अव्यक्त मुरली(02) 04-01-1982

अव्यक्त मुरली-02 सतयुग का प्रथम वरदान-मनमनाभव”/रिवाइज: 04-01-1982

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( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

04-01-1982 “सतगुरु का प्रथम वरदान – मनमनाभव”

आज ज्ञान सागर बाप, सागर के कण्ठे पर ज्ञान रत्न चुगने वाले होलीहंसों से मिलने आये हैं। हरेक होलीहंस कितना ज्ञान रत्नों को चुनकर खुशी में नाच रहे हैं, वह हंसों के खुशी का डांस देख रहे हैं। यह अलौकिक खुशी की रुहानी डांस कितनी प्यारी है और सारे कल्प से न्यारी है!

सागर की भिन्न-भिन्न लहरों को देख हरेक हंस कितना हर्षित हो रहे हैं। तो आज बापदादा क्या देखने आये हैं? हंसों की डांस। डांस करने में तो होशियार हो ना? हरेक के मन के खुशी के गीत भी सुन रहे हैं। बिना गीत के डांस तो नहीं होती है ना। तो साज भी बज रहे हैं और डांस भी हो रहा है। आप सभी भी खुशी के गीत सुन रहे हो? यह गीत कानों से नहीं सुनेंगे। लेकिन मन के गीत मन से ही सुनेंगे। मनमनाभव हुए और गीत गाना व सुनना शुरु हुआ। “मनमनाभव” इस महामन्‍त्र के वरदानी तो सभी बन गये। सतगुरु के बने तो सतगुरु द्वारा पहला-पहला वरदान क्या मिला? मनमनाभव। सतगुरु के रुप में वरदानी बच्चों को देख रहे हैं। सभी महामंत्रधारी, महादानी, वरदानी, सतगुरु के बच्चे मास्टर सतगुरु हो वा यह कहो कि गुरु पोत्रे हो। पोत्रों का हक ज्यादा होता है। ब्रह्मा के बच्चे तो पोत्रे भी हुए ना। बच्चे भी हो, पोत्रे भी हो। जितने बाप के सम्बन्ध उतने आपके सम्बन्ध। सर्व सम्बन्ध में अधिकारी आत्मायें हो। भोलेनाथ बाप से कुछ लेने में होशियार हो। सौदागर भी अच्छे हो। सौदा कर लिया है ना? ऐसे कभी सोचा था कि भगवान से सौदा करेंगे? और सौदे में लिया क्या? सौदे में क्या मिला? (मुक्ति-जीवनमुक्ति) बस सिर्फ मुक्ति जीवनमुक्ति मिली? सौदागर के साथ जादूगर भी हो। सौदा किया है तो इतना बड़ा किया जो और सौदा करने की आवश्यकता ही नहीं। कोई वस्तु का सौदा नहीं किया है लेकिन वस्तु के दाता का सौदा कर लिया। उसमें तो सब आ गया ना! दाता को ही अपना बना लिया। अच्छा, डबल विदेशी बच्चों से रुह-रुहान करनी है ना।

