Avyakta Murli”27-07-1970

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

“अव्यक्त बनने के लिए मुख्य शक्तियों की धारणा”

आज बापदादा किस रूप से देख रहे हैं? एक-एक के मुखड़े के अन्दर क्या देख रहे हैं? जान सकते हो? हरेक कहाँ तक अव्यक्त-मूर्त, आकर्षण-मूर्त, अलौकिक-मूर्त और हर्षित-मूर्त बने हैं? यह देख रहे हैं । चारों ही लक्षण इस मुखड़े से दिखाई पड़ते हैं । कौन-कौन कहाँ तक बने हैं, वह हरेक का मुखड़ा साक्षात्कार कराता है । जैसे दर्पण में स्थूल चेहरा देखते हैं वैसे दर्पण में यह लक्षण भी देखते हो? देखने से अपना साक्षात्कार क्या होता है? चारों लक्षण से विशेष कौन सा लक्षण अपने में देखते हो? अपने आप को देखने का अभ्यास हरेक को होना चाहिए । अन्तिम स्टेज ऐसी होनी है जिसमें हरेक के मुखड़े में यह सर्व लक्षण प्रसिद्ध रूप में दिखाई पड़ेंगे । अभी कोई गुप्त है, कोई प्रत्यक्ष है । कोई गुण विशेष है कोई उनसे कम है । लेकिन सम्पूर्ण स्टेज में यह सभी लक्षण समान रूप में और प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देंगे । जिससे सभी की नम्बरवार प्रत्यक्षता होनी है । जितना-जितना जिसमें प्रत्यक्ष रूप में गुण आते जाते हैं उतनी-उतनी प्रत्यक्षता भी होती जा रही है ।
आज विशेष किस कार्य के लिए आये हैं? पाण्डव सेना प्रति । पाण्डवों की भट्ठी का आरम्भ है । अपने में क्या नवीनता लानी है, यह मालूम है? विशेष भट्ठी में आये हो तो विशेष क्या धारणा करेंगे? (हरेक ने अपना-अपना लक्ष्य सुनाया) टीचर्स आप बताओ इस पाण्डव सेना से क्या-क्या कराना है । तो यह पहले से सुनते ही अपने में सभी पॉइंट्स भरने का प्रयत्न कर लेंगे । जो फिर आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी । आप इन्हों से क्या चाहते हो? यह एक सेकण्ड में अपने को बदल सकते हैं । मुश्किल तो कुछ भी हो नहीं सकता । और जो निमित्त बने हुए हैं उन्हों को मदद भी बहुत अच्छी मिलती है । पाण्डव सेना तो कल्प पहले की प्रसिद्ध है ही । पाण्डवों के कर्तव्य का यादगार तो प्रसिद्ध है । जो कल्प पहले हुआ है वह सिर्फ अभी रिपीट करना है । अव्यक्त बनने के लिए वा जो भी सभी ने लक्ष्य सुनाया उसको पूर्ण करने के लिए क्या-क्या अपने में धारण करना है । वह आज सुनाते हैं । सर्व पाण्डव अपने को क्या कहलाते हो? ऑलमाइटी गॉड फ़ादर के बच्चे कहलाते हो ना । तो अव्यक्त बनने के लिए मुख्य कौन सी शक्तियों को अपने में धारण करना है? तब ही जो लक्ष्य रखा है वह पूर्ण हो सकेगा । भट्ठी से मुख्य कौन सी शक्तियों को धारण कर के जाना है, वह बताते हैं । हैं तो बहुत लेकिन मुख्य एक तो सहन शक्ति चाहिए, परखने की शक्ति चाहिए और विस्तार को छोटा करने की और फिर छोटे को बड़ा करने की भी शक्ति चाहिए । कहाँ विस्तार को कम करना पड़ता है और कहाँ विस्तार भी करना पड़ता है । समेटने की शक्ति, समाने की शक्ति, सामना करने की शक्ति और निर्णय करने की भी शक्ति चाहिए । इन सबके साथ-साथ सर्व को स्नेह और सहयोगी बनाने की अर्थात् सर्व को मिलाने की भी शक्ति चाहिए । तो यह सभी शक्तियां धारण करनी पड़े । तब ही सभी लक्षण पूरे हो सकते हैं । हो सकते भी नहीं लेकिन होना ही है । करके ही जाना है । यह निश्चयबुद्धि के बोल हैं । इसके लिए एक बात विशेष है । रूहानियत भी धारण करनी है और साथ-साथ ईश्वरीय रूहाब भी हो । यह दो बातें धारण करना है और एक बात छोड़ना है । वह कौन सी? (कोई ने कहा रौब छोड़ना है, कोई ने कहा नीचपना छोड़ना है) यह ठीक है । कहाँ-कहाँ अपने में फैथ न होने के कारण कई कार्य को सिद्ध नहीं कर सकते हैं । इसलिए कहते हैं नीचपना छोड़ना है । रौब को भी छोड़ना है । दूसरा जो भिन्न-भिन्न रूप बदलते हैं, कब कैसा, कब कैसा, तो वह भिन्न-भिन्न रूप बदलना छोड़कर एक अव्यक्त और अलौकिक रूप भट्ठी से धारण करके जाना है । अच्छा । तिलक तो लगा हुआ है ना । अभी सिर्फ भट्ठी की सौगात देनी है । वह क्या सौगात देंगे? तिलक लगा हुआ है, ताजधारी भी हैं वा ताज देना है । अभी अगर छोटा ताज धारण किया है तो भविष्य में भी कमी पड़ जाएगी । भट्ठी में विश्व महाराजन बनने के लिए आये हो । सभी से बड़े से बड़ा ताज तो विश्व महाराजन का ही होता है । उनकी फिर क्या-क्या जिम्मेवारियां होती है, वह भी पाठ पढ़ाना होगा ।
