अव्यक्त मुरली-(11)24-02-1984 “ब्राह्मण जन्म – अवतरित जन्म”
24-02-1984 “ब्राह्मण जन्म – अवतरित जन्म”
बापदादा आवाज में आते सभी को आवाज से परे की स्थिति में ले जाने के लिए, व्यक्त देश में व्यक्त शरीर में प्रवेश होते हैं अव्यक्त बनाने के लिए। सदा अपने को अव्यक्त स्थिति वाले सूक्ष्म फरिश्ता समझ व्यक्त देह में अवतरित होते हो? सभी अवतरित होने वाले अवतार हो। इसी स्मृति में सदा हर कर्म करते, कर्म के बन्धनों से मुक्त कर्मातीत अवतार हो। अवतार अर्थात् ऊपर से श्रेष्ठ कर्म के लिए नीचे आते हैं। आप सभी भी ऊंची ऊपर की स्थिति से नीचे अर्थात् देह का आधार ले सेवा के प्रति कर्म करने के लिए पुरानी देह में, पुरानी दुनिया में आते हो। लेकिन स्थिति ऊपर की रहती है, इसलिए अवतार हो। अवतार सदा परमात्म पैगाम ले आते हैं। आप सभी संगमयुगी श्रेष्ठ आत्मायें भी परमात्म पैगाम देने के लिए, परमात्म मिलन कराने के लिए अवतरित हुए हो। यह देह अब आपकी देह नहीं रही। देह भी बाप को दे दी। सब तेरा कहा अर्थात् मेरा कुछ नहीं। यह देह सेवा के अर्थ बाप ने लोन में दी है। लोन में मिली हुई वस्तु पर मेरे-पन का अधिकार हो नहीं सकता। जब मेरी देह नहीं तो देह का भान कैसे आ सकता। आत्मा भी बाप की बन गई, देह भी बाप की हो गई तो मैं और मेरा कहाँ से आया! मैं-पन सिर्फ एक बेहद का रहा – “मैं बाप का हूँ”, जैसा बाप वैसा मैं मास्टर हूँ। तो यह बेहद का मैं-पन रहा। हद का मैं-पन विघ्नों में लाता है। बेहद का मैं-पन निर्विघ्न, विघ्न-विनाशक बनाता है। ऐसे ही हद का मेरापन मेरे-मेरे के फेरे में लाता है और बेहद का मेरापन जन्मों के फेरों से छुड़ाता है।
बेहद का मेरा-पन है – “मेरा बाबा”। तो हद छूट गई ना। अवतार बन देह का आधार ले सेवा के कर्म में आओ। बाप ने लोन अर्थात् अमानत दी है सेवा के लिए। और कोई व्यर्थ कार्य में लगा नहीं सकते। नहीं तो अमानत में ख्यानत का खाता बन जाता है। अवतार व्यर्थ खाता नहीं बनाता। आया, सन्देश दिया और गया। आप सभी भी सेवा-अर्थ, सन्देश देने अर्थ ब्राह्मण जन्म में आये हो। ब्राह्मण जन्म अवतरित जन्म है, साधारण जन्म नहीं। तो सदा अपने को अवतरित हुई विश्व कल्याणकारी, सदा श्रेष्ठ अवतरित आत्मा हैं – इसी निश्चय और नशे में रहो। टेप्रेरी समय के लिए आये हो और फिर जाना भी है। अब जाना है, यह सदा याद रहता है? अवतार हैं, आये हैं, अब जाना है। यही स्मृति उपराम और अपरम्पार प्राप्ति की अनुभूति कराने वाली है। एक तरफ उपराम, दूसरे तरफ अपरम-अपार प्राप्ति। दोनों अनुभव साथ-साथ रहते हैं। ऐसे अनुभवी मूर्त हो ना! अच्छा।
अब सुनने को स्वरुप में लाना है। सुनना अर्थात् बनना। आज विशेष हमजिन्स से मिलने आये हैं। हमशरीक हो गये ना। सत् शिक्षक निमित्त शिक्षकों से मिलने आये हैं। सेवा के साथियों से मिलने आये हैं। अच्छा।
सदा बेहद के मैं-पन के स्मृति स्वरुप, सदा बेहद का मेरा बाप इसी समर्थ स्वरुप में स्थित रहने वाले, सदा ऊंची स्थिति में स्थित रह, देह का आधार ले अवतरित होने वाले अवतार बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।
टीचर्स के साथ:- सदा सेवाधारी आत्माओं का यह संगठन है ना। सदा अपने को बेहद के विश्व सेवाधारी समझते हो? हद के सेवाधारी तो नहीं हो ना। सब बेहद के हो? किसी को भी किसी स्थान से किसी भी स्थान पर भेज दें तो तैयार हो? सभी उड़ते पंछी हो? अपने देह के भान की डाली से भी उड़ते पंछी हो? सबसे ज्यादा अपने तरफ आकर्षित करने वाली डाली – यह देह का भान है। जरा भी पुराने संस्कार, अपने तरफ आकर्षित करते माना देह का भान है। मेरा स्वभाव ऐसा है, मेरा संस्कार ऐसा है, मेरी रहन-सहन ऐसी है, मेरी आदत ऐसी है, यह सब देह भान की निशानी है। तो इस डाली से उड़ते पंछी हो? इसको ही कहा जाता है कर्मातीत स्थिति। कोई भी बन्धन नहीं। कर्मातीत का अर्थ यह नहीं है कि कर्म से अतीत हो लेकिन कर्म के बन्धन से न्यारे। तो देह के कर्म, जैसे किसका नेचर होता है – आराम से रहना, आराम से समय पर खाना, चलना यह भी कर्म का बन्धन अपने तरफ खींचता है। इस कर्म के बन्धन अर्थात् आदत से भी परे क्योंकि निमित्त हो ना।
