MURLI 23-02-2025/BRAHMAKUMARIS

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

23-02-25
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
”अव्यक्त-बापदादा”
रिवाइज: 17-02-2004 मधुबन

“सर्व को सहयोग दो और सहयोगी बनाओ, सदा अखण्ड भण्डारा चलता रहे”

आज बापदादा स्वयं अपने साथ बच्चों का हीरे तुल्य जन्म दिन शिव जयन्ती मनाने आये हैं। आप सभी बच्चे अपने पारलौकिक, अलौकिक बाप का बर्थ डे मनाने आये हैं तो बाप फिर आपका मनाने आये हैं। बाप बच्चों के भाग्य को देख हर्षित होते हैं वाह मेरे श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चे वाह! जो बाप के साथ-साथ अवतरित हुए विश्व के अन्धकार को मिटाने के लिए। सारे कल्प में ऐसा बर्थ डे किसी का भी नहीं हो सकता, जो आप बच्चे परमात्म बाप के साथ मना रहे हो। इस अलौकिक अति न्यारे, अति प्यारे जन्म दिन को भक्त आत्मायें भी मनाती हैं लेकिन आप बच्चे मिलन मनाते हो और भक्त आत्मायें सिर्फ महिमा गाते रहते हैं। महिमा भी गाते, पुकारते भी, बापदादा भक्तों की महिमा और पुकार सुनकर उन्हें भी नम्बरवार भावना का फल देते ही हैं। लेकिन भक्त और बच्चे दोनों में महान अन्तर है। आपका किया हुआ श्रेष्ठ कर्म, श्रेष्ठ भाग्य का यादगार बहुत अच्छा मनाते हैं इसीलिए बापदादा भक्तों के भक्ति की लीला देख उन्हें भी मुबारक देते हैं क्योंकि यादगार सब अच्छी तरह से कॉपी की है। वह भी इसी दिन व्रत रखते हैं, वह व्रत रखते हैं थोड़े समय के लिए, अल्पकाल के खान-पान और शुद्धि के लिए। आप व्रत लेते हो सम्पूर्ण पवित्रता, जिसमें आहार-व्यवहार, वचन, कर्म, पूरे जन्म के लिए व्रत लेते हो। जब तक संगम की जीवन में जीना है तब तक मन-वचन-कर्म में पवित्र बनना ही है। न सिर्फ बनना है लेकिन बनाना भी है। तो देखो भक्तों की बुद्धि भी कम नहीं है, यादगार की कॉपी बहुत अच्छी की है। आप सभी सब व्यर्थ समर्पण कर समर्थ बने हो अर्थात् अपने अपवित्र जीवन को समर्पण किया, आपकी समर्पणता का यादगार वह बलि चढ़ाते हैं लेकिन स्वयं को बलि नहीं चढ़ाते, बकरे को बलि चढ़ा देते हैं। देखो कितनी अच्छी कॉपी की है, बकरे को क्यों बलि चढ़ाते हैं? इसकी भी कॉपी बहुत सुन्दर की है, बकरा क्या करता है? में-में-में करता है ना! और आपने क्या समर्पण किया? मैं, मैं, मैं। देह-भान का मैं-पन, क्योंकि इस मैं-पन में ही देह-अभिमान आता है। जो देह-अभिमान सभी विकारों का बीज है।

