(37)11-05-1984 “Every step, resolution and action of the Brahmins creates the law.”

अव्यक्त मुरली-(37)11-05-1984 “ब्राह्मणों के हर कदम, संकल्प, कर्म से विधान का निर्माण”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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11-05-1984 “ब्राह्मणों के हर कदम, संकल्प, कर्म से विधान का निर्माण”

विश्व रचता अपने नये विश्व के निर्माण करने वाले नये विश्व की तकदीर बच्चों को देख रहे हैं। आप श्रेष्ठ भाग्यवान बच्चों की तकदीर विश्व की तकदीर है। नये विश्व के आधार स्वरुप श्रेष्ठ बच्चे हो। नये विश्व के राज्य भाग्य के अधिकारी विशेष आत्मायें हो। आपकी नई जीवन विश्व का नव निर्माण करती हैं। विश्व को श्रेष्ठाचारी सुखी शान्त सम्पन्न बनाना ही है, आप सबके इस श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प की अंगुली से कलियुगी दु:खी संसार बदल सुखी संसार बन जाता है क्योंकि सर्व शक्तिवान बाप की श्रीमत प्रमाण सहयोगी बने हो, इसलिए बाप के साथ आप सबका सहयोग, श्रेष्ठ योग विश्व परिवर्तन कर लेता है। आप श्रेष्ठ आत्माओं का इस समय का सहजयोगी, राजयोगी जीवन का हर कदम, हर कर्म नये विश्व का विधान बन जाता है। ब्राह्मणों की विधि सदा के लिए विधान बन जाती है। इसलिए दाता के बच्चे दाता, विधाता और विधि विधाता बन जाते हैं। आज लास्ट जन्म तक भी आप दाता के बच्चों के चित्रों द्वारा भक्त लोग मांगते ही रहते हैं। ऐसे विधि विधाता बन जाते जो अब तक भी चीफ जस्टिस भी सभी को कसम उठाने के समय ईश्वर का या ईष्ट देव का स्मृति स्वरुप बनाए कसम उठवाते हैं। लास्ट जन्म में भी विधान में शक्ति आप विधि विधाता बच्चों की चल रही है। अपना कसम नही उठाते। बाप का, आपका महत्व रखते हैं। सदा वरदानी स्वरुप भी आप हो। भिन्न-भिन्न वरदान, भिन्न-भिन्न देवताओं और देवियों द्वारा आपके चित्रों द्वारा ही मांगते हैं। कोई शक्ति का देवता है, कोई विद्या की देवी है। वरदानी स्वरुप आप बने हो तब अभी तक भी परमपरा भक्ति की आदि से चलती रही है। सदा बापदादा द्वारा सर्व प्राप्ति स्वरुप प्रसन्नचित, प्रसन्न्ता स्वरुप बने हो तो अब तक भी अपने को प्रसन्न करने के लिए देवी देवताओं को प्रसन्न करते हैं कि ये ही हमें सदा के लिए प्रसन्न करेंगे। सबसे बड़े ते बड़ा खजाना सन्तुष्टता का बाप द्वारा आप सबने प्राप्त किया है। इसलिए सन्तुष्टता लेने के लिए सन्तोषी देवी की पूजा करते रहते हैं। सभी सन्तुष्ट आत्मायें सन्तोषी माँ हो ना। सब सन्तोषी हो ना! आप सभी सन्तुष्ट आत्मायें सन्तोषी मूर्त हो। बापदादा द्वारा सफलता जन्म सिद्ध अधिकार रुप में प्राप्त की है इसलिए सफलता का दान, वरदान आपके चित्रों से मांगते हैं। सिर्फ अल्प बुद्धि होने के कारण, निर्बल आत्मायें होने के कारण, भिखारी आत्मायें होने के कारण अल्पकाल की सफलता ही मांगते हैं। जैसे भिखारी कभी भी यह नहीं कहेंगे कि हजार रुपया दो। इतना ही कहेंगे कुछ पैसे दे दो। एक रुपया, दो रूपया दे दो। ऐसे यह आत्मायें भी सुख-शान्ति पवित्रता की भिखारी अल्पकाल के लिए सफलता मांगेंगी। बस यह मेरा कार्य हो जाए, इसमें सफलता हो जाए। लेकिन मांगते आप सफलता स्वरुप आत्माओं से ही हैं। आप दिलाराम बाप के बच्चे दिलवाला बाप को सभी दिल का हाल सुनाते हो, दिल की बातें करते हो। जो किसी आत्मा से नहीं कर सकते वह बाप से करते हो। सच्चे बाप के सच्चे बच्चे बनते हो। अब भी आपके चित्रों के आगे सब दिल का हाल बोलते रहते हैं। जो भी अपनी कोई छिपाने वाली बात होगी, सबके स्नेही सम्बन्धी से छिपायेंगे लेकिन देवी देवताओं से नहीं छिपायेंगे। दुनिया के आगे कहेंगे मैं यह हूँ, सच्चा हूँ, महान हूँ। लेकिन देवताओं के आगे क्या कहेंगे? जो हूँ वह यही हूँ। कामी भी हूँ तो कपटी भी हूँ। तो ऐसे नये विश्व की तकदीर हो। हर एक की तकदीर में पावन विश्व का राज्य भाग्य है।

