“विश्व नाटक — यह संसार कैसे चलता है?”


 प्रस्तावना

यह संसार, यह जीवन, यह ब्रह्मांड — सब कैसे चल रहा है?
क्या इसकी कोई शुरुआत हुई थी?
या यह अनादि और अविनाशी है?

आज का यह विषय — “विज्ञान बनाम ईश्वर की सृष्टि रहस्य”
मानवता के सबसे पुराने प्रश्नों में से एक है।


1. विज्ञान की दृष्टि से — “जीवन की शुरुआत कैसे हुई?”

विज्ञान कहता है —
जीवन की उत्पत्ति पदार्थ से हुई है।
डार्विन के Evolution Theory (1859) के अनुसार —
जीवन “आद्य सूप” यानी Primordial Soup से निकला।

 उदाहरण

शुरुआत में तरल रूप में एक “सूप” था —
जिससे एककोशीय जीव (Single Cell) बना,
फिर बहुकोशीय जीव, फिर मछली, फिर कछुआ और फिर मनुष्य

Charles Darwin ने कहा —
“जीवन प्रकृति के चयन से विकसित हुआ।”

परंतु यह केवल परिकल्पना है, प्रमाण नहीं।
क्योंकि आज तक किसी प्रयोगशाला में
निर्जीव पदार्थ से “जीवित चेतना” उत्पन्न नहीं हुई।


2. प्रयोगशाला के प्रयोग — जीवन नहीं, केवल रसायन बने

1952 में Stanley Miller और Harold Urey ने प्रयोग किया।
उन्होंने मिथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन और जल का मिश्रण लेकर उसमें बिजली प्रवाहित की।
परिणाम — अमीनो एसिड बने।

परंतु जीवित कोशिका (Living Cell) नहीं बनी।
इसलिए विज्ञान मानता है —
“जीवन के कुछ घटक पदार्थ से बन सकते हैं,
पर चेतना नहीं।”


3. जीवविज्ञान का सिद्धांत — “Biogenesis”

जीवविज्ञान कहता है —
“जीवन केवल जीवन से ही उत्पन्न होता है।”

मनुष्य से मनुष्य, पक्षी से पक्षी,
परंतु पत्थर या धातु से कोई जीव नहीं।

 उदाहरण

रोबोट आज मानव जैसा व्यवहार कर सकता है —
बात कर सकता है, सोच सकता है, उत्तर दे सकता है —
पर उसमें जीवन नहीं है, केवल प्रोग्रामिंग है।

यह स्पष्ट करता है —
जीवन चेतना से आता है, पदार्थ से नहीं।


4. आध्यात्मिक दृष्टिकोण — “जीवन शाश्वत आत्मा है”

ब्रह्माकुमारी मुरलियों के अनुसार —
जीवन का आरंभ पदार्थ में नहीं,
बल्कि आत्मा में है।

मुरली उद्धरण — 11 सितम्बर 1970 (साकार मुरली):

“आत्मा अविनाशी है। आत्मा का कोई आरंभ नहीं।
शरीर मिट्टी से बनता है और मिट्टी में चला जाता है।
पर आत्मा — शाश्वत ज्योति बिंदु है, जो परमात्मा की संतान है।”

इसलिए जीवन का मूल बिंदु चेतना है, न कि रासायनिक मिश्रण।

जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है, जीवन आरंभ होता है।
जब आत्मा निकल जाती है — शरीर वही रहता है, पर जीवन नहीं।


5. ईश्वर निर्मित सृष्टि का रहस्य

परमात्मा सृजनकर्ता नहीं,
बल्कि ज्ञानदाता और निर्देशक हैं।
सृष्टि कभी नष्ट नहीं होती — वह केवल नवीन रूप में आती है।

मुरली उद्धरण — 24 मई 1975 (साकार मुरली):

“परमात्मा सृजनकर्ता नहीं, ज्ञानदाता है।
सृष्टि सदा चलती रहती है।
संगम युग में नई सृष्टि का बीज बोया जाता है।”

यह “विश्व नाटक चक्र” सदा चलता रहता है —
प्रत्येक कल्प में वही आत्माएँ फिर से अपनी भूमिका निभाती हैं।


6. उदाहरण — दीपक और बिजली

जैसे बल्ब में बिजली आती है तो प्रकाश होता है,
वैसे ही आत्मा जब शरीर में आती है, तो जीवन प्रकट होता है।

बिजली (चेतना) चली जाए — बल्ब (शरीर) रहते हुए भी अंधेरा छा जाता है।
इसी प्रकार शरीर बिना आत्मा के “निर्जीव” हो जाता है।


7. निष्कर्ष — “जीवन पदार्थ नहीं, चेतना है”

जीवन का आधार रासायनिक यौगिक नहीं, बल्कि आत्मिक चेतना है।

मुरली उद्धरण — 18 नवम्बर 1969 (अव्यक्त मुरली):

“आत्मा ही जीवन है। पदार्थ में जीवन नहीं।”

विज्ञान ने अब तक आत्मा को नहीं पहचाना,
पर आध्यात्मिकता सदा से कहती आई है —
“जीवन का मूल, आत्मा की ज्योति में है।”


अगले अध्याय का संकेत

“क्या भगवान ने जीव बनाए?”
धर्म और विज्ञान की दृष्टि से —
जीवन की उत्पत्ति का रहस्य हम अगले अध्याय में देखेंगे।

प्रश्न 1: क्या इस संसार की कोई शुरुआत थी?