जब आप सभी निमित्त आत्मायें कर्म के बन्धनों से, देह के संस्कार-स्वभाव से न्यारे नहीं होंगे तो औरों को कैसे करेंगे! जैसे शरीर की बीमारी कर्म का भोग है, इसी रीति से अगर कोई भी कर्म का बन्धन अपने तरफ खींचता है, तो यह भी कर्म का भोग विघ्न डालता है। जैसे शारीरिक व्याधि कर्म भोग अपनी तरफ बार-बार खींचता है, दर्द होता है तो खींचता है ना। तो कहते हो क्या करें, वैसे तो ठीक है लेकिन कर्मभोग कड़ा है। ऐसे कोई भी विशेष पुराना संस्कार-स्वभाव वा आदत अपने तरफ खींचती है तो वह भी कर्मभोग हो गया। कोई भी कर्मभोग कर्मयोगी बना नहीं सकेगा। तो इससे भी पार। क्यों? सभी नम्बरवन जाने वाली आत्मायें हो ना। वन नम्बर का अर्थ ही है – हर बात में विन करने वाली। कोई भी कमी नहीं। टीचर्स का अर्थ ही है सदा अपनी मूर्त द्वारा कर्मातीत ब्रह्मा बाप और न्यारे तथा प्यारे शिव बाप की अनुभूति कराने वाले। तो यह विशेषता है ना। फ्रैण्ड्स हो ना आप! फ्रैण्ड्स कैसे बनते हैं? बिना समान के फ्रैण्ड्स नहीं बन सकते। तो आप सब बाप के फ्रैण्ड्स हो, गॉडली फ्रैण्ड्स हो। समान होना ही फ्रैण्डशिप है। बाप के कदम पर कदम रखने वाले क्योंकि फ्रैण्ड्स भी हो और फिर माशूक के आशिक भी हो। तो आशिक सदा माशूक के पांव के ऊपर पांव रखते हैं। यह रसम है ना। जब शादी होती है तो क्या कराते हैं! यही कराते हैं ना। तो यह सिस्टम भी कहाँ से बनी? आप लोगों से बनी है। आपका है बुद्धि रुपी पांव और उन्होंने स्थूल पांव समझ लिया है। हर सम्बन्ध से विशेषता का सम्बन्ध निभाने वाली निमित्त आत्मायें हो।
निमित्त शिक्षकों को औरों से बहुत सहज साधन हैं। दूसरों को तो फिर भी सम्बन्ध में रहना पड़ता है और आपका सम्बन्ध सदा सेवा और बाप से है। चाहे लौकिक कार्य भी करते हो तो भी सदा यही याद रहता है कि टाइम हो और सेवा पर जाएं। और लौकिक कार्य जिसके लिए किया जाता है, उसकी स्मृति स्वत: आती है। जैसे लौकिक में माँ-बाप कमाते हैं बच्चे के लिए। तो उनकी स्वत: याद आती है। तो आप भी जिस समय लौकिक कार्य करते हो तो किसके प्रति करते हो? सेवा के लिए करते हो या अपने लिए? क्योंकि जितना सेवा में लगाते तो उतनी खुशी होती है। कभी भी लौकिक सेवा समझकर नहीं करो। यह भी एक सेवा का तरीका है, रुप भिन्न है लेकिन है सेवा के प्रति। नहीं तो देखो अगर लौकिक सेवा करके सेवा का साधन नहीं होता तो संकल्प चलता है कि कहाँ से आवे! कैसे आवे! चलता नहीं है। पता नहीं कब होगा! यह संकल्प व्यर्थ समय नहीं गंवाता? इसलिए कभी भी लौकिक जॉब (धन्धा) करते हैं, यह शब्द नहीं बोलो। यह अलौकिक जॉब है। सेवा निमित्त है। तो कभी भी बोझ नहीं लगेगा। नहीं तो कभी-कभी भारी हो जाते हैं, कब तक होगा, क्या होगा! यह तो आप लोगों के लिए प्रालब्ध बहुत सहज बनाने का साधन है।
तन-मन-धन तीन चीज़ें हैं ना! अगर तीनों ही चीज़ें सेवा में लगाते हैं तो तीनों का फल किसको मिलेगा? आपको मिलेगा या बाप को! तीनों ही रीति से अपनी प्रालब्ध बनाना, तो यह औरों से एडीशन प्रालब्ध हो गई। इसलिए कभी भी इसमें भारी नहीं। सिर्फ भाव को बदली करो। लौकिक नहीं अलौकिक सेवा के प्रति ही है। इसी भाव को बदली करो। समझा, यह तो और ही डबल सरेन्डर हो। धन से ही सरेन्डर हो गये। सब बाप के प्रति है। सरेन्डर का अर्थ क्या है? जो कुछ है बाप के प्रति है अर्थात् सेवा के प्रति है। यही सरेन्डर है। जो समझते हैं हम सरेन्डर नहीं हैं, वह हाथ उठाओ! उनकी सेरेमनी मना लेंगे! बाल बच्चे भी पैदा हो गये और कहते हो सरेन्डर नहीं हुए। अपना मैरेज डे भले मनाओ लेकिन मैरेज हुई नहीं यह तो नहीं कहो। क्या समझते हो, सारा ही ग्रुप सरेन्डर ग्रुप है ना!
