(02) सहज राजयोग द्वारा परखने की शत्कि?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“सहज राजयोग से मिलती है परखने की शक्ति | जानिए सत्य और असत्य को पहचानने का रहस्य”
सहज राजयोग द्वारा ‘परखने की शक्ति’ क्यों ज़रूरी है?
क्यों ज़रूरी है परखने की शक्ति?
आज की दुनिया में हर कदम पर हमें निर्णय लेने होते हैं:
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किससे बात करें, किससे नहीं?
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कौन सी बात सच्ची है, कौन सी छलपूर्ण?
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कौन-सा कर्म हमें ऊँचाई देगा, और कौन-सा नुकसान?
इन सभी का उत्तर एक ही शक्ति से मिलता है — परखने की शक्ति।
और ये शक्ति कहाँ से आती है? —
सहज राजयोग से, जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है और बुद्धि दिव्य बन जाती है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, योगबल से बुद्धि में दिव्य दृष्टि आती है। तब तुम परख सकते हो – सत्य क्या है, असत्य क्या है।”
1. परखने की शक्ति: आत्मा की आँख
जैसे शरीर को देखने के लिए आँख चाहिए,
वैसे ही कर्मों को समझने के लिए आत्मा को चाहिए — परखने की शक्ति।
उदाहरण:
अगर दो व्यक्ति आपकी प्रशंसा करें —
एक सच्चे भाव से, एक स्वार्थ से —
तो परख की शक्ति से आप बिना शब्दों के पहचान लेंगे कि कौन सच्चा है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बुद्धि में दिव्यता होगी, तभी आत्मा को पहचान सकोगे।”
2. राजयोग कैसे जगाता है ये शक्ति?
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जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है —
मन शांत होता है, बुद्धि निर्मल होती है। -
तब सत्य और असत्य में अंतर स्पष्ट दिखने लगता है।
उदाहरण:
जैसे साफ़ दर्पण में चेहरा स्पष्ट दिखता है,
वैसे ही योग से निर्मल बुद्धि में हर कर्म का सच्चा स्वरूप दिखता है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बुद्धि को योग से पावन बनाओ – तभी तुम सही परख कर सकोगे।”
3. किन-किन बातों की परख ज़रूरी है?
कर्म: क्या मैं इस समय सही कर्म कर रहा हूँ?
संबंध: क्या ये संबंध मुझे ऊँचाई पर ले जा रहा है या नीचे गिरा रहा है?
संकल्प: क्या मेरे विचार शुभ हैं या वायर्थ?
संग: क्या मैं सच्चे संग में हूँ या मोह/स्वार्थ में?
शिवबाबा कहते हैं:
“हर कदम चलने से पहले सोचो – यह बाबा को पसंद है क्या? परख के बिना गिरावट निश्चित है।”
4. परख के बिना क्यों होते हैं नुकसान?
-
हम अक्सर बाहरी आकर्षण में फँस जाते हैं —
और बाद में पछताना पड़ता है।
उदाहरण:
चमकदार सेब सुंदर दिखता है,
लेकिन काटने पर सड़ा हुआ निकलता है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, बाहर की चमक में मत फँसो – अंदर की सच्चाई को परखो। यही राजयोग सिखाता है।”
5. राजयोग कैसे आत्मा को बनाता है ‘दर्पण’?
-
जब आत्मा परमात्मा की रोशनी में बैठती है,
तो बुद्धि एक एक्स-रे दर्पण बन जाती है।
उदाहरण:
जैसे airport का scanner सब कुछ detect कर लेता है,
वैसे ही योगी आत्मा भी दूसरों के भाव और संकल्प पहचान लेती है।
शिवबाबा कहते हैं:
“जो सच्चे योगी हैं, उनकी बुद्धि एक्स-रे जैसी बन जाती है।”
6. क्या ये शक्ति अपने आप आती है?
नहीं — ये साधना से धीरे-धीरे जागती है।
जितना गहरा योग होगा, उतनी ही गहरी परख होगी।
उदाहरण:
जैसे सूर्य से जुड़ने पर रोशनी बढ़ती है,
वैसे परमात्मा से जुड़ने पर आत्मा की clarity बढ़ती है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, योगबल से हर शक्ति मिलती है – परख, निर्णय, सामना… ये सब सहज योग की देन हैं।”
7. परख की शक्ति = जीवन की दिशा
अगर आत्मा में परख है –
तो वह सही निर्णय लेती है, और सही निर्णय ही बनाता है सफल जीवन।
आज का आह्वान:
चलो परमात्मा से जुड़कर अपनी बुद्धि को refine करें,
और बनें ऐसी आत्माएँ — जो सत्य को बिना बोले पहचान लें।
शिवबाबा कहते हैं:
“राजयोगी बुद्धि से ही भविष्य के राजा बनते हैं – उन्हें किसी भ्रम में नहीं आना चाहिए।”
“सहज राजयोग से मिलती है परखने की शक्ति | जानिए सत्य और असत्य को पहचानने का रहस्य”
Q&A “सहज राजयोग द्वारा ‘परखने की शक्ति’ क्यों ज़रूरी है?”
