Garuda Purana/Brahma Kumari Gyan (15) The glory of a son and liberation from ghosthood by offering Pind Daan

गरुड़ पुराण/ब्रह्मकुमारी ज्ञान(15)पुत्र की महिमा और पिंडदान से प्रेतत्व से मुक्ति

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

YouTube player

पुत्र की महिमा और पिंडदान से प्रेतत्व से मुक्ति

पुत्र की महिमा, दूसरे के द्वारा दिए गए पिंडदान से प्रे तत्व से मुक्ति

सूतजी ने कहाऐसा सुनकर गरुड़ जी पीपल के पत्ते की भाँति काँप उठे और प्राणियों के उपकार के लिए पुनः भगवान विष्णु से पूछने लगे।

गरुड़ जी का प्रश्न

गरुड़ जी ने पूछाहे स्वामिन्! मनुष्य प्रमादवश अथवा जानकर पापकर्मों को करके भी यम की यातना को कैसे टाल सकता है? संसार रूपी सागर में डूबे हुए, दीनचित्त, पापग्रस्त और विषय-वासना में फंसे लोगों के उद्धार का उपाय क्या है?

भगवान विष्णु का उत्तर

 भगवान विष्णु ने उत्तर दियाहे गरुड़! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न किया है, यह मनुष्यों के कल्याण के लिए है। ध्यानपूर्वक सुनो, मैं तुम्हें इस विषय में विस्तार से बताता हूँ।

मैंने पहले पुत्रहीन और पापी मनुष्यों की दुर्गति का वर्णन किया है। किंतु पुत्रवान और धार्मिक मनुष्यों को ऐसी दुर्गति नहीं भोगनी पड़ती। यदि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण संतानोत्पत्ति में बाधा आती है तो किसी उपाय से पुत्र की प्राप्ति करनी चाहिए। हरिवंश पुराण की कथा सुनकर, विधिपूर्वक शतचंडी यज्ञ करके तथा भक्तिपूर्वक शिव की आराधना करके पुत्र की प्राप्ति संभव है।

पुत्र की महिमा

भगवान ब्रह्मा ने कहा है कि पुत्र अपने पिता को नरक से बचाता है, इसलिए उसे “पुत्र” कहा जाता है। एक धर्मात्मा पुत्र अपने पूरे कुल को तार सकता है। यह सनातन शास्त्रों में वर्णित है।

वेदों में भी पुत्र के महत्व का वर्णन किया गया है। पुत्र के मुख को देखकर मनुष्य पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पौत्र के स्पर्श से व्यक्ति तीन ऋणों (देव, ऋषि और पितृ ऋण) से मुक्त होता है। पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र के माध्यम से यमलोक को पार करके स्वर्ग प्राप्त किया जाता है।

संतानोत्पत्ति और कुल

का उत्थान

यदि विधि-विधान से विवाह करके उत्पन्न किया गया पुत्र हो, तो वह कुल की उन्नति करता है।परंतु अनुचित तरीके से अपनाया गया पुत्र अधोगति को प्राप्त करता है।इसलिएउचित कुल और मर्यादा का पालन करते हुए संतान प्राप्त करनी चाहिए।

जो पुत्र सगोत्रीय विवाह से उत्पन्न होते हैं, वे श्राद्ध प्रदान करकेपितरों को स्वर्ग में पहुँचाने में सहायक होते हैं। यदि औरस पुत्र श्राद्ध करे तो पितर को स्वर्ग प्राप्त होता है, लेकिन किसी और के द्वारा किए गए श्राद्ध से भी प्रेत को मुक्ति मिल सकती है।

एक प्राचीन कथा

त्रेतायुग में महोदय नामक नगर में बभ्रुवाहन नाम का एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। वह दानी, विद्वान, और प्रजापालक था। एक बार वह अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया।

वहाँ उसने एक विशाल वटवृक्ष देखा, जिसकी छाया शीतल और सुहावनी थी। जब वह उसके पास बैठा, तो उसने एक विकराल, भयानक और मांसरहित प्रेत देखा। वह प्रेत भूख-प्यास से व्याकुल था। राजा यह दृश्य देखकर विस्मित रह गया।