बापदादा तो डबल विदेशी वा डबल विदेश के स्थान पर निमित्त बनी हुई टीचर्स की बहुत महिमा करते हैं। ऐसे ही नहीं महिमा करते हैं लेकिन मुहब्बत से विशेष मेहनत भी करते हो। मेहनत तो बहुत करनी पड़ती है लेकिन मुहब्बत से मेहनत महसूस नहीं होती, देखो, कितने दूर-दूर से ग्रुप तैयार करके लाते हैं, तो बापदादा बच्चों की मेहनत पर बलिहार जाते हैं। एक विशेषता डबल फारेन के निमित्त सेवाधारियों की बहुत अच्छी है। जानते हो कौन-सी विशेषता है? (अनेक विशेषतायें निकली) जो भी बातें निकाली वह स्वयं में चेक करके कम हो तो भर लेना क्योंकि बातें तो बहुत अच्छी-अच्छी निकाली हैं। बापदादा सुना रहे हैं – एक विशेषता डबल विदेशी सेवाधारियों में देखी कि जो बापदादा डायरेक्शन देते हैं – यह करके लाना, वह प्रैक्टिकल में लाने के लिए हमेशा कितना भी प्रयत्न करना पड़े लेकिन प्रैक्टिकल में लाना ही है, यह लक्ष्य प्रैक्टिकल अच्छा है। जैसे बापदादा ने कहा कि ग्रुप लाने हैं तो ग्रुप्स भी ला रहे हैं।
बापदादा ने कहा वी.आई.पीज् की सर्विस करनी है, पहले कितना मुश्किल कहते थे, बहुत मुश्किल – लेकिन हिम्मत रखी करना ही है तो अभी देखो दो साल से ग्रुप्स आ रहे हैं ना। कहते थे लण्डन से वी.आई.पी. आना बहुत मुश्किल है। लेकिन अभी देखो प्रत्यक्ष प्रमाण दिखाया ना। इस बारी तो भारत वालों ने भी राष्ट्रपति को लाकर दिखाया। लेकिन फिर भी डबल विदेशियों का यह उमंग डायरेक्शन मिला और करना ही है, यह लगन अच्छी है। प्रैक्टिकल रिजल्ट देख बापदादा विशेषता का गायन करते हैं। सेन्टर खोलते हो वह तो पुरानी बात हो गई। वह तो खोलते ही रहेंगे क्योंकि वहाँ साधन बहुत सहज हैं। यहाँ से वहाँ जा करके खोल सकते हो, यह भारत में साधन नहीं है। इसलिए सेन्टर खोलना कोई बड़ी बात नहीं लेकिन ऐसे अच्छे-अच्छे वारिस क्वालिटी तैयार करना। एक है वारिस क्वालिटी तैयार करना और दूसरा है बुलन्द आवाज वाले तैयार करना। दोनों ही आवश्यक हैं। वारिस क्वालिटी – जैसे आप सेवा के उमंग-उत्साह में तन-मन-धन सहित रहते हुए भी सरेन्डर बुद्धि हो, इसको कहते हैं वारिस क्वालिटी। तो वारिस क्वालिटी भी निकालनी है। इसके ऊपर भी विशेष अटेन्शन। हरेक सेवाकेन्द्र में ऐसे वारिस क्वालिटी हों तो सेवाकेन्द्र सबसे नम्बरवन में जाता है।
एक है सेवा में सहयोगी होना, दूसरे हैं पूरा ही सरेन्डर होना। ऐसे वारिस कितने हैं? हरेक सेवाकेन्द्र पर ऐसे वारिस हैं? गॉडली स्टूडेन्ट बनाना, सेवा में सहयोगी बनना – वह लिस्ट तो लम्बी होती है लेकिन वारिस कोई-कोई होते हैं। जिसको जिस समय जो डायरेक्शन मिले, जो श्रीमत मिले उसी प्रमाण चलता रहे। तो दोनों ही लक्ष्य रखो, वह भी बनाना है और वह भी बनाना है। ऐसा वारिस क्वालिटी वाला एक अनेक सेन्टर खोलने के निमित्त बन सकता है। यह भी लक्ष्य से प्रैक्टिकल होता रहेगा। विशेषता तो अपनी समझी ना। अच्छा।
सन्तुष्ट तो हैं ही या पूछना पड़े। हैं ही सन्तुष्ट करने वाले। तो जो सन्तुष्ट करने वाला होगा वह स्वयं तो होगा ना। कभी सर्विस थोड़ी कम देख करके हलचल में तो नहीं आते हो? कोई सेवाकेन्द्र पर विघ्न आता है तो विघ्न में घबराते हो? समझो बड़े ते बड़ा विघ्न आ गया, कोई अच्छा अनन्य एन्टी हो जाता है और डिस्टर्ब करता है आपकी सेवा में, तो क्या करेंगे? क्या घबरायेंगे? एक होता है उसके प्रति कल्याण के भाव से तरस रखना वह दूसरी बात है लेकिन स्वयं की स्थिति नीचे-ऊपर हो या व्यर्थ संकल्प चले इसको कहते हैं हलचल में आना। तो संकल्प की सृष्टि भी नहीं रचें। यह संकल्प भी हिला न सकें! इसको कहते हैं अचल अडोल स्थिति। ऐसे भी नहीं कि अलबेले हो जाएं कि नथिंग न्यू। सेवा भी करें, उसके