Avyakta Murli”21-1-1972(2)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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निरन्तर योगी बनने की सहज़ विधि

निरन्तर देह का भान भूल जाए — उसके लिए हरेक यथा शक्ति नंबरवार पुरूषार्थ अनुसार मेहनत कर रहे हैं। पढ़ाई का लक्ष्य ही है देह- अभिमान से न्यारे हो देही-अभिमानी बनना। देह-अभिमान से छूटने के लिए मुख्य युक्ति यह है-सदा अपने स्वमान – में रहो तो देह-अभिमान मिटता जायेगा। स्वमान में स्व का भान भी रहता है अर्थात् आत्मा का भान। स्वमान – मैं कौन हूँ! अपने इस संगमयुग के और भविष्य के भी अनेक प्रकार के स्वमान जो समय प्रति समय अनुभव कराये गये हैं, उनमें से अगर कोई भी स्वमान में स्थित रहते रहें तो देह-अभिमान मिटता जाए। मैं ऊंच ते ऊंच ब्राह्मण हूँ – यह भी स्वमान है। सारे विश्व के अन्दर ब्रह्माण्ड और विश्व का मालिक बनने वाली मैं आत्मा हूँ – यह भी स्वमान है। जैसे आप लोगों को शुरू-शुरू में स्त्रपन के, देह के भान से परे होने का लक्ष्य रहता था; मैं आत्मा पुरूष हूँ- इस पुरूष के स्वभाव में स्थित कराने से स्त्रपन का भान नंबरवार पुरूषार्थ अनुसार निकलता गया। ऐसे ही सदैव अपनी बुद्धि के अन्दर वर्तमान वा भविष्य स्वमान की स्मृति रहे तो देह-अभिमान नहीं रहेगा। सिर्फ शब्द चेन्ज होने से स्वमान से स्वभाव भी अच्छा हो जाता है। स्वभाव का टक्कर होता ही तब है जब एक दो को स्व का भान नहीं रहता। तो स्वमान अर्थात् स्व का मान, उससे एक तो देह-अभिमान समाप्त हो जाता है और स्वभाव में नहीं आयेंगे। साथ-साथ जो स्वमान में स्थित होता है उनको स्वत: ही मान भी मिलता है। आजकल दुनिया में भी मान से स्वमान मिलता है ना। कोई प्रेजीडेन्ट है, उनका मान बड़ा होने के कारण स्वमान भी ऐसा मिलता है ना। स्वमान से ही विश्व का महाराजन् बनेंगे और उनको विश्व सम्मान देंगे। तो सिर्फ अपने स्वमान में स्थित होने से सर्व प्राप्ति हो सकती है। इस स्वमान में स्थित वह रह सकता है जिनको, जो अनेक प्रकार के स्वमान सुनाये, उसका अनुभव होगा। ‘‘मैं शिव शक्ति हूँ’’-यह भी स्वमान है। एक होता है सुनना, एक होता है उस स्वमान-स्वरूप का अनुभव। तो अनुभव के आधार पर एक सेकेण्ड में देह- अभिमान से स्वमान में स्थित हो जायेंगे। जो अनुभवीमूर्त नहीं हैं, सिर्फ सुनकर के अभ्यास करते ही रहते हैं लेकिन अनुभवी अब तक नहीं बने हैं, उन्हों की स्टेज ऐसे ही होती है। एक अपने स्वमान की लिस्ट निकालो तो लिस्ट बड़ी है! उन एक-एक बात को लेकर अनुभव करते जाओ तो माया की छोटी-छोटी बातों में कमजोर नहीं बनेंगे। माया कमजोर बनाने के लिए पहले तो देह- अभिमान में लाती है। देह-अभिमान में ही न आयें तो कमजोरी कहाँ से आयेगी। तो सभी को अपने स्वमान की स्मृति दिलाओ और उस स्वरूप के अनुभवी बनाओ। जैसे समझते हो — ‘‘मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ’’; तो संकल्प करने से स्थिति बन जाती है ना। लेकिन बनेगी उनकी जिनको अनुभव होगा। अनुभव नहीं तो स्थित होते-होते वह रह ही जाते हैं, स्थिति बन नहीं सकती और थकावट, मुश्किल मार्ग अनुभव करते हैं। कैसे करें – यह क्वेश्चन उठता है। लेकिन जो अनुभवीमूर्त हैं वह कड़ी परीक्षा आते समय भी अपने स्वमान में स्थित होने से सहज उसको कट कर सकते हैं। तो अपने स्वमान की स्मृति दिलाओ। अनुभवीमूर्त बनने की क्लास कराओ। जो आपके समीप सम्पर्क में आते हैं उन आत्माओं को यह अनुभव कराने का सहयोग दो। अभी आत्माओं को यह सहयोग चाहिए। जैसे साकार द्वारा अनुभवीमूर्त बनाने की सेवा होती रही है, ऐसे अभी आप लोगों के समीप जो आत्मायें हैं उन्हों की निर्बलता को, कमजोरियों को अपनी शक्तियों के सहयोग से उन्हें भी अनुभवीमूर्त बनाओ। चेक करो कि जिन आत्माओं के प्रति निमित बने हुए हैं वह आत्मायें स्वमान की स्थिति के अनुभवी हैं? अगर नहीं तो उन्हों को बनाना चाहिए। यह मेहनत करनी है। अगर राजधानी के समीप सम्बन्ध में आने वाली आत्मायें ही कमजोर होंगी तो प्रजा क्या होगी? ऐसी कमजोर आत्मायें सम्बन्ध में नहीं आ सकतीं। अब अपनी राजधानी को जल्दी-जल्दी तैयार करना है। पिछली प्रजा तो जल्दी बन जायेगी लेकिन जो राजाई के सम्बन्ध में, सम्पर्क में आने वाले हैं उन्हों को तो ऐसा बनाना है ना। ऐसा ध्यान हरेक स्थान पर निमित बनी हुई श्रेष्ठ आत्माओं को देना है। मेरे सम्पर्क में आने वाली कोई भी आत्मा इस स्थिति से वंचित न रह जाए, यह ध्यान रखना चाहिए। खुद ही अपने में कोई शक्ति का अनुभव अगर नहीं करते हैं तो औरों को क्या शक्ति दे सकेंगे? जो आत्मायें चाहती हैं, समीप आती हैं, समय देती हैं, सहयोगी बनी हुई हैं – ऐसी आत्माओं को अब मात-पिता द्वारा तो पालना नहीं मिल सकती, इसलिए निमित बनी हुई अनुभवी मूर्तियों द्वारा यह पालना मिले। अगर यह चेकिंग रखो तो कितनी आत्मायें ऐसी शक्तिशाली निकलेंगी? आधा हिस्सा निकलेंगी। जिन्होंने डायरेक्ट पालना ली है उन्हों में फिर भी अनुभवों की रसना भरी हुई है। औरों की यह पालना होनी आवश्यक है। तो हरेक टीचर को अपने क्लास का यह ध्यान रखना चाहिए।

