गरुड़ पुराण/ब्रह्मकुमारी ज्ञान(15)पुत्र की महिमा और पिंडदान से प्रेतत्व से मुक्ति
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
पुत्र की महिमा और पिंडदान से प्रेतत्व से मुक्ति
पुत्र की महिमा, दूसरे के द्वारा दिए गए पिंडदान से प्रे तत्व से मुक्ति
सूतजी ने कहा— ऐसा सुनकर गरुड़ जी पीपल के पत्ते की भाँति काँप उठे और प्राणियों के उपकार के लिए पुनः भगवान विष्णु से पूछने लगे।
गरुड़ जी का प्रश्न
गरुड़ जी ने पूछा— हे स्वामिन्! मनुष्य प्रमादवश अथवा जानकर पापकर्मों को करके भी यम की यातना को कैसे टाल सकता है? संसार रूपी सागर में डूबे हुए, दीनचित्त, पापग्रस्त और विषय-वासना में फंसे लोगों के उद्धार का उपाय क्या है?
भगवान विष्णु का उत्तर
भगवान विष्णु ने उत्तर दिया— हे गरुड़! तुमने बहुत उत्तम प्रश्न किया है, यह मनुष्यों के कल्याण के लिए है। ध्यानपूर्वक सुनो, मैं तुम्हें इस विषय में विस्तार से बताता हूँ।
मैंने पहले पुत्रहीन और पापी मनुष्यों की दुर्गति का वर्णन किया है। किंतु पुत्रवान और धार्मिक मनुष्यों को ऐसी दुर्गति नहीं भोगनी पड़ती। यदि पूर्व जन्म के कर्मों के कारण संतानोत्पत्ति में बाधा आती है तो किसी उपाय से पुत्र की प्राप्ति करनी चाहिए। हरिवंश पुराण की कथा सुनकर, विधिपूर्वक शतचंडी यज्ञ करके तथा भक्तिपूर्वक शिव की आराधना करके पुत्र की प्राप्ति संभव है।
पुत्र की महिमा
भगवान ब्रह्मा ने कहा है कि पुत्र अपने पिता को नरक से बचाता है, इसलिए उसे “पुत्र” कहा जाता है। एक धर्मात्मा पुत्र अपने पूरे कुल को तार सकता है। यह सनातन शास्त्रों में वर्णित है।
वेदों में भी पुत्र के महत्व का वर्णन किया गया है। पुत्र के मुख को देखकर मनुष्य पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है। पौत्र के स्पर्श से व्यक्ति तीन ऋणों (देव, ऋषि और पितृ ऋण) से मुक्त होता है। पुत्र, पौत्र और प्रपौत्र के माध्यम से यमलोक को पार करके स्वर्ग प्राप्त किया जाता है।
संतानोत्पत्ति और कुल
का उत्थान
यदि विधि-विधान से विवाह करके उत्पन्न किया गया पुत्र हो, तो वह कुल की उन्नति करता है।परंतु अनुचित तरीके से अपनाया गया पुत्र अधोगति को प्राप्त करता है।इसलिएउचित कुल और मर्यादा का पालन करते हुए संतान प्राप्त करनी चाहिए।
जो पुत्र सगोत्रीय विवाह से उत्पन्न होते हैं, वे श्राद्ध प्रदान करकेपितरों को स्वर्ग में पहुँचाने में सहायक होते हैं। यदि औरस पुत्र श्राद्ध करे तो पितर को स्वर्ग प्राप्त होता है, लेकिन किसी और के द्वारा किए गए श्राद्ध से भी प्रेत को मुक्ति मिल सकती है।
एक प्राचीन कथा
त्रेतायुग में महोदय नामक नगर में बभ्रुवाहन नाम का एक धर्मपरायण राजा राज्य करता था। वह दानी, विद्वान, और प्रजापालक था। एक बार वह अपने सैनिकों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया।
वहाँ उसने एक विशाल वटवृक्ष देखा, जिसकी छाया शीतल और सुहावनी थी। जब वह उसके पास बैठा, तो उसने एक विकराल, भयानक और मांस–रहित प्रेत देखा। वह प्रेत भूख-प्यास से व्याकुल था। राजा यह दृश्य देखकर विस्मित रह गया।
प्रेत ने राजा को देखकर कहा— “हे महाबाहु! तुम्हारे संपर्क से मेरा प्रेतभाव समाप्त हो गया और मुझे परमगति प्राप्त हो गई। मैं अब धन्य हूँ।”
राजा बभ्रुवाहन ने पूछा— “हे भयंकर प्रेत! तुमने यह प्रेतयोनि किस कर्म के फलस्वरूप पाई? और किस उपाय से तुम्हारी मुक्ति संभव होगी?”
प्रेत ने उत्तर दिया— “हे राजन्! मैं पहले वैदिश नामक नगर का निवासी सुदेव नामक वैश्य था। मैंने देवताओं और पितरों की विधिपूर्वक पूजा की थी। अनेक दान किए थे और जरूरतमंदों को भोजन कराया था। फिर भी, मैं प्रेत बन गया, क्योंकि मेरा कोई पुत्र, मित्र या बंधु नहीं था जो मेरे लिए और्ध्वदैहिक क्रिया कर सके।”
पिंडदान और और्ध्वदैहिक क्रिया का महत्व
“जिस व्यक्ति के लिए मृत्यु के बाद षोडश मासिक श्राद्ध नहीं किया जाता, उसका प्रेतत्व स्थायी रहता है, भले ही उसके लिए सैकड़ों श्राद्ध किए जाएँ।”
“हे राजन्! यदि तुम मेरे लिए उचित विधि से नारायणबलि और वेदमंत्रों के साथ और्ध्वदैहिक संस्कार कर दो, तो मेरा यह प्रेतभाव समाप्त हो जाएगा। मैं अत्यंत भूख-प्यास से पीड़ित हूँ और यह प्रेतयोनि मेरे लिए असहनीय हो चुकी है।”
“मैंने सुना है किवेदमंत्र, तप, दान, सभीप्राणियों के प्रति दया, सत्शास्त्रों काश्रवण,भगवानविष्णु की पूजा और सज्जनों की संगति–ये सब प्रेत–योनि से मुक्ति दिलाने वाले उपाय हैं।”
राजा बभ्रुवाहन ने इस कथा को सुनकर उस प्रेत की सहायता करने का निश्चय किया।
निष्कर्ष
इस कथा से यह शिक्षा मिलती है कि संतान प्राप्ति और पिंडदान का विशेष महत्व है। धर्मपूर्वक जीवन यापन करने वाले मनुष्य को अपने पितरों का ध्यान रखना चाहिए और समय-समय पर उनके उद्धार हेतु श्राद्ध, तर्पण और और्ध्वदैहिक क्रियाएँ संपन्न करनी चाहिए। ऐसा करने से वे स्वयं भी पितृ ऋण से मुक्त होते हैं और अपने कुल की उन्नति करते हैं।
जो व्यक्ति इस सत्य को समझता है और धर्मानुसार आचरण करता है, वह इस लोक और परलोक दोनों में कल्याण प्राप्त करता है। अतः धर्म का पालन करें, पितरों को प्रसन्न करें और अपने जीवन को सार्थक बनाएं।