Avyakta Murli”15-03-1972(2)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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त्याग और भाग्य

जैसे संकल्प करेंगे वैसे ही स्मृति रहेगी और जैसी स्मृति रहेगी वैसी समर्थी हर कर्म में आयेगी। इसलिए स्मृति को सदैव श्रेष्ठ रखो। तो अब क्या करेंगे? हर सेकेण्ड के त्याग से हर सेकेण्ड की प्राप्ति करते चलो। क्योंकि यही संगमयुग है जो भाग्य प्राप्त करने का है। अभी जो भाग्य बनाया वह सारे कल्प में भोगना पड़ता है – चाहे श्रेष्ठ, चाहे नीच। लेकिन यह संगमयुग ही है जिसमें भाग्य बना सकते हो। जितना चाहो उतना बना सकते हो क्योंकि भाग्य बनाने वाला बाप साथ है। फिर यह बाप साथ नहीं रहेगा, न यह प्राप्ति रहेगी। प्राप्ति कराने वाला भी अब है और प्राप्ति भी अब होनी है। अब नहीं तो कब नहीं – यह स्लोगन स्मृति में रखो। स्लोगन लिखे हुए तो रहते हैं ना। यह समझते हो कि यह स्लोगन हमारे लिए हैं? अगर सदैव यह स्मृति में रहे — कि अब नहीं तो कब नहीं तो फिर क्या करेंगे? सदैव सोचेंगे – जो करना है तो अब कर लें। तो सदा यह स्लोगन स्मृति में रखो। अपनी स्थिति को सदा त्याग और सदा भाग्यशाली बनाने के लिए चेकिंग तो करनी है लेकिन चेकिंग में भी मुख्य चेकिंग कौनसी करनी है जिस चेकिंग करने से आटोमेटिकली चेंज आ जाए? क्या चेकिंग करनी है उसके लिए एक स्लोगन है, वह स्लोगन कौनसा है? जो बहुत बार सुनाया है – ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’। अब कम खर्च बाला नशीन कैसे बनना है?

वो लोग तो स्थूल धन में ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बनने का प्रयत्न करते हैं। लेकिन आप लोगों के लिए संगमयुग में कितने प्रकार के खज़ाने हैं, मालूम है? समय, संकल्प, श्वास तो है ही खज़ाना लेकिन उसके साथ अविनाशी ज्ञान-रत्न का खज़ाना भी है और पांचवा स्थूल खज़ाने से भी इसका सम्बन्ध है। तो यह चेक करो-संकल्प के खज़ाने में भी ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बने हैं? ज्यादा खर्च नहीं करो। अपने संकल्प के खज़ाने को व्यर्थ न गंवाओ तो समर्थ और श्रेष्ठ संकल्प होगा। श्रेष्ठ संकल्प से प्राप्ति भी श्रेष्ठ होगी ना। ऐसे ही जो समय का खज़ाना है संगमयुग का, इस संगमयुग के समय को अगर व्यर्थ न खर्च करो तो क्या होगा? एक-एक सेकेण्ड में अनेक जन्मों की कमाई का साधन कर सकेंगे। इसलिए यह समय व्यर्थ नहीं गंवाना है। ऐसे ही जो श्वॉस अर्थात् हर श्वॉस में बाप की स्मृति रहे, अगर एक भी श्वॉस में बाप की याद नहीं तो समझो व्यर्थ गया। तो श्वॉस को भी व्यर्थ नहीं गंवाना। ऐसे ही ज्ञान का खज़ाना जो है उसमें भी अगर खज़ाने को सम्भालने नहीं आता, मिला और खत्म कर दिया तो व्यर्थ चला गया। मनन नहीं किया ना। मनन के बाद उस खज़ाने से जो खुशी प्राप्त होती है, उस खुशी में स्थित रहने का अभ्यास नहीं किया तो व्यर्थ चला गया ना। जैसे भोजन किया, हजम करने की शक्ति नहीं तो व्यर्थ जाता है ना। इसी प्रकार यह ज्ञान के खज़ाने आपके प्रति वा दूसरी आत्माओं को दान देने के प्रति न लगाया तो व्यर्थ गया ना। ऐसे ही यह स्थूल धन भी अगर ईश्वरीय कार्य में, हर आत्मा के कल्याण के कार्य में वा अपनी उन्नति के कार्य में न लगाकर अन्य कोई स्थूल कार्य में लगाया तो व्यर्थ लगाया ना। क्योंकि अगर ईश्वरीय कार्य में लगाते हो तो यह स्थूल धन एक का लाख गुणा बनकर प्राप्त होता है और अगर एक व्यर्थ गंवा दिया तो एक व्यर्थ नहीं गंवाया लेकिन लाख व्यर्थ गंवाया। इसी प्रकार जो संगमयुग का सर्व खज़ाना है उस सर्व खज़ाने को चेक करो कि कोई भी खज़ाना व्यर्थ तो नहीं जाता है? तो ऐसे ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बने हो या अब तक अलबेले होने के कारण व्यर्थ गंवा देते हो? जो अलबेले होते हैं वह व्यर्थ गंवाते हैं और जो समझदार होते हैं, नॉलेजफुल होते हैं, सेन्सीभले होते हैं वह एक छोटी चीज़ भी व्यर्थ नहीं गंवाते। ऐसे के लिए ही कहा जाता है ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’। ऐसे हो? जैसे साकार बाप ने ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ बनकर के दिखाया ना। तो क्या फालो फादर नहीं करना है? कोई भी स्थूल धन, अगर स्थूल धन नहीं है तो जो यज्ञ-निवासी हैं उनके लिए यह यज्ञ की हर वस्तु ही स्थूल धन के समान है। अगर यज्ञ की कोई भी वस्तु व्यर्थ गंवाते हैं तो भी ‘‘कम खर्च बाला-नशीन’’ नहीं कहेंगे। जो प्रवृत्ति में रहने वाले हैं, स्थूल धन से अपना पद ऊंच बना सकते हैं, वैसे ही यज्ञ-निवासी भी अगर यज्ञ की स्थूल वस्तु ‘‘कम खर्च बाला-नशीन’’ बनकर यूज करते हैं, अपने प्रति वा दूसरों के प्रति, उनका भी इस हिसाब से भविष्य बहुत ऊंच बनता है। ऐसे नहीं कि स्थूल धन तो प्रवृत्ति वालों के लिए साधन है लेकिन यज्ञ- निवासियों के यज्ञ की सेवा भी, यज्ञ की वस्तु की एकानामी रूपी धन स्थूल धन से भी ज्यादा कमाई का साधन है।