ऐसे विधाता वरदाता, विधि विधाता सर्व श्रेष्ठ आत्मायें हो। हरेक के श्रेष्ठ मत रुपी हाथों में स्वर्ग के स्वराज्य का गोला है। ये ही माखन है। राज्य भाग्य का माखन है। हरेक के सिर पर पवित्रता की महानता का, लाइट का क्राउन है। दिलतख्तनशीन हो। स्वराज्य के तिलकधारी हो। तो समझा मैं कौन? मैं कौन की पहेली हल करने आये हो ना? पहले दिन का पाठ यह पढ़ा ना। मैं कौन? मैं यह नहीं हूँ और मैं यह हूँ। इसी में ही सारा ज्ञान सागर का ज्ञान समाया हुआ है। सब जान गये हो ना। यही रुहानी नशा सदा साथ रहे। इतनी श्रेष्ठ आत्मायें हो। इतनी महान हो। हर कदम, हर संकल्प, हर कर्म यादगार बन रहा है। विधान बन रहा है। इसी श्रेष्ठ स्मृति से उठाओ। समझा। सारे विश्व की नज़र आप आत्माओं की तरफ है। जो मैं करूँगा वो विश्व के लिए विधान और यादगार बनेगा। मैं हलचल में आऊंगी तो दुनिया हलचल में आयेगी। मैं सन्तुष्टता प्रसन्नता में रहूँगी, तो दुनिया सन्तुष्ट और प्रसन्न बनेगी। इतनी जिम्मेवारी हर विश्व नव निर्माण के निमित्त आत्माओं की है। लेकिन जितनी बड़ी है उतनी हल्की है क्योंकि सर्वशक्तिवान बाप साथ है। अच्छा।

ऐसे सदा प्रसन्नचित्त आत्माओं को, सदा मास्टर विधाता, वरदाता बच्चों को, सदा सर्व प्राप्ति स्वरुप सन्तुष्ट आत्माओं को, सदा याद द्वारा हर कर्म का यादगार बनाने वाली पूज्य महान आत्माओं को विधाता वरदाता बापदादा का यादप्यार और नमस्ते।

