(01) Does the cycle of creation happen again and again? This mystery is revealed.

सृष्टि चक्र :-(01)क्या सृष्टि चक्र बार-बार बनता है? यह रहस्य खुला है।

YouTube player

“हम सृष्टि चक्र को जानने का प्रयास कर रहे हैं। आज हम उसका पहला विषय पहला प्रश्न उठा रहे हैं — क्या सृष्टि चक्र बार-बार बनता है? यह रहस्य खुला है। ऐसा क्या रहस्य खुला है? क्या यह दुनिया की सृष्टि एक बार बनी और खत्म हो जाएगी या बार-बार बनती है? प्रश्न समझ में आया सबको? क्या यह दुनिया की सृष्टि एक बार बनी और खत्म हो जाएगी या बार-बार बनती है? आज का विषय बड़ा ही गुण और रोचक है। चलो देखो अभी हम इसको समझने का प्रयास करेंगे। आज का विषय बड़ा ही गुण और रोचक है — गुण भी है उसके साथ-साथ रोचक भी है। क्या यह सृष्टि केवल एक बार बनी है या बार-बार बनती रहती है? यह प्रश्न है जिस पर हमने आज चर्चा करनी है। यह प्रश्न मनुष्य मन से मन में हजारों वर्षों से चला आ रहा है। विज्ञान कहता है ब्रह्मांड की एक शुरुआत थी, परंतु ईश्वरीय ज्ञान कहता है — सृष्टि एक महान चक्र है जो बार-बार चलता है। सृष्टि चक्र की भावना मुरली है 18 सितंबर 2025 की — मधुर बच्चे, यह नई सृष्टि रचने का समय कलयुग के अंत में ही आता है। यह चक्र जैसे ही घूमने वाला — जैसे नाटक का रिपीटेशन होता है। बात समझ में आई? मधुर बच्चे, यह नई सृष्टि रचने का समय कलयुग के अंत में होता है। कब होता है? कलयुग के अंत में। और जब यह होता है, तो इसके अंदर जब अंतिम समय आता है — कब? जब सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग — ये चारों युग चलते रहते हैं। जब परिवर्तन का समय आता है, तब परमात्मा आकर इसकी रचना करते हैं। फिर पूरा चक्कर लगाकर जब क्लोज होने का समय आता है, तब उसकी रचना होती है। बाबा कहते हैं — “मधुर बच्चे, यह नई सृष्टि रचना का समय कलयुग के अंत में ही आता है। यह चक्र जैसे ही घूमने वाला — जैसे नाटक की रिपीटेशन होती है।” यह चार युग हैं — सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग। जब कलयुग के अंत में सारी आत्माएं अपने गुण और शक्तियों को खोकर एकदम तमोप्रधान हो जाती हैं, गुणहीन हो जाती हैं, तब परमात्मा को पुकारती हैं। और परमात्मा आकर सबको पुनः अपनी चरम सीमा तक पहुंचाने की विधि सिखाते हैं। हर आत्मा अपनी चरम अवस्था को प्राप्त करके घर जाती है और फिर से नया कल्प शुरू होता है। यही वह समय है जब रचना होती है — जहां से नए युग का ट्रिगर होता है। गिरती हुई दुनिया को चढ़ती कला की ओर मोड़ दिया जाता है। इस समय को रचना काल कहा गया है — परमात्मा आकर नए सृष्टि चक्र की रचना करते हैं। यह हर कल्प नया रहता है — मास्टर कॉपी जैसा। जैसे हर 5000 वर्ष बाद सृष्टि का नवीनीकरण होता है — सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलयुग — फिर वही क्रम चलता है। सतयुग में फिर उसी प्रकार से लक्ष्मी-नारायण का राज्य शुरू होता है। फिर धीरे-धीरे द्वापर और कलयुग आता है। जब कलयुग का अंत आता है तो परमात्मा आकर सबको पुनः पावन बनाकर आत्माओं और प्रकृति दोनों को अपनी मूल अवस्था में पहुंचा देते हैं। हर आत्मा, हर वस्तु, हर तत्व अपने एक्यूरेट स्थान पर पहुंच जाता है और