए। तीव्र पुरुषार्थी की निशानी है जो कब न कह अब कहते हैं। जो पुरुषार्थ में कब कहेंगे तो उनकी पूजा भी कम। इसलिए कोई भी बात में कब देखेंगे, नहीं। लेकिन अब दिखाऊंगा। इसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थी। सम्पूर्ण स्थिति जो होती है उसमे सर्व शक्तियां संपन्न होती हैं। सर्व शक्ति संपन्न बनने से सर्व गुण संपन्न बनेंगे। भविष्य में बनना है सर्वगुण संपन्न, अब बनना है सर्व शक्ति संपन्न। जितना सर्व शक्ति संपन्न उतना सर्व गुण संपन्न बनेंगे।
कितनी शक्तियां होती है? मालूम हैं? कौन सी शक्तियां सुनाई थीं? एक है स्नेह शक्ति, सम्बन्ध शक्ति, सहयोग शक्ति, सहन शक्ति। यह चार शक्तियाँ हैं, तो संबंद समीप है। चारों समान हों। ज्यादा साहस है व सहन शक्ति है? साहस अर्थात् हिम्मत। जो हिम्मत वाले होते हैं उनको मदद मिलती है। मदद मांगने से नहीं मिलती। हिम्मत रखनी पड़ती है। हिम्मत पुरु रखते हैं मदद बहुत मिलती है। हिम्मत है तो सर्व बातों में मदद है। सदैव हिम्मतवान बनना है फिर बापदादा, दैवी परिवार की मदद आपे ही मिलेगी। स्नेहमूर्त्त हो? शक्तिमूर्त्त हो? स्नेह और शक्ति दोनों की आवश्यकता है। शक्तिरूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध में आते हो। अगर शक्ति नहीं होती तो माया पर विजय नहीं पाते हो। इसलिए शक्ति रूप से विजयी और स्नेह रूप से सम्बन्ध भी चाहिए। दोनों चाहिए। बाप को सर्वशक्तिमान और प्यार का सागर भी कहते हिं। तो स्नेह और शक्ति दोनों चाहिए।
सितारे कितने होते हैं? आप अपने को क्या समझती हो? बापदादा ने कौन से नाम रखे हैं? लकी सितारे हो। अपने को लकी समझते हो? लकी तो सभी हैं जब से बाप के बने हो। लेकिन लकी में भी सदैव सफलता के सितारे। कोई समीप के सितारे, कोई उम्मीद के सितारे। वह हरेक का अपना है। अब सोचना है कि मैं कौन हूँ? अपने को सफलता का सितारा समझना है। प्रत्यक्षफल की कामना नहीं रखनेवाले सफलता पाते हैं।
सर्व पॉइंट का सार पॉइंट (बिन्दी) बनो – प्रश्न और उत्तर
1. सवाल: बच्चे बाप से बड़े जादूगर क्यों होते हैं?
उत्तर: क्योंकि बच्चे बाप को जो बनाना चाहते हैं, वह बना सकते हैं। बाप के लिए तो गायन है कि जो चाहे सो बना सकते हैं, लेकिन बच्चे वही कर सकते हैं।
2. सवाल: अव्यक्त की लिफ्ट किसे मिली है?
उत्तर: अव्यक्त की लिफ्ट बच्चों को मिली है, जो अव्यक्त होने के दिन नजदीक हैं।
3. सवाल: एवररेडी होने का क्या मतलब है?
उत्तर: एवररेडी का मतलब है, हमेशा तैयार रहना और समय आने पर बिना किसी इंतजार के अपनी भूमिका निभाना।
4. सवाल: शक्ति और स्नेह दोनों में क्या संबंध है?
उत्तर: शक्ति रूप से विजय प्राप्त होती है और स्नेह रूप से संबंध भी बनते हैं। दोनों की आवश्यकता है ताकि माया पर विजय प्राप्त की जा सके।
5. सवाल: सरलता और सहनशीलता दोनों क्यों जरूरी हैं?
उत्तर: सरलता और सहनशीलता दोनों एक साथ चाहिए, क्योंकि सरलता के बिना सहनशीलता नहीं होती और सहनशीलता के बिना सरलता भोलापन बन जाती है।
6. सवाल: किसे मस्तकमणि और ह्रदय मणि कहा जाता है?
उत्तर: मस्तकमणि वह होते हैं, जो अपने मस्तक में अधिक समय तक रहते हैं। ह्रदय मणि अधिकतर ह्रदय में होते हैं।
7. सवाल: तीव्र पुरुषार्थी कौन होते हैं?
उत्तर: तीव्र पुरुषार्थी वे होते हैं, जो कभी भी “न” नहीं कहते और किसी भी काम में जल्दी और दृढ़ नायक बनते हैं।
8. सवाल: स्नेह और शक्ति में कौन सी शक्तियां शामिल हैं?
उत्तर: स्नेह शक्ति, संबंध शक्ति, सहयोग शक्ति, सहन शक्ति इन चार शक्तियों का संतुलन स्नेह और शक्ति की आवश्यकता को पूरा करता है।
9. सवाल: सफलता के सितारे कौन होते हैं?
उत्तर: सफलता के सितारे वे होते हैं, जो प्रत्यक्षफल की कामना नहीं रखते और हमेशा अपने कर्मों में सफलता प्राप्त करते हैं।
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