Avyakta Murli”20-06-1973

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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लगन का साधन — विघ्न

वरदाता, सर्व कल्याणकारी विघ्न विनाशक बाबा बोले :-

वरदान भूमि से वरदाता द्वारा सर्व वरदानों को प्राप्त करके क्या तीव्र पुरुषार्थी बनते जा रहे हो? पुरूषार्थ की चाल में जो परिवर्तन किया है, वह अविनाशी किया है या अल्पकाल के लिए? कैसी भी कोई परिस्थिति आये, कैसे भी विघ्न हिलाने के लिए आ जाए लेकिन जिसके साथ स्वयं बाप सर्वशक्तिवान् है उनके सामने वह विघ्न क्या हैं? उनके आगे विघ्न, परिवर्तन हो क्या बन जायेंगे? ‘विघ्न लगन का साधन बन जायेंगे।’ हर्षित होंगे ना? यदि कोई भी परिस्थिति व व्यक्ति विघ्न लाने के निमित्त बनता है तो उसके प्रति घृणा-दृष्टि, व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति नहीं होनी चाहिए लेकिन उसके प्रति वाह-वाह निकले। अगर यह दृष्टि रखो तो आप सभी की श्रेष्ठ दृष्टि हो जायेगी। कोई कैसा भी हो, लेकिन अपनी दृष्टि और वृत्ति सदैव शुभचिन्तक की हो और कल्याण की भावना हो। हर बात में कल्याण दिखाई दे। कल्याणकारी बाप की सन्तान कल्याणकारी हो ना? कल्याणकारी बनने के बाद कोई भी अकल्याण की बात हो नहीं सकती। यह निश्चय और स्मृति-स्वरूप हो जाओ तो आप कभी डगमगा नहीं सकेंगे।

जैसे कोई हरा या लाल चश्मा पहनता है तो उसको सभी हरा अथवा लाल ही दिखाई पड़ता है। वैसे आप लोगों के तीसरे नेत्र पर कल्याणकारी का चश्मा पड़ा है। तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी। उसमें अकल्याण दिखाई पड़े, यह हो ही नहीं सकता। जिसको अज्ञानी लोग अकल्याण समझते हैं लेकिन आपका उस अकल्याण में ही कल्याण समाया हुआ है। जैसे लोग विनाश को अकल्याण समझते हैं लेकिन आप समझते हो कि इससे ही गति-सद्गति के गेट्स खुलेंगे। तो कोई भी बात सामने आती है, ‘सभी में कल्याण भरा हुआ है’-ऐसे निश्चय-बुद्धि होकर चलो तो क्या प्राप्ति होगी?-एक-रस अवस्था हो जायेगी। किसी भी बात में रूकना नहीं चाहिए। जो रूकते हैं वे कमजोर होते है। महावीर कभी नहीं रूकते। ऐसे नहीं विघ्न आयें और रूक जायें। अच्छा।

इस मुरली का सार

बाबा कहते कि यदि कोई भी परिस्थिति या व्यक्ति विघ्न लाने के निमित्त बनता है, तो उसके प्रति घृणा दृष्टि न हो, व्यर्थ संकल्पों की उत्पत्ति न होनी चाहिए लेकिन उसके प्रति वाह-वाह निकले क्योंकि उसी विघ्न से तुम्हारी लग्न बढ़ेगी। 2. जैसे कोई हरा या लाल चश्मा पहनता है तो उसको सब कुछ वैसा ही दिखाई पड़ता है, वैसे ही आप लोगों के तीसरे नेत्र पर भी कल्याणकारी का चश्मा पड़ा है। तीसरा नेत्र है ही कल्याणकारी। उसमें अकल्याण हो नहीं सकता। हर बात में तुम्हारा कल्याण ही है-अगर यह बात हरेक की बुद्धि में रहे तो सभी की एक-रस अवस्था हो जायेगी।

लगन का साधन – विघ्न

1. विघ्न का क्या वास्तविक स्वरूप है?
विघ्न आत्मा की लगन को बढ़ाने का साधन बनते हैं, यदि उन्हें सही दृष्टि से देखा जाए।

2. सच्चे तीव्र पुरुषार्थी की पहचान क्या है?
जो हर परिस्थिति में अडोल रहता है और विघ्नों को परिवर्तन कर अपने पुरुषार्थ में तीव्रता लाता है।

3. विघ्न आने पर कैसी दृष्टि रखनी चाहिए?
विघ्न लाने वाले व्यक्ति या परिस्थिति के प्रति शुभचिंतक दृष्टि रखनी चाहिए और घृणा या व्यर्थ संकल्पों से बचना चाहिए।

4. बाबा ने कौन-सा दृष्टांत दिया है जिससे हमारी सोच परिवर्तित हो?
जैसे लाल या हरा चश्मा पहनने से सब कुछ वैसा ही दिखाई देता है, वैसे ही हमें कल्याणकारी चश्मे से हर परिस्थिति को देखना चाहिए।

5. निश्चय और स्मृति स्वरूप बनकर क्या लाभ होगा?
निश्चय और स्मृति स्वरूप बनने से आत्मा अडोल, अचल और महावीर बन जाती है, जिससे कोई भी विघ्न उसे डगमगा नहीं सकता।

6. विनाश को लोग अकल्याण क्यों समझते हैं, जबकि वह कल्याणकारी कैसे है?
लोग विनाश को अंत समझते हैं, जबकि वास्तव में वह गति-सद्गति के द्वार खोलता है, इसलिए उसमें भी कल्याण समाया हुआ है।

7. एक-रस अवस्था प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
हर परिस्थिति में कल्याण देखना और किसी भी विघ्न में न रुकना आवश्यक है, क्योंकि रुकने वाले कमजोर हो जाते हैं।

8. बाबा ने महावीर आत्माओं की कौन-सी विशेषता बताई?
महावीर आत्माएं कभी विघ्नों से रुकती नहीं, बल्कि उन्हें पार कर और मजबूत बनती हैं।

9. सच्ची कल्याणकारी दृष्टि कैसी होनी चाहिए?
हर आत्मा और हर परिस्थिति में शुभचिंतन और कल्याण की भावना होनी चाहिए, जिससे जीवन में सहजता और स्थिरता बनी रहे।

10. इस मुरली का मुख्य संदेश क्या है?
विघ्नों को साधन बनाकर आत्मा की लगन को बढ़ाना, हर स्थिति में कल्याण देखना और सदा निश्चय बुद्धि होकर अडोल रहना।

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