(17)Only the souls who are beyond karma and are in the path of retirement are the ones who serve at a fast pace.”

अव्यक्त मुरली-(17)”07-03-1984 “कर्मातीत, वानप्रस्थी आत्मायें ही तीव्रगति की सेवा के निमित्त”

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07-03-1984 “कर्मातीत, वानप्रस्थी आत्मायें ही तीव्रगति की सेवा के निमित्त”

मधुबन वरदान भूमि, समर्थ भूमि, श्रेष्ठ संग की भूमि, सहज परिवर्तन भूमि, सर्व प्राप्तियों के अनुभव कराने वाली भूमि है। ऐसी भूमि पर आकर सभी स्वयं को सम्पन्न अर्थात् सब बातों से भरपूर अनुभव करते हो? कोई अप्राप्ति तो नहीं है? जो सर्व खजाने मिले हैं उन्हों को सदाकाल के लिए धारण किया है? ऐसे समझते हो कि यहाँ से सेवास्थान पर जाकर महादानी बन यही शक्तियाँ, सर्व प्राप्तियाँ सर्व को देने के निमित्त बनेंगे? सदा के लिए स्वयं को विघ्न-विनाशक, समाधान स्वरुप अनुभव किया है? स्व की समस्या तो अलग रही लेकिन अन्य आत्माओं के समस्याओं का भी समाधान स्वरुप।

समय के प्रमाण अब ब्राह्मण आत्मायें समस्याओं के वश हो जाएं, इससे अभी पार हो गये। समस्याओं के वश होना यह बाल अवस्था है। अब ब्राह्मण आत्माओं की बाल अवस्था का समय समाप्त हो चुका। युवा अवस्था में मायाजीत बनने की विधि से महावीर बने, सेवा में चक्रवर्ती बने, अनेक आत्माओं के वरदानी महादानी बने, अनेक प्रकार के अनुभव कर महारथी बने, अब कर्मातीत वानप्रस्थ स्थिति में जाने का समय पहुँच गया है। कर्मातीत वानप्रस्थ स्थिति द्वारा ही विश्व की सर्व आत्माओं को आधाकल्प के लिए कर्म बन्धनों से मुक्त कराए मुक्ति में भेजेंगे। मुक्त आत्मायें ही सेकेण्ड में मुक्ति का वर्सा बाप से दिला सकती हैं। मैजारिटी आत्मायें मुक्ति की भीख मांगने के लिए आप कर्मातीत वानप्रस्थ महादानी वरदानी बच्चों के पास आयेंगी। जैसे अभी आपके जड़ चित्रों के आगे, कोई मन्दिरों में जाकर प्रार्थना कर सुख शान्ति मांगते हैं। कोई तीर्थ स्थानों पर जाकर मांगते हैं। कोई घर बैठे मांगते हैं। जिसकी जहाँ तक शक्ति होती वहाँ तक पहुँचते हैं, लेकिन यथाशक्ति, यथाफल की प्राप्ति करते हैं। कोई दूर बैठे भी दिल से करते हैं और कोई मूर्ति के सामने तीर्थ स्थान वा मन्दिरों में जाकर भी दिखावे मात्र करते हैं। स्वार्थ वश करते हैं। उन सब हिसाब अनुसार जैसा कर्म, जैसी भावना वैसा फल मिलता है। ऐसे अब समय प्रमाण आप चैतन्य महादानी वरदानी मूर्तियों के आगे प्रार्थना करेंगे। कोई सेवास्थान रुपी मन्दिरों में पहुँचेंगे। कोई महान तीर्थ मधुबन तक पहुँचेंगे और कोई घर बैठे साक्षात्कार करते दिव्य बुद्धि द्वारा प्रत्यक्षता का अनुभव करेंगे। सम्मुख न आते भी स्नेह और दृढ़ संकल्प से प्रार्थना करेंगे। मन्सा में आप चैतन्य फरिश्तों का आह्वान कर मुक्ति के वर्से की अंचली मांगेंगे। थोड़े समय में सर्व आत्माओं को वर्सा दिलाने का कार्य तीव्रगति से करना होगा। जैसे विनाश के साधन रिफाइन होने के कारण तीव्रगति से समाप्ति के निमित्त बनेंगे, ऐसे आप वरदानी महादानी आत्मायें, अपने कर्मातीत फरिश्ते स्वरुप के सम्पूर्ण शक्तिशाली स्वरुप द्वारा, सर्व की प्रार्थना का रेसपान्ड मुक्ति का वर्सा दिलायेगी। तीव्रगति के इस कार्य के लिए मास्टर सर्व शक्तिवान, शक्तियों के भण्डार, ज्ञान के भण्डार, याद स्वरुप तैयार हो? विनाश की मशीनरी और वरदान की मशीनरी दोनों तीव्रगति से साथ-साथ चलेंगी।

