(106) The real secret of the Gita is the method of conquering vices and building character

(106) गीता का असली रहस्य विकारों पर विजय और चरित्र निर्माण की विधि

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प्रस्तावना (Intro)

ओम शांति।
आज का विषय है – गीता का भगवान कौन?
यह 106वाँ भाग है जिसमें हम गीता का असली रहस्य, विकारों पर विजय और चरित्र निर्माण की विधि समझेंगे।


परमात्मा का महावाक्य

परमात्मा कहते हैं: “यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत…”
जब-जब भारत में धर्म की ग्लानी होती है, तब-तब मैं आकर अधर्म का विनाश और सत्य धर्म की स्थापना करता हूँ।
इसका अर्थ है — जब चरित्र की हानि होती है तब स्वयं परमात्मा आते हैं।


साधु-संत क्यों असमर्थ?

जो साधक स्वयं साधना कर रहा है, वह दूसरों को सद्गति नहीं दे सकता।
भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे आचार्य भी भगवान को पहचान न सके।
केवल परमात्मा ही पतितों को पावन बनाने की विधि सिखा सकते हैं।


क्रिया, तप, दान से क्यों नहीं?

गीता में स्पष्ट है – वेद, यज्ञ और तप से चरित्र उत्थान नहीं हो सकता।
ज्ञान सुनने से जानकारी मिलती है, परंतु विकार जीतने के लिए शक्ति चाहिए।
यह शक्ति केवल परमात्मा की स्मृति से ही मिलती है।


 गीता – प्रतीकात्मक युद्ध का रहस्य

गीता का युद्ध हिंसा का युद्ध नहीं था, बल्कि विकारों से युद्ध था।

  • द्रौपदी को दाँव पर लगाना = काम विकार

  • जुआ खेलना = लोभ विकार

  • भूमि विवाद = अहंकार

  • अर्जुन का मोह = आसक्ति

सच्चा युद्ध विकारों पर विजय का ही था।


स्वधर्म – आत्मिक पहचान

परमात्मा कहते हैं — स्वधर्म ही सुख देने वाला है।
स्वधर्म = आत्मा की स्मृति
परधर्म = देह अभिमान
देह अभिमान से ही सभी विकार उत्पन्न होते हैं।


विकारों से मुक्ति के दो साधन

  1. आत्म-ज्ञान → दृष्टिकोण बदलता है।

  2. परमात्म स्मृति → शक्ति मिलती है।

ज्ञान और योग — यही पवित्रता और विजय की शक्ति है।


निष्कर्ष – गीता का असली संदेश

गीता का रहस्य यही है कि विकारों पर विजय से ही चरित्र उत्थान होता है।
काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार पर विजय केवल परमात्मा की शक्ति से ही संभव है।
परमात्मा बच्चों को कमल पुष्प समान पवित्र बना, नई सतोप्रधान दुनिया की स्थापना करने आते हैं।

शीर्षक: स्मृति स्वरूप बन तीव्रगति से पास विद ऑनर कैसे बनें?

प्रश्नोत्तर (Questions & Answers)

प्रश्न 1: स्मृति स्वरूप बनना क्यों आवश्यक है?
उत्तर: स्मृति स्वरूप बनना इसलिए आवश्यक है क्योंकि यही अवस्था हमें व्यर्थ और विकर्म से बचाती है। जब आत्मा सदा स्वयं को परमात्मा की संतान और अपना मूल स्वरूप याद करती है, तो शक्ति और शांति का अनुभव करती है। यही शक्ति हमें हर परस्थिति में विजय दिलाती है।


प्रश्न 2: अनुभवी मूर्त बनने का क्या अर्थ है?
उत्तर: अनुभवी मूर्त बनने का अर्थ है—ज्ञान और योग को केवल सुनना या समझना नहीं, बल्कि उसे जीवन में अनुभव करना और उसका प्रमाण स्वरूप बनना। जब हम परमात्मा के सान्निध्य और गुणों का अनुभव करते हैं, तो वह हमारे आचरण और चेहरे पर स्वतः झलकने लगता है।


प्रश्न 3: सेकण्ड की तीव्रगति से परिवर्तन कैसे संभव है?
उत्तर: परिवर्तन तभी सेकण्ड में संभव है जब आत्मा अभ्यासपूर्वक सदा अपनी वास्तविक पहचान में रहती है। जिस प्रकार बटन दबाते ही प्रकाश हो जाता है, उसी प्रकार स्मृति का बटन दबाते ही आत्मा का स्वरूप उजागर हो जाता है और पुरानी प्रकृति व संस्कार बदलने लगते हैं।


प्रश्न 4: पास विद ऑनर बनने का वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर: पास विद ऑनर बनने का अर्थ है—प्रत्येक पेपर, चाहे छोटा हो या बड़ा, उसमें सफल होकर निकलना। इसमें केवल बाहरी सफलता नहीं, बल्कि आंतरिक स्थिति की स्थिरता और परमात्मा के सामने प्रमाणित जीवन जीना शामिल है।


प्रश्न 5: इस स्थिति को प्राप्त करने का सहज साधन क्या है?
उत्तर: इसका सहज साधन है—स्मृति का अभ्यास, बाबा की याद, और हर कार्य में ‘मैं आत्मा हूँ’ की स्थिति बनाए रखना। साथ ही, सेवा, स्नेह और सहयोग का भाव जीवन में अपनाने से आत्मा शक्तिशाली बनती है और पास विद ऑनर की योग्यता प्राप्त करती है।

Disclaimer (डिस्क्लेमर)

यह वीडियो/लेख केवल आध्यात्मिक, शैक्षिक और जागरूकता के उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। इसमें साझा किए गए विचार, प्रश्न-उत्तर और समाधान ब्रह्माकुमारीज़ की शिक्षाओं एवं सामान्य आध्यात्मिक अनुभवों पर आधारित हैं।
यह किसी भी प्रकार की मेडिकल, लीगल या प्रोफेशनल सलाह नहीं है। दर्शक/पाठक अपनी व्यक्तिगत परिस्थिति के अनुसार विवेकपूर्ण निर्णय लें।

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