(24) Life is like heaven for children

(24) बच्चाें के लिए स्वर्ग समान जीवन

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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बच्चों के लिए स्वर्ग समान जीवन | जब ईश्वर ने खोला दुनिया का पहला आध्यात्मिक स्कूल | Om High School की दिव्य कहानी


भूमिका: एक अलौकिक स्कूल की शुरुआत

आज हम आपको ले चलते हैं एक ऐसे स्कूल की कहानी में —
जिसे किसी मनुष्य ने नहीं, स्वयं परमात्मा शिव ने स्थापित किया।
यह था – Om High School
जहाँ पढ़ाई के साथ-साथ आत्मा की पहचान, पवित्रता, और ईश्वर से योग सिखाया जाता था।


1. यह कोई साधारण स्कूल नहीं था

  • यह स्कूल कराची में ब्रह्मा बाबा के घर से शुरू हुआ।

  • यहाँ विज्ञान, गणित, भाषा पढ़ाई जाती थी,
    पर साथ में योग, ध्यान और दिव्य गुणों का बीजारोपण भी होता था।


2. जब पूरा परिवार ओम मंडली में आया

  • धीरे-धीरे माताएँ, पिता और बच्चे सत्संग में आने लगे।

  • सबने अनुभव किया कि बच्चों की शिक्षा भी इसी दिव्य वातावरण में होनी चाहिए।

ब्रह्मा बाबा ने कहा:
“अगर बाल्यकाल से ही पवित्रता और ज्ञान मिले, तो यही बच्चे भविष्य के देवता बनेंगे।”


3. ब्रह्मा बाबा का घर बना स्कूल

  • ब्रह्मा बाबा ने अपने घर को ही स्कूल में बदल दिया।

  • Om High School की स्थापना हुई।

  • बड़ी बहनें छोटी बहनों को पढ़ाती थीं।

  • माताओं को व्यवस्थाओं की ज़िम्मेदारी दी गई।

बच्चों को राजकुमारों और राजकुमारियों की तरह पाला गया।


4. बच्चों का एक दिव्य दिनचर्या

सुबह 5:00 बजे – उठना, योग, हल्का व्यायाम
8:30 AM – 1:00 PM – पाठ्य अध्ययन
3:00 PM – आत्मिक ज्ञान, गीत, चर्चा
5:00 PM – दूध, सैर
8:30 PM – गुण चिंतन, योग
10:30 PM – निद्रा

हर दिन एक संयमित, दिव्य अनुभव।


5. शरीर और आत्मा – दोनों की देखभाल

  • सूर्यस्नान, खेल, व्यायाम का आयोजन

  • बच्चों को यूनिफॉर्म पहनाकर आत्म-सम्मान सिखाया गया

  • ड्रिल करते समय भी ईश्वर की याद बनी रहती थी


6. समुद्र किनारे ईश्वर से मिलन

  • ब्रह्मा बाबा बच्चों को सुबह समुद्र तट ले जाते

  • हर बच्चा अकेले बैठकर आत्मा और परमात्मा के मिलन का अनुभव करता

  • छोटी उम्र में ही आत्मा की अनंतता समझ में आ जाती थी


7. कर्मयोग: सेवा में योग

  • बच्चे खुद ही अपने कमरे, बिस्तर, वस्त्र साफ़ करते

  • कोई झगड़ा नहीं, कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं

  • सेवा के हर कार्य में योग की अनुभूति


8. भोजन में भी परमात्मा की याद

  • भोजन मौन में, परमात्मा की याद में होता

  • कोई पहले नहीं खाता जब तक सबको परोसा न जाए

  • भोजन शरीर को शक्ति और आत्मा को शुद्धता देता


9. खेल और सद्गुणों की साधना

  • खेलों में जीत-हार नहीं, खेल-भावना सिखाई जाती

  • टीम भावना, सहयोग और अनुशासन

  • बच्चे खेलते भी थे, पर आत्मा की मर्यादा में रहते हुए


10. दिन का अंत – परमात्म शांति से

  • संध्या के समय फिर एक बार योग

  • विशेष रिकॉर्डिंग से दिन समाप्त होता

  • वही रिकॉर्डिंग सुबह उन्हें ईश्वर की याद से फिर से जागृत करती


11. निष्कर्ष: जब शिक्षा आत्मज्ञान बन गई

क्या आपने कभी सोचा है,
कि एक ऐसा स्कूल हो जहाँ आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध पढ़ाया जाए?