बापदादा ने पहले भी सुनाया है कि सर्व समर्पित होने में यह देह भान का मैं-पन ही रूकावट डालता है। कॉमन मैं-पन, मैं देह हूँ, वा देह के सम्बन्ध का मैं-पन, देह के पदार्थों का समर्पण यह तो सहज है। यह तो कर लिया है ना? कि नहीं, यह भी नहीं हुआ है! जितना आगे बढ़ते हैं उतना मैं-पन भी अति सूक्ष्म महीन होता जाता है। यह मोटा मैं-पन तो खत्म होना सहज है। लेकिन महीन मैं-पन है – जो परमात्म जन्म सिद्ध अधिकार द्वारा विशेषतायें प्राप्त होती हैं, बुद्धि का वरदान, ज्ञान स्वरूप बनने का वरदान, सेवा का वरदान वा विशेषतायें, या प्रभु देन कहो, उसका अगर मैं-पन आता तो इसको कहा जाता है महीन मैं-पन। मैं जो करता, मैं जो कहता वही ठीक है, वही होना चाहिए, यह रॉयल मैं-पन उड़ती कला में जाने के लिए बोझ बन जाता है। तो बाप कहते इस मैं-पन का भी समर्पण, प्रभु देन में मैं-पन नहीं होता, न मैं न मेरा। प्रभु देन, प्रभु वरदान, प्रभु विशेषता है। तो आप सबकी समर्पणता कितनी महीन है। तो चेक किया है? साधारण मैं-पन वा रॉयल मैं-पन दोनों का समर्पण किया है? किया है या कर रहे हैं? करना तो पड़ेगा ही। आप लोग आपस में हंसी में कहते हो ना, मरना तो पड़ेगा ही। लेकिन यह मरना भगवान की गोदी में जीना है। यह मरना, मरना नहीं है। 21 जन्म देव आत्माओं के गोदी में जन्मना है इसीलिए खुशी-खुशी से समर्पित होते हो ना! चिल्ला के तो नहीं होते? नहीं। भक्ति में भी चिल्लाया हुआ बलि स्वीकार नहीं होती है। तो जो खुशी से समर्पित होते हैं, हद के मैं और मेरे में, वह जन्म-जन्म वर्से के अधिकारी बन जाते हैं।

तो चेक करना – किसी भी व्यर्थ संकल्प, व्यर्थ बोल, व्यर्थ चलन के परिवर्तन करने में खुशी से परिवर्तन करते वा मजबूरी से? मुहब्बत में परिवर्तन होते या मेहनत से परिवर्तन होते? जब आप सभी बच्चों ने जन्म लेते ही अपने जीवन का आक्युपेशन यही बनाया है – विश्व परिवर्तन करने वाले, विश्व परिवर्तक। यह आप सबका, ब्राह्मण जन्म का ऑक्यूपेशन है ना! है पक्का तो हाथ हिलाओ। झण्डे हिला रहे हैं, बहुत अच्छा। (सभी के हाथों में शिवबाबा की झण्डियां हैं जो सभी हिला रहे हैं) आज झण्डों का दिन है ना, बहुत अच्छा। लेकिन ऐसे ही झण्डा नहीं हिलाना। ऐसे झण्डा हिलाना तो बहुत सहज है, मन को हिलाना है। मन को परिवर्तन करना है। हिम्मत वाले हो ना। हिम्मत है? बहुत हिम्मत है, अच्छा।

बापदादा ने एक खुशखबरी की बात देखी, कौन सी, जानते हो? बापदादा ने इस वर्ष के लिए विशेष गिफ्ट दी थी कि “इस वर्ष अगर थोड़ी भी हिम्मत रखेंगे, किसी भी कार्य में, चाहे स्व-परिवर्तन में, चाहे कार्य में, चाहे विश्व सेवा में, अगर हिम्मत से किया तो इस वर्ष को वरदान मिला है एकस्ट्रा मदद मिलने का।” तो बापदादा ने खुशी की खबर या नज़ारा क्या देखा! कि इस बारी की शिव जयन्ती की सेवा में चारों ओर बहुत-बहुत-बहुत अच्छी हिम्मत और उमंग-उत्साह से आगे बढ़ रहे हैं। (सभी ने ताली बजाई) हाँ ताली भले बजाओ। सदा ऐसे ताली बजायेंगे या शिवरात्रि पर? सदा बजाते रहना। अच्छा। चारों ओर से तो मधुबन में समाचार लिखते हैं और बापदादा तो वतन में ही देख लेते हैं। उमंग अच्छा है और प्लैन भी अच्छे बनाये हैं। ऐसे ही सेवा में उमंग और उत्साह विश्व की आत्माओं में उमंग-उत्साह बढ़ायेगा। देखो निमित्त दादी की कलम ने कमाल तो की है ना! अच्छी रिजल्ट है। इसलिए बापदादा अभी एक-एक सेन्टर का नाम तो नहीं लेंगे लेकिन विशेष सभी तरफ के सेवा की रिजल्ट की, बापदादा हर एक सेवाधारी बच्चे की विशेषता और नाम ले लेकर पदमगुणा मुबारक दे रहे हैं। देख भी रहे हैं, बच्चे अपने-अपने स्थान पर देख के खुश हो रहे हैं। विदेश में भी खुश हो रहे हैं क्योंकि आप सभी तो वही विश्व की आत्माओं के लिए इष्ट देवी और देवतायें हो ना। बापदादा जब बच्चों की सभा को देखते हैं तो तीन रूपों से देखते हैं:-