कुमारों के अलग-अलग ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

1. सभी श्रेष्ठ कुमार हो ना? साधारण कुमार नहीं, श्रेष्ठ कुमार। तन की शक्ति, मन की शक्ति सब श्रेष्ठ कार्य में लगाने वाले। कोई भी शक्ति विनाशी कार्य में लगाने वाले नहीं। विकारी कार्य है विनाशकारी कार्य और श्रेष्ठ कार्य है ईश्वरीय कार्य। तो सर्व शक्तियों को ईश्वरीय कार्य में लगाने वाले श्रेष्ठ कुमार। कहाँ व्यर्थ के खाते में तो कोई शक्ति नहीं लगाते हो? अभी अपनी शक्तियों को कहाँ लगाना है, यह समझ मिल गई। इसी समझ द्वारा सदा श्रेष्ठ कार्य करो। ऐसे श्रेष्ठ कार्य में सदा रहने वाले श्रेष्ठ प्राप्ति के अधिकारी बन जाते हैं। ऐसे अधिकारी हो? अनुभव करते हो कि श्रेष्ठ प्राप्ति हो रही है? या होनी है? हर कदम में पदमों की कमाई जमा हो रही है ये अनुभव है ना? जिसकी एक कदम में पदमों की कमाई जमा हो वह कितने श्रेष्ठ हुए। जिसकी इतनी जमा सम्पत्ति हो उसको कितनी खुशी होगी! आजकल के लखपति, करोड़पति को भी विनाशी खुशी रहती है, आपकी अविनाशी प्रॉपर्टी है। श्रेष्ठ कुमार की परिभाषा समझते हो? सदा हर शक्ति श्रेष्ठ कार्य में लगाने वाले। व्यर्थ का खाता सदा के लिए समाप्त हुआ, श्रेष्ठ खाता जमा हुआ या दोनों चलता है? एक खत्म हुआ। अभी दोनों चलाने का समय नहीं है। अभी वह सदा के लिए खत्म। दोनों होंगे तो जितना जमा होना चाहिए उतना नहीं होगा। गँवाया नहीं, जमा हुआ तो कितना जमा होगा! तो व्यर्थ खाता समाप्त हुआ, समर्थ खाता जमा हुआ।

2. कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है। कुमार जीवन में जो चाहे वह कर सकते हो। चाहे अपने को श्रेष्ठ बनायें, चाहे अपने को नीचे गिरायें। यह कुमार जीवन ही ऊंचा या नीचा होने वाली है। ऐसी जीवन में आप बाप के बन गये। विनाशी जीवन के साथी के कर्मबन्धन में बंधने के बजाए सच्चा जीवन का साथी ले लिया। कितने भाग्यवान हो! अभी आये तो अकेले आये या कम्बाइन्ड होकर आये? (कम्बाइन्ड) टिकेट तो नहीं खर्च की ना? तो यह भी बचत हो गई। वैसे अगर शरीर के साथी को लाते तो टिकेट खर्च करते, उनका सामान भी उठाना पड़ता और कमाकर रोज़ खिलाना भी पड़ता। यह साथी तो खाता भी नहीं सिर्फ वासना लेते हैं। रोटी कम नहीं हो जाती और ही शक्ति भर जाती है। तो बिना खर्चा, बिना मेहनत के और साथी भी अविनाशी, सहयोग भी पूरा मिलता है। मेहनत नहीं लेते और सहयोग देते हैं। कोई मुश्किल कार्य आये, याद किया और सहयोग मिला। ऐसे अनुभवी हो ना! जब भक्तों को भी भक्ति का फल देने वाले हैं तो जो जीवन का साथी बनने वाले हैं उनको साथ नहीं देंगे? कुमार कम्बाइन्ड तो बने लेकिन इस कम्बाइन्ड में बेफिकर बादशाह बन गये। कोई झंझट नहीं, बेफिकर हैं। आज बच्चा बीमार हुआ, आज बच्चा स्कूल नहीं गया… ये कोई बोझ नहीं। सदा निर्बन्धन। एक के बन्धन में बंधने से अनेक बन्धनों से छूट गये। खाओ पियो मौज करो और क्या काम। अपने हाथ से बनाया और खाया, जो चाहो वह खाओ। स्वतन्‍त्र हो। कितने श्रेष्ठ बन गये। दुनिया के हिसाब से भी अच्छे हो। समझते हो ना कि दुनिया के झंझटों से बच गये। आत्मा की बात छोड़ो, शरीर के कर्म बन्धन के हिसाब से भी बच गये। ऐसे सेफ हो। कभी दिल तो नहीं होती कि कोई ज्ञानी साथी बना दें? कोई कुमारी का कल्याण कर दें, ऐसी दिल होती है? यह कल्याण नहीं है, अकल्याण है। क्यों? एक बन्धन बंधा और अनेक बन्धन शुरु हुए। यह एक बन्धन अनेक बन्धन पैदा करता, इसलिए मदद नहीं मिलेगी। बोझ होगा। देखने में मदद है लेकिन है अनेक बातों का बोझ। जितना बोझ कहो उतना बोझ है। तो अनेक बोझ से बच गये। कभी स्वप्न में भी नहीं सोचना। नहीं तो ऐसा बोझ अनुभव करेंगे जो उठना ही मुश्किल। स्वतन्‍त्र रहकर बन्धन में बंधे तो पदमगुणा बोझ होगा। वह अन्जान से बिचारे बंध गये, आप जानबूझकर बंधेंगे तो और पश्चाताप का बोझ होगा। कोई कच्चा तो नहीं है? कच्चे की गति नहीं होती। न यहाँ का रहता, न वहाँ का रहता। आपकी तो सद्गति हो गई है ना। सद्गति माना श्रेष्ठ गति। थोड़ा संकल्प आता हैं? फोटो निकल रहा है। अगर कुछ नीचे ऊपर किया तो फोटो आयेगा। जितने पक्के बनेंगे उतना वर्तमान और भविष्य श्रेष्ठ है।

3. सभी समर्थ कुमार हो ना! समर्थ हो? सदा समर्थ आत्मायें जो भी संकल्प करेंगी, जो भी बोल बोलेंगी, कर्म करेंगी वह समर्थ होगा। समर्थ का अर्थ ही है व्यर्थ को समाप्त करने वाले। व्यर्थ का खाता समाप्त और समर्थ का खाता सदा जमा करने वाले। कभी व्यर्थ तो नहीं चलता? व्यर्थ संकल्प या व्यर्थ बोल या व्यर्थ समय। अगर सेकेण्ड भी गया तो कितना गया। संगम पर सेकेण्ड कितना बड़ा है। सेकेण्ड नहीं लेकिन एक सेकेण्ड एक जन्म के बराबर है। एक सेकेण्ड नहीं गया एक जन्म गया। ऐसे महत्व को जानने वाले समर्थ आत्मायें हो ना। सदा यह स्मृति रहे कि हम समर्थ बाप के बच्चे हैं, समर्थ आत्मायें हैं। समर्थ कार्य के निमित्त हैं। तो सदा ही उड़ती कला का अनुभव करते रहेंगे। कमजोर उड़ नहीं सकते। समर्थ सदा उड़ते रहेंगे। तो कौन सी कला वाले हो? उड़ती कला या चढ़ती कला? चढ़ने में सांस फूल जाता है। थकते भी हैं, साँस भी फूलता है। और उड़ती कला वाले सेकेण्ड में मंजिल पर सफलता स्वरुप बने। चढ़ती कला है तो जरुर थकेंगे, साँस भी फूलेगा – क्या करें, कैसे करें, यह साँस फूलता है। उड़ती कला में सबसे पार हो जाते। टचिंग आती है कि यह करें, यह हुआ ही पड़ा है। तो सेकेण्ड में सफलता की मंजिल को पाने वाले इसको कहा जाता है समर्थ आत्मा। बाप को खुशी होती है कि सभी उड़ती कला वाले बच्चे हैं, मेहनत क्यों करें। बाप तो कहेंगे बच्चे मेहनत से बचे रहें। जब बाप रास्ता दिखा रहा है, डबल लाइट बना रहा है तो फिर नीचे क्यों आ जाते हो? क्या होगा, कैसे होगा यह बोझ है। सदा कल्याण होगा, सदा श्रेष्ठ होगा, सदा सफलता जन्म सिद्ध अधिकार है, इस स्मृति से चलो।

