(12)”द्वापर युग में खोज शुरू होती है सतयुग में कोई क्यों नहीं खोदता
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
रावण राज्य बनाम राम राज्य – द्वापर युग में खोज की शुरुआत | शांति भाईजी की ज्ञानवाणी
🎙️ आज का विषय: हम रावण राज्य बनाम राम राज्य कर रहे हैं
1. द्वापर युग में खोज की शुरुआत
आज हम एक गहरे विषय पर चिंतन करेंगे — रावण राज्य बनाम राम राज्य का अंतर, और खोज की शुरुआत का समय।
सवाल है — खोज कब शुरू होती है?
क्या सतयुग में खोज होती है? नहीं।
खोज की शुरुआत द्वापर युग में होती है।
क्यों? क्योंकि सतयुग में सब कुछ प्राप्त है, आत्मा पूर्ण है, संतुष्ट है।
लेकिन द्वापर में धीरे-धीरे पवित्रता कम होती है, आत्मा कमजोर होती है, और तब शुरू होती है — खोज की प्रक्रिया।
2. सतयुग में कोई खोज क्यों नहीं करता?
सतयुग – राम राज्य में न कोई प्रश्न होता है, न कोई कमी।
हर आत्मा स्वयं को जानती है, परमात्मा को जानती है, और अपने स्वरूप में स्थित होती है।
यहाँ “खोज” की ज़रूरत ही नहीं होती — क्योंकि कुछ भी खोया नहीं होता।
संपूर्णता की स्थिति में न सवाल होते हैं, न दुख।
जैसे सूर्य चमक रहा हो — तो दीपक जलाने की ज़रूरत नहीं होती।
सतयुग में आत्मा स्वयं प्रकाशमान होती है — अज्ञानता का कोई स्थान नहीं होता।
3. द्वापर युग में खोज की शुरुआत
लेकिन जैसे ही समय आगे बढ़ता है और आत्मा अपना स्मृति स्वभाव भूल जाती है —
द्वापर युग की शुरुआत होती है।
अब आत्मा को भीतर कुछ कमी लगने लगती है —
सुख की, शांति की, प्रेम की, सच्चाई की।
यहीं से प्रारंभ होता है —
-
मंदिर बनाना
-
शास्त्र लिखना
-
तीर्थ बनाना
-
स्मृतियों को खोजते रहना
मनुष्य अब भीतर के सुख को भूल गया है — और बाहर उसकी तलाश में भटक रहा है।
4. प्रयास और खोज का चक्र
सतयुग में “प्राप्ति” है — इसलिए कोई प्रयास नहीं करता।
जैसे ही “प्राप्ति” खो जाती है, आत्मा प्रयास करने लगती है।
और जब स्मृति खो जाती है, तब शुरू होती है — खोज।
प्रयास तब होता है जब कुछ चाहिए।
खोज तब होती है जब कुछ खो गया हो।
द्वापर और कलयुग का यही चक्र है —
हम प्रयास करते हैं, खोजते हैं, और फिर भी अधूरे रहते हैं।
5. आंतरिक और बाहरी खोज
आज का मानव बाहर दौड़ रहा है —
-
सुख के लिए
-
संबंधों में शांति के लिए
-
वस्तुओं में संतोष के लिए
लेकिन एक पुरानी कहानी हमें बहुत कुछ सिखाती है —
एक बुढ़िया बाहर सड़क पर सुई ढूंढ रही थी।
किसी ने पूछा, “अंदर गिरी है, तो बाहर क्यों खोज रही हो?”
बोली — “अंदर अंधेरा है, बाहर रोशनी है।”
आज की आत्मा की यही स्थिति है —
सच्चा सुख अंदर है, लेकिन अज्ञान के अंधकार में हम बाहर खोज रहे हैं।
निष्कर्ष: रावण राज्य बनाम राम राज्य
राम राज्य = आत्मा की स्मृति, आत्मिक संपन्नता, शांति
रावण राज्य = आत्मा की विस्मृति, बाहरी खोज, दुख और अशांति
सतयुग में आत्मा जानती है — मैं कौन हूँ, और परमात्मा कौन है।
द्वापर से कलयुग तक — आत्मा भूलती जाती है, और फिर खोजती रहती है।
अब समय आ गया है —
हम बाहर की दौड़ को विराम दें
आत्मा की स्मृति में लौटें
और परमात्मा के ज्ञान से फिर से “राम राज्य” की स्थापना करें।
1. द्वापर युग में खोज की शुरुआत
प्रश्न: रावण राज्य और राम राज्य के बीच अंतर क्या है, और द्वापर युग में खोज की शुरुआत क्यों होती है?
उत्तर: रावण राज्य में मनुष्य के भीतर अभाव और कमियाँ होती हैं, जिससे उसे बाहरी सुख की खोज होती है। राम राज्य में हर व्यक्ति संतुष्ट और पूर्ण होता है, इसलिए उसे किसी चीज़ की खोज नहीं होती। द्वापर युग में शुद्धता में कमी आने के कारण मनुष्य खोए हुए ज्ञान और सत्य की खोज करना शुरू कर देता है।
2. सतयुग में कोई खोज क्यों नहीं करता?