1- वर्तमान स्वराज्य अधिकारी, अभी भी राजे हो। लौकिक में भी बाप बच्चों को कहते हैं मेरे राजे बच्चे, राजा बच्चा। चाहे गरीब भी हो तो भी कहते हैं राजा बच्चा। लेकिन बाप वर्तमान संगम पर भी हर बच्चे को स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा देखते हैं। राजे हो ना! स्वराज्य अधिकारी। तो वर्तमान स्वराज्य अधिकारी। 2- भविष्य में विश्व राज्य अधिकारी और 3- द्वापर से कलियुग अन्त तक पूज्य, पूजन के अधिकारी – इन तीनों रूपों में हर बच्चे को बापदादा देखते हैं। साधारण नहीं देखते हैं। आप कैसे भी हो लेकिन बापदादा हर एक बच्चे को स्वराज्य अधिकारी राजा बच्चा देखते हैं। राजयोगी हो ना! कोई इसमें प्रजा योगी है क्या? प्रजायोगी है? नहीं। सब राजयोगी हैं। तो राजयोगी अर्थात् राजा। ऐसे स्वराज्य अधिकारी बच्चों का बर्थ डे मनाने स्वयं बाप आये हैं। देखो, आप डबल विदेशी तो विदेश से आये हो, बर्थ डे मनाने। हाथ उठाओ डबल विदेशी। तो ज्यादा में ज्यादा दूरदेश कौन सा है? अमेरिका या उससे भी दूर है? और बापदादा कहाँ से आया है? बापदादा तो परमधाम से आये हैं। तो बच्चों से प्यार है ना! तो जन्म दिन कितना श्रेष्ठ है, जो भगवान को भी आना पड़ता है। हाँ यह (बर्थ डे का एक बैनर सभी भाषाओं का बनाया हुआ दिखा रहे हैं) अच्छा बनाया है, सभी भाषाओं में लिखा है। बापदादा सभी देश के सभी भाषाओं वाले बच्चों को बर्थ डे की मुबारक दे रहे हैं।

