Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज – २६-०१-१९७०
कहानियाँ बताते हैं ना | फ़रिश्ते आपस में मिलते थे | रूह रूहों से बात करते थे | वाही अनुभव करेंगे | तो जो कहानियाँ गई हुई हैं उसका प्रैक्टिकल में अनुभव होगा | उसी मेले के दिनों का इंतज़ार है |
अभी सर्विस के निमित्त हैं | सभी कुछ भूले हुए बैठे हैं | उस अव्यक्त स्थिति में मन और तन व्यक्त देश में है | ऐसे अनुभव होता है ? अच्छा-
अपने को कहाँ के निवासी समझते हो ? परमधाम के निवासी समझते हो ? यह कितना समय याद रहती है ? यह एक ही बात याद रहे कि हम परमधाम निवासी आत्मा इस व्यक्त देश में ईश्वरीय कर्त्तव्य करने के निमित्त आये हुए हैं | मधुबन में आकर के विशेष कौन सा गुण लिया है ? मधुबन का विशेष गुण है मधुरता | मधु अर्थात् मधुरता | स्नेही | जितना स्नेही होंगे उतना बेहद का वैराग्य होगा | यह है मधुबन का अर्थ | अति स्नेही और इतना ही बेहद की वैराग्य वृत्ति | अगर मधुबन के विशेष गुण जीवन में धारण करके जाएँ तो सहज ही सम्पूर्ण बन सकते हैं | फिर जो रूहानी टीचर्स बनना चाहिए तो नंबर वन की टीचर बन सकते हो | क्योंकि जैसी अपनी धरना होगी वैसे औरों को अनुभव् में ला सकेंगे | इन दोनों गुणों की अपने में धरना करनी है | मधुबन की लकीर से बाहर निकलने के पहले अपने में पूरी रीति यह भरकर जाना | एक स्नेह से दूसरा बेहद की वैराग्य वृत्ति से कोई भी परिस्थितियों को सहज ही सामना करेंगे | सफलता के सितारे बन्ने के लिए यह दो गुण मुख्य मधुबन की सौगात ले जाना है | जैसे कहाँ भी जाना होता है तो वहां जाते ही पूछा जाता है कि यहाँ की विशेष चीज़ क्या हैं ? जो प्रसिद्द विशेष चीज़ होती है, वह ज़रूर साथ में ले जाते हैं | तो यहाँ मधुबन के दो विशेष गुण अपने साथ ले जाना | जैसे स्थूल मधु ले जाते हो ना | वैसे यह सूक्ष्म मधुरता की मधु ले जाना | फिर सफलता ही सफलता है | असफलता आपके जीवन से मिट जाएगी | सफलता का सितारा अपने मस्तक में चमकते हुए देखेंगे |
तुम सफलता के सितारे हो वा पुरुषार्थ के सितारे हो ? क्या समझते हो ? सफलता के सितारे हो ? जैसा लक्ष्य होता है वैसा ही लक्षण होता है | अगर अब तक यही सोचते रहेंगे कि हम पुरुषार्थी हैं तो ऐसा समझने से कई छोटी-छोटी गलतियां अपने को माफ़ कर देते हो | समझते हो हम तो पुरुषार्थी है | इसलिए अब पुरुषार्थी नहीं लेकिन सफलता का स्वरुप बनना है | कहाँ तक पुरुषार्थ में रहेंगे | जब स्वयं सफलता स्वरुप बनेंगे तब दूसरी आत्माओं को भी सफलता का मार्ग बता सकेंगे | अगर खुद ही अंत तक पुरुषार्थी चलते रहेंगे तो संगम के प्रालब्ध का अनुभव कब करेंगे ? क्या यह जीवन पुरुषार्थी ही रहेंगे ? इस संगमयुग की प्रालब्ध प्रत्यक्ष रूप में नहीं प्राप्त करेंगे ? संगम के पुरुषार्थ का फल क्या ? (सफलता) तो सफलता स्वरुप भी निश्चय करने से सफलता होती रहेगी | जब यह समझेंगे कि में हूँ ही सफलता का सितारा तो असफलता कैसे आ सकती है | सर्वशक्तिवान की संतान कोई कार्य