21-07-2025/आज की मुरली बड़े-बड़े अक्षरों में पढ़े सुनें और मंथन करे
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“ऊंच ते ऊंच भगवान कौन? | देही-अभिमान और दिव्य पद का रहस्य |
“ऊंच ते ऊंच भगवान और आत्मा का दिव्य पद”
1. रूहानी बच्चे और ऊंच ते ऊंच भगवान
रूहानी बच्चे यह तो जान चुके हैं कि ऊंच ते ऊंच एक ही भगवान है। मनुष्य गाते हैं – “ऊंच ते ऊंच भगवान”, लेकिन तुम उसको दिव्य दृष्टि से देख और बुद्धि से जान भी रहे हो।
भगवान कोई मूर्तिवान नहीं बल्कि निराकार, सर्वशक्तिमान शिवबाबा हैं, जो अभी ज्ञान और योग से तुम बच्चों को शक्तिशाली बना रहे हैं।
2. आत्मा ही करती है सब कुछ
यह शरीर विनाशी है, परन्तु आत्मा अविनाशी है। आत्मा ही शरीर के द्वारा पढ़ती है, सेवा करती है, और पार्ट बजाती है।
84 जन्मों की पूरी रिकार्डिंग आत्मा में ही नूँध (रिकॉर्ड) है।
इसलिए पहला और सबसे मुख्य पुरुषार्थ है – “स्वयं को आत्मा समझना”।
3. योग बल से पावन और शक्तिशाली बनो
बाप, सर्वशक्तिमान है और उनसे योग द्वारा ही शक्ति मिलती है।
यही योग शक्ति हमें पावन बनाती है और विश्व पर राज्य का अधिकारी बनाती है।
आज साइंस विनाश के लिए प्रयोग हो रही है, परन्तु हमारा साइंस ऑफ योग, सच्चा अविनाशी ज्ञान, विश्व सुधार के लिए है।
4. लक्ष्मी-नारायण से भी ऊंच है भगवान
मनुष्य लक्ष्मी-नारायण की पूजा करते हैं, परन्तु याद भगवान को करते हैं।
क्योंकि लक्ष्मी-नारायण को भी ऊंच पद भगवान से ही मिला।
बाबा कहते हैं – यह लक्ष्मी-नारायण सतयुग के मालिक थे, जो तुम बनते हो।
5. नशा और खुशी: हम विश्व के मालिक बनते हैं
तुम्हें कितना नशा और खुशी होनी चाहिए कि भगवान खुद हमें इतना ऊंच पद देने आए हैं।
जैसे कन्या अपने पति के लिए जान देती है, वैसे ही यह तो पतियों का पति है – हम आत्माओं का परमात्मा पति।
6. दैवीगुण धारण करने की चेतावनी
बाबा साफ़ कहते हैं –
दैवीगुण धारण करने हैं, ना कि आसुरी अवगुण।
लड़ाई-झगड़ा, ईर्ष्या-द्वेष, रूठना या अधिकार की भावना – ये सब देह-अभिमान से उत्पन्न होती है।
चेतावनी:
यदि सेवा करने वाले स्वयं ही देह-अभिमानी होकर चलते हैं, तो उनका भी घाटा हो जाता है।
धर्मराज हिसाब रखता है। सौगुणा दण्ड पड़ सकता है।
7. याद की गुप्त मेहनत और चार्ट की शक्ति
बाप बार-बार कहते हैं –
याद ही सच्चा पुरुषार्थ है।
योग चार्ट बनाना और उसमें उन्नति करना याद में सफलता की कुंजी है।
जो याद में रहते हैं, वही आत्मा शक्तिशाली बनती है।
8. आत्मा-माशूक और परमात्मा-आशिक
तुम आत्माएं परमात्मा की आशिक हो।
अब तुम्हारा सच्चा प्रेम है उस माशूक से जो तुम्हें स्वर्ग का रास्ता दिखा रहा है।
ऐसे प्रेम में तुम्हें तपस्या करनी है, मन से, संकल्पों से, देही-अभिमानी बनकर।
9. रहमदिल सेवा और योगबल
बाबा कहते हैं –
जो योगबल से सेवा करते हैं, उन्हें ही रहमदिल कहा जाता है।