प्रश्न 1: आज की दुनिया में परखने की शक्ति क्यों आवश्यक है?
उत्तर:आज हर दिन हमें निर्णय लेने पड़ते हैं —
किससे बात करें, किससे नहीं?
कौन-सा कर्म हमें ऊँचाई देगा, कौन-सा नुकसान करेगा?
इन सभी का उत्तर तभी मिलता है जब आत्मा में हो सच्ची परखने की शक्ति।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, योगबल से बुद्धि में दिव्य दृष्टि आती है। तब तुम परख सकते हो – सत्य क्या है, असत्य क्या है।”
प्रश्न 2: परखने की शक्ति को आत्मा की आँख क्यों कहा गया है?
उत्तर:जैसे देखने के लिए आँख ज़रूरी है, वैसे ही कर्मों और भावों को समझने के लिए आत्मा को चाहिए परखने की शक्ति।
उदाहरण:
अगर दो व्यक्ति आपकी प्रशंसा करें — एक सच्चे भाव से और दूसरा स्वार्थ से,
तो परख की शक्ति से आप बिना बोले पहचान सकते हैं – कौन सच्चा है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बुद्धि में दिव्यता होगी, तभी आत्मा को पहचान सकोगे।”
प्रश्न 3: सहज राजयोग से यह शक्ति कैसे जाग्रत होती है?
उत्तर:जब आत्मा परमात्मा से जुड़ती है, तब
मन शांत होता है
बुद्धि निर्मल होती है
और तब सही-गलत, झूठ-सच में अंतर स्पष्ट दिखने लगता है।
उदाहरण:
जैसे साफ़ दर्पण में चेहरा स्पष्ट दिखता है,
वैसे ही निर्मल बुद्धि में हर कर्म का स्वरूप स्पष्ट हो जाता है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बुद्धि को योग से पावन बनाओ – तभी तुम सही परख कर सकोगे।”
प्रश्न 4: किन बातों की परख करना सबसे ज़रूरी है?
उत्तर:
कर्म – क्या मैं सही समय पर श्रेष्ठ कर्म कर रहा हूँ?
संबंध – क्या यह संबंध मुझे ऊँचाई दे रहा है या मोह में खींच रहा है?
संकल्प – क्या मेरे विचार सकारात्मक हैं या व्यर्थ?
संग – क्या यह संग मुझे सत्य की ओर ले जा रहा है या नीचे खींच रहा है?
शिवबाबा कहते हैं:
“हर कदम चलने से पहले सोचो – यह बाबा को पसंद है क्या? परख के बिना गिरावट निश्चित है।”
प्रश्न 5: परख की कमी से क्या नुकसान हो सकता है?
उत्तर:बिना परख के हम बाहरी आकर्षण में फँस जाते हैं —
संबंधों में, विचारों में, व्यापार में —
और फिर पछताना पड़ता है।
उदाहरण:
चमकदार सेब देखने में सुंदर लगता है, लेकिन काटने पर सड़ा हुआ निकलता है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, बाहर की चमक में मत फँसो – अंदर की सच्चाई को परखो। यही राजयोग सिखाता है।”
प्रश्न 6: राजयोग कैसे आत्मा को ‘दर्पण’ बनाता है?
उत्तर:जब आत्मा परमात्मा के प्रकाश में बैठती है,
तो बुद्धि एक्स-रे जैसी बन जाती है।
सामने वाले आत्मा के संकल्प, भाव, उद्देश्य – सब समझ में आने लगते हैं।
उदाहरण:
जैसे एयरपोर्ट पर स्कैनर हर चीज़ पहचान लेता है,
वैसे ही योगी आत्मा भी subtle चीज़ों को detect कर लेती है।
शिवबाबा कहते हैं:
“जो सच्चे योगी हैं, उनकी बुद्धि एक्स-रे जैसी बन जाती है।”
प्रश्न 7: क्या परख की शक्ति अपने आप जागती है?
उत्तर:नहीं — ये साधना और अभ्यास से धीरे-धीरे बढ़ती है।
जितना गहरा योग होगा, उतनी ही परख गहरी होगी।
उदाहरण:
जैसे सूर्य से जुड़ने पर रोशनी बढ़ती जाती है,
वैसे ही परमात्मा से जुड़ने पर आत्मा में clarity आती जाती है।
शिवबाबा कहते हैं:
“बच्चे, योगबल से हर शक्ति मिलती है – परख, निर्णय, सामना… ये सब सहज योग की देन हैं।”
प्रश्न 8: क्या परख की शक्ति जीवन की दिशा को बदल सकती है?
उत्तर:
हाँ — परख की शक्ति से आत्मा सही निर्णय लेती है,
और सही निर्णय ही बनाता है सफल और श्रेष्ठ जीवन।
शिवबाबा कहते हैं:
“राजयोगी बुद्धि से ही भविष्य के राजा बनते हैं – उन्हें किसी भ्रम में नहीं आना चाहिए।”
अंतिम संदेश (Call to Action):
आज का संकल्प लें —
परमात्मा से जुड़कर अपनी बुद्धि को refine करें,
और बनें ऐसी आत्माएँ — जो सत्य को बिना बोले जान लें।
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