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करवा चौथ का आध्यात्मिक रहस्य
आज हम 11वां पाठ कर रहे हैं — क्या पुरुष भी करवा चौथ का व्रत रख सकते हैं?

आधुनिक युग की सोच और प्रश्न
आज जब स्त्री-पुरुष समानता की बातें होती हैं, तो कुछ पुरुष भी यह कहते हैं — अगर पत्नी मेरे लिए व्रत रख सकती है, तो मैं भी उसके लिए क्यों नहीं रख सकता?
प्रश्न अच्छा है, पर गहराई से सोचिए — क्या व्रत केवल शरीर से संबंधित है?
यह मन और आत्मा का विषय है।

व्रत का वास्तविक अर्थ
व्रत का अर्थ केवल उपवास नहीं।
साकार मुरली 24 अक्टूबर 2018 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, सच्चा व्रत भूख-प्यास का नहीं, विकारों से रहना है।
जब आत्मा पवित्र रहती है, वही सच्चा उपवास कहलाता है।”

अर्थात, व्रत का अर्थ भोजन त्यागना नहीं, बल्कि विकारों से संयम रखना है।

उदाहरण – एयरप्लेन मोड
जैसे मोबाइल का एयरप्लेन मोड होता है।
जब आप एयरप्लेन मोड यूज़ करते हैं, तो आपका नेटवर्क कनेक्शन बंद हो जाता है।
ताकि अंदर का सिस्टम सुरक्षित रहे।
वैसे ही व्रत का अर्थ है — विकारों के सिग्नल से मन को डिस्कनेक्ट करना।

आत्मा का लिंग नहीं होता
स्त्री और पुरुष दोनों आत्माएं हैं, शरीर नहीं।
साकार मुरली 20 अक्टूबर 2017 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, तुम सब आत्माएं मेरे बच्चे हो। आत्मा का कोई लिंग नहीं होता। आत्मा न स्त्री है न पुरुष।”

इसका अर्थ है — यदि व्रत आत्मा की पवित्रता से जुड़ा है, तो वह केवल स्त्रियों तक सीमित नहीं रह सकता।
हर आत्मा परमात्मा की संतान है।
हर आत्मा को ही सच्चे सुहाग की प्राप्ति करनी है।

सच्चा करवा चौथ किसके लिए है
सच्चा करवा चौथ परमपिता परमात्मा के प्रति व्रत है।
करवा चौथ में स्त्री कहती है — “मैं अपने पति के लिए व्रत रखती हूं।”
पर आध्यात्मिक दृष्टि से हर आत्मा को यह कहना चाहिए —
“मैं अपने परमात्मा पिता के लिए व्रत रखती हूं कि मैं विकारों से दूर रहूं। किसी भी विकार को अपने में आने नहीं दूंगी।”

साकार मुरली 18 अक्टूबर 1981 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, यह योग की प्रतिज्ञा ही सच्चा व्रत है। जब आत्मा परमात्मा की याद में रहती है तो सदा सुहागन बन जाती है।”

इसलिए करवा चौथ केवल महिलाओं का पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की परमात्मा के प्रति निष्ठा का प्रतीक है — जो पुरुषों पर भी समान रूप से लागू होता है।

पुरुषों के लिए व्रत का अर्थ
पुरुषों के लिए व्रत का अर्थ है आत्म-संयम और सहयोग।
अगर पुरुष करवा चौथ के दिन व्रत का भाव रखना चाहें तो उन्हें यह संकल्प करना चाहिए —
“मैं अपनी पत्नी के सुख और आत्मिक शक्ति के लिए विकारों से दूर रहूंगा, संयम में रहूंगा, और उसके साथ अध्यात्मिक सहयोग दूंगा।”

साकार मुरली 22 अक्टूबर 2018 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, योग की शक्ति से एक-दूसरे को सहारा दो। यही है सच्ची सेवा और शुभ भावना।”

इसलिए पुरुषों के लिए व्रत का अर्थ है —
विकारों से बचना, क्रोध पर विजय पाना, और परिवार के वातावरण को शांतिमय बनाना।

व्रत रखने का समान आध्यात्मिक अधिकार
साकार मुरली 25 अक्टूबर 2016 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, चाहे पुरुष हो या स्त्री, सच्चा सुहाग उसी को मिलता है जो पवित्र रहता है। परमात्मा पवित्रता का ही वरदान देते हैं।”

इस प्रकार, ईश्वर ने किसी को कम या अधिक नहीं बनाया, बल्कि दोनों को समान अधिकार दिया है — सच्चे व्रत और सच्चे सुहाग का।

उदाहरण – सूर्य और चंद्रमा का संतुलन
करवा चौथ में चंद्रमा को देखा जाता है।
सूर्य पुरुष का प्रतीक है — स्थिरता का।
चंद्रमा स्त्री का प्रतीक है — शीतलता का।
जब दोनों मिलते हैं तो प्रकाश और शीतलता का संतुलन बनता है।
वैसे ही जब स्त्री-पुरुष दोनों आत्मिक रूप से संयम और योग में रहते हैं,
तो परिवार में सुख, शांति, शक्ति और सौंदर्य स्थिर होता है।

निष्कर्ष
पारंपरिक दृष्टि से — स्त्री अपने पति के लिए व्रत रखती है।
आध्यात्मिक दृष्टि से — हर आत्मा परमात्मा के लिए व्रत रखे, क्योंकि सच्चा साधन तो वही है।

पुरुष का व्रत है — विकारों से संयम, पवित्रता का पालन, जिससे आत्मा की शक्ति बढ़ती है और परिवार में सुख-शांति आती है।

साकार मुरली 23 अक्टूबर 2015 में शिव बाबा कहते हैं —
“बच्चे, सच्चा व्रत वही है जिसमें आत्मा परमात्मा से शक्ति ले। वही बनता है सच्चा सुहाग, सच्चा सौभाग्य।”

समापन संदेश
तो भाइयों और बहनों, करवा चौथ का पर्व केवल महिलाओं के लिए नहीं, बल्कि हर आत्मा के लिए है — जो परमात्मा शिव को अपना सच्चा वर मानती है।
जब हम सब पवित्रता का व्रत रखते हैं, तो हमारा घर भी और संसार भी सच्चे सौभाग्य का धाम बन जाता है।

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