देखो, बाप की शिव जयन्ती मनाते हैं लेकिन बाप है क्या? बिन्दी। बिन्दी की जयन्ती, अवतरण मना रहे हैं। सबसे हीरे तुल्य जयन्ती किसकी है? बिन्दू की, बिन्दी की। तो बिन्दी की कितनी महिमा है! इसीलिए बापदादा सदा कहते हैं कि तीन बिन्दू सदा याद रखो – आठ नम्बर, सात नम्बर तो फिर भी गड़बड़ से लिखना पड़ेगा लेकिन बिन्दू कितना इज़ी है। तीन बिन्दू – सदा याद रखो। तीनों को अच्छी तरह से जानते हो ना। आप भी बिन्दू, बाप भी बिन्दू, बिन्दू के बच्चे बिन्दू हो। और कर्म में जब आते हो तो इस सृष्टि मंच पर कर्म करने के लिए आये हो, यह सृष्टि मंच ड्रामा है। तो ड्रामा में जो भी कर्म किया, बीत गया, उसको फुल-स्टॉप लगाओ। तो फुलस्टॉप भी क्या है? बिन्दू। इसलिए तीन बिन्दू सदा याद रखो। सारी कमाल देखो, आजकल की दुनिया में सबसे ज्यादा महत्व किसका है? पैसे का। पैसे का महत्व है ना! माँ बाप भी कुछ नहीं हैं, पैसा ही सब कुछ है। उसमें भी देखो अगर एक के आगे, एक बिन्दी लगा दो तो क्या बन जायेगा! दस बन जायेगा ना। दूसरी बिन्दी लगाओ, 100 हो जायेगा। तीसरी लगाओ 1000 हो जायेगा। तो बिन्दी की कमाल है ना। पैसे में भी बिन्दी की कमाल है और श्रेष्ठ आत्मा बनने में भी बिन्दी की कमाल है। और करनकरावनहार भी बिन्दू है। तो सर्व तरफ किसका महत्व हुआ! बिन्दू का ना। बस बिन्दू याद रखो और विस्तार में नहीं जाओ, बिन्दू तो याद कर सकते। बिन्दू बनो, बिन्दू को याद करो और बिन्दू लगाओ, बस। यह है पुरुषार्थ। मेहनत है? या सहज है? जो समझते हैं सहज है वह हाथ उठाओ। सहज है तो बिन्दू लगाना पड़ेगा। जब कोई समस्या आती है तब बिन्दू लगाते हो या क्वेश्चन मार्क? क्वेश्चन मार्क नहीं लगाना, बिन्दू लगाना। क्वेश्चन मार्क कितना टेढ़ा होता है। देखो, लिखो क्वेश्चन मार्क, कितना टेढ़ा है और बिन्दू कितना सहज है। तो बिन्दू बनना आता है? आता है? सभी होशियार हैं।

बापदादा ने विशेष सेवाओं के उमंग-उत्साह की मुबारक तो दी, बहुत अच्छा कर रहे हैं, करते रहेंगे लेकिन आगे के लिए हर समय, हर दिन – वर्ल्ड सर्वेन्ट हूँ – यह याद रखना। आपको याद है – ब्रह्मा बाप साइन क्या करते थे? वर्ल्ड सर्वेन्ट। तो वर्ल्ड सर्वेन्ट हैं, तो सिर्फ शिवरात्रि की सेवा से वर्ल्ड की सेवा समाप्त नहीं होगी। लक्ष्य रखो कि मैं वर्ल्ड सर्वेन्ट हूँ, तो वर्ल्ड की सेवा हर श्वांस में, हर सेकण्ड में करनी है। जो भी आवे, जिससे भी सम्पर्क हो, उसको दाता बन कुछ न कुछ देना ही है। खाली हाथ कोई नहीं जावे। अखण्ड भण्डारा हर समय खुला रहे। कम से कम हर एक के प्रति शुभ भाव और शुभ भावना, यह अवश्य दो। शुभ भाव से देखो, सुनो, सम्बन्ध में आओ और शुभ भावना से उस आत्मा को सहयोग दो। अभी सर्व आत्माओं को आपके सहयोग की बहुत-बहुत आवश्यकता है। तो सहयोग दो और सहयोगी बनाओ। कोई न कोई सहयोग चाहे मन्सा का, चाहे बोल से कोई सहयोग दो, चाहे सम्बन्ध-सम्पर्क से सहयोग दो, तो इस शिवरात्रि जन्म उत्सव का विशेष स्लोगन याद रखो – “सहयोग दो और सहयोगी बनाओ”। कम से कम जो भी सम्पर्क-सम्बन्ध में आवे उसे सहयोग दो, सहयोगी बनाओ। कोई न कोई तो सम्बन्ध में आता ही है, उसकी और कोई खातिरी भल नहीं करो लेकिन हर एक को दिलखुश मिठाई जरूर खिलाओ। यह जो यहाँ भण्डारे में बनती है वह नहीं। दिल खुश कर दो। तो दिल खुश करना अर्थात् दिल खुश मिठाई खिलाना। खिलायेंगे! उसमें तो कोई मेहनत नहीं है। न टाइम एक्स्ट्रा देना है, न मेहनत है। शुभ भावना से दिल खुश मिठाई खिलाओ। आप भी खुश, वह भी खुश और क्या चाहिए। तो खुश रहेंगे और खुशी देंगे, कभी भी आप सभी का चेहरा ज्यादा गम्भीर नहीं होना चाहिए। टूमच गम्भीर भी अच्छा नहीं लगता है। मुस्कराहट तो होनी चाहिए ना। गम्भीर बनना अच्छा है, लेकिन टूमच गम्भीर होते हैं ना, तो वह ऐसे होते हैं जैसे पता नहीं कहाँ गायब हैं। देख भी रहे हैं लेकिन गायब। बोल भी रहे हैं लेकिन गायब रूप में बोल रहे हैं। तो वह चेहरा अच्छा नहीं। चेहरा सदा मुस्कराता रहे। चेहरा सीरियस नहीं करना। क्या करें, कैसे करें तो सीरियस हो जाते हो। बहुत मेहनत है, बहुत काम है… सीरियस हो जाते हो लेकिन जितना बहुत काम उतना ज्यादा मुस्कराना। मुस्कराना आता है ना? आता है? आपके जड़ चित्र देखो कभी ऐसे सीरियस दिखाते हैं क्या! अगर सीरियस दिखावे तो कहते हैं आर्टिस्ट ठीक नहीं है। तो अगर आप भी सीरियस रहते हो तो कहेंगे इसको जीने का आर्ट नहीं आता है। इसलिए क्या करेंगे? टीचर्स क्या करेंगे? अच्छा बहुत टीचर्स हैं, टीचर्स मुबारक हो। सेवा की मुबारक हो। अच्छा।

