करवा चौथ का आध्यात्मिक रहस्य
22वां विषय है सच्चा सुहागन को
सच्चा सदा सुहागन कौन होता है जो एक शरीर को याद करे या एक परमात्मा को याद करे? यह प्रश्न खड़ा किया गया है।
सच्चा सदा सुहागन कौन होता है – एक जो एक शरीर को याद करे मतलब अपने शरीर के पति को याद करें या एक परमात्मा को याद करें।
दोनों में से कौन है सच्चा सुहागन?
एक है बाहरी सुहाग। बाहरी सुहाग और दूसरा है आत्मिक सुहाग। इन दोनों में अंतर।
हर वर्ष करवा चौथ पर लाखों स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं।
वह कहती है मेरा सुहाग अमर रहे। परंतु प्रश्न यह है कि क्या यह सुहाग केवल शरीर का है या आत्मा का भी कोई सुहाग होता है?
शरीर के सुहाग को तो सारी दुनिया जानती है।
परंतु आत्मा का भी सुहाग होता है। इसे बाबा के बच्चे ही जानते हैं।
वह सुहाग चाहे कुछ भी हो, शरीर का सुहाग तो अंततः मृत्यु को प्राप्त होगा ही।
भक्ति मार्ग में स्वार्थ शरीर के संबंध से जुड़ा हुआ है जो विनाशी है।
और इसमें अपवाद भी आता है। कई तो ऐसे हैं कि जिनका जीवन अपना नर्क है। फिर भी वह उसके लिए व्रत रखते हैं।
ज्ञान मार्ग में सुहाग आत्मा और परमात्मा के अटूट योग से जुड़ा है।
निरंतर परमात्मा की याद में रहना ही सुहाग है।
नहीं तो जितनी देर याद किया उतनी देर सुहाग और जैसे ही मृत्यु हुई तो दुहागिन बन गए या भूल गई तो भूलते ही दुहागिन बन गए।
परमात्मा पति के रूप में याद आए तो सुहागन है, पति को भूल गई तो दुहागन।
बच्चे, आत्मा कभी विधवा नहीं होती। आत्मा विधवा नहीं होती है।
सोच के देखो। आत्मा का पति परमात्मा है।
विधवा तो देही बनती है। जब देह को याद करती है। जो एक शिव बाबा को याद करती है वह सदा सुहागिन बन जाती है।
देह को याद करती है तो विधवा बन जाती है।
और जब शिव बाबा को याद करती है तो सद्भाव।
उदाहरण लौकिक और अलौकिक सुहाग का भेद।
जैसे कोई लौकिक स्त्री अपने पति की तस्वीर देखकर स्नेहपूर्वक याद करती है।
वैसे ही आत्मा को परमात्मा शिव की याद में रहना है।
आत्मा को परमात्मा शिव की याद में रहना है। वे शरीरधारी नहीं, बिंदु स्वरूप ज्योति हैं।
जिससे आत्मा का सच्चा संबंध है।
अव्यक्त मुरली 15 फरवरी 1989: सच्चा सुहाग वही है जो बाप के साथ अटूट योग रखे।
योग टूटे ही नहीं, निरंतर चलता रहे।
देह या देही के प्रति लगाव है तो सुहाग नहीं, मोह है।
सच्चा सुहाग आत्मा और परमात्मा का योग है।
साकार मुरली 25 अक्टूबर 2018: शिव बाबा कहते हैं, बच्चे, तुमने बहुत जन्म शरीरों के साथ सुहाग रखा। अब एक जन्म मुझ निराकार के साथ सुहाग रखो।
तो 21 जन्मों का सुहाग स्थाई बन जाएगा।
यही है सदा सुहागन बनना।
जहां आत्मा अपने परमपिता परमात्मा शिव से सगाई करती है।
आत्मा और परमात्मा की सगाई करवा चौथ का आध्यात्मिक अर्थ।
भक्ति में करवा चौथ पर स्त्री दिन भर भूख-प्यास रहती है और रात को चांद देखकर पति को जल अर्पण करती है।
ज्ञान में आत्मा दिन भर विकारों से उपवास रखती है।
काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से और फिर योग के चांद ईश्वर स्मृति से अपने जीवन को प्रकाशमय बनाती।
अव्यक्त मुरली 18 अक्टूबर 1981: अभी सगाई का समय है। आत्मा और परमात्मा की।
जब तक सगाई नहीं होती आत्मा दुखी है।
सगाई हो जाए तो आत्मा सदा सुहागन बन जाए।
सच्चे सुहागन की पहचान
मुरली 3 जनवरी 1970: शिव बाबा कहते हैं, सच्चा सुहागन वे हैं जो हर परिस्थिति में भी बाप को नहीं भूले।
जो एक बाप के संग रहती है, वह सच्ची लखपति बन जाती है।
उदाहरण के लिए, जिस स्त्री का स्वाद केवल देह से जुड़ा है, उसका पति शरीर त्यागे तो वह विधवा कहलाती है।
और जो आत्मा परमात्मा से सुहाग रखती है, वे कभी विधवा नहीं बनती।
क्योंकि परमात्मा अमर है।
सदा सुहागन का रहस्य: सदा सुहागन वे आत्मा हैं जो किसी देह या देही संबंध से नहीं, बल्कि शिव बाबा से अपना संबंध जोड़ती हैं।
वह ना कभी रोती हैं ना दुखी होती हैं।
अव्यक्त मुरली 24 अप्रैल 1994: सच्ची सुहागन वे नहीं जो साजन की देह को देखें, बल्कि वे हैं जो हर समय साजन को याद करें।
परमात्मा से योग हो। यही सच्चा सुहाग है।
आत्मा का सुहाग कैसे अमर बने?
स्मृति का अभ्यास – हर कार्य में याद रहे।
“मैं आत्मा हूं। शिव बाबा मेरा सच्चा पति है।”
विकारी उपवास, देह, अभिमान से दूर रहना।
सेवा रूपी श्रृंगार – आत्मा के गुणों से सुसज्जित बनना।
मुरली 10 जुलाई 1975: बच्चे, सच्चा श्रृंगार ज्ञान और योग का है।
यही श्रृंगार आत्मा को देवी बनाता है।
निष्कर्ष: सच्चा सदा सुहागन कौन?
जो शरीर को नहीं, परमात्मा को याद रखे वही सच्चा सुहागन है।
करवा चौथ के व्रत में बाहरी भूख का त्याग।
आत्मिक जीवन में विकारों का त्याग।
भक्ति में स्त्री चांद देख के पति को याद करती है।
ज्ञान में आत्मा ईश्वर को याद करके अपनी पूर्ण अवस्था (16 कला संपूर्णमासी वाला चांद) को प्राप्त करती है।
यदि याद करके अपनी पूर्ण अवस्था पूर्णिमा को प्राप्त करता है।
मुरली 28 अक्टूबर 1983: सच्चा पैगाम यह वही है जो परमात्मा की याद से प्राप्त हो।
देह का सुहाग नश्वर है, परंतु ईश्वर का सुहाग अमर है।
समापन संदेश: प्रिय आत्माओं, सच्चा सुहागन वे नहीं जो किसी देह का ध्यान रखे, बल्कि वे जो हर पल बाबा की स्मृति में रहते हैं।
वह हर पल कहे: “मेरा तो एक शिव बाबा, दूसरा ना कोई। मेरा एक ही साजन है, मेरा एक ही पति है – वह है शिव बाबा।”
यही है सच्चा करवा चौथ, जहां आत्मा का स्वाद सदा अमर, सदा पवित्र, सदा आनंदमय हो जाता है।