भले हॉस्पिटल हो या प्रदर्शनी, तुम जहाँ भी जाओ, चित्र और याद की शक्ति से आत्माओं को खींच सकते हो।
10. याद में ही पावनता और दैवीगुण
बाबा बार-बार कहते हैं –
“याद बल ही मुख्य बल है।”
प्योरिटी, पीस और फिर प्रासपर्टी – यह क्रम है।
याद में विघ्न डालने वाली माया को जीतो, तो दैवीगुण अपने आप आते हैं।
11. ब्राह्मण जीवन की मर्यादा और उत्तरदायित्व
जो ब्राह्मण बच्चे सेवा में हैं, उन्हें अपने आचरण में श्रेष्ठता रखनी चाहिए।
वरना खुद ही श्रापित बन जाते हैं।
टीचर या ब्राह्मणी की रिपोर्ट से रूठना, पढ़ाई छोड़ देना – ये नुकसान का कारण है।
12. बाप की इज्जत और ब्राह्मणों की रायॅल्टी
बाप तुम्हें विश्व का मालिक बना रहे हैं –
तो तुम्हारी चलन, भोजन, बोल-चाल में भी रॉयल्टी होनी चाहिए।
अगर कोई कपूत बनता है, तो बाप की भी बदनामी होती है।
13. गुरू कौन है? कौन देता है सद्गति?
बाप समझाते हैं –
गुरु एक ही है – शिवबाबा।
ब्राह्मा-विष्णु-शंकर धर्म स्थापक हैं, सद्गति दाता नहीं।
सद्गति का कार्य करने वाला एक ही निराकार परमपिता परमात्मा है।
14. चक्र का ज्ञान और स्वर्ग की स्थापना
तुम्हारी बुद्धि में अब 5000 वर्ष का चक्र स्पष्ट है।
सतयुग में देवताओं का राज्य था, फिर भक्ति मार्ग आया।
अब वही ज्ञान की प्रालब्ध पूर्ण हो रही है।
अब नई दुनिया में जाने का समय है।
15. योगी जीवन और साधारण जीवन में फ़र्क
जो विश्व का मालिक बनने वाले हैं, उनकी चलन, भोजन, विचार सब बहुत सूक्ष्म और ऊंचे होते हैं।
“खुशी जैसी खुराक और कोई नहीं।”
ऐसी खुशी में रहने से भोजन भी अल्प और एकरस हो जाता है।
प्रश्न 1: “ऊंच ते ऊंच भगवान” किसे कहा गया है?
उत्तर: “ऊंच ते ऊंच भगवान” निराकार शिवबाबा को कहा गया है। मनुष्य देहधारी भगवान को मानते हैं, परंतु ब्रह्माकुमारी ज्ञान के अनुसार, सच्चा भगवान निराकार, सर्वशक्तिमान शिव है, जो अभी ज्ञान और योग से बच्चों को शक्ति दे रहा है।
प्रश्न 2: आत्मा ही सब कुछ करती है – इसका क्या अर्थ है?
उत्तर: आत्मा ही शरीर के द्वारा सोचती, बोलती, पढ़ती और कर्म करती है। शरीर तो एक वेसल (धारक) है। आत्मा अविनाशी है और उसमें 84 जन्मों की सारी रिकार्डिंग संचित होती है।
प्रश्न 3: योग शक्ति से कौन-सी महान प्राप्ति होती है?
उत्तर: योग शक्ति से आत्मा पावन बनती है और वही शक्ति उसे विश्व का राज्य अधिकार देती है। यह अविनाशी शक्ति आत्मा को स्थायी सुख और शांति देती है।
प्रश्न 4: यदि लक्ष्मी-नारायण पूज्य हैं, तो भगवान कौन?
उत्तर: लक्ष्मी-नारायण सतयुग के पूज्य राजा-रानी हैं, परन्तु उन्हें भी ऊंच पद देने वाला भगवान ही है। भगवान शिवबाबा ही उन्हें देवत्व का अधिकारी बनाते हैं।
प्रश्न 5: आत्माओं को परमात्मा से कैसा प्रेम है?
उत्तर: आत्माएं परमात्मा की सच्ची आशिक हैं। यह प्रेम देही-अभिमानी, निर्विकारी, निर्व्यर्थ और अडोल योग से प्रकट होता है – जो हमें स्वर्ग का रास्ता दिखाता है।
प्रश्न 6: दैवीगुण क्यों आवश्यक हैं?
