(06)”How did one become a great ascetic from an ascetic?

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(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

साक्षात्कार मूर्त कैसे बने?-(06)”तपस्वी से महातपस्वी कैसे बने?

साक्षात्कार मूरत कैसे बने?

तपस्वी से महातपस्वी कैसे बने?


1. भूमिका

आज हम “साक्षात्कार मूरत कैसे बने?” श्रंखला का छठा पाठ करेंगे।
आज का गहरा प्रश्न है –
तपस्वी से महातपस्वी बनने का क्या अर्थ है?

बाबा ने अनेक अव्यक्त मुरलियों में कहा है कि –
 सहज योगी से श्रेष्ठ योगी और तपस्वी से महा तपस्वी बनना ही संगम युग का असली लक्ष्य है।


2. तपस्वी कौन है?

  • तपस्वी वह है जो कर्मेन्द्रियों पर विजय पा ले।

  • मन, बुद्धि और संस्कारों को बाबा की श्रीमत अनुसार चलाए।

  • साधारण इच्छाओं और बंधनों को त्याग दे।

  • स्वयं को निर्मल, पवित्र और संयमी बनाए।

उदाहरण

जैसे कोई विद्यार्थी केवल पढ़ाई पर ध्यान देता है, बाहर की चीज़ों में नहीं पड़ता – यही तपस्वी की निशानी है।


3. महातपस्वी कौन है?

महातपस्वी की तपस्या केवल स्वयं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह दूसरों के कल्याण के लिए भी प्रभावकारी बन जाती है।

  • उसके विचार, वाणी और दृष्टि से वातावरण बदल जाता है।

  • वह आत्मा को ही देखता है, शरीर को नहीं।

  • उसके शब्द महावाक्य बन जाते हैं।

  • उसकी स्थिति से ही लोग अनुभव करने लगते हैं।

उदाहरण

  • साधारण दीपक तपस्वी है, जो अपने पास रोशनी देता है।

  • लेकिन सूर्य महातपस्वी है, जो पूरी दुनिया को प्रकाश और शक्ति देता है।


4. तपस्वी और महातपस्वी में चार अंतर

  1. तपस्वी खुद के लिए शक्ति अर्जित करता है,
    महातपस्वी अपनी शक्ति से दूसरों को भी अनुभवी बनाता है।

  2. तपस्वी मौन का अभ्यास करता है,
    महातपस्वी मौन से वातावरण परिवर्तन कर देता है।

  3. तपस्वी खुद को ऊँचा उठाता है,
    महातपस्वी पूरे वातावरण को ऊँचा उठाता है।

  4. तपस्वी सिर्फ अनुभव करता है,
    महातपस्वी दूसरों को भी अनुभवी बनाता है।


5. अनुभव – दादी जानकी जी

दादी जी कहती थीं –
“मैं मुरली को पहले अपने लिए सुनती हूं, फिर सोचती हूं कि इसे दूसरों को कैसे देना है।”
 यही महातपस्वी की पहचान है – स्वयं भी अनुभवी और दूसरों को भी अनुभवी बनाना।


6. महातपस्वी का लक्ष्य

  • हर संकल्प समर्थ हो।

  • व्यर्थ और नेगेटिव संकल्प को प्रवेश न दें।

  • वाणी पर नियंत्रण रखें – केवल आवश्यक शब्द बोलें।

  • हर कर्म में आदर्शता हो।

तभी लोग अनुभव करेंगे कि –
“यह केवल बोल नहीं रहे, बल्कि कोई अलौकिक शक्ति कार्य कर रही है।”


7. Murli Notes (सटीक तिथियाँ)

  • अव्यक्त वाणी 14-01-1982
    “कर्मेन्द्रिय जीत ही विश्व राज्य अधिकारी।”

  • अव्यक्त वाणी 20-01-1982
    “प्रेम और तपस्या से वातावरण परिवर्तन होता है।”

  • अव्यक्त वाणी 06-02-1984
    “तपस्वी से महातपस्वी बनो, जो अपनी स्थिति से ही दूसरों को अनुभवी बना दे।”


8. निष्कर्ष

 तपस्या से हम अपना जीवन पवित्र बनाते हैं।
 लेकिन महान तपस्या से हम दूसरों के जीवन को भी बदलने की शक्ति रखते हैं।

इसलिए बाबा हमें याद दिलाते हैं –
अब समय है तपस्वी से महातपस्वी बनने का।

तपस्वी बनना शुरुआत है,
महातपस्वी बनना ही संगम युग की मंजिल है।

प्रश्न 1: तपस्वी से महातपस्वी बनने का क्या अर्थ है?

