(11) Birth of Yajna

(11) यज्ञ का जन्म

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“यज्ञ का जन्म: कैसे स्वयं भगवान ने दिव्य संस्था की स्थापना की | BK ज्ञान कथा”


परिचय: एक गहन लेकिन सरल वाणी से शुरुआत

“प्यारे बच्चे, अपने आप को एक आत्मा समझो और मुझे याद करो।”

इन चंद शब्दों से परमात्मा शिव ने इस यज्ञ की नींव रखी।
यह कोई साधारण उपदेश नहीं था – यह आत्मा के पुनर्जन्म की शुरुआत थी।
हर दिन परमात्मा स्वयं आकर अपने गूढ़ ज्ञान के नए पहलू प्रकट करते थे – सच्चाई, शुद्धता और आत्मिक प्रेम से भरे हुए।


परमपिता का दिव्य प्रेम – अनुभव का रूप

दुनिया कहती है, “भगवान प्रेम है” – लेकिन यहीं, इस यज्ञ में, उस प्रेम का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ।

जब शिव बाबा ने दादा लेखराज के माध्यम से प्रवेश किया,
तो उनके व्यवहार, दृष्टि और हर शब्द से इतना प्रेम बहा कि
हजारों आत्माएँ स्वयं को उनके ‘प्यारे बच्चे’ कहने लगीं।

यह प्रेम केवल एक भावना नहीं – यह परिवर्तन की शक्ति था।


प्रजापिता ब्रह्मा का जन्म – एक नया युग आरंभ

शिवबाबा ने दादा को प्रजापिता ब्रह्मा नाम दिया –
एक ऐसा माध्यम जिसके मुख से ईश्वर ने स्वयं ज्ञान बोला।

जो आत्माएँ इस ज्ञान को सुनती गईं, वे बनती गईं – ब्राह्मण।
चाहे वे माताएँ हों, किशोर हों या वृद्ध – वे सब एक ही परिवार में समा गए – ब्रह्माकुमार और ब्रह्माकुमारी


यज्ञ की रचना – एक दिव्य बलिदान की प्रक्रिया

यह संस्था केवल सत्संग नहीं थी – यह था एक यज्ञ
जिसमें आत्माएँ अपने अशुद्ध संस्कारों को ज्ञान की अग्नि में आहुति दे रही थीं।

यह यज्ञ वह केंद्र बना, जहाँ परिवर्तन केवल शब्दों से नहीं,
बल्कि आचरण, जीवनशैली और संकल्पों से होता गया।


यज्ञ का प्रारंभिक विकास – 1 से 400 तक

जो शुरुआत दादा ब्रह्मा से हुई, वह जल्द ही 400 ब्राह्मण आत्माओं तक फैल गई।

इन आत्माओं ने अपनी जीवनशैली बदल दी –
पवित्रता, सात्विकता, सेवा और ध्यान उनके जीवन के आधार बन गए।

इन्हीं ने भविष्य की देवता जाति की नींव रखी।


आज का यज्ञ – विश्वव्यापी ब्राह्मण परिवार

आज, वही यज्ञ 140 देशों में फैल चुका है।
20 लाख से अधिक आत्माएँ उस ईश्वर के दिव्य ज्ञान से आत्म-जागृति का अनुभव कर रही हैं।

यह कोई संगठन नहीं – यह विश्व परिवर्तन की योजना है।


दिव्य योजना का प्रकटीकरण – नई दुनिया की तैयारी

यज्ञ के माध्यम से एक नई दुनिया की तैयारी हो रही है –
स्वर्ण युग की, जहाँ शांति, पवित्रता और दिव्यता ही शासन करेंगे।

वो आत्माएँ जिन्होंने पहले इस सत्य को पहचाना,
वे इस परिवर्तन की आधारशिला बनीं।

प्रश्न 1:शिव बाबा की पहली और सबसे गहन शिक्षा क्या है, जिससे यज्ञ की शुरुआत हुई?
उत्तर:“प्यारे बच्चे, अपने आप को एक आत्मा समझो और मुझे याद करो।” — यही वह मूल शिक्षा थी जिससे भगवान ने दिव्यता की यात्रा शुरू करवाई।

प्रश्न 2:भगवान शिव का ‘प्रजापिता ब्रह्मा’ के रूप में प्रकट होना क्या दर्शाता है?
उत्तर:यह दर्शाता है कि परमात्मा शिव ने दादा लेखराज के माध्यम से एक नया आत्मिक परिवार रचा, जहाँ हर आत्मा को ईश्वर का बच्चा मानकर ‘ब्रह्मा कुमार’ या ‘ब्रह्माकुमारी’ कहा गया।

प्रश्न 3:‘यज्ञ’ का वास्तविक अर्थ क्या है ब्रह्माकुमारी ज्ञान में?
उत्तर:यह कोई बाहरी अग्नि यज्ञ नहीं है, बल्कि आत्माओं का अपने पुराने संस्कारों और विकारों का बलिदान कर परमात्मा के ज्ञान से शुद्ध बनने का आध्यात्मिक बलिदान है।

प्रश्न 4:यज्ञ की स्थापना किस उद्देश्य से की गई थी?
उत्तर:यज्ञ की स्थापना आत्माओं के शुद्धिकरण और एक नई दैवीय दुनिया की नींव रखने के लिए की गई थी — जहाँ आत्मा, शरीर, और प्रकृति सब पवित्र हों।

प्रश्न 5:प्रारंभिक ब्राह्मण आत्माएँ कौन थीं और उन्होंने क्या किया?
उत्तर:वे वे आत्माएँ थीं जिन्होंने शिव बाबा का ज्ञान सबसे पहले स्वीकारा और अपनी जीवनशैली, संस्कार और चेतना को परमात्मा की शिक्षा अनुसार परिवर्तित कर दिया।

प्रश्न 6:‘दिव्य प्रेम’ को ब्रह्माकुमारी यज्ञ में कैसे अनुभव किया गया?
उत्तर:जब शिव बाबा दादा के माध्यम से बोले, तो उनका प्रेम शब्दों से परे था — वह ऊर्जा के रूप में अनुभव किया गया, जिसने आत्माओं को भीतर तक छू लिया।

प्रश्न 7:आज यज्ञ का कितना विस्तार हो चुका है?
उत्तर:आज यह यज्ञ 140 से अधिक देशों में फैला है, जहाँ 20 लाख से अधिक ब्राह्मण आत्माएँ भगवान के ज्ञान व पवित्रता की सेवा कर रही हैं।

प्रश्न 8:यज्ञ के माध्यम से कौन-सी नई दुनिया बनाई जा रही है?
उत्तर:एक स्वर्णिम, शांतिमय और पवित्र दुनिया — जिसे ‘सत्ययुग’ या ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है, जहाँ दैवी आत्माएँ राज्य करेंगी।

प्रश्न 9:महाभारत युद्ध इस प्रक्रिया में क्या भूमिका निभाएगा?
उत्तर:यह युद्ध पुराने, पतित विश्व का अंत करेगा और यज्ञ की अग्नि के द्वारा पवित्र, दिव्य संसार की स्थापना का द्वार खोलेगा।

प्रश्न 10:इस यज्ञ से आज की आत्माएँ क्या सीख सकती हैं?
उत्तर:कि आत्मा स्वयं को जानकर, परमात्मा से योग लगाकर, अपने संस्कारों को शुद्ध कर सकती है और एक नई स्वर्णिम दुनिया के निर्माण में योगदान दे सकती है।

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