Avyakta Murli”19-07-1972(2)

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Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

संगठन क महत्व तथा संगठन द्वारा सर्टिफिकेट

नहीं तो इसमें भी टाइम बहुत वेस्ट होता है। बचपन में तो टाइम वेस्ट होता ही है। बच्चा टाइम वेस्ट करेगा तो कहेंगे बच्चा है। लेकिन समझदार अगर टाइम वेस्ट कर रहा है………। बच्चे का वेस्ट टाइम नहीं फील होगा, उनका तो काम ही यह है। तो आप अब जिस सेवा के अर्थ निमित्त बने हुए हो वह स्टेज ही जगत्-माता की है। विश्व-कल्याणकारी हो ना। हद का कल्याण करने वाले अनेक है। विश्व-कल्याण की भावना की स्टेज है –जगत्- माता। तो जगत्-माता की स्टेज पर होते अगर इन बातों में टाइम वेस्ट करें तो क्या समझेंगे? पंजाब की धरती पर कौरव गवर्मेंट को नाज है, तो पाण्डव गवर्मेंट को भी नाज है। पंजाब की विशेषता यह है जो बापदादा के कार्य में मददगार फलस्वरूप सभी से ज्यादा पंजाब से निकले हैं। सिन्ध से निकले हुए निमित्त बने हुए रत्नों ने आप रत्नों को निकाला। अब फिर आप लोगों का कर्त्तव्य है ऐसे अच्छे रत्न निकालो। खिट-पिट वाली न हों। आप लोगों द्वारा जो सबूत निकलना चाहिए वह अब अपनी चेकिंग करो। अपनी रचना से कब तंग हो जाते हो क्या? यह तो सभी शुरू से चलता आता है। आप लोगों के लिये तो और ही सहज है। आप लोगों को कोई स्थूल पालना नहीं करनी पड़ती, सिर्फ रूहानी पालना। लेकिन पहला पूर निकलने समय तो दोनों ही जिम्मेवारी थी। एक जिम्मेवारी को पूरा करना सहज होता है, दोनों जिम्मेवारी में समय देना पड़ता है। फिर भी पहला पूर निकला तो सही ना। अब आप सभी का भी यह लक्ष्य होना चाहिए कि जल्दी-जल्दी अपने समीप आने वाले और प्रजा – दोनों प्रकार की आत्माओं को अब प्रत्यक्ष करें। वह प्रत्यक्षफल दिखाई दे। अभी मेहनत ज्यादा करते हो, प्रत्यक्षफल इतना दिखाई नहीं देता। इसका कारण क्या है? बापदादा की पालना और आप लोगों की ईश्वरीय पालना में मुख्य अन्तर क्या है जिस कारण शमा के ऊपर जैसे परवाने फिदा होने चाहिए वह नहीं हो पाते? ड्रामा में पार्ट है वह बात दूसरी है लेकिन बाप समान तो बनना ही है ना। प्रत्यक्षफल का यह मतलब नहीं कि एक दिन में वारिस बन जायेंगे लेकिन जितनी मेहनत करते हो, उम्मीद रखते हो, उस प्रमाण भी फल निकले तो प्रत्यक्षफल कहा जाये। वह क्यों नहीं निकलता? बापदादा कोई भी कर्म के फल की इच्छा नहीं रखते। एक तो निराकार होने के नाते से प्रारब्ध ही नहीं है तो इच्छा भी नहीं हो सकती और साकार में भी प्रैक्टिकल पार्ट बजाया तो भी हर वचन और कर्म में सदैव पिता की स्मृति होने कारण फल की इच्छा का संकल्प-मात्र भी नहीं रहा। और यहां क्या होता है – जो कोई कुछ करते हैं तो यहां ही उस फल की प्राप्ति का रहता है। जैसे वृक्ष में फल लगता ज़रूर है लेकिन वहां का वहां ही फल खाने लगें तो उसका फल पूरा पक कर प्रैक्टिकल में आवे, वह कब न होगा क्योंकि कच्चा ही फल खा लिया। यह भी ऐसे है, जो कुछ किया उसके फल की इच्छा सूक्ष्म में भी रहती ज़रूर है, तो किया और फल खाया; फिर फलस्वरूप कैसे दिखाई देवे? आधे में ही रह गया ना। फल की इच्छाएं भी भिन्न-भिन्न प्रकार की हैं, जैसे अपार दु:खों की लिस्ट है। वैसे फल की इच्छाएं वा जो उसका रेस्पान्स लेने का सूक्ष्म संकल्प ज़रूर रहता है। कुछ-ना-कुछ एक-दो