में असफल नहीं हो सकती | अपने मस्तक में विजय का सितारा देखते हो या देखेंगे ? विजय तो निश्चित है ही ना | विजय अर्थात् सफलता | अभी समय बदल रहा है | जब समय बदल गया तो अपने पुरुषार्थ को भी बदलेंगे ना | अब बाप ने सफलता का रूप दिखला दिया तो बच्चे भी रूप में व्यक्त देह में होते सफलता का रूप नहीं दिखायेंगे | अपने को सदैव सफलता का मूर्त ही समझो | निश्चय को विजय कहा जाता है | जैसा विश्वास रखा जाता है वैसा ही कर्म होता है | निश्चय में कमी होती तो कर्म में भी कमी हो जाएगी | स्मृति शक्तिवान है तो स्थिति और कर्म भी शक्तिवान होंगे | इसलिए कभी भी अपनी स्मृति को कमज़ोर नहीं रखना | शक्तिदल और पाण्डव कब असफल हो सकते हैं क्या ? अपनी कल्प पहले वाली बात याद है कि पाण्डवों ने क्या किया था ? विजयी बने थे | तो अब अपने स्मृति को श्रेष्ठ बनाओ | अब संगम पर है विजय का तिलक फिर इस विजय के तिलक से राज तिलक मिलेगा | इस विजय के तिलक को कोई मिटा नहीं सकते | ऐसा निश्चय है ? जो विजयी रत्न हैं उनकी हर बात में विजय ही विजय है | उनकी हार हो नहीं सकती | हार तो बहुत जन्म खाते रहे | अब आकर विजयी बन्ने बाद फिर हार क्यों ? “विजय हमारी ही है” ऐसा एक बल एक भरोसा हो |
(बच्ची यदि ज्ञान में नहीं चलती है तो क्या करें ? ) अगर कोई इस मार्ग में नहीं चल सकते हैं तो शादी करनी ही पड़े | उन्हों की कमजोरी भी अपने ऊपर से मिटानी है | साक्षी हो मज़बूरी भी करना होता है | वह हुआ फ़र्ज़ | लगन नहीं है | फ़र्ज़ पालन करते हैं | एक होता है लगन से करना, एक होता है निमित्त फ़र्ज़ निभाना | सभी आत्माओं का एक ही समय यह जन्म सिद्ध अधिकार लेने का पार्ट नहीं है | परिचय मिलना तो ज़रूर है, पहचानना भी है लेकिन कोई का पार्ट अभी है कोई का पीछे | बीजों में से कोई झट से फल देता है, कोई देरी से फल देता है | वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है, कोई देरी से फल देता है | वैसे ही यहाँ भी हरेक का अपने समय पर पार्ट है | फ़र्ज़ समझ करेंगे तो माया का मर्ज नहीं लगेगा | नहीं तो वायुमंडल का असर लग सकता है | इसलिए फ़र्ज़ समझ करना है | फ़र्ज़ और मर्ज में सिर्फ एक बिंदी का फर्क है | लेकिन बिंदी रूप में न होने कारण फ़र्ज़ भी मर्ज हो जाता है | जो मददगार हैं उन्हों को मदद तो सदैव मिलती है | बाप की मदद हर कार्य में कैसे मिलती है यह अनुभव होता हैं ? एक दो के विशेष गुण को देख एक दो को आगे रखना है | किसको आगे रखना यह भी अपने को आगे बढ़ाना है |
शिवजयंति पर आवाज़ फैलाना सहज होता है, जितनी हिम्मत हो उतना करो | क्योंकि फिर समय ऐसा आना है जो इस सर्विस के मौके भी कम मिलेंगे | इसलिए जितना कर सकते हो उतना करो | भूलें क्यों होती हैं ? उसकी गहराई में जाना है | अंतर्मुख हो सोचना चाहिए यह भूल क्यों हुई ? यह तो माया का रूप हा | मैं तो रचयिता बाप का बच्चा हूँ | अपने साथ एकांत में ऐसे-ऐसे बात करो | उभारने की कोशिश करो | कहाँ भी जाना होता है तो अपना यादगार