(15)What consciousness – consciousness means soul?


विश्व नाटक :-(15)क्या चेतना — चेतना माना आत्मा?

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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प्रस्तावना : चेतना का रहस्य

आज हम “विश्व नाटक का 15वां विषय” समझ रहे हैं —
क्या चेतना रासायनिक प्रक्रिया से बन सकती है?
क्या केमिकल से आत्मा तैयार की जा सकती है?
क्या जीवन केवल पदार्थ की रासायनिक प्रतिक्रिया है?

विज्ञान कहता है कि जीवन की उत्पत्ति रासायनिक प्रक्रिया से हुई।
परंतु प्रश्न यह उठता है —
क्या चेतना, जो अनुभव करती है, सोचती है, निर्णय लेती है — वह भी केमिकल से बनी है?


1. विज्ञान की सीमा — परमाणु तक तो पहुँचा, पर चेतना तक नहीं

विज्ञान ने परमाणु को तोड़ दिया।
एक समय कहा गया कि “परमाणु” किसी भी तत्व का सबसे छोटा कण है, जिसके बाद टुकड़े नहीं हो सकते।
परंतु आज विज्ञान ने उस परमाणु को भी विभाजित कर दिया —
प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन के रूप में।

फिर भी “चेतना” नामक तत्व को नहीं खोज सका।
क्योंकि चेतना कोई पदार्थ नहीं,
बल्कि वह “प्रकाश” है जो शरीर में जीवन का अनुभव कराता है।


2. आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है

मुरली दिनांक 18 दिसंबर 1975 (साकार):

“यह शरीर जड़ है। इसे आत्मा चलाती है।
आत्मा न हो तो शरीर वहीं पड़ा रहेगा।
आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है।”

उदाहरण:
जब आत्मा निकल जाती है, तो आंखों की चमक बुझ जाती है।
जीवित व्यक्ति की आंखों में “दीया” जलता है,
पर मृत्यु के बाद वही आंखें निर्जीव लगती हैं।
यह “दीया” आत्मा है — चेतना का स्रोत।


3. ओरा और क्रिलियन कैमरा का प्रमाण

विज्ञान में एक विशेष कैमरा है — Kirlian Camera
यह मनुष्य के शरीर के चारों ओर की ऊर्जा-तरंगें (Aura) दिखाता है।
जीवित व्यक्ति के चारों ओर प्रकाश का आभामंडल होता है,
पर जब आत्मा निकल जाती है, वह “लाइट” गायब हो जाती है।

 यह सिद्ध करता है —
चेतना शरीर की नहीं, आत्मा की विशेषता है।


4. विज्ञान की सोच — ब्रेन की गतिविधि को चेतना मानना

विज्ञान का मानना है कि चेतना मस्तिष्क के रासायनिक और विद्युत संकेतों से उत्पन्न होती है —
जैसे हार्मोन, न्यूरॉन ट्रांसमिशन आदि।

परंतु जब आत्मा निकल जाती है —
ब्रेन, हृदय, और सभी ग्लैंड्स काम करना बंद कर देते हैं।
तो क्या केमिकल भी “मर” गए?
नहीं — केमिकल वहीं हैं, पर चेतना नहीं रही।

 इसलिए चेतना केवल जैविक या रासायनिक क्रिया नहीं हो सकती।


5. चेतना का स्रोत — आत्मा

मुरली दिनांक 3 मार्च 1976 (साकार):

“जो चेतन आत्मा है, वही ज्ञानवान, कर्मवान, अनुभववान है।
शरीर तो केवल यंत्र है।
जैसे बिजली दिखाई नहीं देती, पर बल्ब जलता है।
बिजली हटा दो तो बल्ब मर जाता है।”

उदाहरण:
शरीर एक “बल्ब” है,
और आत्मा वह “बिजली” है जो उसे जलाती है।
जब तक आत्मा है, चेतना है;
आत्मा निकली — शरीर बुझ गया।


6. आत्मा — चेतना का दिव्य दीपक

मुरली दिनांक 22 जुलाई 1974 (साकार):

“आत्मा का प्रकाश ही शरीर को जीवित रखता है।
आत्मा निकल जाए तो लाइट बुझ जाती है, शरीर मिट्टी बन जाता है।”