4. कुमारों को पेपर देने के लिए युद्ध करनी पड़ती है। पवित्र बनना है, यह संकल्प किया तो माया युद्ध करना शुरु कर देती है। कुमार जीवन श्रेष्ठ जीवन है। महान आत्मायें हैं। अभी कुमारों को कमाल करके दिखानी है। सबसे बड़े ते बड़ी कमाल है – बाप के समान बन बाप के साथी बनाना। जैसे आप स्वयं बाप के साथी बने हो ऐसे औरों को भी साथी बनाना है। माया के साथियों को बाप के साथी बनाना है – ऐसे सेवाधारी। अपने वरदानी स्वरुप से शुभ भावना और शुभ कामना से बाप का बनाना है। इसी विधि द्वारा सदा सिद्धि को प्राप्त करना है। जहाँ श्रेष्ठ विधि है वहाँ सिद्धि जरुर है। कुमार अर्थात् सदा अचल। हलचल में आने वाले नहीं। अचल आत्मायें औरों को भी अचल बनाती हैं।

5. सभी विजयी कुमार हो ना? जहाँ बाप साथ है वहाँ सदा विजय है। सदा बाप के साथ के आधार से कोई भी कार्य करेंगे तो मेहनत कम और प्राप्ति ज्यादा अनुभव होगी। बाप से थोड़ा सा भी किनारा किया तो मेहनत ज्यादा प्राप्ति कम। तो मेहनत से छूटने का साधन है – बाप का हर सेकेण्ड हर संकल्प में साथ हो। इस साथ से सफलता हुई पड़ी है। ऐसे बाप के साथी हो ना? जो बाप की आज्ञा है उस आज्ञा के प्रमाण कदम हों। बाप के कदम के पीछे कदम हो। यहाँ कदम रखें या न रखें, राइट है या रांग है। यह सोचने की भी जरुरत नहीं। नया कोई रास्ता हो तो सोचना भी पड़े। लेकिन जब कदम पर कदम रखना है तो सोचने की बात नहीं। सदा बाप के कदम पर कदम रख चलते चलो, तो मंजिल समीप ही है। बाप कितना सहज करके देते हैं – श्रीमत ही कदम है। श्रीमत के कदम पर कदम रखो तो मेहनत से सदा छूटें रहेंगे। सर्व सफलता अधिकार के रुप में होगी। छोटे कुमार भी बहुत सेवा कर सकते हैं। कभी भी मस्ती नहीं करना, आप की चलन, बोल-चाल ऐसा हो जो सब पूछें कि यह किस स्कूल में पढ़ने वाले हैं। तो सेवा हो जायेगी ना। अच्छा।

युगलों के ग्रुप से अव्यक्त बापदादा की मुलाकात:-

1. एक मत के पट्टे पर चलने वाले तो फास्ट रफ्तार वाले होंगे ना! दोनों की मत एक, यह एक मत ही पहिया है। एक मत के पहियों के आधार पर चलने वाले सदा तीव्रगति से चलते हैं। दोनों ही पहिये श्रेष्ठ पहिये हैं। एक ढीला एक तेज तो नहीं हो ना? दोनों पहिये एकरस। तीव्र पुरुषार्थ में पाण्डव नम्बरवन हैं या शक्तियाँ? एक दो को आगे बढ़ाना अर्थात् स्वयं आगे बढ़ना। ऐसे नहीं आगे बढ़ाकर खुद पीछे हो जायें। आगे बढ़ाना स्वयं आगे बढ़ना। सभी लकी आत्मायें हो ना? दिल्ली और बॉम्बे निवासी विशेष लकी हैं क्योंकि रास्ते चलते भी बहुत खजाना मिलता है। विशेष आत्माओं का संग, सहयोग, शिक्षा सब प्राप्त होता है। यह भी वरदान है जो बिना निमन्‍त्रण के मिलता रहता है। दूसरे लोग कितनी मेहनत करते हैं। सारे ब्राह्मण जीवन में या सेवा की जीवन में ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें दो-तीन बारी भी कहाँ पर मुश्किल पहुंचते हैं लेकिन आप बुलाओ, ना बुलाओ, आपके पास सहज ही पहुंच जाते हैं। तो संग का रंग जो प्रसिद्ध है, विशेष आत्माओं का संग भी उमंग दिलाता है। कितना सहज भाग्य प्राप्त करने वाली भाग्यवान आत्मायें हो। सदा गीत गाते रहो – वाह मेरा श्रेष्ठ भाग्य। जो प्राप्ति हो रही है उसका रिटर्न है – सदा उड़ती कला। रुकने और चलने वाले नहीं। सदा उड़ने वाले।