अलग-अलग पार्टियों से मुलाकात:-

न्यूयार्क (अमेरिका) :- अपने को कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा हम हैं – ऐसा अनुभव करते हो? ड्रामा के अन्दर हम आत्माओं का बाप के साथ डायरेक्ट सम्बन्ध और पार्ट है, इतना नशा और खुशी रहती है? सदा खुशी में रहने की कितनी बातें धारण कर ली हैं? बापदादा हर सिकीलधे बच्चे को देख हर्षित होते हैं। कितने समय के बाद मिले हो? स्मृति आती है ना? इसी स्मृति में रहो कि हम श्रेष्ठ आत्माओं का ऊंचे से ऊंचे बाप के साथ विशेष पार्ट है। तो जैसी स्मृति होगी वैसी स्थिति स्वत: बन जायेगी। जो सुनते हो उसको समाते जाओ। जितना समाते जायेंगे उतना प्रैक्टिकल स्वरुप बनते जायेंगे। हर गुण का अनुभव हो। एक-एक गुण की अनुभूति कहाँ तक है, यह सदा अपने आपको देखो। नॉलेजफुल हैं या अनुभवी मूर्त हैं? यह चेक करो, क्योंकि संगम पर ही हर गुण का अनुभव कर सकते हो। किसी भी गुण का अनुभव कम हो तो उसके ऊपर अटेन्शन देकर अनुभवी जरुर बनो। जितना अनुभवी मूर्त होंगे उतना फाउन्डेशन पक्का होगा। माया हिला नहीं सकेगी। किसी भी प्रकार का विघ्न व समस्या अभी खेल के समान अनुभव होनी चाहिए। वार नहीं है, खेल है! तो खेल समझने से खुशी-खुशी पार कर लेंगे और वार समझने से घबरायेंगे भी और हलचल में भी आ जायेंगे। ड्रामा में पार्टधारी होने के कारण कोई भी सीन सामने आती है तो ड्रामा के हिसाब से सब खेल है, यह स्मृति रहे तो एकरस रहेंगे, हलचल नहीं होगी। तो अभी से यह परिवर्तन करके जाना। हलचल यहाँ ही समाप्त करते जाना। सदा अपने मस्तक पर विजय का तिलक लगा हुआ अनुभव करो तो हलचल खत्म हो जायेगी। देखो, अमेरिका विश्व में ऊंचा स्थान है, तो ब्राह्मण कितने ऊंचे होंगे। जैसे देश की महिमा है उससे ज्यादा ब्राह्मण आत्माओं की महिमा है। तो आप लोगों को सेवा में नम्बरवन लेना चाहिए। हरेक अगर बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए लाइट हाउस हो जाए तो व्हाइट हाउस और लाइट हाउस कांट्रास्ट हो जायेगा। वह विनाशकारी और यह स्थापना वाले। अभी कमाल करके दिखाओ। विशेष आत्माओं को निमित्त तो बनाया है, अभी और सम्पर्क से सम्बन्ध में लाना है। ऐसा समीप सम्बन्ध में लाओ जो उन्हों के मुख द्वारा बाप की महिमा सारे विश्व में हो जाए। देखो, बापदादा ने जो बच्चे और-और धर्मों में मिक्स हो गये हैं, उन्हों को भी चुन करके निकाला है। तो विशेष भाग्यवान हुए न। आपने बाप को ढूंढा लेकिन बाप ने आपको ढूंढ लिया है। आप ढूंढते तो भी नहीं ढूंढ सकते क्योंकि परिचय ही नहीं था ना। इसीलिए बाप ने आप आत्माओं को चुनकर अपने बगीचे के पुष्प बना दिया। तो अभी आप सब अल्लाह के बगीचे के रुहानी गुलाब हो। ऐसे भाग्यवान अपने को समझते हो ना?

यह भी बाप को खुशी है कि भाषा को न समझते हुए भी कैसे स्नेही आत्मायें अपना अधिकार लेने के लिए पहुंच गई हैं। अपने को अधिकारी आत्मा समझते हो ना! बहुत लगन वाली आत्मायें हैं जो फिर से अपना अधिकार लेने के लिए महान तीर्थ पर पहुंच गई हैं। अच्छा।

जापान ग्रुप से:- सभी बापदादा के दिलतख्तनशीन आत्माये हो। अपने को इतनी श्रेष्ठ आत्मा समझते हो? वैरायटी फूलों का गुलदस्ता कितना बढ़िया है। आप उस गुलदस्ते में किस स्थान पर हो? छोटा सुभान अल्लाह होता है। बच्चों को कितने समय से याद करते हैं? बापदादा जापानी बच्चों को कितने समय से, बहुत समय पहले से आप बच्चों को याद किया और अभी प्रैक्टिकल में बाप की वरदान भूमि पर पहुंच गये हो। तो ऐसा भाग्यवान अपने को समझते हो? जापान की विशेष निशानी कौन-सी दिखाते हैं? एक तो फ्लैग दूसरा फैन (हवा के लिए सबको पंखा देते हैं) तो बापदादा भी बच्चों को सदैव याद दिलाते हैं उड़ते रहो, इसलिए पंखा दिखाते हैं। पहले-पहले विदेश की सेवा का फाउन्डेशन भी जापान ही है। तो महत्व हो गया ना। बापदादा के आह्वान से आप लोग यहाँ पहुंचे। बापदादा ने बुलाया तब आये हो। सभी अच्छे शोकेस के शोपीस हो। सभी ब्राह्मण परिवार भी आप गोल्डन डॉल्स को देखकर खुश होता है। ऐसा अनुभव किया है कि परिवार के भी सिकीलधे हैं और बापदादा के भी सिकीलधे हैं।