परसेन्ट भी होता ज़रूर है। बिल्कुल निष्काम वृति रहे – ऐसा नहीं होता। पुरूषार्थ के प्रारब्ध की नॉलेज होते हुए भी उसमें अटैचमैंट ना हो, वह अवस्था बहुत कम है। मिसाल – आप लोगों ने किन्हों की सेवा की, आठ को समझाया, उसकी रिजल्ट में एक-दो आप की महिमा करते हैं और दूसरे ना महिमा, ना ग्लानि करते हैं, गम्भीरता से चलते हैं। तो फिर भी देखेंगे – आठ में से आपका अटेन्शन एक-दो परसेन्टेज में उन दो तीन तरफ ज्यादा जावेगा जिन्होंने महिमा की; उसकी गम्भीरता की परख कम होगी, बाहर से जो उसने महिमा की उनको स्वीकार करने के संस्कार प्रत्यक्ष हो जावेंगे। दूसरे शब्दों में कहते हैं – इनके संस्कार, इनका स्वभाव मिलता है। फलाने के संस्कार मिलते नहीं हैं, इसलिये दूर रहते हैं। लेकिन वास्तव में है यह सूक्ष्म फल को स्वीकार करना। मूल कारण यह रह जाता है — करेंगे और रिजल्ट का इंतजार रहेगा। पहले अटेन्शन इस बात में जावेगा कि इसने मेरे लिये क्या कहा? मैंने भाषण किया, सभी ने क्या कहा? उसमें अटेन्शन जावेगा। अपने को आगे बढ़ाने की एम से रिजल्ट लेना, अपनी सर्विस के रिजल्ट को जानना, अपनी उन्नति के लिये जानना – वह अलग बात है; लेकिन अच्छे और बुरे की कामना रखना वह अलग बात है। अभी- अभी किया और अभी-अभी लिया तो जमा कुछ नहीं होता है, कमाया और खाया। उसमें विल-पावर नहीं रहती। वह अन्दर से सदैव कमजोर रहेंगे, शक्तिशाली नहीं होंगे क्योंकि खाली-खाली हैं ना। भरी हुई चीज़ पावरफुल होती है। तो मुख्य कारण यह है। इसलिये फल पक कर सामने आवे, वह बहुत कम आते हैं। जब यह बात खत्म हो जावेगी तब निराकारी, निरहंकारी और साथ-साथ निर्विकारी – मन्सा-वाचा-कर्मणा में तीनों सब्जेक्ट दिखाई देंगे। शरीर में होते निराकारी, आत्मिक रूप दिखाई देगा। जैसे साकार में देखा- बुजुर्ग था ना, लेकिन फिर भी शरीर को न देख रूह ही दिखाई देता था, व्यक्त गायब हो अव्यक्त दिखाई देता था! तो साकार में निराकार स्थिति होने कारण निराकार वा आकार दिखाई देता था। तो ऐसी अवस्था प्रैक्टिकल रहेगी। अब स्वयं भी बार-बार देह-अभिमान में आते हो तो दूसरे को निराकारी वा आकार रूप का साक्षात्कार नहीं होता है। यह तीनों ही होना चाहिए – मन्सा में निराकारी स्टेज, वाचा में निरहंकारी और कर्म में निर्विकारी, ज़रा भी विकार ना हो। तेरा-मेरा, शान-मान – यह भी विकार हैं। अंश भी हुआ तो वंश आ जावेगा। संकल्प में भी विकार का अंश ना हो। जब यह तीनों स्टेज हो जावेंगी तब अपने प्रभाव से जो भी वारिस वा प्रजा निकलनी होगी वह फटाफट निकलेगी। आप लोग अभी जो मेहनत का अविनाशी बीज डाल रहे हो उसका भी फल और कुछ प्रत्यक्ष का प्रभाव — दोनों इकट्ठे निकलेंगे। फिर क्विक सर्विस दिखाई देगी। तो अब कारण समझा ना? इसका निवारण करना, सिर्फ वर्णन तक ना रखना। फिर क्या हो जावेगा? साक्षात्कारमूर्त हो जावेंगे, तीनों स्टेज प्रत्यक्ष दिखाई देंगी। आजकल सभी यह देखने चाहते हैं, सुनने नहीं चाहते। द्वापर से लेकर तो सुनते आये हैं। बहुत सुन-सुन कर थक जाते हैं, तो मैजारिटी थके हुए हैं। भक्ति-मार्ग में भी सुना और आजकल के नेता भी बहुत सुनाते हैं। तो सुन-सुन कर थक गये। अब देखने चाहते हैं। सभी कहते हैं – कुछ करके दिखाओ, प्रैक्टिकल प्रमाण दो तब समझेंगे कि कुछ कर रहे हो। तो आप लोग की प्रत्यक्ष हर चलन, यही प्रत्यक्ष प्रमाण