(04) Royal connections before becoming Brahma Baba

(04) ब्रह्मा बाबा बनने से पहले के शाही संबंध

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“ब्रह्मा बाबा बनने से पहले के शाही संबंध और गहरी भक्ति की शुरुआत | 


 1. प्रस्तावना – सिंध की पवित्र भूमि से एक दिव्य आत्मा का अवतरण

1876 में सिंध (अब पाकिस्तान) की भूमि पर एक धार्मिक, साधारण लेकिन अत्यंत आस्थावान परिवार में एक आत्मा ने जन्म लिया – लेखराज कृपालानी।
जो आगे चलकर ब्रह्मा बाबा के नाम से विश्वविख्यात होंगे।


 2. जन्म और मूल धर्म की पहचान

लेखराजजी वल्लभाचार्य संप्रदाय से थे, जिसका मूल संबंध आदि सनातन देवी-देवता धर्म से है।
‘हिंदू’ नाम बाद में आया, परंतु दादा का जीवन एक सच्चे देवता जैसे गुणों से भरा था।


 3. प्रारंभिक जीवन – साधारण व्यापारी से शुरुआत

दादा के पिता स्कूल मास्टर थे, पर दादा ने गेहूँ के छोटे व्यापार से शुरुआत की।
अनुशासन, मेहनत और दूरदर्शिता के साथ उन्होंने व्यापार में तेजी से प्रगति की।


 4. हीरे के महारथी – एक आध्यात्मिक हीरा

दादा जल्द ही हीरों की गुणवत्ता पहचानने में सिद्धहस्त हो गए।
उनकी ईमानदारी और सूझबूझ इतनी थी कि राजा, महाराजा और वायसराय उनके ग्राहक बन गए।


 5. शाही दरबारों में विशेष सम्मान

नेपाल के राजा, वलाईपुर के राजा, और अन्य राजघरानों में उन्हें विशेष स्नेह मिला।
राजमाताएं स्वयं उन्हें रानियों को हीरे दिखाने बुलवाती थीं।

राजा कहते थे:
“भगवान की गलती है कि उन्होंने आपको राजा नहीं बनाया!”


 6. एक राजकीय सम्मान जो भुलाया नहीं जा सकता

एक बार शाही समारोह में दादा और उनका परिवार आमंत्रित थे।
दादी बृजेंद्रजी बताती हैं –
राजा ने खुद कार्यक्रम रोककर दादा की पत्नी को अंदर बुलवाया और शाही सम्मान दिया।
शाही बग्घी, संगीत, और सम्मान ऐसा था जो किसी अतिथि को शायद ही मिला हो।


 7. साहित्य, संस्कार और विद्वता

दादा स्कूली शिक्षा में सीमित थे, लेकिन आत्मज्ञान और साहित्य में पारंगत थे।
उन्होंने सिंधी साहित्य, हिंदी ग्रंथ, गुरुमुखी, अंग्रेज़ी और गुरुग्रंथ साहिब का गहन अध्ययन किया।
उनकी लेखनी सुंदर, स्पष्ट और आध्यात्मिक थी।


 8. मौलिकता और आंतरिक कला

दादा ने कभी दूसरों की नकल नहीं की – न व्यापार में, न ही जीवन में।
उनके आभूषण डिज़ाइन मौलिक होते थे, जैसे उनकी आत्मा की दिव्यता – मौलिक, शांत और उच्च।


 9. ब्रह्मा बाबा बनने से पहले ही दिव्यता की झलक

भले ही वह उस समय आध्यात्मिक गुरु नहीं थे, परंतु उनका आचरण, उनके विचार, और उनका व्यवहार – सब कुछ पहले से दिव्य था।
वे एक संतुलित, विनम्र, लेकिन अत्यंत प्रभावशाली आत्मा थे – ईश्वर के मिशन के लिए तैयार हो रहे थे।


प्रश्न 1: दादा लेखराज का जन्म कहाँ और किस धार्मिक परंपरा में हुआ था?