उत्तर:
बाबा ने अनेक अव्यक्त मुरलियों में कहा है कि – सहज योगी से श्रेष्ठ योगी और तपस्वी से महातपस्वी बनना ही संगम युग का असली लक्ष्य है।
 तपस्वी का अर्थ है स्वयं पर विजय प्राप्त करना, जबकि महातपस्वी का अर्थ है अपनी तपस्या से वातावरण और दूसरों के जीवन को भी परिवर्तित कर देना।


 प्रश्न 2: तपस्वी कौन है?

उत्तर:

  • तपस्वी वह है जो अपनी कर्मेन्द्रियों पर विजय पाता है।

  • मन, बुद्धि और संस्कारों को बाबा की श्रीमत अनुसार चलाता है।

  • साधारण इच्छाओं और बंधनों को त्यागकर स्वयं को निर्मल, पवित्र और संयमी बनाता है।

उदाहरण:
जैसे कोई विद्यार्थी केवल पढ़ाई पर ध्यान देता है और बाहर की चीज़ों में नहीं पड़ता – यही तपस्वी की निशानी है।


 प्रश्न 3: महातपस्वी कौन है?

उत्तर:
महातपस्वी की तपस्या केवल स्वयं तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह दूसरों के कल्याण के लिए भी प्रभावकारी बन जाती है।

  • उसके विचार, वाणी और दृष्टि से वातावरण बदल जाता है।

  • वह आत्मा को देखता है, शरीर को नहीं।

  • उसके शब्द महावाक्य बन जाते हैं।

  • उसकी स्थिति से ही लोग अनुभवी होने लगते हैं।

उदाहरण:
दीपक तपस्वी है, जो अपने पास रोशनी देता है।
लेकिन सूर्य महातपस्वी है, जो पूरी दुनिया को प्रकाश और शक्ति देता है।


 प्रश्न 4: तपस्वी और महातपस्वी में क्या अंतर है?

उत्तर:

  1. तपस्वी खुद के लिए शक्ति अर्जित करता है,
    महातपस्वी अपनी शक्ति से दूसरों को भी अनुभवी बनाता है।

  2. तपस्वी मौन का अभ्यास करता है,
    महातपस्वी मौन से वातावरण परिवर्तन कर देता है।

  3. तपस्वी खुद को ऊँचा उठाता है,
    महातपस्वी पूरे वातावरण को ऊँचा उठाता है।

  4. तपस्वी सिर्फ अनुभव करता है,
    महातपस्वी दूसरों को भी अनुभवी बनाता है।


 प्रश्न 5: दादी जानकी जी का अनुभव महातपस्वी बनने से कैसे जुड़ता है?

उत्तर:
दादी जी कहती थीं –
“मैं मुरली को पहले अपने लिए सुनती हूं, फिर सोचती हूं कि इसे दूसरों को कैसे देना है।”
 यही महातपस्वी की पहचान है – स्वयं भी अनुभवी बनना और दूसरों को भी अनुभवी कराना।


 प्रश्न 6: महातपस्वी का लक्ष्य क्या होना चाहिए?

उत्तर:

  • हर संकल्प समर्थ हो।

  • व्यर्थ और नेगेटिव संकल्प को प्रवेश न दें।

  • वाणी पर नियंत्रण रखें – केवल आवश्यक शब्द ही बोलें।

  • हर कर्म में आदर्शता हो।

 तब लोग अनुभव करेंगे –
“यह केवल बोल नहीं रहे, बल्कि कोई अलौकिक शक्ति कार्य कर रही है।”


 प्रश्न 7: इस विषय पर बाबा ने कौन-सी मुरलियों में संकेत दिया है?

उत्तर:

  • अव्यक्त वाणी 14-01-1982: “कर्मेन्द्रिय जीत ही विश्व राज्य अधिकारी।”

  • अव्यक्त वाणी 20-01-1982: “प्रेम और तपस्या से वातावरण परिवर्तन होता है।”

  • अव्यक्त वाणी 06-02-1984: “तपस्वी से महातपस्वी बनो, जो अपनी स्थिति से ही दूसरों को अनुभवी बना दे।”


 प्रश्न 8: निष्कर्ष रूप में हमें क्या करना है?

उत्तर:
 तपस्या से हम अपना जीवन पवित्र बनाते हैं।
 लेकिन महान तपस्या से हम दूसरों के जीवन को भी बदलने की शक्ति रखते हैं।

बाबा हमें याद दिलाते हैं –
अब समय है तपस्वी से महातपस्वी बनने का।
तपस्वी बनना शुरुआत है,
लेकिन महातपस्वी बनना ही संगम युग की मंजिल है।

Disclaimer

यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ के गहन ज्ञान, मुरली पॉइंट्स और व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक शिक्षा और आत्मा को जाग्रत करना है।
यह किसी भी प्रकार से धार्मिक वाद-विवाद या अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं देता।

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