(13) Angelic Soul: Where no one is a stranger, no one is your own

(13)फरिश्ताआत्मा: जहाॅं न कोई पराया है, न कोई अपना

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फरिश्ता आत्मा की पहचान | पराया-अपना का भेद मिटाकर विश्व परिवार का संदेश | 


फरिश्ता आत्मा और पराया-अपना का भेद

परिचय

आज हम 13वें विषय पर चर्चा कर रहे हैं: फरिश्ता आत्मा जहां ना कोई पराया ना कोई अपना होता है।
इस अध्याय में हम सीखेंगे कि फरिश्ता आत्मा की दृष्टि कैसे होती है और यह दृष्टि कैसे पूरे विश्व में भाईचारे और शांति का आधार बनती है।

मुख्य प्रश्न:

  • फरिश्ता आत्मा क्या होती है?

  • पराया और अपना का भेद क्यों समाप्त होता है?

  • इस दृष्टि से विश्व कल्याण कैसे संभव है?


1. फरिश्ता आत्मा की पहचान

  • अव्यक्त मुरली 21 जनवरी 1970: फरिश्ता आत्मा की असली पहचान है कि उसके लिए कोई भी पराया नहीं।

  • सभी आत्माओं को भाई भाई की दृष्टि से देखती है।

  • साकार मुरली 3 मार्च 1969: जब आत्मा को आत्मा समझकर देखा जाता है, तब पराया-अपना का भेद मिट जाता है।

उदाहरण:
सूरज की रोशनी सब पर समान रूप से पड़ती है। वह यह नहीं देखता कि कौन अपना है और कौन पराया। उसी प्रकार, फरिश्ता आत्मा सभी आत्माओं को समान मानती है।


2. पराया-अपना का भेद और देह अभिमान

  • अव्यक्त मुरली 5 मई 1977: प्रायः पराया-अपना का भेद देह अभिमान से उत्पन्न होता है।

  • आत्म अभिमान में सब भाई-भाई बन जाते हैं।

उदाहरण:
बच्चे आपस में झगड़ते हैं: “यह मेरा खिलौना है, यह तेरा।”
मां कहती है: “सब घर का है।”
वैसे ही परमपिता परमात्मा हमें सिखाते हैं कि सब आत्माएं एक ही परिवार हैं।


3. परिशिष्टा दृष्टि और वैश्विक परिवार

  • साकार मुरली 10 अगस्त 1968: फरिश्ता आत्मा की दृष्टि में पूरा विश्व एक परिवार है।

  • अव्यक्त मुरली 14 फरवरी 1975: जब सभी आत्माओं को अपना समझो, तो शांति और सुख के वाइब्रेशन अपने आप फैलते हैं।

उदाहरण:
आसमान सभी को समान रूप से छाया देता है। अमीर-गरीब का कोई भेदभाव नहीं।
भाई-भाई समझने से प्यार और सहयोग स्वतः प्रवाहित होता है।


4. सतयुग का आधार

  • साकार मुरली 22 सितंबर 1969: सतयुग में कोई पराया-अपना नहीं होता।

  • सब आत्माएं समान सुखी और संपन्न होती हैं।

उदाहरण:
एक ही बगीचे में अलग-अलग फूल होते हैं, लेकिन सब मिलकर बगीचे की शोभा बढ़ाते हैं।
उसी तरह, अलग-अलग आत्माएं भी एक परिवार के रूप में मिलकर विश्व को सुंदर बनाती हैं।


निष्कर्ष

फरिश्ता आत्मा की असली पहचान:

  • कोई पराया-अपना का भेद नहीं करती।

  • सभी आत्माओं को एक ही परिवार समझकर पवित्र दृष्टि और अपनापन फैलाती है।

  • यही दृष्टि हमें सतयुग के निकट ले जाती है।

फरिश्ता आत्मा और पराया-अपना का भेद


Q1: फरिश्ता आत्मा क्या होती है?
A1: फरिश्ता आत्मा वह होती है जो सभी आत्माओं को भाई-भाई की दृष्टि से देखती है। उसके लिए कोई पराया या अपना नहीं होता। यह दृष्टि हमें शांति और समानता की ओर ले जाती है।
(अव्यक्त मुरली 21 जनवरी 1970)


Q2: पराया-अपना का भेद क्यों उत्पन्न होता है?
A2: पराया-अपना का भेद देह अभिमान और आत्मिक भेदभाव से उत्पन्न होता है। जब हम आत्मा को आत्मा समझते हैं तो यह भेद मिट जाता है।
(अव्यक्त मुरली 5 मई 1977, साकार मुरली 3 मार्च 1969)


Q3: फरिश्ता आत्मा सभी को कैसे समान मानती है?
A3: फरिश्ता आत्मा सभी आत्माओं को एक ही परिवार का हिस्सा मानती है, जैसे सूरज की रोशनी सब पर समान रूप से पड़ती है। इससे शांति, प्रेम और अपनापन फैलता है।
(अव्यक्त मुरली 14 फरवरी 1975)


Q4: सतयुग में पराया-अपना का भेद क्यों नहीं होता?
A4: सतयुग में सभी आत्माएं समान सुखी और संपन्न होती हैं। सब आत्माएं मिलकर एक परिवार का निर्माण करती हैं, जैसे बगीचे में अलग-अलग फूल मिलकर सुंदरता बढ़ाते हैं।
(साकार मुरली 22 सितंबर 1969)


Q5: फरिश्ता आत्मा की दृष्टि का वैश्विक महत्व क्या है?
A5: फरिश्ता आत्मा की दृष्टि से दुनिया एक परिवार बन जाती है। युद्ध, लालच और झगड़े समाप्त हो जाते हैं, और विश्व कल्याण की नींव मजबूत होती है।
(साकार मुरली 10 अगस्त 1968)

डिस्क्लेमर:
यह वीडियो ब्रह्मा कुमारीज़ द्वारा दी गई आध्यात्मिक शिक्षाओं और मुरली उद्धरणों पर आधारित है। इसमें प्रस्तुत विचार व्यक्तिगत आत्मिक विकास और सकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देने के लिए हैं। यह किसी भी धार्मिक या जातीय समूह का अपमान नहीं करता है।

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