उत्तर: दैवीगुण आत्मा को ब्राह्मण से देवता बनाते हैं। आसुरी वृत्तियाँ जैसे ईर्ष्या, रूठना, क्रोध, अधिकार भावना – यह देह-अभिमान के लक्षण हैं। इन्हें जीतने से ही ऊंच पद संभव है।
प्रश्न 7: बाबा क्यों कहते हैं कि याद ही मुख्य पुरुषार्थ है?
उत्तर: क्योंकि याद से ही आत्मा पवित्र, शक्तिशाली और बाप समान बनती है। यही याद बल हमें विकारों से मुक्त करती है और हमें देवी पद प्राप्त करने योग्य बनाती है।
प्रश्न 8: चार्ट बनाने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: चार्ट से आत्मनिरीक्षण होता है और याद में नियमितता आती है। यह स्वयं की उन्नति का मार्ग है और शिवबाबा की श्रीमत पर चलने का प्रमाण है।
प्रश्न 9: ब्राह्मण जीवन में कौन-सी बातें विशेष ध्यान देने योग्य हैं?
उत्तर: सेवा में श्रेष्ठ आचरण, दैवीगुणों की धारण, सभी को सुख देना, और बाप की इज्जत रखना – ये सब ब्राह्मण जीवन की मर्यादाएं हैं। जो इन्हें नहीं मानते, वे नुकसान करते हैं।
प्रश्न 10: गुरू और सद्गति दाता में क्या अंतर है?
उत्तर: गुरू अनेक हो सकते हैं, पर सच्चा सद्गति दाता एक ही – निराकार शिवबाबा है। ब्रह्मा, विष्णु, शंकर धर्म के निमित्त हैं, परन्तु मोक्षदाता नहीं।
प्रश्न 11: शिवबाबा की याद ही क्यों मुख्य साधना है?
उत्तर: क्योंकि यही याद आत्मा को विकारों से पावन बनाती है, यही योग शक्ति आत्मा को दिव्य पद तक पहुँचाती है और इसी में सच्चा आध्यात्मिक बल छिपा है।
प्रश्न 12: ब्राह्मण बच्चे सेवा करते समय किस बात से सावधान रहें?
उत्तर: सेवा में देह-अभिमान, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, और अधिकार भावना नहीं होनी चाहिए। सेवा को बाप की सेवा समझकर नम्रता, मर्यादा और निष्काम भाव से करना चाहिए।
प्रश्न 13: चक्र ज्ञान से आत्मा को क्या लाभ होता है?
उत्तर: चक्र ज्ञान से आत्मा को अपनी भूमिका और स्थान का बोध होता है। यह ज्ञान हमें ब्रह्मा से लेकर सतयुग तक के क्रम को समझाता है और नयापन देता है।
प्रश्न 14: योगी जीवन और साधारण जीवन में क्या अंतर है?
उत्तर: योगी जीवन में चलन, भोजन, विचार सब बहुत सूक्ष्म, पवित्र और राजसी होते हैं। साधारण जीवन में विकार, दिखावा और भौतिक आकर्षण होते हैं। योगी का भोजन भी अल्प और याद युक्त होता है।
प्रश्न 15: बाबा से मिलने की तड़प आत्मा में क्यों होती है?
उत्तर: क्योंकि आत्मा जान चुकी है कि वही शिवबाबा हमें वापिस घर और फिर स्वर्ग में ले जाने आए हैं। यही तड़प प्रेम और सच्चे आत्म-साक्षात्कार का संकेत है।
डिस्क्लेमर:
यह वीडियो “BK Dr Surender Sharma – Om Shanti Gyan” चैनल द्वारा निर्मित है, जो ब्रह्माकुमारीज़ की आधिकारिक ज्ञानधारा के अनुसार शिक्षात्मक उद्देश्य से प्रस्तुत किया गया है। इसमें वर्णित सभी उत्तर ब्रह्माकुमारी संस्थान की मूल मुरली (Shrimat) पर आधारित हैं।
इस वीडियो का उद्देश्य किसी भी धर्म, पंथ या व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाना नहीं है। कृपया इसे आध्यात्मिक ज्ञान के रूप में देखें।
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