(13) “The hidden truth of purity and pollution – between Kaliyuga and Satyayuga

(13)”पवित्रता और प्रदूषण का छिपा हुआ सत्य-कलयुग और सतयुग के बीच का

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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रावण राज्य बनाम राम राज्य – पवित्रता और प्रदूषण के छिपे हुए सत्य
 आज का विषय: हम चर्चा करेंगे – रावण राज्य बनाम राम राज्य | कलयुग और सतयुग की तुलना में प्रदूषण और पवित्रता का राज़


 1. पवित्रता और प्रदूषण का छिपा हुआ सत्य

आज का यथार्थ यह है कि हम जिस भूमि पर रहते हैं, वह गंभीर अशुद्धता और प्रदूषण की चपेट में है।
पांचों तत्व — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — सब प्रदूषित हो चुके हैं।
जहाँ भी दृष्टि डालो —
 गंदगी,
 मैल,
 कचरा — सब जगह फैला है।

लेकिन यह बाहरी गंदगी किसकी देन है?
 मनुष्य के काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से उपजे कर्मों की देन।
 विशेषकर भोजन और उपभोग के स्तर पर हमारे कर्म ही प्रकृति को बिगाड़ने वाले बन चुके हैं।

यह सब रावण राज्य की निशानियाँ हैं — जहाँ अज्ञानता, अशुद्धता और दुख का साम्राज्य है।


 2. प्रदूषण में भोजन की भूमिका

हमने भोजन को केवल स्वाद और भूख मिटाने का माध्यम बना दिया है —
पर क्या कभी सोचा कि भोजन भी अशुद्धि का कारण बन सकता है?

जब हिंसा से प्राप्त भोजन हम खाते हैं, तो उसमें नकारात्मक ऊर्जा भर जाती है।
 पशुओं की हत्या,
 रक्त से सनी प्रक्रिया,
 और फिर वह भय का कंपन —
ये सब शरीर और मन को अशांत बनाते हैं।

 इस कारण न केवल मनुष्य का मन और बुद्धि दूषित होती है,
 बल्कि पर्यावरण भी विकृत होता है —
रासायनिक खेती, उर्वरक, कीटनाशक — यह सब मिलकर प्रदूषण की आग को और तेज करते हैं।


 3. प्रदूषण और अत्यधिक उपभोग

आज के युग में भोजन व्यापार बन चुका है।
स्वस्थ भोजन से ज़्यादा हम डिब्बाबंद, संरक्षित खाद्य पदार्थ पर निर्भर हो गए हैं।

  • ब्रेड में प्रिज़र्वेटिव,

  • दूध में पाउडर,

  • फलों में मोम,

  • और जूस में रसायन।

यह सब शरीर को धीरे-धीरे रोगी बना रहे हैं।

 साथ ही खाद्य अपव्यय भी चिंता का विषय बन गया है —
एक ओर लोग भूखे मरते हैं, और दूसरी ओर हम भोजन फेंकते जा रहे हैं।

यह है अत्यधिक उपभोग की मानसिकता, जो कलियुग — यानी रावण राज्य की देन है।


 4. सतयुग की शुद्धता और दिव्यता – राम राज्य की झलक

अब कल्पना कीजिए — सतयुग की भूमि, जिसे हम राम राज्य कहते हैं।

 यहाँ हर तत्व शुद्ध था
 जल पवित्र था
 वायु में शांति थी
 भोजन प्राकृतिक और सात्विक था
 आत्माएं पूर्ण और पवित्र थीं

यहाँ देवता समान मानव रहते थे —
न कोई प्रदूषण,
न कोई हिंसा,
न कोई अति-उपभोग।

राम राज्य वह युग था जब मनुष्य और प्रकृति दोनों पूर्ण सामंजस्य में रहते थे।
इस भूमि की वातावरणीय दिव्यता ही आत्मा को सुख और शांति का अनुभव कराती थी।


 निष्कर्ष: रावण राज्य से राम राज्य की ओर

हमने आज देखा —
 किस प्रकार रावण राज्य में प्रदूषण, अपवित्रता और भय का बोलबाला है।
 और किस प्रकार राम राज्य – सतयुग – एक दिव्य और स्वर्गीय स्थिति का प्रतीक है।

लेकिन प्रश्न है — क्या हम फिर से राम राज्य में जा सकते हैं?
उत्तर है — हाँ। लेकिन उसके लिए हमें अपने जीवन में पवित्रता को अपनाना होगा।

 जब हम अपने आहार, व्यवहार और विचारों को पवित्र बनाएंगे,
 जब हम प्रकृति और आत्मा दोनों का सम्मान करेंगे,
तब हम कलियुग से सतयुग की ओर बढ़ पाएंगे।