एक सेकण्ड में अपना पूर्वज और पूज्य स्वरूप इमर्ज कर सकते हो? वही देवी और देवताओं के स्वरूप के स्मृति में अपने को देख सकते हो? कोई भी देवी या देवता। मैं पूर्वज हूँ, संगमयुग में पूर्वज हैं और द्वापर से पूज्य हैं। सतयुग, त्रेता में राज्य अधिकारी हैं। तो एक सेकण्ड में सभी और संकल्प समाप्त कर अपने पूर्वज और पूज्य स्वरूप में स्थित हो जाओ। अच्छा।

चारों ओर के अलौकिक दिव्य अवतरण वाले बच्चों को बाप के जन्म दिन और बच्चों के जन्म दिन की दुआयें और यादप्यार, दिलाराम बाप की दिल में राइट हैण्ड सेवाधारी बच्चे सदा समाये हुए हैं। तो ऐसे दिल तख्तनशीन श्रेष्ठ आत्माओं को, सदा बिन्दी के महत्व को जानने वाले श्रेष्ठ बिन्दी स्वरूप बच्चों को, सदा अपने स्वमान में स्थित रह सर्व को रूहानी सम्मान देने वाले स्वमान-धारी आत्माओं को, सदा दाता के बच्चे मास्टर दाता बन हर एक को अपने अखण्ड भण्डार से कुछ न कुछ देने वाले मास्टर दाता बच्चों को बापदादा की बहुत-बहुत पदमगुणा, कोहिनूर हीरे से भी ज्यादा प्रभु नूर बच्चों को यादप्यार और नमस्ते।

वरदान:- हर शक्ति को आर्डर प्रमाण चलाने वाले मास्टर रचयिता भव
कर्म शुरू करने के पहले जैसा कर्म वैसी शक्ति का आह्वान करो। मालिक बनकर आर्डर करो क्योंकि यह सर्व-शक्तियां आपकी भुजा समान हैं, आपकी भुजायें आपके आर्डर के बिना कुछ नहीं कर सकती। आर्डर करो सहन शक्ति कार्य सफल करो तो देखो सफलता हुई पड़ी है। लेकिन आर्डर करने के बजाए डरते हो – कर सकेंगे वा नहीं कर सकेंगे। इस प्रकार का डर है तो आर्डर चल नहीं सकता इसलिए मास्टर रचयिता बन हर शक्ति को आर्डर प्रमाण चलाने के लिए निर्भय बनो।
स्लोगन:- सहारेदाता बाप को प्रत्यक्ष कर सबको किनारे लगाओ।

 