बहुतकाल से अर्थात् अब से भी एवररेडी। तीव्रगति वाले कर्मातीत, समाधान स्वरुप सदा रहने का अभ्यास नहीं करेंगे तो तीव्रगति के समय देने वाले बनने के बजाए देखने वाले बनना पड़े। तीव्र पुरुषार्थी बहुत काल वाले तीव्रगति की सेवा के निमित्त बन सकेंगे। यह है वानप्रस्थ अर्थात् सर्व बन्धन-मुक्त, न्यारे और बाप के साथ-साथ तीव्रगति के सेवा की प्यारी अवस्था। तो अब देने वाले बनने का समय है, ना कि अब भी स्वयं प्रति, समस्याओं प्रति लेने वाले बनने का समय है। स्व की समस्याओं में उलझना अब वह समय गया। समस्या भी एक अपनी कमजोरी की रचना है। कोई द्वारा वा कोई सरकमस्टांस द्वारा आई हुई समस्या वास्तव में अपनी कमजोरी का ही कारण है। जहाँ कमजोरी है वहाँ व्यक्ति द्वारा वा सरकमस्टांस द्वारा समस्या वार करती है। अगर कमजोरी नहीं तो समस्या का वार नहीं। आई हुई समस्या, समस्या के बजाए समाधान रुप में अनुभवी बनायेगी। यह अपनी कमजोरी के उत्पन्न हुए मिक्की माउस हैं। अभी तो सब हंस रहे हैं और जिस समय आती है उस समय क्या करते हैं? खुद भी मिक्की माउस बन जाते हैं। इससे खेलो न कि घबराओ। लेकिन यह भी बचपन का खेल है। न रचना करो, न समय गंवाओ। इससे परे स्थिति में वानप्रस्थी बन जाओ। समझा!

समय क्या कहता? बाप क्या कहता? अब भी खिलौनों से खेलना अच्छा लगता है क्या? जैसे कलियुग की मानव रचना भी क्या बन गई है? मुरली में सुनते हो ना। बिच्छु-टिण्डन हो गये हैं। तो यह कमजोर समस्याओं की रचना भी बिच्छू टिण्डन के समान स्वयं को काटती है, शक्तिहीन बना देती है। इसलिए सभी मधुबन से सम्पन्न बन यह दृढ़ संकल्प करके जाना कि अब से स्वयं की समस्या को तो समाप्त किया लेकिन और किसके लिए भी समस्या स्वरुप नहीं बनेंगे। स्व प्रति, सर्व के प्रति सदा समाधान स्वरुप रहेंगे। समझा!