प्रेत ने राजा को देखकर कहाहे महाबाहु! तुम्हारे संपर्क से मेरा प्रेतभाव समाप्त हो गया और मुझे परमगति प्राप्त हो गई। मैं अब धन्य हूँ।”

राजा बभ्रुवाहन ने पूछा— “हे भयंकर प्रेत! तुमने यह प्रेतयोनि किस कर्म के फलस्वरूप पाई? और किस उपाय से तुम्हारी मुक्ति संभव होगी?”

प्रेत ने उत्तर दियाहे राजन्! मैं पहले वैदिश नामक नगर का निवासी सुदेव नामक वैश्य था। मैंने देवताओं और पितरों की विधिपूर्वक पूजा की थी। अनेक दान किए थे और जरूरतमंदों को भोजन कराया था। फिर भी, मैं प्रेत बन गया, क्योंकि मेरा कोई पुत्र, मित्र या बंधु नहीं था जो मेरे लिए और्ध्वदैहिक क्रिया कर सके।”

पिंडदान और और्ध्वदैहिक क्रिया का महत्व

“जिस व्यक्ति के लिए मृत्यु के बाद षोडश मासिक श्राद्ध नहीं किया जाता, उसका प्रेतत्व स्थायी रहता है, भले ही उसके लिए सैकड़ों श्राद्ध किए जाएँ।”

“हे राजन्! यदि तुम मेरे लिए उचित विधि से नारायणबलि और वेदमंत्रों के साथ और्ध्वदैहिक संस्कार कर दो, तो मेरा यह प्रेतभाव समाप्त हो जाएगा। मैं अत्यंत भूख-प्यास से पीड़ित हूँ और यह प्रेतयोनि मेरे लिए असहनीय हो चुकी है।”

“मैंने सुना है किवेदमंत्र, तप, दान, सभीप्राणियों के प्रति दया, सत्शास्त्रों काश्रवण,भगवानविष्णु की पूजा और सज्जनों की संगतिये सब प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने वाले उपाय हैं।”

राजा बभ्रुवाहन ने इस कथा को सुनकर उस प्रेत की सहायता करने का निश्चय किया।

निष्कर्ष

इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि संतान प्राप्ति और पिंडदान का विशेष महत्व है। धर्मपूर्वक जीवन यापन करने वाले मनुष्य को अपने पितरों का ध्यान रखना चाहिए और समय-समय पर उनके उद्धार हेतु श्राद्ध, तर्पण और और्ध्वदैहिक क्रियाएँ संपन्न करनी चाहिए। ऐसा करने से वे स्वयं भी पितृ ऋण से मुक्त होते हैं और अपने कुल की उन्नति करते हैं।

जो व्यक्ति इस सत्य को समझता है और धर्मानुसार आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक दोनों में कल्याण प्राप्त करता है। अतः धर्म का पालन करें, पितरों को प्रसन्न करें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।

📜 पुत्र की महिमा और पिंडदान से प्रेतत्व से मुक्ति | प्रश्न और उत्तर


प्रश्न 1: गरुड़ जी ने भगवान विष्णु से कौन-सा महत्वपूर्ण प्रश्न पूछा?
उत्तर: गरुड़ जी ने पूछा कि मनुष्य प्रमादवश या जानबूझकर पाप करता है, तो यम की यातना से कैसे बच सकता है और संसार रूपी सागर से डूबे हुए, पापग्रस्त, दीनचित्त जीवों का उद्धार कैसे संभव है?