फिर वही चक्र शुरू हो जाता है। इसीलिए बाबा कहते हैं — हर 5000 वर्ष बाद सृष्टि का नवीनीकरण होता है। हमारे ज्ञान का यह मूल आधार है — “आप यहां पहली बार नहीं आए।” आप 5000 वर्ष पूर्व भी इसी स्थान, इसी समय, इसी प्रकार से आए थे — और हर 5000 वर्ष के पश्चात आते रहेंगे। क्योंकि इस सृष्टि रूपी नाटक की हर 5000 वर्ष पश्चात हूबहू पुनरावृत्ति होती है। उदाहरण से समझो — टीवी सीरियल की तरह हर एपिसोड उसी स्क्रिप्ट के अनुसार रिप्ले होता है। उसी प्रकार यह सृष्टि नाटक भी दोहराया जाता है। लेकिन दोनों में एक बड़ा अंतर है — टीवी सीरियल हद का नाटक है, जबकि यह बेहद का नाटक है। इसमें पूरे ब्रह्मांड का हर एक तत्व, हर एक आत्मा, सूरज, चांद, तारे, नदियां — सबका पार्ट है। दूसरा अंतर — टीवी नाटक को एडिट किया जा सकता है, बदला जा सकता है, परंतु इस वर्ल्ड ड्रामा को परमात्मा भी बदल नहीं सकते। यह नाटक हूबहू रिपीट होता है — 5000 साल के अंदर कोई भी बात दोबारा नहीं हो सकती। यह विशेषता केवल इस वर्ल्ड ड्रामा की है। 5000 साल का यह चक्र कहीं से भी शुरू करो — फिर भी वही क्रम चलेगा। जो एक्ट इस समय के बाद हुआ, वो पहले नहीं हो सकता। ठीक 5000 साल बाद हूबहू रिपीट होगा। अब प्रश्न आता है — वर्ल्ड ड्रामा में जो होता है, वह कौन तय करता है? उत्तर — हमारे अपने कर्म। हर आत्मा ने अपना-अपना पार्ट स्वयं लिखा है। इसलिए कोई आत्मा परमात्मा से शिकायत नहीं कर सकती। ज्ञान मिलने पर शिकायत अपने आप समाप्त हो जाती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी यह सिद्ध है। विज्ञान कहता है — ब्रह्मांड फैलता है (Big Bang) और सिमटता है (Big Crunch)। जैसे गीता कहती है — “जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है।” इसी प्रकार विज्ञान भी अप्रत्यक्ष रूप से सृष्टि चक्र को स्वीकार करता है। विज्ञान यह भी मानता है कि ब्रह्मांड के सभी तत्व — भूमि, गगन, वायु, अग्नि, नीर — कभी बनाए नहीं जा सकते और नष्ट भी नहीं किए जा सकते। अध्यात्म भी यही कहता है — सृष्टि अनादि और अनंत है। मुरली संकेत — निर्मल संसार (12 अगस्त 2025) बाबा कहते हैं — “बच्चे, हर युग का अपना समय और स्वरूप होता है। सतयुग में कोई विकार नहीं, इसलिए उसे नई सृष्टि कहा जाता है। जैसे नया मकान बनता है तो उसमें कोई कमी नहीं होती।” धीरे-धीरे संसार में पवित्रता घटती जाती है — जैसे मकान पुराना होने पर खराब हो जाता है, वैसे ही संसार भी पतित हो जाता है। फिर शिव बाबा आकर ज्ञान से नई सृष्टि की शुरुआत करते हैं। यही संसार जो पहले पवित्र था, वही धीरे-धीरे पतित हो गया। फिर परमात्मा आकर आत्माओं को पुनः वही गुण और शक्तियां धारण करने की विधि सिखाते हैं। हर आत्मा जैसे परमधाम से आई थी — वैसी बनकर ही वापस जाती है। क्यों? ताकि उसी मेरिट के आधार पर अगले कल्प में फिर वही भूमिका निभा सके। परमधाम एक ऐसा ब्रिज है — जहां आत्मा जैसी जाती है, वैसी ही आती है। उसमें न कोई बढ़ोतरी होती है न कोई कमी। इसको हम ऋतु चक्र से भी समझ सकते हैं — जैसे साल की ऋतुएं नियमित रूप से बदलती रहती हैं, वैसे ही सृष्टि चक्र भी सटीक रूप से घूमता रहता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *