(13)”पवित्रता और प्रदूषण का छिपा हुआ सत्य-कलयुग और सतयुग के बीच का
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

रावण राज्य बनाम राम राज्य – पवित्रता और प्रदूषण के छिपे हुए सत्य आज का यथार्थ यह है कि हम जिस भूमि पर रहते हैं, वह गंभीर अशुद्धता और प्रदूषण की चपेट में है। लेकिन यह बाहरी गंदगी किसकी देन है? यह सब रावण राज्य की निशानियाँ हैं — जहाँ अज्ञानता, अशुद्धता और दुख का साम्राज्य है। हमने भोजन को केवल स्वाद और भूख मिटाने का माध्यम बना दिया है — जब हिंसा से प्राप्त भोजन हम खाते हैं, तो उसमें नकारात्मक ऊर्जा भर जाती है। इस कारण न केवल मनुष्य का मन और बुद्धि दूषित होती है, आज के युग में भोजन व्यापार बन चुका है। ब्रेड में प्रिज़र्वेटिव, दूध में पाउडर, फलों में मोम, और जूस में रसायन। यह सब शरीर को धीरे-धीरे रोगी बना रहे हैं। साथ ही खाद्य अपव्यय भी चिंता का विषय बन गया है — यह है अत्यधिक उपभोग की मानसिकता, जो कलियुग — यानी रावण राज्य की देन है। अब कल्पना कीजिए — सतयुग की भूमि, जिसे हम राम राज्य कहते हैं। यहाँ हर तत्व शुद्ध था यहाँ देवता समान मानव रहते थे — राम राज्य वह युग था जब मनुष्य और प्रकृति दोनों पूर्ण सामंजस्य में रहते थे। हमने आज देखा — लेकिन प्रश्न है — क्या हम फिर से राम राज्य में जा सकते हैं? जब हम अपने आहार, व्यवहार और विचारों को पवित्र बनाएंगे, आइए, आज यह संकल्प लें — पवित्रता ही राम राज्य का आधार है। Questions and Answers: प्रश्न: आज के समय में प्रदूषण और अशुद्धता के क्या कारण हैं? प्रश्न: प्रदूषण में भोजन की भूमिका क्या है? प्रश्न: अत्यधिक उपभोग और खाद्य अपव्यय से पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ रहा है? प्रश्न: सतयुग की शुद्धता और दिव्यता के बारे में हमें क्या जानने को मिलता है? प्रश्न: हम आज की प्रदूषित दुनिया से कैसे छुटकारा पा सकते हैं? प्रश्न: प्रदूषण और अशुद्धता के बावजूद हम राम राज्य की स्थापना में कैसे योगदान दे सकते हैं? प्रश्न: प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए हमें कौन सी क्रियाएं करनी चाहिए? Conclusion: Closing: रावण राज्य, राम राज्य, पवित्रता, प्रदूषण, सतयुग, कलयुग, शुद्धता, प्रदूषण का सच, प्रदूषण और भोजन, अशुद्धता, रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक, अत्यधिक उपभोग, खाद्य अपव्यय, पर्यावरण संकट, ब्रेड, जूस, दूध, प्राकृतिक साधन, पृथ्वी की शुद्धता, दिव्य देवता, राम राज्य की स्थापना, सतयुग की दिव्यता, ओम शांति, पवित्रता के सिद्धांत, शुद्धता बढ़ाना, जीवन में पवित्रता, Ravana Rajya, Ram Rajya, Purity, Pollution, Satyug, Kalyug, Purity, Truth of Pollution, Pollution and Food, Impurity, Chemical Fertilizers, Pesticides, Excessive Consumption, Food Wastage, Environmental Crisis, Bread, Juice, Milk, Natural Resources, Purity of Earth, Divine Gods, Establishment of Ram Rajya, Divinity of Satyug, Om Shanti, Principles of Purity, Increasing Purity, Purity in Life,
आज का विषय: हम चर्चा करेंगे – रावण राज्य बनाम राम राज्य | कलयुग और सतयुग की तुलना में प्रदूषण और पवित्रता का राज़
1. पवित्रता और प्रदूषण का छिपा हुआ सत्य
पांचों तत्व — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — सब प्रदूषित हो चुके हैं।
जहाँ भी दृष्टि डालो —
गंदगी,
मैल,
कचरा — सब जगह फैला है।
मनुष्य के काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार से उपजे कर्मों की देन।
विशेषकर भोजन और उपभोग के स्तर पर हमारे कर्म ही प्रकृति को बिगाड़ने वाले बन चुके हैं।
2. प्रदूषण में भोजन की भूमिका
पर क्या कभी सोचा कि भोजन भी अशुद्धि का कारण बन सकता है?