प्रश्न 2: भगवान विष्णु ने पुत्र प्राप्ति और धार्मिक जीवन के बारे में क्या बताया?
उत्तर: भगवान विष्णु ने कहा कि जो मनुष्य पुत्रवान और धर्मात्मा होता है, उसे यम की यातनाएँ नहीं सहनी पड़तीं। पुत्र पिता को नरक से मुक्त करता है और कुल का उद्धार करता है। पुत्र प्राप्ति के लिए हरिवंश पुराण श्रवण, शतचंडी यज्ञ और शिव की भक्तिपूर्वक आराधना करनी चाहिए।


प्रश्न 3: पुत्र शब्द का अर्थ और महत्त्व क्या है?
उत्तर: ब्रह्मा जी ने कहा कि जो संतान अपने पिता को नरक से बचाती है, उसे ‘पुत्र’ कहा जाता है। पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र द्वारा श्राद्ध एवं पिंडदान करने से पितरों को स्वर्ग और गति प्राप्त होती है।


प्रश्न 4: यदि औरस (जन्म से उत्पन्न) पुत्र नहीं हो तो क्या किसी और के श्राद्ध से भी प्रेत को मुक्ति मिल सकती है?
उत्तर: हाँ, यदि औरस पुत्र नहीं हो, तो भी कोई सज्जन आत्मा यदि विधिपूर्वक पिंडदान और और्ध्वदैहिक संस्कार करे, तो प्रेत को मुक्ति मिल सकती है, जैसा कि राजा बभ्रुवाहन और प्रेत की कथा से सिद्ध होता है।


प्रश्न 5: प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए कौन-कौन से उपाय बताए गए हैं?
उत्तर: प्रेतयोनि से मुक्ति के लिए वेदमंत्रों द्वारा और्ध्वदैहिक संस्कार, नारायणबलि, श्राद्ध, दान, तप, भगवान विष्णु की पूजा, शास्त्र श्रवण, प्राणियों पर दया और सज्जनों की संगति अत्यंत महत्वपूर्ण मानी गई है।


प्रश्न 6: राजा बभ्रुवाहन ने प्रेत की किस प्रकार सहायता की?
उत्तर: राजा बभ्रुवाहन ने प्रेत की कथा सुनकर उसके लिए विधिपूर्वक वेदमंत्रों और नारायणबलि से और्ध्वदैहिक संस्कार किया, जिससे प्रेत ने परम गति प्राप्त कर मुक्ति पाई।


प्रश्न 7: इस कथा से मनुष्य को क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर: इस कथा से हमें संतान, पिंडदान और श्राद्ध की महिमा समझ में आती है। जो धर्मपूर्वक जीवन जीता है, वह पितृ ऋण से मुक्त होकर इस लोक और परलोक में कल्याण प्राप्त करता है। अतः श्राद्ध और पितृसेवा अवश्य करनी चाहिए।

पुत्र की महिमा,पिंडदान का महत्व,प्रेत से मुक्ति,और्ध्वदैहिक क्रिया,गरुड़ पुराण कथा,पितृ ऋण से मुक्ति,श्राद्ध का महत्व,पिंडदान कैसे करें,पुत्र से पितरों की मुक्ति,यमलोक से मुक्ति,धार्मिक ज्ञान हिंदी में,सनातन धर्म की कथाएँ,प्रेत योनि से मुक्ति,गरुड़ जी और विष्णु संवाद,पुत्र प्राप्ति के उपाय,नारायणबलि महत्व,शतचंडी यज्ञ से पुत्र प्राप्ति,वेदों में पुत्र का महत्व,संतान का धर्म में महत्व,पितरों की सेवा कैसे करें,श्राद्ध विधि,वेद मंत्रों का प्रभाव,प्रेत कथा,हिन्दू धर्म शिक्षा,

Glory of son, importance of Pind Daan, freedom from ghost, last rites, Garuda Purana story, freedom from ancestral debt, importance of Shradh, how to perform Pind Daan, freedom of ancestors through son, freedom from Yamlok, religious knowledge in Hindi, stories of Sanatan Dharma, freedom from ghost vagina, Garuda Ji and Vishnu dialogue, ways to get a son, importance of Narayan Bali, getting a son from Shat Chandi Yajna, importance of son in Vedas, importance of children in religion, how to serve ancestors, Shradh method, effect of Vedic mantras, ghost story, Hindu religion education,