 समापन: राम राज्य की स्थापना के लिए

आइए, आज यह संकल्प लें —
हम आंतरिक और बाहरी पवित्रता अपनाएंगे
अत्यधिक उपभोग को त्यागेंगे
 और आत्म-स्मृति से जुड़कर परमात्मा के मार्गदर्शन में राम राज्य की स्थापना करेंगे।

पवित्रता ही राम राज्य का आधार है।
ओम शांति।

Questions and Answers:

  1. प्रश्न: आज के समय में प्रदूषण और अशुद्धता के क्या कारण हैं?
    उत्तर: आज के समय में प्रदूषण और अशुद्धता का मुख्य कारण मनुष्य के कार्य हैं, खासकर भोजन और उपभोग के कारण। सभी पांचों तत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश – प्रदूषित हो चुके हैं, और घरों में भी गंदगी, मैल और कचरा फैल चुका है।

  2. प्रश्न: प्रदूषण में भोजन की भूमिका क्या है?
    उत्तर: भोजन प्रदूषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर जब हम पशु को मारकर खाते हैं। इस हिंसा और अशुद्धता के कारण प्रदूषण का चक्र शुरू हो जाता है, जो न केवल प्रकृति को, बल्कि मानवता को भी नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, खाद्य उत्पादन के प्राकृतिक साधनों का विनाश भी प्रदूषण बढ़ाता है।

  3. प्रश्न: अत्यधिक उपभोग और खाद्य अपव्यय से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
    उत्तर: अत्यधिक उपभोग और खाद्य अपव्यय वैश्विक पर्यावरण संकटों को जन्म दे रहे हैं। हम जितने भी प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थ खाते हैं, जैसे ब्रेड, जूस, और दूध, वे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अलावा, खाद्य पदार्थों का व्यर्थ इस्तेमाल भी एक गंभीर समस्या बन गई है, जबकि कई जगहों पर खाद्य संकट हो रहा है।

  4. प्रश्न: सतयुग की शुद्धता और दिव्यता के बारे में हमें क्या जानने को मिलता है?
    उत्तर: सतयुग वह समय था जब सभी तत्व अपनी प्राचीन अवस्था में थे और दिव्य प्राणी इस भूमि पर निवास करते थे। वहां प्रदूषण या अशुद्धता का नामोनिशान नहीं था। राम राज्य, यानी सतयुग, एक शुद्ध और दिव्य भूमि थी, जहां शांति और सुख का वास था और कोई भी गंदगी या प्रदूषण मौजूद नहीं था।

  5. प्रश्न: हम आज की प्रदूषित दुनिया से कैसे छुटकारा पा सकते हैं?
    उत्तर: हमें अपने जीवन में पवित्रता और सतयुग के सिद्धांतों को अपनाना होगा। अगर हम राम राज्य की ओर लौटना चाहते हैं, तो हमें प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए पवित्रता के मार्ग पर चलना होगा। यह मार्ग हमारी शांति और जीवन में दिव्यता को बढ़ावा देगा।

  6. प्रश्न: प्रदूषण और अशुद्धता के बावजूद हम राम राज्य की स्थापना में कैसे योगदान दे सकते हैं?
    उत्तर: राम राज्य की स्थापना के लिए हमें अपनी जीवनशैली को सुधारना होगा और शुद्धता के रास्ते पर चलना होगा। यदि हम हर रोज़ अपनी आदतों में सुधार लाएंगे, जैसे अहिंसा, शुद्ध भोजन और प्रदूषण कम करना, तो हम राम राज्य की स्थापना में योगदान दे सकते हैं।

  7. प्रश्न: प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए हमें कौन सी क्रियाएं करनी चाहिए?
    उत्तर: प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए हमें शुद्धता के मार्ग पर चलना होगा। हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, जैसे कि कचरा कम करना, जल और वायु के संरक्षण की दिशा में कदम उठाना, और अपने आहार में शुद्धता बनाए रखना। साथ ही, हमें प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए।


Conclusion:
हमने देखा कि इस नश्वर भूमि में प्रदूषण और अशुद्धता कितनी बढ़ चुकी है, लेकिन सतयुग की दिव्य और शुद्ध भूमि का यह स्वरूप हमें याद दिलाता है कि कैसे हम राम राज्य की ओर वापस लौट सकते हैं। हमें इस प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए अपने जीवन में पवित्रता और सतयुग के सिद्धांतों को अपनाना होगा।

Closing:
तो, राम राज्य की स्थापना के लिए हम सब को पवित्रता के मार्ग पर चलना होगा। आशा है, आज की यह चर्चा आपको जागरूक करेगी और आप अपने जीवन में शुद्धता को बढ़ावा देंगे। ओम शांति!

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