इसलिए जब यज्ञ की एक भी चीज़ यथार्थ रूप से लगाते हो वा सम्भाल करते हो, व्यर्थ से बचाव करते हो तो समर्थी आती है भविष्य प्राप्ति के लिए। व्यर्थ से बचाव किया, अपना भविष्य बनाने की तो प्राप्ति हुई ना। इसलिए हरेक को अपने आपको चेक करना है। तो अपने को ‘‘कम खर्च बाला नशीन’’ कितना बनाया है? व्यर्थ से बचो, समर्थ बनो। जहां व्यर्थ है वहां समर्थ ज़रा भी नहीं और जहां समर्थी है वहां व्यर्थ जावे – यह हो नहीं सकता। अगर खज़ाना व्यर्थ जाता है तो समर्थी नहीं आ सकती है। जैसे देखो, कोई लीकेज होती है, कितना भी कोशिश करो लेकिन लीकेज कारण शक्ति भर नहीं सकती है। तो व्यर्थ भी लीकेज होने के कारण कितना भी पुरूषार्थ करेंगे, कितना भी मेहनत करेंगे लेकिन शक्तिशाली नहीं बन सकेंगे। इसलिए लीकेज को चेक करो। लीकेज को चेक करने के लिए बहुत होशियारी चाहिए। कई बार लीकेज तो मिलती नहीं है। बहुत होशियार होते हैं नॉलेजफुल होते हैं वह लीकेज को कैच कर सकते हैं। नॉलेजफुल नहीं तो लीकेज को ढूँढ़ते रहते हैं। तो अब नॉलेजफुल बन चेक करो तो व्यर्थ से समर्थ हो जायेंगे। समझा? अच्छा, मैसूर वाले क्या याद रखेंगे? माताएं सिर्फ याद की यात्रा में रहती हैं ना। क्योंकि भाषा तो समझ नहीं सकतीं। यह तो याद रखेंगी ना — कम खर्च बाला नशीन। फिर भी भाग्यशाली हो। यह तो समझती हो सारे सृष्टि में हम विशेष आत्माएं हैं? अच्छा। यह समझती हो कि यहां कई बार आये हैं या समझती हो कि पहली बार ही आये हैं? कोई बन्धन नहीं है तो अपने को भाग्यशाली समझती हो या दुर्भाग्यशाली समझती हो? निर्बन्धन हो तो अपना भविष्य ऊंच बना सकती हैं। आप तो डभले भाग्यशाली हो — एक तो बाप मिला, दूसरा भविष्य बनाने के लिए निर्बन्धन बनी हो। और ही खुशी होती है ना। ऐसे तो नहीं – पता नहीं क्या है? दु:ख तो महसूस नहीं होता? सुख अनुभव करती हो ना। अच्छा हुआ जो निर्बन्धन हो गई। ऐसे अपने को भाग्यशाली समझती हो या कभी दु:ख भी आता है? और कोई साथ होगा तो टक्कर होगा। शिव बाबा अगर साथ है तो टक्कर नहीं होगा ना। संगमयुग में लौकिक सुहाग का त्याग श्रेष्ठ भाग्य की निशानी है। आत्मा की प्रवृति में यह सम्बन्ध नहीं है। प्रवृति में सम्बन्ध में तो नहीं आती हो? अगर प्रवृति में रह आत्मा के सम्बन्ध में रहती हो तो अपना डभले भाग्य बना सकती हो। प्रवृति में रहते देह के सम्बन्ध से न्यारी रहती हो? तो प्रवृति में रहने वाले ऐसा भाग्य बना रहे हो।

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