प्रति रहमदिल भी बनें लेकिन हलचल में नहीं आयें। तो न अलबेले, न फीलिंग में आने वाले। सदा ही किसी भी वातावरण में, वायुमण्डल में हो लेकिन अचल-अडोल रहो। कभी कोई निमित्त बने हुए राय देते हैं, उनमें कन्फ्यूज नहीं हो। ऐसे नहीं सोचो कि यह क्यों कहते हैं या यह कैसे होगा! क्योंकि जो निमित्त बने हुए हैं वह अनुभवी हो चुके हैं, और जो प्रैक्टिकल में चलने वाले हैं – कोई नये हैं, कोई थोड़े पुराने भी हैं लेकिन जिस समय जो बात उसके सामने आती है, तो बात के कारण इतनी क्लीयर बुद्धि आदि मध्य अन्त को नहीं जान सकती है। सिर्फ वर्तमान को जान सकती है। इसलिए सिर्फ वर्तमान देख करके, आदि मध्य उस समय क्लीयर नहीं होता तो कन्फ्यूज हो जाते हैं। कभी भी कोई डायरेक्शन अगर नहीं भी स्पष्ट हो तो कन्फ्यूज कभी नहीं होना। धैर्य से कहो इसको समझने की कोशिश करेंगे। थोड़ा टाइम दो उसको। उसी समय कन्फ्यूज होकर यह नहीं, वह नहीं, ऐसे नहीं करो। क्योंकि डबल विदेशी फ्री माइन्ड ज्यादा हैं इसलिए ना भी फ्री माइन्ड से कह देते हैं। इसलिए थोड़ा-सा जो भी बात मिलती है – उसको गम्भीरता से पहले सोचो, उसमें कोई न कोई रहस्य अवश्य छिपा होता है। उससे पूछ सकते हो इसका रहस्य क्या है? इससे क्या फायदा होगा? हमें और स्पष्ट समझाओ। यह कह सकते हो। लेकिन कभी भी डायरेकशन को रिफ्यूज़ नहीं करो। रिफ्यूज़ करते हो इसलिए कन्फ्यूज़ होते हो। यह थोड़ा विशेष अटेन्शन डबल विदेशी बच्चों को देते हैं। नहीं तो क्या होगा जैसे आप निमित्त बने हुए, बहनों के डायरेक्शन को जानने का प्रयत्न नहीं करेंगे और हलचल में आ जायेंगे तो आपको देखकर जिन्हों के निमित्त आप बने हो, उन्हों में यह संस्कार भर जायेंगे। फिर कभी कोई रुसेगा, कभी कोई रुसेगा। फिर सेन्टर पर यही खेल चलेगा। समझा।
दूसरी बात:- कभी भी अपने को अभी हम दूसरे धर्म के यहाँ आये हैं, यह टीचर्स में संकल्प नहीं होना चाहिए। यह नयों की बातें हैं। आप तो पुराने हो तभी निमित्त भी बने हो। हम दूसरे धर्म के इस धर्म में आये हैं, नहीं। इसी धर्म के थे और इसी धर्म में आये हैं। हम और यह अलग हैं, यह संकल्प स्वप्न में भी नहीं। भारत अलग है, विदेश अलग है नहीं। यह संकल्प एकमत को दो मत कर देगा। फिर हम और तुम हो गया ना। जहाँ हम और तुम हो गया वहाँ क्या होगा? खिटपिट होगी ना। इसलिए एक हैं। डबल विदेशी, बापदादा निशानी के लिए कहते हैं, बाकी ऐसे नहीं अलग हो। ऐसे नहीं समझना कि हम डबल विदेशी हैं तो अलग हैं, देश वाले अलग हैं। नहीं। जब ब्राह्मण जन्म हुआ तो ब्राह्मण जन्म से ही कौन हुए? ब्राह्मण एक धर्म के हैं, विदेशी देशी उसमें नहीं होते। हम सब एक ब्राह्मण धर्म के हैं, ब्राह्मण जीवन के हैं और एक ही बाप की सेवा के निमित्त हैं। कभी यह भाषा भी यूज़ नहीं करना कि हमारा विचार ऐसे हैं, आप इन्डिया वालों का ऐसे है, यह भाषा रांग है। गलती से भी ऐसे शब्द नहीं बोलना। विचार भिन्न-भिन्न तो भारत वालों का भी हो सकता है, यह दूसरी बात है। बाकी भारत और विदेश, यह फर्क कभी नहीं करना। हम विदेशियों का ऐसे ही चलता है, यह नहीं। हमारे स्वभाव ऐसे हैं, हमारी नेचर ऐसे है, यह नहीं। ऐसे कभी भी नहीं सोचना। बाप एक है और एक के ही सब हैं। यह निमित्त टीचर्स जैसी भाषा बोलेंगे वैसे और भी बोलेंगे। इसलिए बहुत युक्तियुक्त एक-एक शब्द बोलना। योगयुक्त और युक्तियुक्त दोनों ही साथ-साथ चलें। कोई योग में बहुत आगे जाने का करते लेकिन कर्म में युक्तियुक्त नहीं होते। दोनों का बैलेन्स हो। योगयुक्त की निशानी है ही युक्तियुक्त।
डबल विदेशी बच्चों के प्रश्न, बापदादा के उत्तर
प्रश्न:- इस वर्ष की सेवा के लिए नया प्लैन क्या है?
