1-1 “Who Am I? The Mystery of the Soul”1.2 ,1.3,1.4,

ब्रह्माकुमारीज़ बेसिक कोर्स-1-1″मैं कौन हूॅं? आत्मा का रहस्य”

Brahma Kumaris Basic Course 1-1 “Who Am I? The Mystery of the Soul”

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अध्याय 1 – मैं कौन? (Who Am I?)

ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय का पहला पाठ
विषय: आत्मा और शरीर का भेद


✨ प्रस्तावना

प्रिय आत्मिक भाइयों और बहनों,
आज से हम ब्रह्मा कुमारीज का बेसिक कोर्स प्रारम्भ कर रहे हैं।
यह कोर्स हमें जीवन के सबसे गहरे प्रश्नों के उत्तर देता है —
“मैं कौन?”
“मेरा कौन?”
और “परमात्मा कौन?”

आज का पहला विषय है —
🪞 “मैं कौन?”


🧘‍♀️ मैं कौन? – सामान्य दृष्टि से बनाम आध्यात्मिक दृष्टि से

सामान्यतः जब किसी से पूछा जाए — “आप कौन हैं?”
तो लोग अपना नाम, पद, जाति, धर्म, या पेशा बताते हैं।
परंतु ये सब परिचय शरीर के हैं, आत्मा के नहीं।

वास्तविक प्रश्न है —
👉 क्या मैं यह शरीर हूं?
👉 या इस शरीर में रहने वाला कोई और हूं?


🔹 आत्मा और शरीर का भेद

शिवबाबा सिखाते हैं —
“मैं आत्मा हूं, यह शरीर मेरा साधन है।”
शरीर से हम कहते हैं — “मेरा शरीर, मेरा हाथ, मेरा विचार।”
तो जो “मेरा” है — वह “मैं” नहीं हो सकता।

उदाहरण:
जैसे कोई कहे “मेरा घर” — इसका अर्थ हुआ कि मैं घर नहीं हूं।
वैसे ही “मेरा शरीर” — तो मैं शरीर नहीं, बल्कि आत्मा हूं।


🧩 छोटी-सी अभ्यास

अपने मन में तीन बार दोहराएं —

✨ “मैं आत्मा हूं।”
✨ “यह शरीर मेरा है।”
✨ “मैं शरीर से अलग हूं।”

जब आत्मा यह स्मृति रखती है, तो भीतर से हल्कापन और शांति का अनुभव होता है।


🌞 आत्मा का स्वरूप

आत्मा क्या है?
आत्मा एक अति सूक्ष्म ज्योति बिंदु है —
ऊर्जा का, चेतना का बिंदु, जो इस शरीर के ललाट (माथे) में विराजमान है।
यह अदृश्य है, परंतु इसका अस्तित्व सर्वाधिक वास्तविक है।

उदाहरण:
जैसे ड्राइवर कार चलाता है —
कार पुरानी हो सकती है, पर ड्राइवर वही रहता है।
वैसे ही आत्मा शरीर बदलती है, पर वही रहती है।


📜 मुरली संदर्भ – 16 जुलाई 1969

“मीठे बच्चे, आत्मा अपने को शरीर से अलग समझो।
आत्मा ही सच्चा अविनाशी है, शरीर तो नाशवान है।”


🌺 आत्मा के मूल गुण

परमात्मा ने आत्मा को पाँच मुख्य गुण दिए हैं —

  1. शांति

  2. पवित्रता

  3. प्रेम

  4. आनंद

  5. ज्ञान

उदाहरण:
जैसे सूर्य की पहचान प्रकाश और ऊष्मा से होती है,
वैसे ही आत्मा की पहचान उसके दिव्य गुणों से होती है।


🔁 आत्मा का पुनर्जन्म

आत्मा न मरती है, न जन्म लेती है — केवल शरीर बदलती है
जैसे हम पुराने कपड़े उतारकर नए पहनते हैं।

20 नवंबर 1978 की मुरली:

“बच्चे, आत्मा अविनाशी है। शरीर बदलते हैं। तुम 84 जन्म लेते हो।”


💧 आत्मा का धर्म

जैसे पानी का धर्म है ठंडक,
वैसे ही आत्मा का धर्म है शांति और पवित्रता।

उदाहरण:
चाहे पानी किसी भी पात्र में डालो, वह ठंडक ही देता है।
वैसे ही आत्मा किसी भी शरीर में जाए, उसका धर्म शांति ही रहता है।


🌼 निष्कर्ष

“मैं यह शरीर नहीं हूं,
मैं एक आत्मा हूं,
यह शरीर मेरा वस्त्र है,
मेरा सच्चा धर्म है — शांति, पवित्रता और आनंद।”

24 मई 2001 की मुरली:

“मीठे बच्चे, सबसे पहला पाठ यह है — आत्मा समझो, मैं आत्मा हूं।
यह देह नश्वर है, आत्मा अविनाशी है।”


⚙️ आत्मा और शरीर का संबंध

आत्मा शरीर में रहती है और उसे चलाती है।
शरीर आत्मा के बिना मृत है — जैसे बल्ब बिना करंट के बुझ जाता है।

15 जुलाई 1976 की मुरली:

“मीठे बच्चे, आत्मा ही इस देह को चलाती है।
आत्मा जाए तो यह शरीर मिट्टी समान हो जाता है।”


🧿 आत्मा की विशेषताएँ

आत्मा की विशेषता शरीर की विशेषता
अविनाशी नश्वर
अमर अस्थायी
चेतन जड़
शाश्वत परिवर्तनशील
गुणों से भरी पंचतत्वों से बनी

🌻 आत्मा और शरीर का अभेद समझना क्यों ज़रूरी है?