2. सदा अपने को बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले अनुभव करते हो? बाप की याद ही छत्रछाया है। जो छत्रछाया के अन्दर रहते वह सदा सेफ रहते हैं। कभी बरसात या तूफान आता तो छत्रछाया के अन्दर चले जाते हैं। ऐसे बाप की याद छत्रछाया है। छत्रछाया में रहने वाले सहज ही मायाजीत हैं। याद को भूला अर्थात् छत्रछाया से बाहर निकला। बाप की याद सदा साथ रहे। जो ऐसे छत्रछाया में रहने वाले हैं उन्हें बाप का सहयोग सदा मिलता रहता है। हर शक्ति की प्राप्ति का सहयोग सदा मिलता रहता है। कभी कमजोर होकर काया से हार नहीं खा सकते। कभी माया याद तो भुला नहीं देती है? 63 जन्म भूलते रहे, संगमयुग है याद में रहने का युग। इस समय भूलना नहीं। भूलने से ठोकरे खाई, दु:ख मिला। अभी फिर कैसे भूलेंगे! अभी सदा याद में रहने वाले।

3. सदा अपने विशेष पार्ट को देख हर्षित रहते हो? ऊंचे से ऊंचे बाप के साथ पार्ट बजाने वाले विशेष पार्टधारी हो। विशेष पार्टधारी का हर कर्म स्वत: ही विशेष होगा क्योंकि स्मृति में है कि मैं विशेष पार्टधारी हूँ। जैसे स्मृति वैसी स्थिति स्वत: बन जाती है।

हर कर्म, हर बोल विशेष। साधारणता समाप्त हुई। विशेष पार्टधारी सभी को स्वत: आकर्षित करते हैं। सदा इस स्मृति में रहो कि हमारे इस विशेष पार्ट द्वारा अनेक आत्मायें अपनी विशेषता को जानेंगी। किसी भी विशेष आत्मा को देख स्वयं भी विशेष बनने का उमंग आता है। कहाँ भी रहो, कितने भी मायावी वायुमण्डल में रहो लेकिन विशेष आत्मा हर स्थान पर विशेष दिखाई दे। जैसे हीरा मिट्टी के अन्दर भी चमकता दिखाई देता। हीरा, हीरा ही रहता है। ऐसे कैसा भी वातावरण हो लेकिन विशेष आत्मा सदा ही अपनी विशेषता से आकर्षित करेगी। सदा याद रखना कि हम विशेष युग की विशेष आत्मायें हैं।

विदाई के समय:- संगमयुग है ही मिलने का युग। जितना मिलेंगे उतना और मिलने की आशा बढ़ेगी। और मिलने की शुभ आशा होनी भी चाहिए क्योंकि यह मिलने की शुभ आशा ही मायाजीत बना देती है। यह मिलने का शुभ संकल्प सदा बाप की याद स्वत: दिलाता है। यह तो होनी ही चाहिए। यह पूरी हो जायेगी तो संगम पूरा हो जायेगा। और सब इच्छायें पूरी हुई लेकिन याद में सदा समाये रहें, यह शुभ इच्छा आगे बढ़ायेंगी। ऐसे है ना! तो सदा मिलन मेला होता ही रहेगा। चाहे व्यक्त द्वारा चाहे अव्यक्त द्वारा सदा साथ ही रहते हैं फिर मिलने की आवश्यकता ही क्या! हर मिलन का अपना-अपना स्वरूप और प्राप्ति है। अव्यक्त मिलन अपना और साकार मिलन अपना। मिलना तो अच्छा ही है। अच्छा! सदा शुभ और श्रेष्ठ प्रभात रहेगी। वह तो सिर्फ गुडमॉर्निंग कहते लेकिन यहाँ शुभ भी है और श्रेष्ठ भी है। हर सेकेण्ड शुभ और श्रेष्ठ, इसलिए सेकेण्ड-सेकेण्ड की मुबारक हो।

