Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
संगठन की शक्ति – एक संकल्प
सर्व-श्रेष्ठ मत देने वाले, सदा अभूल बनाने वाले शिव-बाबा बोले –
सभी किस संकल्प में बैठे हो? सभी का एक संकल्प है ना? जैसे अभी सभी का एक संकल्प चल रहा था, वैसे ही सभी एक ही लगन अर्थात् एक ही बाप से मिलन की, एक ही ‘अशरीरी-भव’ बनने के शुद्ध-संकल्प में स्थित हो जाओ। तो सभी के संगठन रूप का यह एक शुद्ध संकल्प क्या कर सकता है? किसी के भी और दूसरे संकल्प न हों। सभी एक-रस स्थिति में स्थित हों तो बताओ वह एक सेकेण्ड के शुद्ध संकल्प की शक्ति क्या कमाल कर देती है? तो ऐसे संगठित रूप में एक ही शुद्ध संकल्प अर्थात् एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास करना है। तब ही विश्व के अन्दर शक्ति सेना का नाम बाला होगा।
जैसे स्थूल सैनिक जब युद्ध के मैदान में जाते हैं तो एक ही ऑर्डर से एक ही समय वे चारों ओर अपनी गोली चलाना शुरू कर देते हैं। अगर एक ही समय, एक ही ऑर्डर से वे चारों ओर घेराव न डालें तो विजयी नहीं बन सकते। ऐसे ही रूहानी सेना, संगठित रूप में, एक ही इशारे से और एक ही सेकेण्ड में, सभी एक-रस स्थिति में स्थित हो जायेंगे, तब ही विजय का नगाड़ा बजेगा। अब देखो कि संगठित रूप में क्या सभी को एक ही संकल्प और एक ही पॉवरफुल स्टेज (Powerful Stage) के अनुभव होते हैं या कोई अपने को ही स्थित करने में मस्त होते हैं, कोई स्थिति में स्थित होते हैं और कोई विघ्न विनाश् करने में ही व्यस्त होते हैं? ऐसे संगठन की रिजल्ट में क्या विजय का नगाड़ा बजेगा?
विजय का नगाड़ा तब बजेगा जब सभी के सर्व-संकल्प, एक संकल्प में समा जायेंगे, क्या ऐसी स्थिति है? क्या सिर्फ थोड़ी सी विशेष आत्माओं की ही एक-रस स्थिति की अंगुली से कलियुगी पर्वत उठना है या सभी के अंगुली से उठेगा? यह जो चित्र में सभी की एक ही अंगुली दिखाते हैं उसका अर्थ भी संगठन रूप में एक संकल्प, एक मत और एक-रस स्थिति की निशानी है। तो आज बापदादा बच्चों से पूछते हैं कि यह कलियुगी पहाड़ कब उठायेंगे और कैसे उठायेंगे? वह तो सुना दिया, लेकिन कब उठाना है? (जब आप ऑर्डर करेंगे) क्या एक-रस स्थिति में एवर-रेडी हो? ऑर्डर क्या करेंगे? ऑर्डर यही करेंगे कि एक सेकेण्ड में सभी एक-रस स्थिति में स्थित हो जाओ। तो ऐसे ऑर्डर को प्रैक्टिकल में लाने के लिए एवर-रेडी हो? वह एक सेकेण्ड सदा काल का सेकेण्ड होता है। ऐसे नहीं कि एक सेकेण्ड स्थिर हो फिर नीचे आ जाओ।
जैसे अन्य अज्ञानी आत्माओं को ज्ञान की रोशनी देने के लिये सदैव शुभ भावना व कल्याण की भावना रखते हुए प्रयत्न करते रहते हो। ऐसे ही क्या अपने इस दैवी संगठन को भी एक-रस स्थिति में स्थित करने के संगठन की शक्ति को बढ़ाने के लिए एक-दूसरे के प्रति भिन्न-भिन्न रूप से प्रयत्न करते हो? क्या ऐसे भी प्लान्स बनाते हो जिससे कि किसी को भी इस दैवी संगठन की मूर्त्त में एक-रस स्थिति का प्रत्यक्ष रूप में साक्षात्कार हो – ऐसे प्लान्स बनाते हो? जब तक इस दैवी संगठन की एक-रस स्थिति प्रख्यात नहीं होगी तब तक बापदादा की प्रत्यक्षता समीप नहीं आयेगी-ऐसे एवर-रेडी हो? जबकि लक्ष्य रखा है विश्व महाराजन् बनने का, इनडिपैन्डैन्ट राजा नहीं। ऐसे अभी से ही लक्षण धारण करने से लक्ष्य को प्राप्त करेंगे ना? हरेक ब्राह्मण की रेसपॉन्सीबिलिटी न सिर्फ अपने को एक-रस बनाना है लेकिन सारे संगठन को एक-रस स्थिति में स्थित कराने के लिये सहयोगी बनना है। ऐसे नहीं खुश हो जाना कि मैं अपने रूप से ठीक ही हूँ। लेकिन नहीं।