यह भी एक अच्छा समागम है । आपकी टीचर (चन्द्रमणि) बड़ी हर्षित हो रही है । क्योंकि देखती है कि हमारे सभी स्टूडेंट्स विश्व महाराजन बनेंगे । इस ग्रुप का नाम क्या है, मालूम? एक-एक में विशेष गुण हैं । इसलिए यह विशेष आत्माओं का ग्रुप है । अपने को विशेष आत्मा समझते हो । देखा यह कीचेन (त्रिमूर्ति की कीचेन) सौगात देते हैं । इस लक्ष्य को देख ऐसे लक्षण धारण करने हैं । एक दो के संस्कारों को मिलाना है । और साथ-साथ यह जो चाबी की निशानी दी है अर्थात् सर्व शक्तियां जो सुनाई हैं, उनकी चाबी लेकर ही जाना है । लेकिन यह दोनों बातें कायम तब रहेंगी जब रचयिता और रचना का यथार्थ ज्ञान स्मृति में होगा । इसके लिए यह याद सौगात है । अपने को सफलतामूर्त समझते हो? सफलता अर्थात् सम्पूर्ण गुण धारण करना । अगर सर्व बातों में सफलता है तो उसका नाम ही है सम्पूर्णमूर्त । सफलता के सितारे हैं उसी स्मृति में रह कार्य करने से ही सफलता का अधिकार प्राप्त होता है । सफलता के सितारे बनने से सामना करने की शक्ति आती है । सफलता को सामने रखने से समस्या भी पलट जाती है और सफलता प्रैक्टिकल में हो भी जाती है । समीप सितारों के लक्षण क्या होते हैं? जिसके समीप है उन समान बनना है । समीप सितारों में बापदादा के गुण और कर्तव्य प्रत्यक्ष दिखाई पड़ेंगे । जितनी समीपता उतनी समानता देखेंगे । उनका मुखड़ा बापदादा के साक्षात्कार कराने का दर्पण होता है । उसको बापदादा का परिचय देने का प्रयत्न कम करना पड़ता है । क्योंकि वह स्वयं ही परिचय देने की मूर्त होते हैं । उनको देखते ही बापदादा का परिचय प्राप्त हो जाता है । सर्विस में ऐसे प्रत्यक्ष सबूत देखेंगे । भल देखेंगे आप लोगों को लेकिन आकर्षण बापदादा की तरफ होगी । इसको कहा जाता है सन शोज़ फादर । स्नेह समीप लाता है । अपने स्नेह के मूर्त को जानते हो? स्नेह कभी गुप्त नहीं रह सकता । स्नेही के हर कदम से, जिससे स्नेह है उसकी छाप देखने में आती है । जितना हर्षितमूर्त उतना आकर्षणमूर्त बनना है । आकर्षणमूर्त सदैव बने रहें इसके लिए आकारी रूपधारी बन साकार कर्तव्य में आना है । अन्तर्मुखी और एकांतवासी यह लक्षण धारण करने जो लक्ष्य रखा है उसकी सहज प्राप्ति हो सकती है । साधन से सिद्धि होती है ना ।
सर्विस में सदैव सम्पूर्ण सफलता के लिए विशेष किस गुण को सामने रखना पड़ता है । साकार रूप में विशेष किस गुण के होने कारण सफलता प्राप्त हुई? (उदारचित्त) जितना उदारचित्त उतना सर्व के उद्धार करने का निमित्त बन सकते हैं । उदारचित्त होने से सहयोग लेने के पात्र बन जाते हैं । ऐसा समझना चाहिए कि हम सर्व आत्माओं के उद्धार करने के निमित्त हैं । इसलिए हर बात में उदारचित्त । मनसा में, वाचा में, कर्मणा में भी उदारचित्त बनना है । संपर्क में भी बनना है । बनते जा रहे हैं और बनते ही जाना है । जितना जो उदारचित्त होता है उतना वह आकर्षणमूर्त भी होता है । तो इसी प्रयत्न को आगे बढ़ा के प्रत्यक्षता में लाना है । मधुबन में रहते मधुरता और बेहद की वैराग्यवृत्ति को धारण करना है । यह है मधुबन का मुख्य लक्षण । इसको ही मधुबन कहा जाता है । बाहर रहते भी अगर यह लक्ष्य है तो गोया मधुबन निवासी हैं । जितना यहाँ रेस्पान्सिबिल्टी लेते हैं उतना वहाँ प्रजा द्वारा रेस्पेक्ट मिलेगा । सहयोग लेने के लिए स्नेही बनना है । सर्व के स्नेही, सर्व के सहयोगी । जितना जितना चक्रवर्ती बनेंगे उतना सर्व के सम्बन्ध में आ सकते हैं । इस ग्रुप को विशेष चक्रवर्ती बनना चाहिए । क्योंकि सर्व के सम्बन्ध में आने से सर्व को सहयोग दे भी सकेंगे और सर्व का सहयोग ले भी सकते हैं । हरेक आत्मा की विशेषता देखते सुनते, संपर्क में आते वह विशेषताएं स्वयं में आ जाती हैं । तो प्रैक्टिकल में सर्व का सहयोगी बनना है । इसके लिए पाण्डव सेना को चक्रवर्ती बनना पड़ेगा । योग की अग्नि सदैव जली रहे इसलिए मन-वाणी-कर्म और सम्बन्ध, यह चारों बातों की रखवाली करना पड़े । फिर यह अग्नि अविनाशी रहेगी । बार-बार बुझायेगे और जलायेगे तो टाइम वेस्ट हो जायेगा और पद भी कम होगा । जितना स्नेह है उतनी शक्ति भी रखो । एक सेकण्ड में आकारी और एक सेकण्ड में साकारी बन सकते हो? यह भी आवश्यक सर्विस है । जैसे सर्विस के और अनेक साधन हैं वैसे यह प्रैक्टिस भी अनेक आत्माओं के कल्याण के लिए एक साधन है । इस सर्विस से कोई भी आत्मा को आकर्षित कर सकते हो । इसमें कुछ खर्चा भी नहीं है । कम खर्च बाला नशीन । ऐसी योजना बनाओ । अभी हरेक में कोई न कोई विशेष शक्ति है लेकिन सर्व शक्तियां आ जायेंगी तो फिर क्या बन जायेंगे? मास्टर सर्वशक्तिमान । सभी गुणों में श्रेष्ठ बनना है । इष्ट देवताओं में सर्वशक्तियां समान रूप में होती हैं । तो यह पुरुषार्थ करना है ।