अब जापान से ऐसी कोई विशेष आत्मा निकालो जो एक के आने से अनेकों को सन्देश मिल जाए। वहाँ वैरायटी प्रकार की सर्विस निकल सकती है। थोड़ी-सी मेहनत करेंगे तो फल ज्यादा निकल आयेगा। इसके लिए एक तो स्थान का वातावरण बहुत पावरफुल बनाओ। ऐसे अनुभव हो जैसे एक चैतन्य मन्दिर में जा रहे हैं। ऐसा वातावरण रुहानी खुशबू का हो जो दूर-दूर से वायुमण्डल आकर्षित करे। वातावरण बहुत ही आत्माओं को खींच सकता है। धरनी बहुत अच्छी है और फल भी बहुत निकल सकता है, सिर्फ थोड़ी-सी मेहनत और वायुमण्डल चाहिए। सेवा का संकल्प करेंगे और सफलता आपके आगे आयेगी। वायुमण्डल जब रुहानी हो जायेगा तो और सब बातें स्वत: ठीक हो जायेंगी। सब एकमत और एकरस हो जायेंगे फिर माया भी नहीं आयेगी क्योंकि वायुमण्डल शक्तिशाली होगा। वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने के लिए याद के प्रोग्राम रखो और आपस में उन्नति के लिए रुह-रुहान की क्लासेज करो। स्नेह मिलन करो। धारणा की क्लासेज रखो तो सफलता मिल जायेगी।

विदाई के समय – दीदी दादी से :-

आप लोगों को भी जागना पड़ता है। सारा दिन मेहनत करते हो और रात को भी जागना पड़ता है। बापदादा तो बच्चों को सदा ऑफरीन देते हैं। हिम्मत और उमंग दोनों पर बलिहार जाते हैं। देख-देख हर्षित होते हैं। महिमा करें तो कितनी हो जायेगी। जैसे बाप की महिमा के लिए कहा हुआ है कि सागर को स्याही बनाओ तो बच्चों की भी कितनी महिमा करें। बाप बच्चों की महिमा देख सदा बार-बार बलिहार जाते हैं। हरेक बच्चा अपनी-अपनी स्टेज पर हीरो पार्ट बजा रहा है। एक बाप के सच्चे हीरो पार्टधारी हो तो बाप को कितना नाज़ होगा। सारे कल्प में ऐसा बाप भी नहीं हो सकता, तो ऐसे बच्चे भी नहीं हो सकते। एक-एक की महिमा के गीत गाने लगे तो कितनी बड़ी गीत माला हो जायेगी। ब्रह्मा और शिवबाबा भी आपस में बहुत चिटचैट करते हैं। वह कहते हैं – वाह मेरे बच्चे! और वह कहते – वाह मेरे बच्चे! (किस समय चिटचैट करते हैं) जब चाहें तब कर सकते हैं। बिजी भी हैं और सारा दिन फ्री भी हैं। स्वतन्‍त्र भी हैं और साथी भी हैं। जब हैं ही कम्बाइण्ड तो अलग कैसे दिखाई देंगे, अलग कर सकते हो आप? आप अलग करेंगे वह आपस में मिल जायेंगे। जैसे बापदादा का आपस में कम्बाइण्ड रुप है तो आपका भी है ना। आप भी बाप से अलग नहीं हो सकते। अच्छा, ओम् शान्ति।

भूमिका: ज्ञान सागर की लहरों पर रुहानी हंसी

आज ज्ञान सागर बाप, अपने होलीहंस बच्चों से मिलने स्वयं ज्ञान सागर के किनारे पधारे हैं। यह वह अलौकिक दृश्य है जहाँ हर एक हंस आत्मा ज्ञान रत्नों को चुनकर, अनोखी खुशी में डूबकर, मानो नृत्य कर रही है। बापदादा यह रुहानी नृत्य देख कर बेहद हर्षित हैं।

यह कोई साधारण नृत्य नहीं, बल्कि आत्मा की रुहानी उमंग का प्रतीक है, जो पूरे कल्प से न्यारा है। मन के भीतर उमड़ती आनंद की लहरें, मानो आत्मा स्वयं गीत गा रही हो, वह भी अदृश्य रूप में — यही है “मनमनाभव” की स्थिति।


मनमनाभव: सतगुरु का पहला वरदान

सभी ब्राह्मण आत्माओं को सतगुरु के रूप में जो पहला वरदान प्राप्त हुआ, वह है – “मनमनाभव”। यह कोई साधारण शब्द नहीं, यह परमात्मा का वरदानी महामंत्र है, जो आत्मा को परमात्मा से जोड़ देता है। जब आत्मा मनमनाभव हो जाती है, तब मन के गीत स्वयं शुरू हो जाते हैं — यही है आत्मा और परमात्मा का अदृश्य मिलन।