अगर संगठन में व माला में एक भी मणका भिन्न प्रकार का होता है तो माला की शोभा नहीं होती। तो ऐसे संगठन की शक्ति ही उस परमात्म-ज्ञान की विशेषता है। उत्तम ज्ञान और परमात्म-ज्ञान में अन्तर यह है। वहाँ संगठन की शक्ति नहीं होती लेकिन यहाँ संगठन की शक्ति है। तो जो इस परमात्म- ज्ञान की विशेषता है इससे ही विश्व में सारे कल्प के अन्दर वह समय गाया हुआ है। ‘एक धर्म’, ‘एक राज्य’, ‘एक मत’ – यह स्थापना कहाँ से होगी? इस ब्राह्मण संगठन की विशेषता-देवता रूप में प्रैक्टिकल चलते हैं। इसलिये पूछ रहे हैं कि यह विशेषता, जिससे कमाल होनी है, नाम बाला होना है, प्रत्यक्षता होनी है, असाधारण रूप, अलौकिक रूप प्रत्यक्ष होना है, अब प्रत्यक्ष में हैं? इस विशेषता में एवर-रेडी हो? संगठन के रूप में एवर-रेडी? कल्प पहले का रिजल्ट (Result) तो निश्चित है ही लेकिन अब घूंघट को हटाओ सभी सजनियाँ घूंघट में हैं। अब अपने निश्चय को साकार रूप में लाओ। कहींकहीं साकार रूप, आकार में हो जाता है। इसको साकार रूप में लाना अर्थात् सम्पूर्ण स्टेज को प्रत्यक्ष करना है। उस दिन सुनाया था न कि परिवर्तन सभी में आया है लेकिन अब सम्पूर्ण परिवर्तन को प्रत्यक्ष करो। जब अपना भी वर्णन करते हो तो यही कहते हो – परिवर्तन तो बहुत हो गया है, ‘फिर भी’… यह फिर भी शब्द क्यों आता है? यह शब्द भी समाप्त हो जाये। हरेक में जो मूल संस्कार हैं, जिसको आप लोग नेचर कहती हो, वह मूल संस्कार अंश-मात्र में भी न रहे। अभी तो अपने को छुड़ाते हो। कोई भी बात होती है तो कहते हैं, मेरा यह भाव नहीं था। मेरी नेचर ऐसी है, मेरा संस्कार ऐसा है और ऐसी बात नहीं थी। तो क्या यह सम्पूर्ण नेचर है?
हरेक का जो अपना मूल संस्कार है वही आदि संस्कार है। उनको भी जब परिवर्तन में लायेंगे, तब ही सम्पूर्ण बनेंगे। अब छोटी-छोटी भूलें तो परिवर्तन करना सहज ही है। लेकिन अब लास्ट पुरूषार्थ अपने मूल संस्कारों को परिवर्तन करना है। तब ही संगठन रूप में एक-रस स्थिति बन जायेगी। अब समझा? यह तो सहज है ना-करना? कॉपी करना तो सहज होता है। अपना- अपना जो मूल संस्कार है, उसको मिटाकर बापदादा के संस्कारों को कॉपी करना सहज है या मुश्किल है? इसमें कॉपी भी रीयल हो जायेगी। सभी बापदादा के संस्कारों में समान हो। एक-एक बापदादा के समान हो गया फिर तो एक-एक में बापदादा के संस्कार दिखाई देंगे। तो प्रत्यक्षता किसकी होगी? बापदादा की। जैसे भक्ति-मार्ग में कहावत है जिधर देखते हैं उधर तू ही तू है। लेकिन यहाँ प्रैक्टिकल में दिखाई देखें, जिसको देखें वहाँ बापदादा के संस्कार ही प्रैक्टिकल में जहाँ देवें। यह मुश्किल है क्या? मुश्किल इसलिए लगता है जब फॉलो करने के बजाय अपनी बुद्धि चलाते हो। इसमें अपने ही संकल्प के जाल में फँस जाते हो। फिर कहते हो कैसे निकलें? और निकलने का पुरूषार्थ भी तब करते हो जब पूरा फँस जाते हो। इसलिये समय भी लगता है और शक्ति भी लगती है। अगर फॉलो करते जाओ तो समय और शक्ति दोनों ही बच जावेंगी और जमा हो जावेंगी। मुश्किल को सहज बनाने के लिये लास्ट पुरूषार्थ में सफलता प्राप्त करने के लिये कौन-सा पाठ पक्का करेंगे। जो अभी सुनाया कि ‘फॉलो-फादर’। यह तो पहला पाठ है। लेकिन पहला पाठ ही लास्ट स्टेज को लाने वाला है। इसलिए इस पाठ को पक्का करो। इसको भूलो मत। तो सदा काल के लिये अभूल, एक-रस बन जायेंगे। अच्छा।