Tags:  अव्यक्त बनने के लिए शक्तियाँ, सहन शक्ति, परखने की शक्ति, विस्तार की शक्ति, समाने की शक्ति, निर्णय की शक्ति, स्नेह और सहयोग की शक्ति, रूहानियत, ईश्वरीय रूहाब, अव्यक्त रूप, अलौकिक रूप, पाण्डव सेना, विश्व महाराजन, भट्ठी का पुरुषार्थ, टीचर्स का उद्देश्य, साकार रूप, उदारचित्त, सर्व आत्माओं का उद्धार, आकर्षणमूर्त, मध्यवर्ती लक्षण, माधुर्य, वैराग्यवृत्ति, सर्व के सहयोगी बनना, चक्रवर्ती बनना, सफलता की प्राप्ति, गुणों का धारण, सर्व शक्तियाँ, मास्टर सर्वशक्तिमान, स्नेह की शक्ति, सेवा का उद्देश्य, साधना और सिद्धि, आत्मा का कल्याण

Powers to become subtle, power to tolerate, power to test, power to expand, power to assimilate, power to decide, power of love and cooperation, spirituality, divine aura, subtle form, supernatural form, Pandava army, world emperor, bhatthi’s efforts, teachers’ purpose, corporeal form, generous mind, salvation of all souls, image of attraction, intermediate characteristics, sweetness, dispassion, becoming cooperative with all, becoming a chakravarti, attainment of success, imbibing virtues, all powers, master almighty, power of love, purpose of service, sadhna and siddhi, welfare of soul