(09) मृत्यु की प्रक्रिया का बाेध
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“मृत्यु की प्रक्रिया का बोध: दादा की दिव्य जागृति | जब परमात्मा स्वयं प्रकट हुए”
प्रस्तावना: मृत्यु – अंत नहीं, एक आरंभ
प्रिय आत्माओं,
आज हम बात करेंगे एक ऐसी दिव्य यात्रा की, जिसने मृत्यु की परिभाषा को ही बदल दिया।
यह है दादा लेखराज की कहानी – एक सामान्य व्यापारी, जो एक दिव्य मिशन का माध्यम बना।
1. मृत्यु के क्षण का साक्षात्कार
दादा अपने चाचा काका मूलचंद से मिलने पहुंचे, लेकिन वह देह छोड़ चुके थे।
कुछ दिनों बाद, एक दिन शांत बैठै हुए, दादा ने एक दिव्य दर्शन किया —
आत्मा को शरीर छोड़ते हुए साफ़-साफ़ देखा।
जैसे थर्मामीटर में पारा ऊपर चढ़ता है, वैसे ही जीवन-शक्ति ऊपर चढ़ी —
माथे तक आई… और फिर — शरीर से आत्मा निकल गई।
दादा को उस पल हुआ गहरा बोध:
“मृत्यु शरीर की होती है, आत्मा अमर है।”
2. दिव्य पहचान का रहस्योद्घाटन
एक सप्ताह के भीतर, दादा को बार-बार दिव्य दर्शन हुए:
-
भगवान विष्णु बोले: “मैं चतुर्भुज हूँ, आप वही हैं।”
-
श्रीकृष्ण, बद्रीनाथ और केदारनाथ के दर्शन हुए — सभी ने कहा: “आप वही हैं।”
लेकिन दादा इस आनंद के पीछे अर्थ खोज रहे थे।
3. गुरु का आगमन – बदल चुका दादा
गुरुजी का सत्कार हुआ।
लेकिन सबने देखा — दादा अब पहले जैसे नहीं थे।
एक शांत, दिव्य आभा, गहराई से जुड़ा हुआ कोई अनुभव — कुछ असामान्य था।
4. वह अविस्मरणीय रात – जब परमात्मा बोले
गुरु का प्रवचन चल रहा था, लेकिन दादा उठकर चले गए।
दादी ब्रिजिंद्रजी और उनकी पत्नी पीछे गईं — और देखा:
दादा की आंखों में दिव्य लाल रोशनी थी, पूरा कमरा तेजस्वी लाल प्रकाश में डूबा हुआ था।
फिर, वह आवाज़ आई —
“निजानंद स्वरूपम शिवोहम शिवोहम…”
“मैं शिव हूँ, ज्ञान स्वरूप हूँ, प्रकाश स्वरूप हूँ…”
यह आवाज़ किसी मानव की नहीं थी — यह थी स्वयं परमपिता शिव की।
5. दिव्य दृष्टि – एक नए युग की झलक
दादा ने अनुभव किया:
दिव्य आत्माएँ सितारों की तरह नीचे उतर रही हैं — और राजकुमार-राजकुमारियाँ बन रही हैं।
प्रकाश बोला:
“तुम्हें ऐसी दुनिया बनानी है।”
दादा अभी भी नहीं जानते थे कैसे, लेकिन उन्हें अब उद्देश्य मिल चुका था।
प्रश्न 1:दादा लेखराज को मृत्यु की प्रक्रिया का साक्षात्कार कैसे हुआ?
उत्तर:दादा लेखराज ने अपने चाचा काका मूलचंद के निधन के कुछ दिनों बाद, एक गहन दिव्य दर्शन में आत्मा को शरीर छोड़ते हुए देखा। उन्होंने स्पष्ट रूप से अनुभव किया कि जैसे थर्मामीटर में पारा चढ़ता है, वैसे ही जीवन शक्ति पैरों से माथे तक उठी और फिर आत्मा शरीर से निकल गई। इस अनुभव ने उन्हें आत्मा की अमरता और शरीर की नश्वरता का प्रत्यक्ष बोध कराया।
प्रश्न 2:मृत्यु के साक्षात्कार के बाद दादा को कौन सा शाश्वत सत्य समझ में आया?