इतना खर्चा करके मेहनत करके आते हो तो मेहनत का फल इस दृढ़ संकल्प द्वारा सहज सदा मिलता रहेगा। जैसे मुख्य बात पवित्रता के लिए दृढ़ संकल्प किया है ना कि मर जायेंगे, सहन करेंगे लेकिन इस व्रत को कायम रखेंगे। स्वप्न में वा संकल्प में भी अगर ज़रा भी हलचल होती है तो पाप समझते हो ना। ऐसे समस्या स्वरूप बनना या समस्या के वश हो जाना – यह भी पाप का खाता है। पाप की परिभाषा है, पहचान है, जहाँ पाप होगा वहाँ बाप याद नहीं होगा, साथ नहीं होगा। पाप और बाप, दिन और रात जैसे हैं। तो जब समस्या आती है उस समय बाप याद आता है? किनारा हो जाता है ना? फिर जब परेशान होते हो तब बाप याद आता है। और वह भी भक्त के रुप में याद करते हो, अधिकारी के रुप में नहीं। शक्ति दे दो, सहारा दे दो। पार लगा दो। अधिकारी के रुप में, साथी के रुप में, समान बनकर याद नहीं करते हो। तो समझा, अब कया करना है। समाप्ति समारोह मनाना है ना। समस्याओं का समाप्ति समारोह मनायेंगे ना! या सिर्फ डान्स करेंगे? अच्छे-अच्छे ड्रामा करते हो ना! अभी यह फंक्शन करना क्योंकि अभी सेवा में समय बहुत चाहिए। वहाँ पुकार रहे हैं और यहाँ हिल रहे हैं, यह तो अच्छा नहीं है ना! वह वरदानी, महादानी कह याद कर रहे हैं और आप मूड ऑफ में रो रहे हैं तो फल कैसे देंगे! उनके पास भी आपके गर्म आंसू पहुँच जायेंगे। वह भी घबराते रहेंगे। अभी याद रखो कि हम ब्रह्मा बाप के साथ इष्ट देव पूज्य आत्मायें हैं। अच्छा।

सदा बहुतकाल के तीव्र पुरुषार्थी, तीव्रगति की सेवा के एवररेडी बच्चों को सदा विश्व परिवर्तन सो समस्या परिवर्तक, समाधान स्वरुप बच्चों को, सदा रहमदिल बन भक्त आत्माओं और ब्राह्मण आत्माओं के स्नेही और सहयोगी रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें, सदा समस्याओं से परे रहने वाले, कर्मातीत वानप्रस्थ स्थिति में रहने वाले सम्पन्न स्वरुप बच्चों को बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

न्यूयार्क पार्टी से:- सभी अपने को बाप की विशेष आत्मायें अनुभव करते हो? सदा यही खुशी रहती है कि जैसे बाप सदा श्रेष्ठ है वैसे हम बच्चे भी बाप समान श्रेष्ठ हैं? इसी स्मृति से सदा हर कर्म स्वत: ही श्रेष्ठ हो जायेगा। जैसा संकल्प होगा वैसे कर्म होंगे। तो सदा स्मृति द्वारा श्रेष्ठ स्थिति में स्थित रहने वाली विशेष आत्मायें हो। सदा अपने इस श्रेष्ठ जन्म की खुशियां मनाते रहो। ऐसा श्रेष्ठ जन्म जो भगवान के बच्चे बन जायें – ऐसा सारे कल्प में नहीं होता। पांच हजार वर्ष के अन्दर सिर्फ इस समय यह अलौकिक जन्म होता है। सतयुग में भी आत्माओं के परिवार में आयेंगे लेकिन अब परमात्म सन्तान हो। तो इसी विशेषता को सदा याद रखो। सदा मैं ब्राह्मण ऊंचे ते ऊंचे धर्म, कर्म और परिवार का हूँ। इसी स्मृति द्वारा हर कदम में आगे बढ़ते चलो। पुरुषार्थ की गति सदा तेज हो। उड़ती कला सदा ही मायाजीत और निर्बन्धन बना देगी। जब बाप को अपना बना दिया तो और रहा ही क्या। एक ही रह गया ना! एक में ही सब समाया हुआ है। एक की याद में, एकरस स्थिति में स्थित होने से शान्ति, शक्ति और सुख की अनुभूति होती रहेगी। जहाँ एक है वहाँ एक नम्बर है। तो सभी नम्बरवन हो ना! एक को याद करना सहज है या बहुतों को? बाप सिर्फ यही अभ्यास कराते हैं और कुछ नहीं। दस चीज़ें उठाना सहज है या एक चीज़ उठाना सहज है? तो बुद्धि द्वारा एक की याद धारण करना बहुत सहज है। लक्ष्य सबका बहुत अच्छा है। लक्ष्य अच्छा है तो लक्षण अच्छे होते ही जायेंगे। अच्छा!