Avyakta Murli”21-01-1971(02)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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अव्यक्त वतन का अलौकिक निमंत्रण

आज मिलने के लिए बुलाया है। यह अव्यक्त मिलन अव्यक्त स्थिति में स्थित होकर ही मना सकते हो। समझ सकते हो? आज देख रहे हैं – कौन-कौन कितने शक्ति-स्वरूप बने हैं? आप लोगों के चित्रों में नम्बरवार शक्तियों का यादगार दिखाया हुआ है। शक्तियों की परख किन चित्रों द्वारा कर सकते हैं, मालूम है? आपको अपने शक्तियों को परखने का चित्र मालूम नहीं है! भिन्न-भिन्न नम्बरवार शक्तियों का यादगार बना हुआ है। अपना चित्र भूल गये हो! शक्तियों के चित्रों में भिन्न-भिन्न रूप से और फिर भुजाओं के रूप में नम्बरवार शक्तियों का यादगार है। उन चित्रों में कहाँ कितनी भुजायें, कहाँ कितनी दिखाते हैं। कोई अष्ट शक्तियों को धारण करने वाली बनती हैं, कोई उससे अधिक, कोई उससे कम। कहाँ 4 भुजाएं, कहाँ 8 भुजाएं, कहाँ 16 भी दिखाते हैं, नम्बरवार। तो आज देख रहे हैं – हरेक ने कितनी शक्तियों की धारणा की है। मास्टर सर्वशक्तिवान कहलाते हैं ना। मास्टर सर्वशक्तिवान अर्थात् सर्व शक्तियों को धारण करने वाले। अपने शक्ति-स्वरूप का साक्षात्कार  होता  है?  अव्यक्त  वतन में हरेक का शक्ति रूप देखते हैं तो क्या दिखाई देता होगा? वतन में भी बापदादा की अलौकिक प्रदर्शनी है। उनके चित्र कितने  होंगे? आप के चित्र गिनती में आ सकते हैं लेकिन बापदादा के प्रदर्शनी के चित्र गिन सकते हो? बापदादा निमन्त्रण देते हैं। निमन्त्रण देने वाला तो निमन्त्रण देता है, आने वालों का काम है पहुँचना। बापदादा आप सभी से करोड़ गुणा ज्यादा खुशी से निमन्त्रण  देते  हैं। हरेक को अनुभव हो सकता है। अव्यक्त स्थिति का अनुभव कुछ समय लगातार करो तो ऐसे अनुभव होंगे जैसे साइन्स द्वारा दूर की चीजें सामने दिखाई देती हैं, ऐसे ही अव्यक्त वतन की एक्टिविटी यहाँ स्पष्ट दिखाई देगी। बुद्धिबल द्वारा अपने सर्वशक्तिवान के स्वरूप का साक्षात्कार कर सकते हैं। वर्तमान समय स्मृति कम होने के कारण समर्थी भी नहीं है। व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ शब्द, व्यर्थ कर्म हो जाने कारण समर्थ नहीं बन सकते हो। व्यर्थ को मिटाओ तो समर्थ हो जायेंगे। पुरूषार्थ के भिन्न-भिन्न स्वरूप वतन में हरेक के देखते रहते हैं। बहुत अच्छा ल्गता है। हरेक अपने आप को इतना नहीं देखते होंगे जितना वतन में हरेक के अनेक रूप देखते हैं। आप लोग भी एक दिन खास अटेन्शन देकर देखना कि सारे दिन में मेरे कितने और कैसे रूप हुए। फिर बहुत हँसी आयेगी – भिन्न-भिन्न पोज़ देखकर। आजकल एक के ही बहुत पोज़ निकालते हैं। तो अपने भी देखना। अपने बहु रूपों का साक्षात्कार करना। वतन में आने की दिल तो सभी की होती है लेकिन अपने आप से पूछो – जो ब्राह्मणपन के कर्त्तव्य करने हैं वह सभी किये हैं? सर्व कर्त्तव्य सम्पन्न करने के बाद ही सम्पूर्ण बनेंगे। अब का समय ऐसा चल रहा है जो एक-एक कदम अटेन्शन रखकर चलने का है। अटेन्शन न होने के कारण पुरूषार्थ के भी टेन्शन में रहते हैं। एक तरफ वातावरण का टेन्शन रहता है, दूसरे तरफ पुरूषार्थ का भी टेन्शन रहता है। इसलिए सिर्फ एक शब्द ऐड करो – अटेन्शन। फिर यह बहुरूप एक ही सम्पूर्ण रूप बन जायेगा। इसलिए अब कदम-कदम पर अटेन्शन। सुनाया था कि आजकल सर्व आत्मायें सुख और शान्ति का अनुभव करने चाहती हैं। ज्यादा सुनने नहीं चाहती हैं। अनुभव कराने के लिए स्वयं अनुभव-स्वरूप बनेंगे तब सर्व आत्माओं की इच्छा पूर्ण कर सकेंगे। दिन-प्रतिदिन देखेंगे – जैसे धन के भिखारी भिक्षा लेने के लिए आते हैं वैसे शान्ति के अनुभव के भिखारी आत्मायें भिक्षा लेने के लिए तड़पेंगी। अब सिर्फ एक दु:ख की लहर आयेगी तो जैसे लहरों में लहराती हुई आत्मायें वा लहरों में डूबती हुई आत्मा एक तिनके का भी सहारा ढूँढ़ती है, ऐसे आप लोगों के सामने अनेक भिखारी आत्मायें यह भीख मांगने के लिए आयेंगी। तो ऐसी तड़पती हुई या भिखारी प्यासी आत्माओं की प्यास मिटाने के लिए अपने को अतीन्द्रिय सुख वा सर्व शक्तियों से भरपूर किया हुआ अनुभव करते हो? सर्व शक्तियों का खज़ाना, अतीन्द्रिय सुख का खज़ाना इतना इकठ्ठा किया है जो अपनी स्थिति तो कायम रहे लेकिन अन्य आत्माओं को भी सम्पन्न बना सको। सर्व की झोली भरने वाले दाता के बच्चे हो ना। अब यह दृश्य बहुत जल्दी सामने आयेगा।

