(10)प्रीत की रीत निभाने का सहज तरीका-गाना और नाचना”
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
प्रीत की रीत निभाने का सहज तरीका: गाना और नाचना | 20 Jan 1982 | Avyakt Murli Explained | Brahma Kumaris
शमा और परवाने की रूहानी महफ़िल
आज का दिन अव्यक्त शमा और परवानों की अलौकिक मुलाकात का दिन है।
यह प्रेम एक सामान्य प्रेम नहीं — यह है रूहानी प्रीत।
इस प्रीत की गहराई को वही जान सकता है जिसने इसे निभाया है।
प्रीत की असली परिभाषा: निभाना ही पाना है
बापदादा कहते हैं —
“जो प्रीत निभाता है, वही सब कुछ पाता है।”
और इस प्रीत को निभाना है बेहद सहज तरीके से:
गाना और नाचना।
गाना और नाचना: आत्मा की सहज दिनचर्या
ब्रह्ममुहूर्त में उठो और गीत गाओ —
-
परमात्मा की महिमा के गीत
-
ज्ञान की प्राप्तियों के गीत
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अपने श्रेष्ठ भाग्य के गीत
हर कर्म करते हुए नाचो —
-
जैसे डांस में अलग-अलग पोज़ होते हैं
-
वैसे ही कर्मयोग में अलग-अलग कर्म खुशी से करो
यही सच्चा कर्मयोग है — खुशी में नाचते चलो।
ध्यान: सिर्फ एक ही साज़ सुनो
बाबा कहते हैं —
“मुरली ही वह साज़ है जिसे कानों में गूंजते रखना है।”
-
जब सिर्फ बाप का साज़ सुनेंगे, तो व्यर्थ बोल ही नहीं निकलेंगे।
-
जब बाप के साथ नाचेंगे, तो तीसरा कोई बीच में आ ही नहीं सकता।
यही बनना है — मायाजीत।
तीसरी बात: सो जाना — कर्म से डिटैच हो जाना
जब नाचते-गाते थक जाओ —
तो आत्मिक रूप से अशरीरी बन जाओ।
यही है —
बापदादा की गोदी में सो जाना।
ना कर्म, ना बोझ, सिर्फ शांति और प्रेम।
डिप्रेशन नहीं, सेल्फ-रियलाइज़ेशन चाहिए
बापदादा की स्पष्ट आज्ञा —
“डिप्रेशन-डिप्रेशन कभी नहीं कहना।”
-
आप बाप के सदा साथी हो
-
रियलाइज़ करो, डिप्रेशन नहीं अपनाओ
-
यह शब्द आज के बाद अलविदा कर दो
सेवा में सफलता का रहस्य: नम्रता और निमित्त भाव
-
“मैं सेवाधारी हूँ” — यही पहचान
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“मैं टीचर हूँ” यह अभिमान न आ जाए
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जितनी नम्रता, उतना सेवा में विस्तार
-
स्व परिवर्तन ही विश्व परिवर्तन का आधार
गाना + नाचना + सो जाना = प्रीत की रीति।
-
यह जीवन एक रूहानी उत्सव है।
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बाप के साथ हर क्षण एक डिवाइन डांस है।
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गाते रहो, नाचते रहो और थक कर परमात्मा की गोदी में विश्राम करो।
आज का अभ्यास:
-
मुरली से एक पॉइंट लेकर दिनभर उस पर गीत गाओ।
-
हर कर्म को खुशी का पोज़ मानकर करें।
-
दिन के अंत में अशरीरी स्थिति में विश्राम लें।
समाप्ति:
हे शमा के प्यारे परवानों,
सदा इस प्रीत की रीति को निभाते चलो,
और बन जाओ बापदादा के दिलतख्तनशीन।
ओम् शांति।
प्रीत की रीत निभाने का सहज तरीका: गाना और नाचना | 20 Jan 1982 | Avyakt Murli Q&A | Brahma Kumaris
प्रश्न 1: शमा और परवाने की रूहानी प्रीत क्या है?