उत्तर:- समय को समीप लाने के लिए एक तो वृत्ति से वायुमण्डल को शक्तिशाली बनाने की सेवा करनी है। इसके लिए स्व की वृत्ति पर विशेष अटेन्शन देना है और दूसरा औरों की सेवा करने के लिए विशेष ऐसी आत्मायें निकालो जो समझें कि सचमुच शान्ति की विधि यहाँ से ही मिल सकती है। यह आवाज इस वर्ष में हो कि अगर शान्ति होगी तो इसी विधि से होगी। एक ही विधि है यह, जो विश्व को आवश्यकता है – वह इस विधि के सिवाए नहीं है। यह वातावरण चारों ओर इकट्ठा बनना चाहिए। भारत में चाहे विदेश में शान्ति की झलक प्रसिद्ध रुप में होनी चाहिए। चारों ओर से यह सभी को टच हो, आकर्षण हो कि यथार्थ स्थान है तो यही है। जैसे गवर्मेन्ट की तरफ से यू.एन.ओ. बनी हुई है तो जब भी कुछ होता है तो सभी का अटेन्शन उसी तरफ जाता है। ऐसे जब भी कोई अशान्ति का वातावरण हो तो सबका अटेन्शन शान्ति के सन्देश देने वाली यह आत्मायें हैं, इस तरफ जावे। अनुभव करें कि अशान्ति से बचने का यही एक स्थान है, जहाँ पनाह ली जा सकती है। इस वर्ष यह वायुमण्डल बनना चाहिए। ज्ञान अच्छा है, जीवन अच्छी है, राजयोग अच्छा है, यह तो सब कहते हैं लेकिन असली प्राप्ति यहाँ से ही होनी है, विश्व का कल्याण इसी स्थान और विधि से होना है, यह आवाज बुलन्द हो। समझा, इसके लिए विशेष शान्ति की एडवरटाइज करो, किसको शान्ति चाहिए तो यहाँ से विधि मिल सकती है। शान्ति सप्ताह रखो, शान्ति के समागम रखो, शान्ति अनुभूति के शिविर रखो, ऐसे शान्ति का वायब्रेशन फैलाओ।
सर्विस में जैसे स्टूडेन्ट बनाते हो वह तो बहुत अच्छा है, वह तो जरुर वृद्धि को प्राप्त करना ही है। लेकिन अभी हर वैरायटी के लोग जैसे काले गोरे भिन्न-भिन्न धर्म की आत्मायें हैं, वैसे भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले हर स्थान पर होने चाहिए। कोई कहाँ भी जावे तो हर आक्यूपेशन वाला अपनी रीति से उन्हें अनुभव सुनाये। जैसे यहाँ वर्कशॉप रखाते हैं – कभी डॉक्टर की, कभी वकील की तो भिन्न-भिन्न आक्यूपेशन वाले एक ही शान्ति की बात अपने आक्यूपेशन के आधार से बोलते हैं तो अच्छा लगता है। ऐसे कोई भी सेन्टर पर आवें तो हर आक्यूपेशन वाले अपना शान्ति का अनुभव सुनायें, इसका प्रभाव पड़ता है। सभी आक्यूपेशन वालों के लिए यह सहज विधि है, यह अनुभव हो। जैसे कुछ समय के अन्दर यह एडवरटाइज अच्छी हो गई है कि सब धर्म वालों के लिए यही एक विधि है, यह आवाज हो। इसी रीति से अभी आवाज फैलाओ। जो सम्पर्क में आते हैं या स्टूडेन्ट हैं उन्हों तक तो यह आवाज होता है लेकिन अभी थोड़ा और चारों ओर फैले इसका अभी और अटेन्शन। ब्राह्मण भी अभी बहुत थोड़े बने हैं। नम्बरवार ब्राह्मण बनने की जो यह गति है, उसको फास्ट नहीं कहेंगे ना। अभी तो कम से कम नौ लाख तो चाहिए। कम से कम सतयुग की आदि में नौ लाख के ऊपर तो राज्य करेंगे ना! उसमें प्रजा भी होगी लेकिन सम्पर्क में अच्छे आयेंगे तब तो प्रजा बनेंगे। तो इस हिसाब से गति कैसी होनी चाहिए! अभी तो संख्या बहुत कम है। अभी टोटल विदेश की संख्या कितनी होगी? कम से कम विदेश की संख्या दो-तीन लाख तो होनी चाहिए। मेहनत तो अच्छी कर रहे हो, ऐसी कोई बात नहीं है लेकिन थोड़ी स्पीड और तेज होनी चाहिए। स्पीड तेज होगी – जनरल वातावरण से। अच्छा।
प्रश्न:- ऐसा पावरफुल वातावरण बनाने की युक्ति क्या है?
उत्तर:- स्वयं पावरफुल बनो। उसके लिए अमृतवेले से लेकर हर कर्म में अपनी स्टेज शक्तिशाली है या नहीं, उसकी चेकिंग के ऊपर और थोड़ा विशेष अटेन्शन दो। दूसरों की सेवा में या सेवा के प्लैन्स में बिजी होने से अपनी स्थिति में कहाँ-कहाँ हल्कापन आ जाता है। इसलिए यह वातावरण शक्तिशाली नहीं होता। सेवा होती है लेकिन वातावरण शक्तिशाली नहीं होता है। इसके लिए अपने ऊपर विशेष अटेन्शन रखना पड़े। कर्म और योग, कर्म के साथ शक्तिशाली स्टेज, इस बैलेन्स की थोड़ी कमी है। सिर्फ सेवा में बिजी होने के कारण स्व की स्थिति शक्तिशाली नहीं रहती। जितना समय सेवा में देते हो, जितना तन-मन-धन सेवा में लगाते हो, उसी प्रमाण एक का लाख गुणा जो मिलना चाहिए वह नहीं मिलता है। इसका कारण है, कर्म और योग का बैलेन्स नहीं है। जैसे सेवा के प्लैन बनाते हो, पर्चे छपाते हो, टी.वी., रेडियो में करना है। जैसे वह बाहर के साधन बनाते हो वैसे पहले अपनी मन्सा शक्तिशाली बनाने का साधन विशेष होना चाहिए। यह अटेन्शन कम है। फिर कह देते हो, बिजी रहे इसलिए थोड़ा-सा मिस हो गया। फिर डबल फायदा नहीं हो सकता।
प्रश्न:- कई ब्राह्मण आत्माओं पर भी ईविल सोल्स का प्रभाव पड़ जाता है, उस समय क्या करना चाहिए?