अव्यक्त इशारे:- एकान्तप्रिय बनो एकता और एकाग्रता को अपनाओ

जैसे काई इन्वेन्टर कोई भी इन्वेन्शन निकालने के लिए एकान्त में रहते हैं। तो यहाँ की एकान्त अर्थात् एक के अन्त में खोना है, तो बाहर की आकर्षण से एकान्त चाहिए। ऐसे नहीं सिर्फ कमरे में बैठने की एकान्त चाहिए, लेकिन मन एकान्त में हो। मन की एकाग्रता अर्थात् एक की याद में रहना, एकाग्र होना यही एकान्त है।

“सर्व को सहयोग दो और सहयोगी बनाओ, सदा अखण्ड भण्डारा चलता रहे”

प्रश्न 1: बापदादा आज बच्चों का कौन सा विशेष दिन मनाने के लिए आए हैं?
उत्तर: आज बापदादा बच्चों का हीरे तुल्य जन्मदिन, शिव जयन्ती मनाने आए हैं।

प्रश्न 2: भक्त आत्माएँ और बच्चे शिव जयन्ती कैसे अलग-अलग मनाते हैं?
उत्तर: भक्त आत्माएँ केवल महिमा गाते और व्रत रखते हैं, जबकि बच्चे बाप से मिलन मनाते हैं और सम्पूर्ण पवित्रता का संकल्प लेते हैं।

प्रश्न 3: बकरा बलि देने का आध्यात्मिक अर्थ क्या है?
उत्तर: बकरा “में-में” करता है, जो देह-अभिमान का प्रतीक है। बच्चे अपनी “मैं-पन” की भावना को समर्पित कर देते हैं, यही वास्तविक बलि है।

प्रश्न 4: महीन “मैं-पन” क्या होता है, और यह आध्यात्मिक उड़ान में कैसे बाधा डालता है?
उत्तर: महीन “मैं-पन” वह है, जब कोई व्यक्ति अपनी विशेषताओं, बुद्धि, सेवा, और वरदानों को अपनी उपलब्धि मानकर अहम अनुभव करता है। यह उड़ती कला में बाधा बनता है।

प्रश्न 5: बापदादा ने किस वर्ष की विशेषता बताई और उसका क्या वरदान है?
उत्तर: इस वर्ष यदि बच्चे थोड़ी भी हिम्मत रखेंगे, तो उन्हें “एक्स्ट्रा मदद” का वरदान प्राप्त होगा।

प्रश्न 6: बापदादा बच्चों को तीन स्वरूपों में कैसे देखते हैं?
उत्तर:

  1. वर्तमान में स्वराज्य अधिकारी।
  2. भविष्य में विश्व राज्य अधिकारी।
  3. द्वापर से कलियुग अंत तक पूज्य आत्माएँ।

प्रश्न 7: “तीन बिन्दी” की महिमा क्या है?
उत्तर: तीन बिन्दी याद रखने का अर्थ है:

  1. आत्मा बिन्दी।
  2. परमात्मा बिन्दी।
  3. बीते हुए कर्मों पर बिन्दी लगाना (फुल-स्टॉप लगाना)।

प्रश्न 8: जब कोई समस्या आए तो किस चिन्ह का प्रयोग करना चाहिए और क्यों?
उत्तर: समस्या आने पर “क्वेश्चन मार्क” नहीं, बल्कि “बिन्दू” लगाना चाहिए, क्योंकि बिन्दू सहज है और समाधान देता है, जबकि क्वेश्चन मार्क टेढ़ा होता है और उलझन बढ़ाता है।

प्रश्न 9: “अखण्ड भण्डारा” खुला रखने का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है हर आत्मा को शुभ भाव, शुभ भावना, और सहयोग देना ताकि वह भी सहयोगी बन जाए।

प्रश्न 10: बापदादा ने किस प्रकार की “दिलखुश मिठाई” खिलाने का निर्देश दिया?
उत्तर: हर आत्मा को शुभ भावना और सहयोग देकर उसे खुशी देना ही सच्ची दिलखुश मिठाई खिलाना है।

