भूत ,प्रेत:-(14)दैत्य का रहस्य। दैत्य क्या होते हैं? क्या वास्तव में बुराई बाहर है या हमारे अंदर है?
हम भूत प्रेत आदि के बारे में अध्ययन कर रहे हैं।
आज 14वां पार्ट है – दैत्य का रहस्य।
दैत्य क्या होते हैं? क्या वास्तव में बुराई बाहर है या हमारे अंदर है?
दैत्य = मानव के भीतर की बुराई या अदृश्य शक्ति।
हमने पौराणिक कथाओं में दैत्य या असुरों के बारे में सुना है – जो देवताओं से लड़ते थे।
परंतु ब्रह्मा कुमारी ज्ञान कहता है:
दैत्य कोई बाहरी जीव नहीं है। उसका कोई शरीर नहीं है, बल्कि वह शक्ति है जो आत्मा में अवगुण के रूप में प्रकट होती है।
जब आत्मा अपना देवी स्वरूप भूल जाती है, तब अवगुण रूपी ऊर्जा दैत्य बनकर उभरती है।
दैत्य यानी विकारों का रूपांतरण।
मुरली 17 जुलाई 2018:
जब मनुष्य पाँच विकारों के वश में हो जाता है, तब वह देवता से दैत्य बन जाता है।
नंबर 2 – दैत्य की शक्ति क्या है?
दैत्य की शक्ति भयावह नहीं, बल्कि दुरुपयोग की गई ऊर्जा है।
आत्मा की ही शक्ति जब काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार में बदल जाती है – यही दैत्यों की सेना है।
जब यह विचार और संकल्प मन पर हावी हो जाते हैं, तो आत्मा की दिव्यता ढक जाती है।
उदाहरण:
यदि कोई व्यक्ति क्रोध में आकर नुकसान कर देता है, तो वह क्षणिक रूप से दैत्यिक ऊर्जा के प्रभाव में होता है।
दैत्य कैसे प्रभावित करते हैं मानव जीवन?
दैत्य बाहर नहीं, भीतर के विचारों और भावनाओं के माध्यम से काम करते हैं।
जब आत्मा कमजोर होती है, तब विकार उसे नियंत्रित कर लेते हैं।
मुरली – 8 मार्च 2019:
“मन का दैत्य जब उठता है तो बड़े-बड़े तपस्वी भी हार जाते हैं।”
मन जीतना ही सच्ची जीत है।
दैत्य को नष्ट करने का उपाय क्या है?
दैत्य का अंत किसी युद्ध से नहीं, बल्कि योग की अग्नि से होगा।
जब आत्मा परमात्मा शिव से योग में जुड़ती है, तब भीतर की विकारी शक्तियाँ शांत हो जाती हैं।
व्यवहारिक उपाय:
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अमृतवेले में योग और आत्म-स्मृति का अभ्यास
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विकारी विचार आते ही स्मृति रखो – “मैं आत्मा हूँ, मेरा बाप शिव बाबा है, यह दुनिया एक नाटक है।”
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सात गुणों (शांति, प्रेम, पवित्रता, सुख, आनंद, शक्ति, ज्ञान) का अभ्यास
मुरली – 15 फरवरी 2021:
विकारों का नाश केवल बाबा की याद की आग से ही होगा।
दैत्य और असुर में अंतर:
| स्वरूप | अर्थ | स्थान |
|---|---|---|
| दैत्य | भीतर की विकृति | आत्मा के अंदर |
| असुर | बाहर की प्रवृत्ति, जो दिव्यता का विरोध करे | व्यवहार व समाज में |
सार:
जब आत्मा ज्ञान और योग से अंधकार हटाती है, तब दोनों – दैत्य और असुर – समाप्त हो जाते हैं।
दैत्य का अंत कब होगा?
दैत्य का अंत किसी युद्ध से नहीं, जागरण से होता है।
जब आत्मा अपनी देवी चेतना में आती है, तो भीतर की सारी नकारात्मकता शांत हो जाती है।
मुरली – 9 अक्टूबर 2020:
“संगम युग पर तुम वही देवता बनते हो जो दैत्य रूप से मुक्त होते हो।”