छोड़ना होता है और कुछ ले जाना होता है | तो मधुबन में विशेष कौन सा यादगार छोड़ा ? एक-एक आत्मा के पास यह ईश्वरीय स्नेह और सहयोग का यादगार छोड़ना है | जितना एक दो के स्नेही सहयोगी बनते हैं उतना ही माया के विघ्न हटाने में सहयोग मिलता है | सहयोग देना अर्थात् सहयोग लेना | परिवार में आत्मिक स्नेह देना है और माया पर विजय पाने का सहयोग लेना है | यह लेन-देन का हिसाब ठीक रहता है | इस संगम समय पर ही अनेक जन्मों का सम्बन्ध जोड़ना है | स्नेह है सम्बन्ध जोड़ने का साधन | जैसे कपडे सिलाई करने का साधन धागा होता है वैसे ही भविष्य सम्बन्ध जोड़ने का साधन है स्नेह रूपी धागा | जैसे यहाँ जोड़ेंगे वैसे वहां जूता हुआ मिलेगा | जोड़ने का समय और स्थान यह है | ईश्वरीय स्नेह भी तब जुड़ सकता है जब अनेक के साथ स्नेह समाप्त हो जाता है | तो अब अनेक स्नेह समाप्त कर एक से स्नेह जोड़ना है | वह अनेक स्नेह भी परेशान करने वाले हैं | और यह एक स्नेह सदैव के लिए परिपक्व बनाने वाला है | अनेक तरफ से तोडना और एक तरफ जोड़ना है | बिना तोड़े कभी जुट नहीं सकता | अभी कमी को भी भर सकते हो | फिर भरने का समय ख़त्म | ऐसे समझ कर कदम को आगे बढ़ाना है |
याद के यात्रा की सम्पूर्ण स्टेज – २६-०१-१९७०
प्रश्न 1: फ़रिश्ते आपस में कैसे मिलते थे?
उत्तर: फ़रिश्ते रूहानी रूप से मिलते थे, रूह रूहों से बात करती थी, और वह दिव्य अनुभव करते थे।
प्रश्न 2: मधुबन का विशेष गुण क्या है?
उत्तर: मधुबन का विशेष गुण है मधुरता। मधु अर्थात् मधुरता, स्नेह और बेहद का वैराग्य।
प्रश्न 3: सफलता के सितारे बनने के लिए कौन से दो गुण आवश्यक हैं?
उत्तर: मधुरता और बेहद की वैराग्य वृत्ति।
प्रश्न 4: पुरुषार्थी और सफलता स्वरूप में क्या अंतर है?
उत्तर: पुरुषार्थी होने का अर्थ है प्रयासरत रहना, जबकि सफलता स्वरूप बनने का अर्थ है निश्चय और विजय की स्थिति में स्थिर रहना।
प्रश्न 5: संगमयुग की प्रालब्ध क्या है?
उत्तर: संगमयुग की प्रालब्ध है सफलता, जो निश्चय और ईश्वरीय शक्ति से प्राप्त होती है।
प्रश्न 6: विजय का तिलक किसे मिलता है?
उत्तर: संगमयुग में जो ईश्वरीय रीति से चलते हैं, वे विजय का तिलक पाते हैं और आगे राज तिलक के अधिकारी बनते हैं।
प्रश्न 7: यदि कोई ज्ञान मार्ग में नहीं चलता, तो क्या करें?
उत्तर: साक्षी भाव में रहकर फ़र्ज़ निभाएं, लगन से नहीं। हर आत्मा का अपना समय और पार्ट होता है।
प्रश्न 8: बाप की मदद हर कार्य में कैसे अनुभव होती है?
उत्तर: जब हम निःस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं और एक-दूसरे के विशेष गुणों को स्वीकारते हैं, तो बाप की मदद स्वतः अनुभव होती है।
प्रश्न 9: संगमयुग में ईश्वरीय स्नेह क्यों आवश्यक है?
उत्तर: ईश्वरीय स्नेह आत्माओं को जोड़ने वाला धागा है, जिससे भविष्य के सम्बन्ध भी मजबूत बनते हैं।
प्रश्न 10: स्नेह और सहयोग का क्या प्रभाव होता है?
उत्तर: जितना हम दूसरों को आत्मिक स्नेह और सहयोग देंगे, उतना ही माया के