इसलिए चेतना कभी रासायनिक नहीं हो सकती।
केमिकल्स केवल शरीर के घटक हैं,
पर जीवन का मूल स्रोत — आत्मा की चेतना है।


7. विज्ञान और आत्मा का संगम

प्रसिद्ध वैज्ञानिक E. P. Wigner (1969) ने कहा:

“चेतना और पदार्थ दोनों ही मूलभूत वास्तविकताएँ हैं।
हमारे बाहरी जगत का ज्ञान चेतना का ही प्रतिबिंब है।”

यह कथन स्पष्ट करता है कि
 चेतना को नकारा नहीं जा सकता, केवल स्वीकार किया जा सकता है।
विज्ञान उसे माप नहीं सकता, पर महसूस अवश्य कर सकता है।


8. अनुभव करने वाला कौन है?

  • कौन सोचता है?

  • कौन जानता है कि “मैं जान रहा हूँ”?

  • कौन आनंद, दुख, शांति, प्रेम अनुभव करता है?

शरीर या मस्तिष्क नहीं — आत्मा
क्योंकि शरीर केवल एक जैविक यंत्र है।
चेतना आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है।


9. निष्कर्ष : चेतना रासायनिक नहीं, आध्यात्मिक है

चेतना कोई “मस्तिष्कीय प्रक्रिया” नहीं —
बल्कि आत्मा की उपस्थिति का प्रकाश है।
रासायनिक पदार्थों से जीवन का शरीर बनाया जा सकता है,
पर जीवन का अनुभव केवल आत्मा से होता है।

इसलिए —

“आत्मा चेतन है, शरीर अचेतन है।
आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है, और वही जीवन का सार है।”


अंतिम संदेश

चेतना के बिना जीवन केवल पदार्थ का ढांचा है।
आत्मा ही उस ढांचे में दिव्यता और अनुभव का संचार करती है।
इस चेतना को जागृत रखना ही योग और ज्ञान का उद्देश्य है।

विश्व नाटक का 15वां विषय — क्या चेतना रासायनिक प्रक्रिया से बन सकती है?


प्रश्न 1: क्या चेतना रासायनिक प्रक्रिया से बन सकती है?

उत्तर: नहीं। चेतना कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं है।
विज्ञान कहता है कि जीवन की उत्पत्ति रासायनिक प्रतिक्रियाओं से हुई,
परंतु “अनुभव करने वाली चेतना” — जो सोचती है, निर्णय लेती है, प्रेम करती है —
वह केवल आत्मा की विशेषता है, पदार्थ की नहीं।


प्रश्न 2: विज्ञान की सीमा कहाँ तक है?

उत्तर: विज्ञान परमाणु तक पहुँचा है, पर चेतना तक नहीं।
विज्ञान ने परमाणु को भी विभाजित कर दिया —
प्रोटॉन, न्यूट्रॉन, इलेक्ट्रॉन के रूप में।
फिर भी वह यह नहीं समझ सका कि “जीवन कौन चलाता है?”
क्योंकि चेतना कोई पदार्थ नहीं, बल्कि प्रकाशमय शक्ति है जो शरीर में जीवन का अनुभव कराती है।


प्रश्न 3: चेतना शरीर में कैसे प्रकट होती है?

उत्तर: आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है।
मुरली: 18 दिसंबर 1975 (साकार)

“यह शरीर जड़ है। इसे आत्मा चलाती है। आत्मा न हो तो शरीर वहीं पड़ा रहेगा। आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है।”

उदाहरण:
जब आत्मा निकल जाती है, तो आंखों की चमक बुझ जाती है।
जीवित व्यक्ति की आंखों में “दीया” जलता है,
पर मृत व्यक्ति की आंखें बुझी हुई लगती हैं।
वह “दीया” आत्मा है — चेतना का स्रोत।


प्रश्न 4: क्या विज्ञान ने चेतना का कोई प्रमाण देखा है?

उत्तर: हाँ — अप्रत्यक्ष रूप में “ओरा” या “Aura” के रूप में।
क्रिलियन कैमरा (Kirlian Camera) द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि
जीवित शरीर के चारों ओर प्रकाश-तरंगें (Aura) होती हैं,
पर आत्मा निकल जाने पर वह प्रकाश गायब हो जाता है।
इससे स्पष्ट है — चेतना शरीर की नहीं, आत्मा की विशेषता है।


प्रश्न 5: विज्ञान क्यों चेतना को ब्रेन की क्रिया मानता है?

