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करवा चौथ का आध्यात्मिक रहस्य
आज 21वां विषय है।

करवा चौथ के चांद का असली रहस्य क्या है?
करवा चौथ की कथा में जो चंद्रमा है, उसका आध्यात्मिक अर्थ क्या हो सकता है?

करवा चौथ की कथा का संक्षेप:
परंपरागत रूप से करवा चौथ पर स्त्रियां दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चांद को देखकर उसके दर्शन के बाद पति का मुख देखकर जल ग्रहण करती हैं।
यह मान्यता है कि चांद शुद्धता, सौंदर्य और शीतलता का प्रतीक है।

लेकिन जब इस कथा को ज्ञान की दृष्टि से देखें, तो चंद्रमा एक गहरी आध्यात्मिक प्रतीक बन जाता है।

मुरली में चंद्रमा का संकेत – 18 जुलाई 1971:
शिव बाबा समझाते हैं बच्चे, चंद्रमा का अर्थ है शीतल बुद्धि।
जिसकी बुद्धि ईश्वर की याद में रहती है, उसकी चंद्रमुखी अवस्था बन जाती है।
चंद्रमा का अर्थ किसी खगोलीय पिंड से नहीं, बल्कि शीतल और योगयुक्त बुद्धि से है, जो काम, विकार और क्रोध से रहित हो।

चंद्रमा आत्मा का प्रतीक है।
ज्ञान की दृष्टि से चंद्रमा आत्मा का प्रतीक है, जो शुद्ध, उज्जवल और शीतल प्रकाश फैलाती है।

अव्यक्त मुरली 12 जून 1983:
चंद्रमुखी आत्मा वे हैं जो ज्ञान का प्रकाश और योग की शीतलता दूसरों को देती हैं।
उदाहरण के लिए जैसे सूर्य अग्नि देता है, वैसे चंद्रमा शीतलता देता है।
योगी आत्मा भी वही करती है। वे दूसरों को शांति, स्थिरता और मधुरता का अनुभव कराती हैं।

भक्ति में स्त्री चंद्रमा को देखकर पति का मुख देखती है।
ज्ञान मार्ग में आत्मा ईश्वर शिव को याद करके अपनी स्वरूप स्मृति को देखती है।
मुरली 2 नवंबर 1972 – जब आत्मा अपना स्वरूप देखती है, तो काम की भूख मिट जाती है।
“मैं तो आत्मा हूं। आत्मा को तो विकार की जरूरत ही नहीं।”

तो काम की भूख मिट जाती है। यही है सच्चा दर्शन अपने आत्मिक चांद का।

उदाहरण:
भक्ति में चांद देखकर पति का मुख देखना।
पहले आत्मा को शीतल बनाओ, चंद्र समान। फिर परमात्मा से संबंध जोड़ो।

क्यों चांद घटता-बढ़ता है?
चंद्रमा का घटना-बढ़ना आत्मा की स्थिति परिवर्तन का प्रतीक है।
कभी योग में, कभी भूल में; कभी प्रकाश में, कभी अंधकार में।
साकार मुरली 27 जनवरी 1968 – बच्चे, कभी चंद्रमा पूरा होता है, कभी अमावस्या।
योगी आत्मा की स्थिति भी ऐसी होती है जो सदा याद में रहती है।
वही सदा पूर्णिमा समान, संपूर्ण बनते हैं।

आध्यात्मिक अर्थ:

  • पूर्णिमा = संपूर्ण आत्मा, पूर्ण, शक्तिशाली।

  • अमावस्या = विकारी आत्मा, अंधकार में डूबी हुई।

करवा और चौथ का संबंध चांद से:

  • करवा का अर्थ = पात्र (आत्मा का शरीर रूपी पात्र)

  • चौथ का संबंध = चतुर्थ अवस्था

जब आत्मा योग के माध्यम से सतो प्रधान अवस्था में पहुंचती है, तब उसका चांद बुद्धि और शुद्ध और शीतल हो जाता है।
यह है चंद्र दर्शन का असली अर्थ – ईश्वर से योग द्वारा बुद्धि का चंद्र समान बनाना।

शिव बाबा की शिक्षाएं – सच्चा चांद कौन?
अव्यक्त मुरली 10 अक्टूबर 1979 – बाप कहते हैं, बच्चे, तुम हो चंद्रमुखी।
देवी-देवता बनते हो जब विकार खत्म होते हैं। तब तुम्हारा चेहरा चांद जैसा बन जाता है – शीतल, उज्जवल और निर्मल।

उदाहरण: ब्रह्मा बाप-बाबा को चंद्रमुखी कहा गया क्योंकि उनके मुख से ज्ञान का प्रकाश निकलता था।
वे ईश्वर की किरणों का दर्पण बनते हैं। यही सच्चा चांद बनना है।

चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है। जब सूर्य का प्रकाश उस पर पड़ता है, तब चंद्रमा चमकता है।
यही सच्चा चांद बनना है।

निष्कर्ष:
करवा चौथ का चांद आत्मा को पवित्र बुद्धि बनाता है।
आध्यात्मिक दृष्टि से करवा चौथ का चांद आत्मा की शीतल, योगयुक्त और निर्मल बुद्धि का प्रतीक है।
जिस आत्मा की बुद्धि परमात्मा शिव से जुड़ी है, वह सच्चे अर्थों में चंद्रमुखी बन जाती है।

मुरली 5 अगस्त 1974 – बच्चे, सच्चा व्रत यह है कि बुद्धि किसी देह में नहीं, केवल मुझ एक में रहे।
यह चंद्रमुखी बनना है।

समापन संदेश:
करवा चौथ की कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चा चांद बाहर नहीं, भीतर है।
जब आत्मा की बुद्धि शिव बाबा से जुड़ती है, तो वे शीतल, निर्मल और सौभाग्यशाली बन जाती हैं।

सच्चा करवा चौथ वही जब आत्मा विकारों से उपवास करे, विकारों से बचे और अपनी बुद्धि चांद की तरह शिव की रोशनी से पूर्णिमा बनाए।
शिव की रोशनी से पूर्णिमा मनाई।

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