उत्तर:- इसके लिए सेवाकेन्द्र का वातावरण बहुत शक्तिशाली सदा रहना चाहिए। और साथ अपना भी वातावरण शक्तिशाली रहे। फिर यह ईविल प्रिट कुछ नहीं कर सकती है। यह मन को पकड़ती हैं। मन की शक्ति कमजोर होने के कारण ही इसका प्रभाव पड़ जाता है। तो शुरु से पहले ही उसके प्रति ऐसे योगयुक्त आत्मायें विशेष योग भट्ठी रख करके उसको शक्ति दें और वह जो योगयुक्त ग्रुप है वह समझे कि हमको यह विशेष कार्य करना है, जैसे और प्रोग्राम होते हैं वैसे यह प्रोग्राम इतना अटेन्शन से करें तो फिर शुरु में उस आत्मा को ताकत मिलने से बच सकती हैं। भले वह आत्मा परवश होने के कारण योग में नहीं भी बैठ सके, क्योंकि उसके ऊपर दूसरे का प्रभाव होता है, तो वह भले ही न बैठे लेकिन आप अपना कार्य निश्चय बुद्धि हो करके करते रहो। तो धीरे-धीरे उसकी चंचलता शान्त होती जायेगी। वइ ईविल आत्मा पहले आप लोगों के ऊपर भी वार करने की कोशिश करेगी लेकिन आप समझो यह कार्य करना ही है, डरो नहीं तो धीरे-धीरे उसका प्रभाव हट जायेगा।
प्रश्न:- सेवाकेन्द्र पर अगर कोई प्रवेशता वाली आत्मायें ज्ञान सुनने के लिए आती हैं तो क्या करना चाहिए?
उत्तर:- अगर ज्ञान सुनने से उसमें थोड़ा-सा भी अन्तर आता है या सेकेण्ड के लिए भी अनुभव करती है तो उसको उल्लास में लाना चाहिए। कई बार आत्मायें थोड़ा-सा ठिकाना ना मिलने के कारण भी अपके पास आती हैं, बदलने के लिए आया है या वैसे ही पागलपन में जहाँ रास्ता मिला, आ गया है यह परखना चाहिए। क्योंकि कई बार ऐसे पागल होते हैं जो जहाँ भी देखेंगे दरवाजा खुला है वहाँ जायेंगे। होश में नहीं होते हैं। तो ऐसे भी कई आयेंगे लेकिन उसको पहले परखना है। नहीं तो उसमें टाइम वेस्ट हो जायेगा। बाकी कोई अच्छे लक्ष्य से आया है, परवश है तो उसको शक्ति देना अपना काम है। लेकिन ऐसी आत्माओं को कभी भी अकेले में अटेण्ड नहीं करना। कुमारी कोई ऐसी आत्मा को अकेले में अटेण्ड ना करे क्योंकि कुमारी को अकेला देख पागल का पागलपन और निकलता है। इसलिए ऐसी आत्मायें अगर समझते हो योग्य हैं तो उन्हों को ऐसा टाइम दो जिस टाइम पर दो-तीन और हों या कोई जिम्मेवार, कोई बुजुर्ग ऐसा हो तो उस समय उसको बुलाकर बिठाना चाहिए। क्योंकि जमाना बहुत गन्दा है और बहुत बुरे संकल्प वाले लोग हैं। इसलिए थोड़ा अटेन्शन रखना भी जरूरी है। इसमें बहुत क्लियर बुद्धि चाहिए। क्लियर बुद्धि होगी तो हरेक के वायब्रेशन से कैच कर सकेंगे कि यह किस एम (लक्ष्य) से आया है।
प्रश्न:- आजकल किसी-किसी स्थान पर चोरी और भय का वातावरण बहुत है, उनसे कैसे बचें?
उत्तर:- इसमें योग की शक्ति बहुत चाहिए। मान लो कोई आपको डराने के ख्याल से आता है तो उस समय योग की शक्ति दो। अगर थोड़ा कुछ बोलेंगे तो नुकसान हो जायेगा। इसलिए ऐसे समय पर शान्ति की शक्ति दो। उस समय पर अगर थोड़ा भी कुछ कहा तो उन्हों में जैसे अग्नि में तेल डाला। आप ऐसे रीति से रहो जैसे बेपरवाह हैं, हमको कोई परवाह नहीं है। जो करता है उसको साक्षी होकर अन्दर शान्ति की शक्ति दो तो फिर उसके हाथ नहीं चलेंगे। वह समझेंगे इनको तो कोई परवाह नहीं है। नहीं तो डराते हैं, डर गये या हलचल में आये तो वह और ही हलचल में लाते हैं। भय भी उन्हों को हिम्मत दिलाता है इसलिए भय में नहीं आना चाहिए। ऐसे टाइम पर साक्षीदृष्टा की स्थिति यूज करनी है। अभ्यास चाहिए ऐसे टाइम।
प्रश्न:- ब्लैसिंग जो बापदादा द्वारा मिलती है, उनका गलत प्रयोग क्या है?
उत्तर:- कभी-कभी जैसे बापदादा बच्चों को सर्विसएबल या अनन्य कहते हैं या कोई विशेष टाइटल देते हैं तो उस टाइटल को मिसयूज कर लेते हैं, समझते हैं मैं तो ऐसा बन ही गया। मैं तो हूँ ही ऐसा। ऐसा समझकर अपना आगे का पुरुषार्थ छोड़ देते हैं, इसको कहते हैं – मिसयूज अर्थात् गलत प्रयोग। क्योंकि जो बापदादा वरदान देते हैं, उस वरदान को स्वयं के प्रति और सेवा के प्रति लगाना यह है सही रीति से यूज करना और अलबेला बन जाना यह है मिसयूज करना।
प्रश्न:- बाइबल में दिखाते हैं अन्तिम समय में एण्टी क्राइस्ट का रूप होगा, इसका रहस्य क्या है?
