Avyakt Murli”18 जनवरी 1969 (1)

Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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“18 जनवरी 1969 – पिताश्री जी के अव्यक्त होने के बाद – अव्यक्त वतन से प्राप्त दिव्य सन्देश”(संदेश 01)

(गुलज़ार बहिन द्वारा)

  1. आज जब हम वतन में गई तो शिवबाबा बोले – साकार ब्रह्मा की आत्मा में आदि से अन्त तक 84 जन्मों के चक्र लगाने के संस्कार हैं तो आज भी वतन से चक्र लगाने गये थे। जैसे साइंस वाले राकेट द्वारा चन्द्रमा तक पहुँचे – और जितना चन्द्रमा के नजदीक पहुँचते गये उतना इस धरती की आकर्षण से दूर होते गये। पृथ्वी की आकर्षण खत्म हो गई। वहाँ पहुँचने पर बहुत हल्कापन महसूस होता है। जैसे तुम बच्चे जब सूक्ष्मवतन में आते हो तो स्थूल आकर्षण खत्म हो जाती है तो वहाँ भी धरती की आकर्षण नहीं रहती है। यह है ध्यान द्वारा और वह है साइंस द्वारा। और भी एक अन्तर बापदादा सुना रहे थे – कि वह लोग जब राकेट में चलते हैं तो लौटने का कनेक्शन नीचे वालों से होता है लेकिन यहाँ तो जब चाहें, जैसे चाहें अपने हाथ में है। इसके बाद बाबा ने एक दृश्य दिखाया – एक लाइट की बहुत ऊँची पहाड़ी थी। उस पहाड़ी के नीचे शक्ति सेना और पाण्डव दल था। ऊपर में बापदादा खड़े थे। इसके बाद बहुत भीड़ हो गई। हम सभी वहाँ खड़े ऐसे लग रहे थे जैसे साकारी नहीं लेकिन मन्दिर के साक्षात्कार मूर्त खड़े हैं। सभी ऊपर देखने की कोशिश कर रहे थे लेकिन ऊपर देख नहीं सके। जैसे सभी बहुत तरस रहे थे। फिर थोड़ी देर में एक आकाशवाणी की तरह आवाज आई कि शक्तियों और पाण्डवों द्वारा ही कल्याण होना है। उस समय हम सबके चहरे पर बहुत ही रहमदिल का भाव था। उसके बाद फिर कई लोगों को शक्तियों और पाण्डवों से अव्यक्त ब्रह्मा का साक्षात्कार, शिवबाबा का साक्षात्कार होने लगा। फिर तो वह सीन देखने की थी कोई हसँ रहा था, कोई पकड़ने की कोशिश कर रहा था, कोई प्रेम में आंसू बहा रहा था। लेकिन सारी शक्तियाँ आग के गोले समान तेजस्वी रूप में स्थित थी। इस पर बाबा ने सुनाया कि अन्त समय में तुम्हारा यह व्यक्त शरीर भी बिल्कुल स्थिर हो जायेगा। अभी तो पुराना हिसाब-किताब होने के कारण शरीर अपनी तरफ खींचता है लेकिन अन्त में बिल्कुल स्थिर, शान्त हो जायेगा। कोई भी हल- चल न मन में, न तन में रहेगी। जिसको ही बाबा कहते हैं देही अभिमानी स्थिति। दृश्य समाप्त होने के बाद बाबा ने कहा – सभी बच्चों को कहना कि अभी देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो। जितना सर्विस पर ध्यान है उतना ही इस मुख्य बात पर भी ध्यान रहे कि देही अभिमानी बनना है।

(गुलजार बहिन द्वारा)

  • सवाल: शिवबाबा ने वतन में जाते समय क्या बताया था?
    उत्तर: शिवबाबा ने बताया कि साकार ब्रह्मा की आत्मा में 84 जन्मों के चक्र लगाने के संस्कार हैं, और आज भी वतन से चक्र लगाने गए थे।
  • सवाल: साइंस के राकेट और ध्यान में क्या अंतर है?
    उत्तर: साइंस के राकेट से चन्द्रमा तक पहुँचने पर पृथ्वी का आकर्षण खत्म हो जाता है, जबकि ध्यान में सूक्ष्मवतन में जाते समय स्थूल आकर्षण समाप्त हो जाता है।
  • सवाल: राकेट और ध्यान में लौटने का क्या अंतर है?
    उत्तर: राकेट में वापस लौटने का कनेक्शन नीचे वालों से होता है, जबकि ध्यान में हम अपने हाथ में समय और तरीका रखते हैं।
  • सवाल: बापदादा द्वारा दिखाई गई दृश्य में क्या हुआ था?
    उत्तर: बापदादा ने एक दृश्य दिखाया, जिसमें शक्तियों और पाण्डवों का कल्याण होगा और वे बहुत तेजस्वी रूप में स्थित थे।
  • सवाल: देही अभिमानी बनने का क्या महत्व है?
    उत्तर: देही अभिमानी बनने से शरीर पूरी तरह स्थिर और शांत हो जाएगा, जिसमें कोई भी हलचल नहीं रहेगी।
  • सवाल: बाबा ने बच्चों से क्या कहा था?
    उत्तर: बाबा ने बच्चों से कहा कि देही अभिमानी बनने का पुरुषार्थ करो और जितना सर्विस पर ध्यान हो, उतना ही इस मुख्य बात पर ध्यान रखना।
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