Om High School था एक द्वार —
जहाँ बच्चे योगी, संत और देवता बनकर निकले।

यह कोई साधारण पाठशाला नहीं थी —
यह ईश्वर द्वारा स्थापित दिव्य विश्वविद्यालय था।

प्रश्न 1:ओम हाई स्कूल क्या था?
उत्तर:यह कोई सामान्य पाठशाला नहीं, बल्कि परमात्मा शिव की प्रेरणा से प्रजापिता ब्रह्मा बाबा द्वारा स्थापित पहला आध्यात्मिक स्कूल था, जहाँ गणित‑विज्ञान के साथ योग, पवित्रता और आत्म‑चेतना भी सिखाई जाती थी।


प्रश्न 2:ओम मंडली से ओम हाई स्कूल तक कैसे पहुंचा विचार?
उत्तर:जब पूरा परिवार सत्संग में आने लगा, तो माताएँ‑पिता ने बच्चों को पढ़ाई के लिए शांत वातावरण की कामना की। ब्रह्मा बाबा ने अपने घर को ही स्कूल बना दिया ताकि बच्चे राजकुमारों जैसी वातावरण में ज्ञान और सद्गुण दोनों सीखें।


प्रश्न 3:बच्चों का सामान्य दैनिक कार्यक्रम कैसा था?
उत्तर:5:00 AM जागरण‑ध्यान, 6:30 स्नान‑नाश्ता, 8:30–1:00 पढ़ाई, 1:00 भोजन‑विश्राम, 3:00 आध्यात्मिक ज्ञान‑गीत‑चर्चा, 5:00 दूध‑सैर, 7:30 रात्रि भोजन, 8:30 आत्म‑गुण चर्चा, 10:00 समाधि योग, 10:30 निद्रा।


प्रश्न 4:शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान कैसे रखा जाता था?
उत्तर:सुबह व्यायाम‑खेल‑सूर्यस्नान, क्लिफ्टन समुद्र तट पर ड्रिल, स्वच्छता‑कर्म योग, भोजन में मौन स्मरण—इस सबसे बच्चे परमात्मा की याद में स्थित रहते और स्वस्थ भी रहते।


प्रश्न 5:समुद्र तट पर बच्चों का ईश्वर से मिलन कैसा होता था?
उत्तर:प्रातः शांति में हर बच्चा तट पर अकेले बैठकर ईश्वर से आत्मा‑सम्मिलन का अनुभव करता—बाहर की हलचल से परे, भीतर की अनंत शांति में मग्न।


प्रश्न 6:कर्मयोग का प्रभाव क्या था?
उत्तर:बच्चे स्वयं अपने कमरे साफ़ करते, कपड़े धोते, स्नानघर संभालते—हर काम में योग और अनुशासन, जिससे आत्म‑निर्भरता और स्वच्छता की भावना विकसित होती।


प्रश्न 7:भोजन के समय क्या विशेषता थी?
उत्तर:पूरी पंक्ति में मौन स्मरण में शांत बैठे, तब तक भोजन शुरू न करते जब तक सभी को नहीं मिल जाता—इससे दिमाग़ और आत्मा दोनों निर्मल रहते।


प्रश्न 8:खेल‑कूद और सद्गुणों का मिलन कैसे होता था?
उत्तर:चाहे छिपन‑छिपाई हो या बैडमिंटन, हार‑जीत से अधिक “खेल भावना” पर जोर—सहयोग, ईमानदारी और आत्म‑नियंत्रण जैसे गुण सशक्त होते।


प्रश्न 9:दिन का अंत कैसे होता था?
उत्तर:सूर्यास्त पर फिर ध्यान, वेरांडा में परमात्मा के गुणों का चिंतन, एक विशेष रिकॉर्डिंग पर निन्द्रा—और सुबह वही रिकॉर्ड ईश्वर की स्मृति लेकर जगाता।


प्रश्न 10:ओम हाई स्कूल का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:सिर्फ़ पढ़ाना नहीं, बल्कि बच्चों को योगी‑संत बनाकर आत्म‑ज्ञान और परमात्मा‑संपर्क देना, ताकि वे भविष्य में विश्व के निर्माता बनें।


प्रश्न 11:हम इस कहानी से क्या सीखें?
उत्तर:सच्ची शिक्षा सिर्फ किताबों से नहीं—योग, पवित्रता, सेवा और आत्म‑चेतना से आती है। जब आत्मा को परमात्मा से मिलाया जाए, तो बच्चा स्वर्ग-समान जीवन जीता है।

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