अध्याय : ब्राह्मणों के हर कदम, संकल्प, कर्म से विधान का निर्माण

(अव्यक्त मुरली — 11 मई 1984)


1. ब्राह्मण जीवन — विश्व निर्माण की नींव

बापदादा कहते हैं—
“विश्व रचता अपने नये विश्व के निर्माण करने वाले बच्चों को देख रहा है।”

अर्थात् आप ब्राह्मण आत्माएँ केवल अपने भाग्य का निर्माण नहीं करतीं, बल्कि
विश्व के भाग्य की आधारशिला बनती हैं।

उदाहरण:

जैसे एक इंजीनियर केवल अपने घर का नहीं, पूरा शहर निर्माण करता है—
वैसे ही ब्राह्मण आत्माओं का हर विचार, हर शब्द, हर कर्म नये विश्व का कानून बन जाता है।


2. श्रेष्ठ संकल्प से कलियुग बदलता है

बाप कहते हैं—

“आपके श्रेष्ठ दृढ़ संकल्प की अंगुली से कलियुगी दुखी संसार बदल सुखी संसार बन जाता है।”

यह कोई रूपक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक विज्ञान है।

कैसे? (मुरली सम्मत स्पष्टीकरण)

  • संकल्प = कम्पन (Vibration)

  • कम्पन = वातावरण

  • वातावरण = विश्व की दिशा

  • ब्राह्मण आत्माएँ = सर्वोच्च कम्पन
    इसलिए आपके संकल्प पूरे विश्व का परिवर्तन करा देते हैं।


3. ब्राह्मणों के कदम ही ‘विधान’ क्यों बनते हैं?

बापदादा ने आज का मुख्य मंत्र दिया—

“ब्राह्मणों की विधि सदा के लिए विधान बन जाती है।”

अर्थात् संगमयुग में आप जो भी करते हैं—
यही ‘देवताओं के धर्म के नियम’ बन जाते हैं।

उदाहरण:

देवताओं के चित्रों में सभी दान देते हुए दिखते हैं।
क्यों?
क्योंकि संगमयुग पर ब्राह्मण बच्चों ने दाता बनकर कर्म किए
इसलिए वही विधान देवताओं की यादगार बन गया।


4. आप दाता के बच्चे — इसलिए दाता, विधाता और विधि-विधाता

मुरली में स्पष्ट कहा—
“दाता के बच्चे दाता बन जाते हैं, विधाता के बच्चे विधि-विधाता बन जाते हैं।”

इसका अर्थ:

  • आप हर आत्मा को ‘वरदान’ देने की स्थिति बनाते हैं

  • आपकी स्मृति से दूसरों की शक्ति बढ़ती है

  • आपके vibrations उनके जीवन की कठिनाई को हल कर देते हैं

इसीलिए आज भी लोग आपके (देवी-देवताओं के) चित्रों के आगे वरदान मांगते हैं।


5. क्यों भक्त लोग देवताओं से ‘दिल की बात’ कहते हैं?

मुरली बिंदु:

“दुनिया के आगे कुछ भी छिपाते हैं, पर देवताओं के आगे नहीं…
देवताओं के आगे कहते हैं—जैसा हूँ, वैसा हूँ।”

यह इसलिए क्योंकि:

  • संगमयुग पर ब्राह्मण बच्चे दिल से बाप को बताते हैं

  • वही स्थिति आगे चलकर देवताओं की यादगार बनती है

  • भक्त अपने चित्रों को ‘साक्षी’ मानते हैं


6. ब्राह्मण जीवन — पवित्रता का ताज और राज्य भाग्य का तिलक

बापदादा कहते हैं—

“हरेक के सिर पर पवित्रता की लाइट का ताज है…
हरेक स्वराज्य का तिलकधारी है।”

इसका अर्थ:

  • आपकी सोच पवित्र = आपके चारों ओर दिव्य लाइट

  • आपकी वृत्ति शुद्ध = आत्म-राज्य स्थापित

  • आपका जीवन = देव जीवन के नियमों की आधारशिला


7. “मैं कौन?” — पहला पाठ, सम्पूर्ण मुरली का आधार

यह क्लासिक बिंदु:

“मैं यह नहीं, मैं यह हूँ — इसमें ही पूरा ज्ञान सागर का सार है।”

यही ब्राह्मण जीवन का नशा है।
यही पवित्रता का आधार है।
यही विश्व परिवर्तन का बीज है।


8. विश्व की नज़र ब्राह्मण आत्माओं पर

मुरली का शक्तिशाली वाक्य—

“मैं हलचल में आऊँगा तो दुनिया हलचल में आएगी।
मैं प्रसन्न रहूँगा तो दुनिया प्रसन्न बनेगी।”

यह संगमयुग पर ब्राह्मण आत्माओं की सुप्रीम जिम्मेदारी है।

लेकिन—
बाप साथ है, इसलिए जिम्मेदारी बड़ी होकर भी हल्की है।


कुमारों से मुलाकात — दिव्य शिक्षा


9. श्रेष्ठ कुमार — व्यर्थ खाता समाप्त, समर्थ खाता जमा

मुरली:

“कुमार जीवन शक्तिशाली जीवन है…
हर शक्ति व्यर्थ में नहीं, श्रेष्ठ कार्य में लगानी है।”

उदाहरण
वह युवक जो अपनी शक्ति, समय और मन नियंत्रण में लगा ले—
उससे श्रेष्ठ और कौन?


10. कुमार जीवन — बेफिकर बादशाह

बाप का मधुर हास्य:

“शरीर के साथी का टिकट, खर्च, सामान…
सब बोझ है।
यह साथी (बाबा) खाता नहीं, वासना नहीं लेता—
बल्कि शक्ति बढ़ा देता है!”

कितना सुंदर उदाहरण!


11. समर्थ कुमार — उड़ती कला के अधिकारी

“एक सेकण्ड गया मतलब एक जन्म गया।”

इसलिए समर्थ कुमार:

  • व्यर्थ संकल्प नहीं करते

  • उड़ती कला में रहते

  • ‘क्या होगा, कैसे होगा’ में नहीं उलझते


12. कुमार — माया के साथी को बाप का साथी बनाना

विशेष आदेश:

“कुमारों ने कमाल दिखानी है—
माया के साथियों को बाप का साथी बनाना है।”

यही सच्ची सेवा।
यही न्यायपूर्ण कर्म।
यही कल्प-कल्प का यश।


युगलों से मुलाकात — विशेष पॉइंट्स


13. युगल जीवन — एक मत के दो पहिये

बापदादा:

“दोनों पहिये एक मत हों तो गाड़ी तेज चलती है।”

यानी—

  • दो मत = friction

  • एक मत = गति

आध्यात्मिक निष्कर्ष:

युगल जीवन = डबल सेवा योग।


14. छत्रछाया का रहस्य — ‘याद’ ही सुरक्षा है

“बाप की याद छत्रछाया है…
याद भूली तो छत्रछाया से बाहर निकले।”

इससे बड़ा लाइफ-हैक क्या हो सकता है?


15. विशेष पार्टधारी बनो — हीरे की तरह चमको

“हीरा मिट्टी में भी चमकता है।”

इसलिए चाहे जैसा वातावरण हो—
विशेष आत्मा वातावरण नहीं लेती,
वातावरण देती है


अंतिम वरदान

“सदा प्रसन्नचित्त, मास्टर विधाता, वरदाता, सर्व-प्राप्ति स्वरूप संतुष्ट आत्माओं को बापदादा का याद-प्यार और नमस्ते।”

डिस्क्लेमर (Disclaimer):यह वीडियो ब्रह्माकुमारीज़ की आध्यात्मिक शिक्षाओं, अव्यक्त वाणी और मुरली के आधार पर बनाया गया है। इसका उद्देश्य केवल आध्यात्मिक जागृति, आत्म-परिवर्तन और सकारात्मकता फैलाना है। यह किसी भी प्रकार के धार्मिक विवाद, मतभेद या आलोचना के लिए नहीं है।

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