है। प्रत्यक्ष को कोई प्रमाण देने की आवश्यकता नहीं रहती। तो अब प्रत्यक्ष चलन में आना है। जो फ्यूचर में महाविनाश होने वाला है और नई दुनिया आने वाली है, वह भी आपके फीचर्स से दिखाई दे। देखेंगे तो फिर वैराग्य आटोमेटिकली आ जावेगा। एक तरफ वैराग्य, दूसरे तरफ अपना भविष्य बनाने का उमंग आवेगा। जैसे कहते हो – एक आंख में मुक्ति, एक में जीवनमुक्ति। तो विनाश मुक्ति का गेट और स्थापना जीवनमुक्ति का गेट है; तो दोनों आंखों से यह दिखाई दें। यह पुरानी दुनिया जाने वाली है — आपके नैन और मस्तक यह बोलें। मस्तक भी बहुत बोलता है। कोई का भाग्य मस्तक दिखाता है, समझते हैं – यह बड़ा चमत्कारी है। तो ऐसी जब सर्विस करें तब जयजयकार हो। तो अब विश्व के आगे एक सैम्पल बनना है। अनेक स्थान-सेंटर्स होते हुए भी सभी एक हो। सभी बेहद बुद्धि वाले हो। बेहद के मालिक और फिर बालक। सिर्फ मालिक नहीं बनना है। बालक सो मालिक, मालिक सो बालक। एक-दो के हर राय को रिगार्ड देना है। चाहे छोटा है वा बड़ा है, चाहे आने वाला स्टूडेन्ट है, चाहे रहने वाला साथ है – हरेक की राय को रिगार्ड ज़रूर देना चाहिए। कोई की राय को ठुकराना गोया अपने आपको ठुकराना है। पहले तो ज़रूर रिगार्ड देना चाहिए, फिर भले कोई समझानी दो, वह दूसरी बात है। पहले से ही कट ना करना चाहिए कि यह रॉंग है, यह हो नहीं सकता। यह उसकी राय का डिसरिगार्ड करते हो। इससे फिर उनमें भी डिसरिगार्ड का बीज पड़ता है। जैसे मां-बाप घर में होते हैं तो नेचरल बच्चों में वह संस्कार होते हैं मां-बाप को कॉपी करने के। मां-बाप कोई बच्चों को सिखलाते नहीं हैं। यह भी अलौकिक जन्म में बच्चे हैं। बड़े मां-बाप के समान होते हैं। इसलिये आज आपने उनकी राय का डिसरिगार्ड किया, कल आपको वह डिसरिगार्ड देगा। तो बीज किसने डाला? जो निमित्त हैं। चूहा पहले फूंक देकर फिर काटता है। तो व्यर्थ को कट भी करना हो तो पहले उनको रिगार्ड दो। फिर उसको कट करना नहीं लेकिन समझेंगे – हमको श्रीमत मिल रही है। रिगार्ड दे आगे बढ़ाने में वह खुश हो जावेंगे। किसको खुश कर फिर कोई काम भी निकालना सहज होता है। एक दो की बात को कब कट नहीं करना चाहिए। हां, क्यों नहीं, बहुत अच्छा है – यह शब्द भी रिगार्ड देंगे। पहले ‘ना’ की तो नास्तिक हो जावेंगे। पहले सदैव ‘हां’ करो। चीज़ भले कैसे भी हो लेकिन उसका बिठन (डिब्बी) अच्छा होता है तो लोग प्रभावित हो जाते हैं। तो ऐसे ही जब सम्पर्क में आते हो तो अपना शब्द और स्वरूप भी ऐसा हो। ऐसे नहीं कि रूप में फिर ‘ना’ की रूपरेखा हो। इसमें रहम और शुभ कल्याण की भावना से चेहरे में कब चेंज नहीं आवेगी, शब्द भी युक्तियुक्त निकलेंगे। बापदादा भी किसको शिक्षा देते हैं तो पहले स्वमान दे फिर शिक्षा देते हैं। तो आजकल जो भी आते हैं वह अपने मान लेने वाले, ठुकराये हुए को स्वमान-रिगार्ड चाहिए। इसलिये कब भी किसको डिसरिगार्ड नहीं, पहले रिगार्ड देकर फिर काटो। उनकी विशेषता का पहले वर्णन करो, फिर कमजोरी का। जैसे आपरेशन करते हैं तो पहले इंजेक्शन आदि से सुध-बुध भुलाते हैं। तो पहले उसको रिगार्ड से उस नशे में ठहराओ, फिर कितना भी आपरेशन करेंगे तो आपरेशन सक्सेस होगा। यह भी एक तरीका है। जब यह संस्कार भर जावेंगे तो विश्व से आपको रिगार्ड मिलेगा। अगर आत्माओं को कम रिगार्ड देंगे तो प्रारब्ध में भी कम रिगार्ड मिलेगा।