ऐसे तीव्र पुरुषार्थी, सदा एक-रस, एक-मत, और एक ही के लगन में रहने वाली श्रेष्ठ आत्माओं को नमस्ते।
महावाक्यों का सार
- जैसे सैनिक, एक ही ऑर्डर से, एक ही समय चारों ओर गोली चलाना शुरू कर देते हैं तभी विजयी बनते हैं अन्यथा विजयी बन नहीं सकते। ऐसे ही जब रूहानी सेना संगठित रूप से, एक सेकेण्ड में एक-रस स्थिति में स्थित होगी तब ही विजय का नगाड़ा बजेगा।
- संगठन की शक्ति ही परमात्म-ज्ञान की विशेषता है। इसी कारण विश्व में सारे कल्प के अन्दर वह समय गाया हुआ है-एक धर्म, एक राज्य, एक मत और एक भाषा।
- जैसे भक्ति मार्ग में कहावत है – ‘जिधर देखता हूँ उधर तू ही तू है।’ लेकिन यहाँ प्रैक्टिकल में जहाँ देखें, जिसको देखें वहाँ बापदादा के संस्कार ही प्रैक्टिकल में दिखाई देवें। यह तब होगा जब बापदादा को फॉलो करेंगे।
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संगठन की शक्ति – एक संकल्प (प्रश्नोत्तर)
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संगठित रूप में एक संकल्प से क्या शक्ति प्राप्त होती है?
✨ यह शक्ति विश्व-कल्याण में असाधारण परिवर्तन ला सकती है। -
एक-रस स्थिति बनाने का अभ्यास क्यों आवश्यक है?
✨ ताकि रूहानी सेना संगठित होकर एक ही संकल्प में स्थित हो सके और विजय प्राप्त करे। -
सैनिकों के संगठन की किससे तुलना की गई है?
✨ जैसे सैनिक एक ही आदेश पर एक साथ कार्य करते हैं, वैसे ही आत्माओं को एक-रस स्थिति में स्थित होना चाहिए। -
विजय का नगाड़ा कब बजेगा?
✨ जब सभी आत्माएँ अपने अलग-अलग संकल्पों को छोड़कर एक संकल्प में समा जाएँगी। -
‘एक धर्म, एक राज्य, एक मत’ की स्थापना कहाँ से होगी?
✨ यह ब्राह्मण संगठन की विशेषता से ही संभव होगी। -
संगठन की शक्ति को प्रकट करने के लिए क्या करना चाहिए?
✨ सभी को बापदादा के समान बनकर उनके संस्कारों को धारण करना चाहिए। -
माला की शोभा किससे जुड़ी हुई है?
✨ यदि माला में एक भी मनका भिन्न हो तो उसकी शोभा कम हो जाती है, इसलिए सभी को संगठित होना आवश्यक है। -
बापदादा की प्रत्यक्षता किससे होगी?
✨ जब हर आत्मा में बापदादा के संस्कार स्पष्ट रूप से प्रकट होंगे। -
बापदादा को फॉलो करने से क्या लाभ होगा?
✨ इससे समय और शक्ति दोनों की संगठन, शक्ति, संकल्प, शिव बाबा, बापदादा, आध्यात्मिक संगठन, एक-रस स्थिति, अशरीरी भव, आत्मा की शक्ति, दिव्य संगठन, आध्यात्मिक युद्ध, रूहानी सेना, विजय, आध्यात्मिक संकल्प, परमात्म ज्ञान, ब्राह्मण जीवन, संगठित साधना, दिव्य परिवर्तन, ध्यान, आध्यात्मिक पुरुषार्थ, ब्राह्मण संगठन, संगठित शक्ति, आध्यात्मिक उत्थान, आत्मा का कल्याण, एक धर्म, एक राज्य, आत्मिक एकता, दिव्य अनुभव, शुभ भावना, आध्यात्मिक नेतृत्वOrganisation, power, resolution, Shiv Baba, BapDada, spiritual organisation, one-pointed state, be bodiless, power of the soul, divine organisation, spiritual war, spiritual army, victory, spiritual resolution, divine knowledge, Brahmin life, organised sadhana, divine transformation, meditation, spiritual effort, Brahmin organisation, organised power, spiritual upliftment, welfare of the soul, one religion, one kingdom, spiritual unity, divine experience, good feelings, spiritual leadership
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