डाक्टर लोग भी कोई को इस बीमारी की दवाई नहीं दे सकेंगे। तब आप लोगों के पास यह औषधि लेने के लिए आयेंगे। धीर-धीरे यह आवाज़ फैलेगा कि सुख-शान्ति का अनुभव ब्रह्माकुमारियों के पास मिलेगा। भटकते-भटकते असली द्वार पर अनेकानेक आत्मायें आकर पहुँचेंगी। तो ऐसे अनेक आत्माओं को सन्तुष्ट करने के लिए स्वयं अपने हर कर्म से सन्तुष्ट हो? सन्तुष्ट आत्मायें ही अन्य को सन्तुष्ट कर सकती हैं। अब ऐसी सर्विस करने के लिए अपने को तैयार करो। ऐसी तड़फती हुई आत्मायें सात दिन के कोर्स के लिए भी ठहर नहीं सकेंगी। तो उस समय उन आत्माओं को कुछ-न-कुछ अनुभव की प्राप्ति करानी होगी। इसलिए कहा कि अब अपने ब्राह्मणपन के कर्त्तव्य को सम्पन्न करने के लिए अपने को सम्पूर्ण बनाते रहो। अब समझा-कौनसी सर्विस करनी है? जब तक आप व्यक्त में बिज़ी हो, बापदादा अव्यक्त में भी मददगार तो हैं ना। हिम्मते बच्चे मददे बाप। तो बताओ ज्यादा बिज़ी कौन होगा? जैसे शुरू में वतन का अनुभव कराते थे ना। ऐसा अनुभव करते थे जो ध्यान में जाने वालों से भी अच्छा होता था (बाबा आप अभी भी अनुभव कराओ) अनुभव करो। बुद्धि का विमान तो है ही। कोई-कोई बच्चे कोई बात की जिद्द करते हैं तो बाप को कहना मानना पड़ता है। अब अनुभव करने की जिद्द करो।

अव्यक्त वतन का अलौकिक निमंत्रण

प्रश्न और उत्तर:

  1. प्रश्न: अव्यक्त मिलन को सही रूप से मनाने के लिए क्या आवश्यक है?
    उत्तर: अव्यक्त मिलन को सही रूप से मनाने के लिए अव्यक्त स्थिति में स्थित होना आवश्यक है।
  2. प्रश्न: मास्टर सर्वशक्तिवान बनने का अर्थ क्या है?
    उत्तर: मास्टर सर्वशक्तिवान बनने का अर्थ है सभी शक्तियों को धारण करना और अपने शक्ति-स्वरूप का साक्षात्कार करना।
  3. प्रश्न: बापदादा के निमंत्रण का क्या अर्थ है?
    उत्तर: बापदादा का निमंत्रण आत्माओं को अव्यक्त वतन की अनुभूति कराने और सर्वशक्तिवान बनने के लिए प्रेरित करने के लिए है।
  4. प्रश्न: अव्यक्त वतन की गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से देखने के लिए क्या करना चाहिए?
    उत्तर: बुद्धिबल द्वारा अव्यक्त स्थिति का अनुभव कुछ समय तक लगातार करने से अव्यक्त वतन की गतिविधियाँ स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगेंगी।
  5. प्रश्न: आत्माएँ समर्थ क्यों नहीं बन पाती हैं?
    उत्तर: आत्माएँ व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ शब्द और व्यर्थ कर्म करने के कारण समर्थ नहीं बन पाती हैं। जब व्यर्थ को मिटा देंगे, तब समर्थ बन जाएंगे।
  6. प्रश्न: दिनभर में अपने विभिन्न रूपों को देखने से क्या अनुभव होगा?
    उत्तर: अपने भिन्न-भिन्न रूपों का साक्षात्कार करने से हँसी आएगी और यह समझ आएगा कि कैसे दिनभर में अलग-अलग अवस्थाएँ बनती हैं।
  7. प्रश्न: पूर्णता प्राप्त करने के लिए कौन-से कर्तव्य पूर्ण करने आवश्यक हैं?
    उत्तर: ब्राह्मणपन के सभी कर्तव्यों को सम्पन्न करना आवश्यक है, ताकि सम्पूर्णता प्राप्त हो सके।
  8. प्रश्न: “अटेन्शन” शब्द को क्यों जोड़ा गया है?
    उत्तर: अटेन्शन (ध्यान) न होने के कारण पुरूषार्थ में टेन्शन (तनाव) रहता है। यदि अटेन्शन जोड़ देंगे, तो पुरूषार्थ सहज हो जाएगा।
  9. प्रश्न: भविष्य में आत्माएँ ब्रह्माकुमारियों के पास किस उद्देश्य से आएंगी?
    उत्तर: भविष्य में आत्माएँ सुख और शांति की भीख मांगने के लिए ब्रह्माकुमारियों के पास आएंगी, क्योंकि उन्हें अनुभव होगा कि यहीं पर वास्तविक सुख-शांति उपलब्ध है।
  10. प्रश्न: आत्माओं की प्यास बुझाने के लिए ब्राह्मणों को क्या तैयार करना चाहिए?
    उत्तर: ब्राह्मणों को स्वयं को अतीन्द्रिय सुख और सर्व शक्तियों से भरपूर अनुभव करना चाहिए, ताकि वे अन्य आत्माओं की तड़प को शांत कर सकें।
  11. प्रश्न: भविष्य में डॉक्टर भी किस चीज़ की दवाई नहीं दे सकेंगे?
    उत्तर: भविष्य में डॉक्टर भी किसी को मानसिक शांति और आत्मिक सुख की दवाई नहीं दे सकेंगे, तब आत्माएँ ब्रह्माकुमारियों की शरण में आएंगी।
  12. प्रश्न: ब्राह्मण आत्माओं को स्वयं की संतुष्टि क्यों आवश्यक है?
    उत्तर: क्योंकि केवल संतुष्ट आत्माएँ ही अन्य आत्माओं को संतुष्ट कर सकती हैं।
  13. प्रश्न: जब आत्माएँ सात दिन के कोर्स के लिए भी ठहर नहीं सकेंगी, तब क्या सेवा करनी होगी?
    उत्तर: उस समय आत्माओं को कुछ-न-कुछ अनुभूति करानी होगी, ताकि वे तुरंत शांति और शक्ति का अनुभव कर सकें।
  14. प्रश्न: “हिम्मते बच्चे मददे बाप” का क्या अर्थ है?
    उत्तर: इसका अर्थ है कि जब बच्चे हिम्मत दिखाते हैं और पुरुषार्थ करते हैं, तो बापदादा उनकी मदद करने के लिए सदा तैयार रहते हैं।
  15. प्रश्न: बापदादा बच्चों से किस चीज़ की जिद्द करने के लिए कह रहे हैं?
    उत्तर: बापदादा कह रहे हैं कि बच्चे अब अनुभव करने की जिद्द करें, ताकि वे बुद्धि के विमान द्वारा अव्यक्त वतन की यात्रा कर सकें।
  16. अव्यक्त वतन, अलौकिक निमंत्रण, अव्यक्त मिलन, शक्ति-स्वरूप, मास्टर सर्वशक्तिवान, बापदादा, आत्मिक अनुभव, बुद्धिबल, स्मृति, व्यर्थ संकल्प, समर्थता, पुरूषार्थ, अटेन्शन, शांति अनुभव, अतीन्द्रिय सुख, भिखारी आत्माएँ, ब्राह्मणपन, सन्तुष्ट आत्मा, सर्वशक्तियों का खज़ाना, ब्रह्माकुमारी सेवा, आध्यात्मिक यात्रा, अव्यक्त स्थिति, आत्मा की प्यास, सुख-शांति, ध्यान, दिव्य अनुभूति, बापदादा का निमंत्रण, अनुभव स्वरूप, अव्यक्त वतन की गतिविधि, आत्मिक शक्ति, ब्राह्मण जीवन,
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