संगठन का महत्व तथा संगठन द्वारा सर्टिफिकेट

प्रश्न 1: संगठन का महत्व क्या है?
उत्तर: संगठन से शक्ति मिलती है, एकता और समर्पण के द्वारा सेवा को प्रभावी बनाया जा सकता है।

प्रश्न 2: संगठन में समय का सही उपयोग कैसे किया जाए?
उत्तर: संगठन में समय बर्बाद न करते हुए सेवा, तपस्या और आत्मिक उन्नति में लगाना चाहिए।

प्रश्न 3: संगठन किस प्रकार विश्व कल्याण में सहायक होता है?
उत्तर: संगठन एकता, सहयोग और दिव्य संकल्पों के द्वारा विश्व-कल्याण की सेवा को तीव्र करता है।

प्रश्न 4: संगठन में कार्य करने वाले को किस भावना से कार्य करना चाहिए?
उत्तर: निस्वार्थ भाव से, फल की इच्छा किए बिना, सेवा और समर्पण की भावना से कार्य करना चाहिए।

प्रश्न 5: संगठन के आधार पर सर्टिफिकेट क्यों दिया जाता है?
उत्तर: संगठन में श्रेष्ठ कार्य करने वाले सेवाधारी को उनकी निष्ठा, योगदान और आत्मिक उन्नति के आधार पर सर्टिफिकेट दिया जाता है।

प्रश्न 6: संगठन में किस प्रकार के संस्कार विकसित करने चाहिए?
उत्तर: समर्पण, सहनशीलता, विनम्रता और सहयोग की भावना को विकसित करना चाहिए।

प्रश्न 7: संगठन में सफलता का मूल कारण क्या है?
उत्तर: टीमवर्क, निष्काम सेवा, परस्पर रिगार्ड और बापदादा के मार्गदर्शन पर चलना सफलता का मूल कारण है।

प्रश्न 8: संगठन में मतभेद क्यों होते हैं और इन्हें कैसे समाप्त किया जा सकता है?
उत्तर: मतभेद स्वार्थ, अहंकार या गलतफहमियों से होते हैं। इन्हें समाप्त करने के लिए रिगार्ड, समर्पण और प्रेमपूर्वक संवाद आवश्यक है।

प्रश्न 9: संगठन में रहते हुए सच्ची प्रमाणिकता कैसे प्रकट करें?
उत्तर: अपने विचार, वाणी और कर्म में समानता लाकर और निस्वार्थ सेवा करते हुए प्रमाणिकता को प्रकट किया जा सकता है।

प्रश्न 10: संगठन में आत्मिक पालना का महत्व क्या है?
उत्तर: आत्मिक पालना से संगठन में समर्पण, दिव्यता और सेवा की शक्ति बढ़ती है, जिससे प्रभावशाली परिणाम प्राप्त होते हैं।

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