प्रश्न 11: “पूर्वज और पूज्य” स्वरूप को एक सेकंड में इमर्ज करने का क्या अर्थ है?
उत्तर: यह स्मृति लाने का अभ्यास है कि हम संगमयुग में पूर्वज आत्माएँ हैं और द्वापर से पूज्य देवी-देवता स्वरूप हैं।

प्रश्न 12: “मास्टर रचयिता” बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर: इसका अर्थ है कि हर शक्ति को अपने आदेश प्रमाण चलाना, निर्भय होकर आर्डर करना, और सफलता को सहज बनाना।

प्रश्न 13: “एकान्तप्रिय” बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर: एकान्तप्रिय बनने का अर्थ है बाहरी आकर्षण से मुक्त होकर “एक” परमात्मा में मन को लगाना और उसमें एकाग्र रहना।

प्रश्न 14: संगमयुग के बच्चों का मुख्य ऑक्यूपेशन क्या है?
उत्तर: संगमयुग के बच्चों का मुख्य ऑक्यूपेशन “विश्व परिवर्तन” करना है।

प्रश्न 15: बापदादा ने सेवा में कौन-सा विशेष संकल्प लेने का निर्देश दिया?
उत्तर: संकल्प – “सहयोग दो और सहयोगी बनाओ।”

सर्व को सहयोग दो, सहयोगी बनाओ, सदा अखण्ड भण्डारा चलता रहे, शिव जयन्ती, बापदादा, अव्यक्त वाणी, ब्रह्मा कुमारिज, परमात्म ज्ञान, स्वराज्य अधिकारी, विश्व परिवर्तन, अलौकिक जन्मदिन, बिन्दी स्वरूप, मास्टर दाता, शुभ भावना, सेवा का उमंग, स्वमान, सहन शक्ति, मास्टर रचयिता, एकान्तप्रिय, एकता, एकाग्रता, रूहानी सम्मान, दुआयें, यादप्यार, ब्रह्मा बाप, राजयोगी, दैवी गुण, पवित्रता, समर्पण, उमंग-उत्साह, आत्मा का उत्थान, आध्यात्मिक शक्ति, शुभ संकल्प, अखण्ड सेवा, भक्ति और ज्ञान, आत्मा का सम्मान, परमधाम, दिव्य अनुभव, सहज योग, सतयुग, त्रेता, संगमयुग, पूज्य स्वरूप, विश्व सेवा, अव्यक्त अनुभव, ईश्वरीय मार्गदर्शन, खुशी का सागर, दिलाराम बाप, आह्वान शक्ति, निर्भयता, करनकरावनहार, आत्म-परिवर्तन, श्रेष्ठ भाग्य, आत्म-साक्षात्कार, आध्यात्मिक मुस्कान, दिव्य संकल्प, शिवरात्रि, सहयोग का महत्व, मास्टर शक्ति, सुप्रभात संकल्प, व्रत और संकल्प, मन की स्थिरता, शुभभावना के संकल्प, आध्यात्मिक विजय।

Give cooperation to everyone, make others cooperative, let the continuous bhandara continue forever, Shiv Jayanti, BapDada, Avyakt Vani, Brahma Kumaris, Godly knowledge, self-sovereignty authority, world transformation, supernatural birthday, Bindi Swaroop, Master Bestower, good feelings, enthusiasm for service, self-respect, power to tolerate, master creator, one who loves solitude, unity, concentration, spiritual respect, blessings, love and remembrance, Father Brahma, Rajyogi, divine virtues, purity, surrender, zeal and enthusiasm, soul’s upliftment, spiritual power, good thoughts, continuous service, devotion and knowledge, respect for the soul, Paramdham (supreme abode), divine experience, easy yoga, Golden Age, Silver Age, Confluence Age, worthy of worship, world service, Avyakt experience, Godly guidance, Ocean of Happiness, Father who is the Comforter of Hearts, power of invocation, fearlessness, the doer, self-transformation, elevated fortune, self-realisation, spiritual smile, divine thoughts, Shivratri, importance of cooperation, master power, good morning thoughts, fasts and thoughts, stability of mind, Resolutions of good will, spiritual victory.