जब हम शरीर को “मैं” समझते हैं, तो अहंकार, भय और दुख आता है।
जब आत्मा को “मैं” समझते हैं, तो शांति और वैराग्य अनुभव होता है।

उदाहरण:
जैसे अभिनेता यदि अपने रोल को असली समझ ले,
तो जीवन में उलझन आ जाती है।
पर यदि उसे याद है कि वह केवल अभिनय कर रहा है,
तो वह आनंद में रहता है।

3 अक्टूबर 1969 की मुरली:

“मीठे बच्चे, यह ड्रामा का खेल आत्मा खेलती है, शरीर केवल एक वेश है।”


🔯 आत्मा क्यों अमर है?

क्योंकि आत्मा परमात्मा की संतान है।
जैसे परमात्मा अविनाशी है, वैसे ही आत्मा भी अविनाशी है।
आत्मा ऊर्जा है — और ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती, केवल रूप बदलती है।

16 जुलाई 1976 की मुरली:

“मीठे बच्चे, आत्मा को कोई जला नहीं सकता, मार नहीं सकता।
आत्मा अविनाशी ज्वाला है।”


🌺 समापन विचार

आत्मा और शरीर का भेद समझना ही राजयोग का प्रथम चरण है।
जब आत्मा अपने को पहचानती है, तभी परमात्मा से सच्चा योग संभव होता है।
इस ज्ञान से जीवन बदल जाता है —
भय मिटता है, शांति बढ़ती है, और आत्मिक स्वाभिमान जागता है।

ब्रह्मा कुमारीज बेसिक कोर्स – पहला दिन: मैं कौन?

Q&A प्रारूप

प्रश्न 1: ब्रह्मा कुमारीज बेसिक कोर्स में पहला विषय क्या है?
उत्तर: पहला विषय है – “मैं कौन?”। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि हम केवल शरीर, नाम, जाति या पद से नहीं, बल्कि आत्मा के रूप में कौन हैं यह जानें।

प्रश्न 2: आज दुनिया में लोग अपने आप को आम तौर पर कैसे पहचानते हैं?
उत्तर: लोग सामान्य रूप से अपने नाम, पद, जाति, धर्म, परिवार और संबंधों के आधार पर पहचान देते हैं। लेकिन यह सत्य पहचान नहीं है, क्योंकि यह केवल शरीर और बाहरी पहचान है।

प्रश्न 3: “मैं कौन?” का सच्चा उत्तर क्या है?
उत्तर: मैं आत्मा हूं। शरीर मेरा है, लेकिन मैं शरीर नहीं हूं। शरीर केवल मेरा वस्त्र है; मेरी असली पहचान आत्मा है।

प्रश्न 4: “मैं” और “मेरा” में क्या अंतर है?
उत्तर:

  • मैं = आत्मा, जो चेतन और बोलने-सोचने वाली है।

  • मेरा = शरीर या संबंध, जो आत्मा का साधन है, लेकिन आत्मा नहीं है।
    उदाहरण: जैसे कार का ड्राइवर कार को चलाता है। ड्राइवर वही रहता है, चाहे कार बदल जाए।

प्रश्न 5: आत्मा का स्वरूप कैसा होता है?
उत्तर: आत्मा एक सूक्ष्म ज्योति बिंदु है। यह शरीर में ललाट से दो इंच अंदर, रीढ़ की हड्डी के ऊपर स्थित होती है। इसे कोई भी सूक्ष्मदर्शी यंत्र नहीं देख सकता।

प्रश्न 6: आत्मा और शरीर का कार्य कैसे होता है?
उत्तर: आत्मा ही शरीर को चलाती है, सोचती है, बोलती है और कर्म करती है। शरीर स्वयं कुछ नहीं कर सकता। यह ऐसे है जैसे कंप्यूटर और ऑपरेटर – कंप्यूटर अकेला काम नहीं कर सकता, ऑपरेटर (आत्मा) इसे चलाता है।

प्रश्न 7: आत्मा के मूल गुण क्या हैं?
उत्तर: आत्मा के सात मूल गुण हैं –

  1. शांति

  2. पवित्रता

  3. आनंद

  4. प्रेम

  5. ज्ञान

  6. शक्ति

  7. सुख

प्रश्न 8: आत्मा अमर है या नाशवान?
उत्तर: आत्मा अमर और अविनाशी है। यह जन्म और मृत्यु नहीं लेती। केवल शरीर बदलता रहता है।

प्रश्न 9: आत्मा का असली धर्म क्या है?
उत्तर: आत्मा का असली धर्म शांति, पवित्रता और आनंद है। यह सभी जाति और धर्म से ऊपर है।

प्रश्न 10: आत्मा और शरीर के भेद को समझने का महत्व क्या है?
उत्तर: जब हम समझते हैं कि आत्मा चेतन और अमर है, और शरीर नश्वर और साधन है, तभी हम सच्चा राजयोग शुरू कर सकते हैं और सातों दिव्य गुणों को विकसित कर सकते हैं।

Disclaimer

यह वीडियो ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की शिक्षाओं और शिवबाबा की मुरलियों पर आधारित है।
इसका उद्देश्य आध्यात्मिक जागृति और आत्म-ज्ञान का प्रसार करना है।
यह कोई धार्मिक मत, संप्रदाय या राजनीतिक विचारधारा नहीं है।

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