पशुओं की हत्या,
रक्त से सनी प्रक्रिया,
और फिर वह भय का कंपन —
ये सब शरीर और मन को अशांत बनाते हैं।
बल्कि पर्यावरण भी विकृत होता है —
रासायनिक खेती, उर्वरक, कीटनाशक — यह सब मिलकर प्रदूषण की आग को और तेज करते हैं।
3. प्रदूषण और अत्यधिक उपभोग
स्वस्थ भोजन से ज़्यादा हम डिब्बाबंद, संरक्षित खाद्य पदार्थ पर निर्भर हो गए हैं।
एक ओर लोग भूखे मरते हैं, और दूसरी ओर हम भोजन फेंकते जा रहे हैं।
4. सतयुग की शुद्धता और दिव्यता – राम राज्य की झलक
जल पवित्र था
वायु में शांति थी
भोजन प्राकृतिक और सात्विक था
आत्माएं पूर्ण और पवित्र थीं
न कोई प्रदूषण,
न कोई हिंसा,
न कोई अति-उपभोग।
इस भूमि की वातावरणीय दिव्यता ही आत्मा को सुख और शांति का अनुभव कराती थी।
निष्कर्ष: रावण राज्य से राम राज्य की ओर
किस प्रकार रावण राज्य में प्रदूषण, अपवित्रता और भय का बोलबाला है।
और किस प्रकार राम राज्य – सतयुग – एक दिव्य और स्वर्गीय स्थिति का प्रतीक है।
उत्तर है — हाँ। लेकिन उसके लिए हमें अपने जीवन में पवित्रता को अपनाना होगा।
जब हम प्रकृति और आत्मा दोनों का सम्मान करेंगे,
तब हम कलियुग से सतयुग की ओर बढ़ पाएंगे।
समापन: राम राज्य की स्थापना के लिए
हम आंतरिक और बाहरी पवित्रता अपनाएंगे
अत्यधिक उपभोग को त्यागेंगे
और आत्म-स्मृति से जुड़कर परमात्मा के मार्गदर्शन में राम राज्य की स्थापना करेंगे।
ओम शांति।
उत्तर: आज के समय में प्रदूषण और अशुद्धता का मुख्य कारण मनुष्य के कार्य हैं, खासकर भोजन और उपभोग के कारण। सभी पांचों तत्व – पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और आकाश – प्रदूषित हो चुके हैं, और घरों में भी गंदगी, मैल और कचरा फैल चुका है।
उत्तर: भोजन प्रदूषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, खासकर जब हम पशु को मारकर खाते हैं। इस हिंसा और अशुद्धता के कारण प्रदूषण का चक्र शुरू हो जाता है, जो न केवल प्रकृति को, बल्कि मानवता को भी नुकसान पहुंचाता है। इसके अलावा, खाद्य उत्पादन के प्राकृतिक साधनों का विनाश भी प्रदूषण बढ़ाता है।
उत्तर: अत्यधिक उपभोग और खाद्य अपव्यय वैश्विक पर्यावरण संकटों को जन्म दे रहे हैं। हम जितने भी प्रिजर्वेटिव खाद्य पदार्थ खाते हैं, जैसे ब्रेड, जूस, और दूध, वे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं। इसके अलावा, खाद्य पदार्थों का व्यर्थ इस्तेमाल भी एक गंभीर समस्या बन गई है, जबकि कई जगहों पर खाद्य संकट हो रहा है।
उत्तर: सतयुग वह समय था जब सभी तत्व अपनी प्राचीन अवस्था में थे और दिव्य प्राणी इस भूमि पर निवास करते थे। वहां प्रदूषण या अशुद्धता का नामोनिशान नहीं था। राम राज्य, यानी सतयुग, एक शुद्ध और दिव्य भूमि थी, जहां शांति और सुख का वास था और कोई भी गंदगी या प्रदूषण मौजूद नहीं था।
उत्तर: हमें अपने जीवन में पवित्रता और सतयुग के सिद्धांतों को अपनाना होगा। अगर हम राम राज्य की ओर लौटना चाहते हैं, तो हमें प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए पवित्रता के मार्ग पर चलना होगा। यह मार्ग हमारी शांति और जीवन में दिव्यता को बढ़ावा देगा।
उत्तर: राम राज्य की स्थापना के लिए हमें अपनी जीवनशैली को सुधारना होगा और शुद्धता के रास्ते पर चलना होगा। यदि हम हर रोज़ अपनी आदतों में सुधार लाएंगे, जैसे अहिंसा, शुद्ध भोजन और प्रदूषण कम करना, तो हम राम राज्य की स्थापना में योगदान दे सकते हैं।
उत्तर: प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए हमें शुद्धता के मार्ग पर चलना होगा। हमें प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी, जैसे कि कचरा कम करना, जल और वायु के संरक्षण की दिशा में कदम उठाना, और अपने आहार में शुद्धता बनाए रखना। साथ ही, हमें प्राकृतिक संसाधनों का सम्मान करना चाहिए।
हमने देखा कि इस नश्वर भूमि में प्रदूषण और अशुद्धता कितनी बढ़ चुकी है, लेकिन सतयुग की दिव्य और शुद्ध भूमि का यह स्वरूप हमें याद दिलाता है कि कैसे हम राम राज्य की ओर वापस लौट सकते हैं। हमें इस प्रदूषण से मुक्ति पाने के लिए अपने जीवन में पवित्रता और सतयुग के सिद्धांतों को अपनाना होगा।
तो, राम राज्य की स्थापना के लिए हम सब को पवित्रता के मार्ग पर चलना होगा। आशा है, आज की यह चर्चा आपको जागरूक करेगी और आप अपने जीवन में शुद्धता को बढ़ावा देंगे। ओम शांति!