सतगुरु के बच्चे ही मास्टर सतगुरु हैं।
वे केवल शिष्य नहीं, बल्कि गुरु के पोत्र भी हैं – और पोत्रों को गुरु की संपत्ति पर स्वाभाविक अधिकार होता है।


 सौदागर और जादूगर: ईश्वर से सौदा

बापदादा ने एक मीठा सौदा कराया – न कोई वस्तु, न धन – बल्कि दाता स्वयं ही इस सौदे में मिल गये। यह ऐसा सौदा है जिसमें मुक्ति और जीवनमुक्ति, दोनों सहज प्राप्त हो जाती हैं।

कभी सोचा था कि भगवान से सौदा होगा? लेकिन यहाँ यह संभव हुआ – और ऐसा सौदा जो एक बार हुआ तो दुबारा किसी सौदे की आवश्यकता ही नहीं रही। यह आत्मा अब सौदागर भी बनी और जादूगर भी।


 सेवा क्षेत्र से मुलाकात: अमेरिका और जापान

🇺🇸 न्यूयार्क ग्रुप:

बापदादा ने अमेरिका की महान आत्माओं से पूछा – क्या आप स्वयं को “कोटों में कोई, कोई में भी कोई आत्मा” अनुभव करते हैं? बाप से प्रत्यक्ष संबंध का गर्व और नशा सदा बना रहे, यही शुभकामना दी।
उन्होंने कहा – “ड्रामा खेल है, वार नहीं।”
जो इसे युद्ध समझते हैं, वे घबराते हैं। लेकिन जो खेल समझते हैं, वे मुस्कराते हैं।

यदि आप लाइट हाउस बन जाएं, तो व्हाइट हाउस भी बाप की महिमा से चमक उठेगा। विशेष आत्माओं को सेवा में निमित्त बनाकर बापदादा ने विश्व परिवर्तन की नींव रख दी है।

🇯🇵 जापान ग्रुप:

जापान सेवा का प्रारंभिक केंद्र रहा है। वहां की आत्माएं बापदादा के विशेष शोपीस हैं।
जैसे जापानी झंडा और पंखा उनकी विशेषता है, वैसे ही बापदादा उन्हें याद दिलाते हैं – “पंखे की तरह उड़ते रहो।”

जापान से विशेष आत्मा निकालो, जो एक के आने से अनेकों को खींच लाए।
रुहानी वातावरण ऐसा बनाओ कि लोग कहें – “यह कोई चैतन्य मंदिर है!”


 विशेष वरदान: दिलतख्तनशीन आत्माएं

बापदादा ने बच्चों की महिमा गाई –

“जैसे बाप अद्वितीय है, वैसे ही बच्चे भी अद्वितीय हैं।”

आप सभी बच्चे हीरो पार्टधारी हो। एक-एक आत्मा बाप की आँखों का तारा है। ब्रह्मा बाबा और शिवबाबा भी आपस में चिटचैट करते हैं –
“वाह मेरे बच्चे!”
“वाह मेरे बाप!”

यह परम मिलन है – जहाँ अलगाव की कोई गुंजाइश नहीं।
आप “कम्बाइण्ड” रूप में बाप के साथ जुड़े हुए हो – यही है अव्यक्त स्थिति।


 विदाई के समय का सन्देश: जागो और जागते रहो

बापदादा ने दीदी-दादी से कहा –

“आप लोग दिन भर मेहनत करते हो और रात में भी जागते हो, फिर भी सेवा में उमंग-उत्साह की ज्योति जलाए रखते हो – बापदादा बलिहार जाते हैं।”

हर ब्राह्मण आत्मा की महिमा सागर जैसी गहराई रखती है।
बाप बच्चों की महिमा सुन-सुन कर हर्षित होते हैं – और बार-बार बलिहार जाते हैं।


 निष्कर्ष: आप कम्बाइण्ड हो, कभी अकेले नहीं

जैसे बापदादा एक साथ रहते हैं – वैसे ही आप भी आत्मिक रूप से उनके संग हो।
“आप अलग नहीं हो सकते – आप कम्बाइण्ड हो।”

यही है “मनमनाभव” की सच्ची स्थिति –
जहाँ आत्मा परमात्मा के संग है,
संगम पर सतगुरु से वरदान पा चुकी है,
और अब हर आत्मा स्वयं सतगुरु का प्रतिनिधि बन चुकी है।

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