उत्तर:दादा लेखराज का जन्म 1876 में सिंध की पवित्र भूमि में हुआ था, कृपालानी परिवार में। उनका परिवार वल्लभाचार्य संप्रदाय से जुड़ा था, जो एक भक्ति परंपरा है। यह परंपरा आदि सनातन देवी-देवता धर्म की छाया लिए हुए थी।


प्रश्न 2: “हिंदू” शब्द का असली अर्थ क्या है, और दादा का धर्म क्या था?

उत्तर:“Hindu” शब्द सिंधु नदी के क्षेत्र से उत्पन्न हुआ था, यह एक भूगोलिक नाम है, न कि मूल धर्म का नाम। दादा लेखराज का वास्तविक धर्म था “आदि सनातन देवी देवता धर्म” – देवताओं का मूल, प्राचीन और दिव्य धर्म।


प्रश्न 3: दादा लेखराज का शुरुआती व्यवसाय क्या था और वे हीरे के व्यापार में कैसे आए?

उत्तर:उन्होंने अपना करियर गेहूं के एक साधारण व्यापारी के रूप में शुरू किया। अनुशासन, दूरदर्शिता और बचत के साथ वे हीरे के व्यापार में आए, जहाँ उनका सहज अंतर्ज्ञान और पहचानने की शक्ति उन्हें रत्नों का विशेषज्ञ बना गई।


प्रश्न 4: दादा लेखराज के कौन-कौन से शाही ग्राहक थे?

उत्तर:दादा के ग्राहक नेपाल के राजा, वलाईपुर के राजा, और यहाँ तक कि ब्रिटिश वायसराय भी थे। वे शाही दरबारों में सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित होते थे, जहाँ उन्हें अद्वितीय सम्मान और प्रेम मिलता था।


प्रश्न 5: राजाओं ने दादा लेखराज के बारे में क्या कहा था?

उत्तर:राजा अक्सर कहते थे:
“यह भगवान की गलती है कि उन्होंने हमें राजा बनाया और आपको नहीं। आपमें सभी राजसी गुण हैं।”
लेकिन हम जानते हैं कि यह कोई गलती नहीं थी — दादा को एक उच्चतम, आध्यात्मिक कार्य के लिए तैयार किया जा रहा था।


प्रश्न 6: शाही सम्मान से जुड़ा कोई विशेष अनुभव क्या था?

उत्तर:एक बार एक शाही समारोह में दादा की पत्नी देर से पहुंचीं, तो राजा ने पूरा कार्यक्रम रोककर प्रधानमंत्री को उन्हें लाने भेजा। जैसे ही वे अंदर आए, बैंड और शाही सम्मान के साथ उनका स्वागत हुआ। यह दादा की आभा और पवित्रता का सम्मान था।


प्रश्न 7: क्या दादा लेखराज केवल व्यापारी ही थे?

उत्तर:नहीं, वे एक कलाकार, साहित्यकार, विचारक और एक विनम्र नेता भी थे। वे सिंधी, हिंदी, गुरुमुखी और अंग्रेजी में निपुण थे, और गहन आध्यात्मिक विचारों व मौलिक कलात्मकता के धनी थे।


प्रश्न 8: ब्रह्मा बाबा बनने से पहले ही दादा में कौन से दिव्य गुण दिखते थे?

उत्तर:उनमें सादगी, पवित्रता, गहरी भक्ति, अनुशासन, समानता का सम्मान, और आत्म-प्रेरित ज्ञान की चमक थी। वे पहले से ही एक “गुणों के राजा” की तरह जीवन जी रहे थे।


प्रश्न 9: दादा लेखराज की जीवन यात्रा से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर:यह कि ईश्वर जिन आत्माओं को चुनते हैं, वे भले ही सामान्य पृष्ठभूमि से हों, लेकिन उनके जीवन में ऐसे गुण होते हैं जो उन्हें एक महान, दिव्य मिशन के लिए तैयार करते हैं। दादा का जीवन सिखाता है कि सच्ची भक्ति, निष्ठा और सादगी ही वास्तविक शाही गुण हैं।

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