निरन्तर योगी बनने की सहज विधि

Q1: निरंतर देह-अभिमान से मुक्त होने का सबसे सहज उपाय क्या है?
A1: अपने स्वमान में स्थित रहना, जैसे “मैं आत्मा हूँ” या “मैं शिव शक्ति हूँ,” इससे देह-अभिमान स्वतः समाप्त होता जाता है।

Q2: स्वमान में रहने से आत्मा को क्या लाभ होता है?
A2: स्वमान में रहने से आत्मा शक्तिशाली बनती है, माया के प्रभाव से मुक्त रहती है, और सम्मान प्राप्त होता है।

Q3: क्यों कई आत्माएँ स्वमान का अनुभव नहीं कर पातीं?
A3: वे सिर्फ स्वमान को सुनती हैं लेकिन उसका अनुभव नहीं करतीं, इसलिए देह-अभिमान उन्हें बार-बार प्रभावित करता है।

Q4: आत्मा को देह-अभिमान से बचाने के लिए कौन-सा अभ्यास करना चाहिए?
A4: अपने वर्तमान और भविष्य के स्वमान की स्मृति में स्थित रहने का अभ्यास करना चाहिए।

Q5: अनुभवीमूर्ति बनने का क्या अर्थ है?
A5: स्वमान का केवल अभ्यास नहीं, बल्कि उसका गहरा अनुभव करना ताकि किसी भी परिस्थिति में स्थिति डगमगाए नहीं।

Q6: माया सबसे पहले आत्मा को किस रूप में कमजोर बनाती है?
A6: माया सबसे पहले आत्मा को देह-अभिमान में लाती है, जिससे वह कमजोर पड़ जाती है।

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