उत्तर:- एण्टी क्राइस्ट का अर्थ है उस धर्म के प्रभाव को कम करने वाले। आजकल देखो उसी क्रिश्चियन धर्म में क्रिश्चियन धर्म की वैल्यु को कम समझते जा रहे हैं, उसी धर्म वाले अपने धर्म को इतना शक्तिशाली नहीं समझते और दूसरों में शक्ति ज्यादा अनुभव करते हैं, यही एण्टी क्राइस्ट हो गये। जैसे आजकल के कई पादरी ब्रह्मचर्य को महत्व नहीं देते और उन्हों को गृहस्थी बनाने की प्रेरणा देने शुरु कर दी है, तो यह उसी धर्म वाले जैसे एण्टी क्राइस्ट हुए।
मुख्य अध्याय संरचना
1. हम जन्म नहीं लेते, ‘अवतार’ बनकर आते हैं
-
परमात्मा कहते हैं — “ब्राह्मण जन्म साधारण नहीं, अवतरण जन्म है।”
-
जैसे भगवान अवतार लेकर धरती पर आते हैं, वैसे ही आप आत्माएँ भी ऊँची स्थिति (Paramdham की शांति) से देह का आधार लेकर संसार सुधारने आती हैं।
-
उदाहरण: जैसे कोई राजदूत (Ambassador) अपने देश से दूसरे देश में जाता है लेकिन अपनी पहचान नहीं भूलता। वैसे ही हम आत्माएँ भी ‘ऊपर’ की स्थिति से आते हैं — पर देह में रहकर भी देहाभिमान नहीं लेते।
2. देह ‘मेरी’ नहीं, सेवा के लिए बाबा की लोन पर मिली है
-
मुरली: “यह देह अब आपकी नहीं, बाप की है। सेवा के लिए लोन में मिली है।”
-
उदाहरण: जैसे बैंक से किसी कार को किराए पर लेते हैं। वह आपकी नहीं, पर उपयोग आपकी जिम्मेदारी में है। उसे तोड़ना-फोड़ना अपराध है।
-
उसी प्रकार देह, समय, धन, संस्कार — सब बाबा की अमानत हैं।
3. हद का ‘मैं’ विनाशक है, बेहद का ‘मैं’ निर्माता है
| हद का मैं-पन (Ego) | बेहद का मैं-पन (Spiritual Self) |
|---|---|
| मैं ऐसा हूँ, मेरा स्वभाव | “मैं बाप का हूँ” |
| देह, संस्कार, आदत से जुड़ा | आत्मा-विरक्त, फरिश्ता जैसा |
| विघ्न लाता है | विघ्न-विनाशक बनाता है |
4. अवतार का मुख्य कार्य – संदेश देना और वापस लौटना
-
“अवतार आता है, संदेश देता है और लौट जाता है। वह व्यर्थ कर्म खाता नहीं बनाता।”
-
हम भी Sangamyugi आत्माएँ सिर्फ 5000 वर्ष के चक्र में थोड़े समय के लिए आते हैं — सेवा करें और फिर लौट जाएँ।
5. कर्मातीत स्थिति – उड़ता पंछी बनो
-
देह, आदतें, पुराना स्वभाव — ये सब ‘डाली’ हैं।
-
प्रश्न: क्या हम इन डालियों से उड़ सकते हैं?
-
“कर्म से नहीं, कर्म के बंधन से परे रहना — यही कर्मातीत अवस्था है।”
उदाहरण:
अगर मोबाइल फोन में लगातार नोटिफिकेशन आते रहें और हम ध्यान कहीं और रखें — तो हम बाँधे हुए हैं। लेकिन अगर फोन है पर मन उससे detached है — तब हम मालिक हैं।
6. सच्चा सरेन्डर क्या है?
-
सरेण्डर सिर्फ आश्रम छोड़ना नहीं — भावना बदलना है।
-
“लौकिक जॉब नहीं — यह भी सेवा का तरीका है।”
-
तन-मन-धन जो कुछ भी है — सेवा के लिए है। यही “Double Surrender” है।
7. ब्राह्मण जन्म = विश्व कल्याणकारी अवतरण
-
आप साधारण मनुष्य नहीं — World Benefactor Souls हैं।
-
परमात्मा की “Message Carriers” बनकर आये हो।
-
यह स्मृति ही उपराम (Detached) और अपरम्पार प्राप्ति (Infinite Attainments) का अनुभव देती है।
-
1. हम जन्म नहीं लेते, ‘अवतार’ बनकर आते हैं
प्रश्न: क्या हम आत्माएँ साधारण जन्म लेती हैं?
उत्तर: नहीं। परमात्मा कहते हैं – “ब्राह्मण जन्म साधारण नहीं, अवतरण जन्म है।” जैसे भगवान धरती पर अवतार लेते हैं, वैसे ही हम आत्माएँ भी परमधाम की शांति-मय अवस्था से देह रूपी उपकरण लेकर इस संसार को सुधारने आते हैं।उदाहरण: जैसे एक राज्यदूत (Ambassador) अपना देश छोड़ कर दूसरे देश जाता है, लेकिन अपनी असली पहचान नहीं भूलता। उसी प्रकार हम भी ‘ऊपर’ की शांति अवस्था से आते हैं, पर देह में रहकर भी देहाभिमान नहीं लेते।
2. देह ‘मेरी’ नहीं, सेवा के लिए लोन पर मिली है
प्रश्न: देह को ‘मेरी’ मानना सही है?
उत्तर: नहीं। मुरली में कहा गया — “यह देह आपकी नहीं, बाबा की है। सेवा के लिए लोन में मिली है।” यह तन, समय, धन, संस्कार — सब परमात्मा की अमानत हैं।उदाहरण: जैसे बैंक से कार किराए पर ली जाए — वह आपकी नहीं होती, पर संभालना आपकी जिम्मेदारी होती है। उसी प्रकार देह को तोड़ना, दुर्व्यवहार करना — ईश्वरीय अमानत के प्रति अपराध है।
3. हद का ‘मैं’ विनाशक, बेहद का ‘मैं’ निर्माता
तुलना हद का मैं-पन (Ego) बेहद का मैं-पन (Spiritual Identity) पहचान “मैं ऐसा हूँ…, मेरा स्वभाव” “मैं बाप का हूँ” आधार देह, संस्कार, आदतें आत्मा, विरक्ति, फरिश्ता भाव परिणाम विघ्न, दुख, टकराव विघ्न-विनाशक शक्ति, शांति प्रश्न: ‘मैं’ अहंकार कब विनाशक और कब निर्माता बनता है?