उत्तर:
विज्ञान कहता है कि सृष्टि की शुरुआत Big Bang या आद्य सूप (Primordial Soup) से हुई।
परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से सृष्टि अनादि और अविनाशी है।
यह एक “विश्व नाटक चक्र” है, जो सदा चलता रहता है
हर कल्प में वही आत्माएँ अपनी-अपनी भूमिका निभाती हैं।

मुरली उद्धरण — 24 मई 1975 (साकार मुरली):

“सृष्टि सदा चलती रहती है।
परमात्मा सृजनकर्ता नहीं, ज्ञानदाता है।
संगम युग में नई सृष्टि का बीज बोया जाता है।”


प्रश्न 2: विज्ञान के अनुसार जीवन की शुरुआत कैसे हुई?

उत्तर:
विज्ञान कहता है —
जीवन “पदार्थ” से निकला, यानी आद्य सूप से।
डार्विन (1859) ने कहा — जीवन का विकास प्रकृति के चयन से हुआ।

परंतु यह सिद्ध नहीं, केवल परिकल्पना है।
क्योंकि आज तक कोई वैज्ञानिक निर्जीव पदार्थ से जीवित चेतना (Life) नहीं बना पाया।

उदाहरण:
Stanley Miller और Harold Urey (1952) ने मिथेन, अमोनिया, हाइड्रोजन और जल का मिश्रण लेकर बिजली प्रवाहित की।
परिणाम — अमीनो एसिड बने,
परंतु जीवित कोशिका (Living Cell) नहीं बनी।


प्रश्न 3: “Biogenesis” क्या कहता है?

उत्तर:
जीवविज्ञान (Biology) का सिद्धांत कहता है —
 “जीवन केवल जीवन से ही उत्पन्न होता है।”
किसी भी निर्जीव वस्तु से जीव नहीं बन सकता।

उदाहरण:
आज का रोबोट इंसान की तरह बात कर सकता है, सोच सकता है, काम कर सकता है,
पर उसमें जीवन नहीं, केवल प्रोग्रामिंग है।
इससे स्पष्ट है कि चेतना पदार्थ से नहीं, बल्कि जीवित आत्मा से आती है।


प्रश्न 4: आध्यात्मिक दृष्टि से जीवन क्या है?

उत्तर:
जीवन का मूल स्रोत आत्मा है, न कि पदार्थ।
शरीर मिट्टी से बनता है और मिट्टी में लौट जाता है।
परंतु आत्मा अविनाशी है — न जन्म लेती है, न मरती है।

मुरली उद्धरण — 11 सितम्बर 1970 (साकार मुरली):

“आत्मा अविनाशी है। आत्मा का कोई आरंभ नहीं।
शरीर मिट्टी से बनता है और मिट्टी में चला जाता है।
पर आत्मा — शाश्वत ज्योति बिंदु है, जो परमात्मा की संतान है।”

 जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है, तब जीवन प्रकट होता है।
जब आत्मा निकल जाती है — शरीर वही रहता है, पर जीवन नहीं।


प्रश्न 5: क्या ईश्वर ने सृष्टि बनाई?

उत्तर:
परमात्मा सृजनकर्ता नहीं, बल्कि ज्ञानदाता और निर्देशक हैं।
वे सृष्टि को “ज्ञान और शक्ति” से दिशा देते हैं।
सृष्टि कभी नष्ट नहीं होती, केवल रूप बदलती है।

मुरली उद्धरण — 24 मई 1975 (साकार मुरली):

“परमात्मा सृजनकर्ता नहीं, ज्ञानदाता है।
नई सृष्टि संगम युग में रची जाती है।”


प्रश्न 6: जीवन का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक उदाहरण क्या है?

उत्तर:
जैसे बल्ब में बिजली प्रवाहित होती है तो प्रकाश होता है,
वैसे ही जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती है, जीवन प्रकट होता है।
बिजली (चेतना) चली जाए — बल्ब (शरीर) रहकर भी अंधकार छा जाता है।
यही आत्मा और शरीर का संबंध है।


प्रश्न 7: क्या जीवन पदार्थ से बन सकता है?

उत्तर:
नहीं।
जीवन का आधार रासायनिक पदार्थ नहीं, बल्कि आत्मिक चेतना है।
विज्ञान जीवन के घटक बना सकता है,
पर जीवित आत्मा नहीं बना सकता।

मुरली उद्धरण — 18 नवम्बर 1969 (अव्यक्त मुरली):

“आत्मा ही जीवन है। पदार्थ में जीवन नहीं।”


प्रश्न 8: तो यह संसार कैसे चलता है?

उत्तर:
यह संसार एक “अनादि विश्व नाटक” है —
जो सदा एक ही क्रम में चलता है।
हर आत्मा अपनी भूमिका समयानुसार निभाती है।
परमात्मा बीच-बीच में आकर
ज्ञान देकर नई सृष्टि का बीज बोते हैं।

यह सृष्टि का चक्र — संगम से सत्ययुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग और फिर संगम
सदैव चलता रहता है।


प्रश्न 9: इसका हमारे जीवन से क्या संबंध है?

उत्तर:
जब हमें यह समझ आता है कि यह संसार “नाटक” है —
तो हम हर परिस्थिति को “द्रष्टा” बनकर देखते हैं।
हम जान जाते हैं कि आत्मा भूमिका निभाने आई है
और हर दृश्य पूर्व निर्धारित है।
यही समझ हमें शांति, स्थिरता और सहनशीलता देती है।


अगले अध्याय का संकेत

“क्या भगवान ने जीव बनाए?”
अगले अध्याय में हम देखेंगे —
धर्म और विज्ञान की दृष्टि से जीवन की वास्तविक उत्पत्ति का रहस्य

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