उत्तर: विज्ञान चेतना को मस्तिष्क की रासायनिक और विद्युत गतिविधियों से जोड़ता है —
जैसे न्यूरॉन फायरिंग, हार्मोन, ग्लैंड्स आदि।
परंतु मृत्यु के समय जब आत्मा निकल जाती है,
तब ब्रेन, हार्मोन और सभी ग्रंथियाँ कार्य करना बंद कर देती हैं।
केमिकल्स वहीं हैं, पर चेतना नहीं।
इसलिए चेतना केवल जैविक प्रक्रिया नहीं, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति है।


प्रश्न 6: चेतना का सच्चा स्रोत क्या है?

उत्तर: चेतना का स्रोत आत्मा है।
मुरली: 3 मार्च 1976 (साकार)

“जो चेतन आत्मा है, वही ज्ञानवान, कर्मवान, अनुभववान है। शरीर तो केवल यंत्र है। जैसे बिजली दिखाई नहीं देती, पर बल्ब जलता है।”

उदाहरण:
शरीर एक “बल्ब” है, आत्मा वह “बिजली” है जो उसे जलाती है।
जब तक आत्मा है, बल्ब (शरीर) जलता है;
आत्मा निकली — शरीर बुझ गया।


प्रश्न 7: आत्मा को ‘चेतना का दिव्य दीपक’ क्यों कहा गया है?

उत्तर: क्योंकि आत्मा का प्रकाश ही शरीर को जीवित रखता है।
मुरली: 22 जुलाई 1974 (साकार)

“आत्मा का प्रकाश ही शरीर को जीवित रखता है। आत्मा निकल जाए तो लाइट बुझ जाती है, शरीर मिट्टी बन जाता है।”

केमिकल्स केवल शरीर के तत्व हैं,
परंतु जीवन का मूल स्रोत — आत्मा की चेतना है।


प्रश्न 8: क्या विज्ञान ने आत्मा या चेतना के अस्तित्व को स्वीकार किया है?

उत्तर: कुछ प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने चेतना को स्वीकार किया है।
E. P. Wigner (1969) ने कहा —

“चेतना और पदार्थ दोनों ही मूलभूत वास्तविकताएँ हैं।
हमारा बाहरी ज्ञान चेतना का ही प्रतिबिंब है।”

इसका अर्थ — चेतना को नकारा नहीं जा सकता;
विज्ञान उसे माप नहीं सकता, पर महसूस अवश्य कर सकता है।


प्रश्न 9: अनुभव करने वाला — ‘मैं’ कौन हूँ?

उत्तर: अनुभव करने वाला शरीर या मस्तिष्क नहीं, बल्कि आत्मा है।
क्योंकि शरीर केवल एक जैविक यंत्र है,
पर “मैं जानता हूँ, मैं सोचता हूँ, मैं अनुभव करता हूँ” — यह भाव आत्मा का है।
चेतना आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण है।


प्रश्न 10: निष्कर्ष — क्या चेतना रासायनिक है या आध्यात्मिक?

उत्तर: चेतना रासायनिक नहीं, आध्यात्मिक शक्ति है।
रासायनिक पदार्थों से शरीर बनाया जा सकता है,
पर जीवन और अनुभव केवल आत्मा से आता है।

“आत्मा चेतन है, शरीर अचेतन है।
आत्मा में ही चेतना का प्रकाश है, और वही जीवन का सार है।”


अंतिम संदेश

“चेतना के बिना जीवन केवल पदार्थ का ढांचा है।
आत्मा ही उस ढांचे में दिव्यता और अनुभव का संचार करती है।
इस चेतना को जागृत रखना ही योग और ज्ञान का उद्देश्य है।”

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज के ईश्वरीय ज्ञान पर आधारित आध्यात्मिक प्रस्तुति है।
इसका उद्देश्य विज्ञान और अध्यात्म के दृष्टिकोण से चेतना (Consciousness) का गूढ़ रहस्य समझाना है।
यह किसी धार्मिक या वैज्ञानिक विवाद के लिए नहीं, बल्कि आत्म-जागृति हेतु प्रेरणास्रोत है।

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