उत्तर:उन्होंने जाना कि “केवल शरीर मरता है, आत्मा अमर है।” आत्मा मृत्यु से परे है और नश्वर देह को छोड़कर भी जीवित रहती है। यह अनुभव दादा के जीवन का एक निर्णायक मोड़ बन गया।
प्रश्न 3:दिव्य पहचान का रहस्योद्घाटन किस प्रकार हुआ?
उत्तर:मृत्यु के दर्शन के एक सप्ताह के भीतर, दादा को भगवान विष्णु के दर्शन हुए जिन्होंने कहा, “मैं चतुर्भुज हूँ। आप वही हैं।” इसके बाद श्रीकृष्ण, बद्रीनाथजी और केदारनाथजी के दर्शन हुए, और सबने यही घोषणा की कि “आप वही हैं।” यह दादा के भीतर एक गहरे आत्म-ज्ञान का आरंभ था।
प्रश्न 4:दादा के जीवन में गुरु के आगमन के समय क्या परिवर्तन दिखाई दिया?
उत्तर:जब दादा ने गुरु के स्वागत के लिए समारोह आयोजित किया, तो सभी ने महसूस किया कि दादा का आभामंडल, व्यवहार और उपस्थिति एक अलौकिक शांति से भर गई थी। उनका चेहरा और व्यवहार इस बात का संकेत दे रहे थे कि वे अब एक अदृश्य दिव्य शक्ति से जुड़े हुए हैं।
प्रश्न 5:गुरु के व्याख्यान के दौरान दादा के साथ क्या चमत्कारिक घटना घटी?
उत्तर:व्याख्यान के बीच में दादा अचानक उठकर चले गए। जब दादी बृजेंद्रजी उनके पीछे पहुँचीं, तो उन्होंने देखा कि दादा की आँखों से लाल प्रकाश निकल रहा था और कमरा रहस्यमयी लाल आभा से भर गया था। फिर, दादा के माध्यम से एक दिव्य आवाज गूंजी जो स्वयं परमात्मा शिव की थी, जिसने घोषणा की:
“निजानंद स्वरूपम शिवोहम शिवोहम…” अर्थात “मैं आनंदस्वरूप, ज्ञानस्वरूप और प्रकाशस्वरूप आत्मा हूँ।”
प्रश्न 6:दादा ने परम रहस्योद्घाटन के बाद क्या दृश्य देखा?
उत्तर:दादा ने दिव्य प्रकाश से भरी एक स्वर्गिक दुनिया देखी, जहाँ असंख्य आत्माएँ सितारों के समान उतर रही थीं और सुंदर राजकुमारों और राजकुमारियों के रूप में प्रकट हो रही थीं। परमात्मा ने उन्हें संदेश दिया: “तुम्हें ऐसी दुनिया बनानी है।“
प्रश्न 7:इस दिव्य जागृति के बाद दादा का जीवन कैसे बदल गया?
उत्तर:दादा अब एक साधारण हीरा व्यापारी नहीं रहे। वे परमात्मा शिव के चुने हुए माध्यम बन गए, जिनके द्वारा ईश्वर एक नई, श्रेष्ठ और पवित्र दुनिया की स्थापना करने वाले थे। उनका जीवन एक दिव्य मिशन बन गया – आत्माओं को सत्य ज्ञान, आत्म-जागृति और स्वर्ग निर्माण के कार्य में सहयोगी बनाना।
प्रश्न 8:यह कहानी हमें क्या सिखाती है?
उत्तर:यह कहानी हमें सिखाती है कि आत्मा शाश्वत है, मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, और जब समय आता है, तो ईश्वर स्वयं साधारण आत्माओं को चुनकर उन्हें एक महान और दिव्य मिशन में लगा देते हैं। हमारा भी जीवन, यदि ईश्वर से जुड़ जाए, तो असाधारण बन सकता है।
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