(17)श्रीकृष्ण की भक्ति श्रीनारायण की भक्ति से ज्यादा होती है क्यों_ब्रह्माकुमारीज़
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
✨ श्रीकृष्ण की भक्ति श्री नारायण से ज़्यादा क्यों होती है? | ब्रह्माकुमारीज ज्ञान
दिव्य प्रकाश में श्रीकृष्ण की झलक]
🔔 ओम शांति! आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की दिल से हार्दिक शुभकामनाएँ!
आज हम एक अद्भुत और रहस्यमय प्रश्न पर चर्चा कर रहे हैं:
🌟 “श्रीकृष्ण की भक्ति, श्री नारायण की भक्ति से अधिक क्यों होती है?”
हो सकता है, अगर आप प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय से नहीं जुड़े हैं, तो यह प्रश्न आपके मन में भी उठे —
“जब श्री नारायण सम्पूर्ण 16 कला सम्पन्न हैं, तो उनकी भक्ति अधिक क्यों नहीं होती?”
यह प्रश्न बिल्कुल जायज़ है, और ऐसा प्रश्न आज तक 2,000 से भी अधिक भाई-बहनों ने हमसे पूछा है।
🎥 हमने उन सभी प्रश्नों पर आधारित वीडियो बना रखे हैं, जो आपको इस वीडियो के डिस्क्रिप्शन में मिलेंगे।
📱 और अगर फिर भी आपका प्रश्न वहाँ नहीं मिलता, तो आप हमें
हम आपके प्रश्न का उत्तर एक नए वीडियो में देंगे — ताकि ज्ञान की रोशनी हर आत्मा तक पहुँच सके।
श्रीकृष्ण बनाम श्री नारायण]
🌸 अब आइए समझते हैं कि श्रीकृष्ण की भक्ति सबसे अधिक क्यों होती है…
🔹 बाबा ने स्पष्ट किया है:
श्रीकृष्ण आत्मा सोलह कला संपूर्ण बनने की यात्रा पर है।
श्रीकृष्ण वह आदि आत्मा है जो संगम युग में परमात्मा शिव से साक्षात्कार करता है।
यही आत्मा आगे चलकर बनती है — श्री नारायण।
🔹 श्रीकृष्ण के जीवन में वह “लालित्य, मोह, मधुरता” होती है, जो भक्तों को बहुत आकर्षित करती है।
🔹 उनका जन्म संगम युग में होता है, जब चारों ओर अंधकार होता है – और उसी समय, रोशनी का पहला दीप जलता है।
✨ इसलिए श्रीकृष्ण का जन्म ‘अलौकिक’ कहलाता है।
जबकि श्री नारायण सतयुग के आदि में आता है – पूर्ण अवस्था में, लेकिन तब सबकुछ स्वाभाविक और स्थिर होता है। चमत्कार जैसा अनुभव नहीं होता।
📿 भक्ति वहाँ अधिक होती है, जहाँ आश्चर्य और अनुभव की गहराई होती है।
और वह अनुभव संगम युग में श्रीकृष्ण आत्मा के रूप में होता है — जब परमात्मा खुद आकर साक्षात्कार कराते हैं।
🪔 इसलिए श्रीकृष्ण की भक्ति सबसे ज़्यादा होती है, क्योंकि वह आत्मा परमात्मा से प्रत्यक्ष मिलती है,
और यही मिलन – ‘रासलीला’, ‘कन्हैया’, ‘नंदलाल’, ‘माखनचोर’ जैसी अनेक भावनाओं में प्रकट होता है।
✨ श्रीकृष्ण की भक्ति श्री नारायण से ज़्यादा क्यों होती है? | ब्रह्माकुमारीज ज्ञान
: दिव्य प्रकाश में श्रीकृष्ण की झलक]
🔔 ओम शांति! आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की दिल से हार्दिक शुभकामनाएँ!
आज हम एक विशेष विषय पर चर्चा करेंगे —
“श्रीकृष्ण की भक्ति, श्री नारायण की तुलना में अधिक क्यों होती है?”
❓ प्रश्न 1: जब श्री नारायण 16 कला संपूर्ण हैं, तो उनकी भक्ति अधिक क्यों नहीं होती?
✅ उत्तर:श्री नारायण सतयुग के आदि में आते हैं, जब हर आत्मा सम्पन्न और शुद्ध होती है।
उनका आगमन स्वाभाविक है, दिव्यता से परिपूर्ण है — लेकिन उसमें कोई विशेष चमत्कार या संघर्ष की कहानी नहीं होती।
इसलिए उनका अनुभव “आश्चर्यजनक” नहीं लगता।
❓ प्रश्न 2: श्रीकृष्ण की भक्ति में इतना आकर्षण क्यों होता है?
✅ उत्तर:श्रीकृष्ण आत्मा संगम युग में परमात्मा शिव से प्रत्यक्ष साक्षात्कार करती है।
यह आत्मा अंधकार से प्रकाश की यात्रा करती है — इसलिए उसमें “अलौकिक अनुभव” और गहनता होती है।
वही भावनाएँ रासलीला, कन्हैया, माखनचोर जैसे रूपों में प्रकट होती हैं, जो भक्तों को बहुत लुभाती हैं।
❓ प्रश्न 3: क्या श्रीकृष्ण और श्री नारायण एक ही आत्मा हैं?
✅ उत्तर:हां। ब्रह्माकुमारीज के अनुसार, श्रीकृष्ण आत्मा ही आगे चलकर 16 कला संपूर्ण बनती है और श्री नारायण बनती है।
श्रीकृष्ण उस आत्मा की “यात्रा का प्रारंभ” है — और श्री नारायण उसका “पूर्ण रूप”।
❓ प्रश्न 4: श्रीकृष्ण का जन्म संगम युग में क्यों कहा जाता है?
✅ उत्तर:क्योंकि संगम युग ही वह काल है जब परमात्मा शिव स्वयं आकर आत्माओं का पुनर्जन्म कराते हैं — अर्थात “अलौकिक जन्म”।
श्रीकृष्ण आत्मा का वही दिव्य पुनर्जन्म होता है, जिसे भक्ति में “जन्माष्टमी” कहा जाता है।
❓ प्रश्न 5: भक्ति वहाँ अधिक क्यों होती है, जहाँ चमत्कार होता है?
✅ उत्तर:क्योंकि भक्ति भावनाओं पर आधारित होती है — और भावनाएँ गहराई तभी लेती हैं जब अनुभव विशेष और अविस्मरणीय हो।
श्रीकृष्ण का संगम युग में साक्षात्कार और बदलाव चमत्कारी लगता है — यही कारण है कि उनकी भक्ति सर्वोच्च होती है।
🌟 अंतिम सार
🕊️ भक्ति वहाँ होती है जहाँ परमात्मा से प्रत्यक्ष अनुभव जुड़ा हो।
श्रीकृष्ण की आत्मा को परमात्मा शिव की साक्षात शक्ति और प्यार मिलता है —
और वही अनुभव “श्रीकृष्ण भक्ति” के रूप में जन-जन के हृदय को छूता है।
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