उत्तर:शमा (बापदादा) और परवाने (हम आत्माएं) के बीच की प्रीत एक अविनाशी, रूहानी संबंध है जिसे सिर्फ अनुभव करने वाले ही समझ सकते हैं। यह प्रेम सामान्य नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा की अलौकिक महफिल का स्वरूप है।
प्रश्न 2: प्रीत निभाने का अर्थ क्या है?
उत्तर:बापदादा कहते हैं — “जो प्रीत निभाता है, वही सब कुछ पाता है।”
प्रीत निभाने का अर्थ है परमात्मा के संग को सच्चे दिल से स्वीकार करना, और इसका तरीका है — गाना और नाचना, अर्थात् हर कर्म में खुशी और समर्पण रखना।
प्रश्न 3: गाना और नाचना कैसे आत्मिक दिनचर्या बन सकती है?
उत्तर:
-
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर परमात्मा, ज्ञान और श्रेष्ठ भाग्य की महिमा के गीत गाओ।
-
हर कर्म को नृत्य की तरह करें — जैसे शरीर के अंग डांस में पोज़ बदलते हैं, वैसे ही कर्मों में खुशियों की विविधता हो।
प्रश्न 4: बापदादा कौन-से साज़ को सुनते रहने की सलाह देते हैं?
उत्तर:मुरली — जिसमें बापदादा के “मीठे बच्चे, लाडले बच्चे, सिकीलधे बच्चे” जैसे मधुर बोल होते हैं। यही वह साज़ है जो आत्मा को शक्ति, प्रेम और शांति प्रदान करता है।
प्रश्न 5: ‘सो जाना’ मुरली अनुसार किसका संकेत है?
उत्तर:यह अशरीरी बनने का प्रतीक है — जब आत्मा कर्म से डिटैच होकर बापदादा की गोदी में विश्राम करती है। यह नींद नहीं, बल्कि आत्मिक विश्राम है — शांति और प्रेम की स्थिति।
प्रश्न 6: डिप्रेशन से कैसे बचें?
उत्तर:बापदादा की आज्ञा है — “डिप्रेशन-डिप्रेशन कभी नहीं कहना।”
डिप्रेशन आत्मा को बाप से दूर करता है। इसके स्थान पर Self-Realization अपनाना चाहिए — आत्मा की श्रेष्ठता और बाप की संगति का अनुभव।
प्रश्न 7: सेवा में सफलता का रहस्य क्या है?
उत्तर:
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नम्रता और निमित्त भाव
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“मैं” का अहं न हो — सेवाधारी बनकर हर कार्य में समर्पण हो।
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स्व परिवर्तन से ही विश्व परिवर्तन संभव है।
प्रश्न 8: बापदादा के अनुसार सच्चा कर्मयोगी कौन है?
उत्तर:जो आत्मा हर कर्म को खुशियों में नाचते हुए करती है, वही सच्चा कर्मयोगी है। ऐसा आत्मा कभी व्यर्थ नहीं बोलती, और हर क्षण बाप के साथ नृत्य करती है।
प्रश्न 9: मुरली अनुसार दिनभर क्या अभ्यास करें?
उत्तर:
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मुरली से एक पॉइंट को पकड़कर उसके गीत गाओ।
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हर कर्म को खुशी और नृत्य की मुद्रा में करो।
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दिन के अंत में अशरीरी बनकर बाप की गोदी में विश्राम लो।
प्रश्न 10: इस मुरली का निष्कर्ष क्या है?
उत्तर:गाना + नाचना + सो जाना = प्रीत की रीति
यह जीवन एक दिव्य उत्सव है जिसमें हर क्षण बाप के साथ नृत्य करते हुए बिताना है — यही आत्मिक सफलता और परम आनंद का रास्ता है।
समापन:
सदा शमा के दिलपसन्द परवाने बनकर, इस प्रीत की रीति निभाओ —
और बन जाओ बापदादा के दिल-तख्तनशीन।
ओम् शांति।
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