प्रश्न: सतयुग में खोज की आवश्यकता क्यों नहीं होती?
उत्तर: सतयुग में सभी चीजें पूर्ण और संतुष्ट होती हैं। इस समय, मनुष्य की इच्छाएँ स्वाभाविक रूप से पूरी होती हैं, और भूमि स्वयं समृद्ध होती है। इसलिए किसी चीज़ की खोज करने की कोई आवश्यकता नहीं होती। यहाँ “खोदना” शब्द का अर्थ गहराई से सोचने और समझने से है, न कि भौतिक वस्तु की खोज से।
3. द्वापर युग में खोज की शुरुआत
प्रश्न: द्वापर युग में खोज की प्रक्रिया क्यों शुरू होती है?
उत्तर: द्वापर युग में शुद्धता कम होने लगती है और कमी का आभास होने लगता है। इस अभाव के कारण मनुष्य खोए हुए ज्ञान और छिपे हुए खजाने की खोज करना शुरू करता है। साथ ही, दुख और अभाव की स्थिति उत्पन्न होती है, जिसके कारण लोग आंतरिक और बाहरी खोज की प्रक्रिया में लग जाते हैं।
4. प्रयास और खोज का चक्र
प्रश्न: प्रयास और खोज के चक्र का क्या अर्थ है, और ये शब्द क्यों महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: प्रयास तब होता है जब हमें किसी चीज़ की आवश्यकता होती है, जबकि खोज तब शुरू होती है जब कुछ खो जाता है। सतयुग में सब कुछ प्राप्त होता है, लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ता है और कमी का आभास होता है, द्वापर और कलयुग में खोजने की आवश्यकता पड़ती है। यह चक्र हमें यह सिखाता है कि बाहरी और आंतरिक दोनों प्रकार की खोज एक जरूरी प्रक्रिया है।
5. आंतरिक और बाहरी खोज
प्रश्न: बाहरी सुख की तलाश करने से क्या फायदा है, और आंतरिक सुख को कैसे प्राप्त किया जा सकता है?
उत्तर: मनुष्य बाहरी सुख की तलाश करता है, लेकिन असल में सच्चा सुख आत्मा की स्मृति में छिपा होता है। एक प्रसिद्ध कहानी में एक बुढ़िया सुई ढूंढ रही थी, जबकि वह सुई अंदर रखी थी, यह दर्शाता है कि हम भी सुख बाहर ढूंढते हैं, जबकि वह हमारे अंदर ही है। आंतरिक अंधेरा हमें बाहरी खोज की ओर ले जाता है, जबकि सच्चा सुख हमारे भीतर ही मौजूद है।
निष्कर्ष
प्रश्न: इस विषय से हमें क्या सिखने को मिलता है?
उत्तर: इस विषय से हम समझते हैं कि सतयुग में सब कुछ पूर्ण और संतुष्ट होता है, जबकि द्वापर और कलयुग में कमी की शुरुआत होती है, जो खोज और प्रयास की आवश्यकता को उत्पन्न करती है। इससे यह सिखने को मिलता है कि सच्चा सुख बाहर नहीं, बल्कि हमारे अंदर ही है।
YouTube Title:
“रावण राज्य बनाम राम राज्य | द्वापर युग में खोज की शुरुआत | सतयुग से द्वापर युग में बदलाव”
रावण राज्य, राम राज्य, द्वापर युग, खोज की शुरुआत, सतयुग, द्वापर युग में बदलाव, आंतरिक खोज, बाहरी खोज, सृष्टि चक्र, सुख की खोज, आत्मा की स्मृति, प्रयास और खोज, शुद्धता, सत्य की खोज, खोए हुए ज्ञान, सभ्यताओं की खोज, ब्रह्माकुमारीस, रावण और राम, युग परिवर्तन, सत्य का अनुसरण, ब्रह्मा बाबा, राम राज्य और रावण राज्य, आत्मा की शांति, सच्चा सुख, द्वापर से कलयुग, जीवन में संतुष्टि, खोज और प्रयास का चक्र, भक्तिरस, ज्ञान की खोज, ब्रह्मकुमारी ज्ञान,
Ravana Rajya, Ram Rajya, Dwapar Yuga, Beginning of Search, Satyug, Change in Dwapar Yuga, Inner Search, Outer Search, Creation Cycle, Search for Happiness, Memory of Soul, Effort and Search, Purity, Search for Truth, Lost Knowledge, Search for Civilizations, Brahma Kumaris, Ravana and Ram, Change of Era, Pursuit of Truth, Brahma Baba, Ram Rajya and Ravana Rajya, Peace of Soul, True Happiness, Dwapar to Kalyug, Satisfaction in Life, Cycle of Search and Effort, Bhakti Ras, Search for Knowledge, Brahma Kumari Gyan,