उत्तर: जब ‘मैं’ देह और संस्कार से जुड़ा हो तो विनाशक बन जाता है। लेकिन जब ‘मैं आत्मा हूँ, बाप का हूँ’ यह स्मृति हो — तो वही ‘मैं’ कर्म-योगी और निर्माता बन जाता है।
4. अवतार का मुख्य कार्य क्या है?
प्रश्न: अवतार धरती पर क्यों आता है?
उत्तर: अवतार आता है, संदेश देता है और कार्य पूर्ण कर परमधाम लौट जाता है। वह व्यर्थ कर्मों में फँसता नहीं।प्रश्न: क्या हम भी ऐसा ही करते हैं?
उत्तर: हाँ। संगमयुग की आत्माएँ भी 5000 वर्ष के चक्र में थोड़े समय के लिए आती हैं — ईश्वरीय संदेश फैलाती हैं और फिर परमधाम लौट जाती हैं।
5. कर्मातीत स्थिति – उड़ता पंछी बनो
प्रश्न: क्या देह, आदतों और पुराने संस्कारों की ‘डाली’ छोड़कर उड़ना संभव है?
उत्तर: हाँ। कर्मातीत स्थिति का अर्थ है – कर्म करना, पर कर्म के बंधन में न फँसना।उदाहरण: जैसे फोन में नोटिफिकेशन हों लेकिन मन उससे जुड़ा ना हो — तो हम मालिक हैं, बंधन में नहीं। देह है, लेकिन देहाभिमान नहीं — यही उड़ते पंछी की स्थिति है।
6. सच्चा सरेन्डर क्या है?
प्रश्न: क्या सरेन्डर का अर्थ केवल घर-परिवार छोड़कर आश्रम में जाना है?
उत्तर: नहीं। सच्चा सरेन्डर “भावना” का परिवर्तन है — तन, मन, धन सबको परमात्मा की सेवा में समर्पित करना।Double Surrender का अर्थ:
-
स्थान बदलना नहीं,
-
अभिमान बदलना और उद्देश्य बदलना है।
-
नौकरी हो या गृहस्थ जीवन — अगर भाव सेवा का है तो वही सच्चा सरेन्डर है।
7. ब्राह्मण जन्म = विश्व कल्याणकारी अवतरण
प्रश्न: ब्राह्मण आत्मा साधारण मनुष्य है या कुछ खास?
उत्तर: ब्राह्मण आत्माएँ साधारण नहीं — World Benefactor Souls हैं। परमात्मा की “Message Carriers” बनकर आई हैं।प्रश्न: यह स्मृति क्या देती है?
उत्तर: यह याद दिलाती है कि — “मैं अवतारी आत्मा हूँ, विश्व कल्याण के लिए आई हूँ।” यही स्मृति हमें उपराम (Detached) और अपरम्पार प्राप्तियों (Infinite Attainments) का अनुभव कराती है। -
- डिस्क्लेमर:Disclaimer: यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान की दिव्य मुरली पर आधारित आध्यात्मिक व्याख्या है। इसका उद्देश्य केवल आत्मिक जागृति और ईश्वरीय ज्ञान का प्रचार है। यह किसी धर्म, व्यक्ति या संस्था की आलोचना के लिए नहीं है। सभी मुरली बिंदु ‘ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय, माउंट आबू’ की आधिकारिक शिक्षाओं से लिए गए हैं।
- मुख्य अध्याय संरचना, अवतार जन्म, ब्राह्मण जन्म, आत्मा का अवतरण, परमधाम से आत्मा, देह बाबा की अमानत, सेवा का जीवन, देह लोन पर मिली है, देहाभिमान से मुक्ति, आत्मिक स्थिति, बेहद का मैं, आध्यात्मिक स्वयं, हद का अहंकार, बेहद का अहंकार, मैं बाप का हूँ, अवतार का कार्य, संदेश देना और लौटना, संगमयुगी आत्माएँ, कर्मातीत स्थिति, उड़ता पंछी अवस्था, कर्म बंधन से मुक्ति, सच्चा सरेन्डर, डबल सरेन्डर, तन मन धन सेवा, ब्राह्मण आत्मा, विश्व कल्याणकारी आत्मा, वर्ल्ड बेनीफेक्टर सोल्स, परमात्म संदेश कैरियर्स, उपराम अवस्था, Detached Stage, Infinite Attainments, Murli Points, Brahma Kumaris Gyan, BK Shiv Baba, Rajyog Meditation, Spiritual Awakening, Atma Aur Parmatma, Main Chapter Structure, Avatar Birth, Brahmin Birth, Incarnation of the Soul, Soul from the Supreme Abode, Body is Baba’s Trust, Life of Service, Body is on Loan, Liberation from Body Consciousness, Soullike Stage, Unlimited I, Spiritual Self, Limited Ego, Unlimited Ego, I Am the Father’s, Work of the Incarnation, Giving the Message and Returning, Confluence Age Souls, Karmateet Stage, Flying Bird Stage, Liberation from the Bondage of Karma, True Surrender, Double Surrender, Body, Mind, Wealth, Service, Brahmin Soul, World Beneficial Souls, God’s Message Carriers, Uparam Stage, Detached Stage, Infinite Attainments, Murli Points, Brahma Kumaris Gyan, BK Shiv Baba, Rajyog Meditation, Spiritual Awakening, Atma Aur Parmatma,

