(32) The Birth of the Golden Age versus the Sad World of Today

 (32) स्वर्ण युग का जन्म बनाम आज की दु:खद दुनिया

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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स्वर्ण युग का जन्म बनाम आज की दुःखद दुनिया

“दुनिया में करोड़पति हैं, पर फिर भी यह दुनिया पतित क्यों कहलाती है?”


1. आज की दुनिया: भौतिक समृद्धि, आत्मिक दिवालियापन

आज करोड़पति और अरबपति लोगों की कोई कमी नहीं है। गगनचुंबी इमारतें, ऐश्वर्यपूर्ण जीवनशैली और तकनीकी चमत्कार – सब कुछ है।

फिर भी यह दुनिया ‘पतित’ क्यों कहलाती है?

क्योंकि यह संसार वासना, लोभ, क्रोध और अहंकार जैसे विकारों में डूबा हुआ है।
लोग वासना को सामान्य मानते हैं, उसे ‘प्राकृतिक’ कहते हैं – लेकिन परमात्मा के अनुसार, यही सबसे बड़ा पाप है।
और यही पाप जीवन को दुखमय, अनशांत और पतित बना देता है।


2. स्वर्ण युग: पवित्रता की दिव्य धरती

अब चलिए देखते हैं स्वर्ण युग यानी Golden Age की एक झलक।

यह वह युग है जहाँ मनुष्य दैवी स्वरूप होता है —
पवित्र, संयमी, आत्म-ज्ञानी और परम सुखी।

 वहाँ की विशेषताएँ:

  • मनुष्य की आयु होती है 150 वर्ष तक

  • बच्चे तब पैदा होते हैं जब माता-पिता की उम्र लगभग आधी हो चुकी होती है —
    अर्थात संयम और संकल्प का पूर्ण ध्यान।

  • एक पुरुष और एक स्त्री संतान होती है, अधिक नहीं।
    पहले पुत्र, फिर 8-10 वर्ष बाद पुत्री का जन्म।


3. संतान प्राप्ति: योगबल से दिव्य दृष्टि

स्वर्ण युग में कोई संतान संयोग से या अनजाने में जन्म नहीं लेती।

माता-पिता को पूर्व दृष्टि प्राप्त होती है —
कि कब और कौन आत्मा उनके घर जन्म लेगी।

इसे कहते हैं – योगबल से संतान प्राप्ति
यह पूर्णतः दिव्य अनुभव होता है – बिना पीड़ा, चिंता या भ्रम के।


4. जन्म का अनुभव: संगीत और आनंद से भरा

सत्ययुग में जन्म दुख का कारण नहीं, बल्कि उत्सव का कारण होता है।

  • कोई बच्चा रोता नहीं। माता-पिता भी दुखी नहीं होते।

  • गर्भ को “Womb Palace” कहा जाता है – एक शुद्ध, सुकूनभरा स्थान।

  • बालक के जन्म पर संगीत बजाया जाता है, दासियाँ सेवा में तत्पर रहती हैं।

  • माता को कष्ट नहीं होता, क्योंकि प्रकृति भी दैवी व्यवस्था में रहती है


5. पतन का कारण: विकारों का स्वीकार

आज के युग में जन्म को भी पीड़ा और चिंता से जोड़ दिया गया है —
क्योंकि जीवन विकारों पर आधारित हो गया है।

  • वासना को पाप नहीं, बल्कि “सृष्टि चलाने का ज़रिया” मान लिया गया है।

  • संयम, मर्यादा, और पवित्रता — यह सब उपहास के विषय बन गए हैं।

परन्तु सत्ययुग में यही पवित्रता सुख और देवत्व का कारण होती थी।


6. निष्कर्ष: स्वर्ण युग की पुनः स्थापना

तो भाइयों और बहनों,

भले ही आज के युग में भौतिक समृद्धि है, लेकिन
मनुष्य आत्मिक रूप से दरिद्र और दुखी हो गया है।

अब परमात्मा शिव हमें पुनः वही स्वर्णिम जीवन लौटाने आए हैं।

अब समय है —

  • अपने जीवन को वाइस-फ्री बनाने का

  • राजयोग द्वारा संकल्पों को पवित्र बनाने का

  • और उस स्वर्णिम युग की पुनः स्थापना में भागी बनने का


अंतिम संदेश: क्या आप उस दिव्य जन्म के अधिकारी बनेंगे?

सोचिए — क्या मैं केवल इस पतित दुनिया का हिस्सा बना रहूंगा?
या मैं उस स्वर्णिम युग का योगबल से जन्मा हुआ देवता बनूंगा?

अब चुनाव आपका है

 पतित जीवन या पवित्र जीवन
 कलियुग की जेल या सत्ययुग का महल
 विकारों की दुनिया या दिव्यता की दुनिया

आइए, परमात्मा को चुनें, पवित्रता को चुनें, स्वर्ण युग को चुनें।


प्रश्न 1:आज की दुनिया में करोड़पति और अरबपति हैं, फिर भी इसे पतित और दुखद क्यों कहा जाता है?
उत्तर:क्योंकि आज की दुनिया भले ही धन से समृद्ध हो, पर वह आत्मिक और नैतिक दृष्टि से दिवालिया हो चुकी है।
यह काम-वासनाओं, लोभ और विकारों की नदी में डूबी हुई है।
मनुष्य वासनाओं को स्वाभाविक मानकर जीता है, जबकि परमात्मा के अनुसार ये विकार ही पतन के कारण हैं।


प्रश्न 2:क्या धन और तकनीकी प्रगति से मनुष्य सुखी हो सकता है?
उत्तर:नहीं। सुख केवल पवित्रता और आत्म-ज्ञान से आता है।
धन बाहरी सुविधा दे सकता है, पर आंतरिक शांति और संतोष केवल संयमित, विकारमुक्त जीवन से मिलती है।


प्रश्न 3:स्वर्ण युग (Golden Age) की दुनिया कैसी होती है?
उत्तर:स्वर्ण युग एक दिव्य, पवित्र और सुखमय युग है।
वहाँ का जीवन वाइस-फ्री (विकारमुक्त) होता है, और मनुष्य का जन्म, जीवन और मृत्यु पूर्ण आनंद और गरिमा से भरे होते हैं।


प्रश्न 4:स्वर्ण युग में जन्म किस प्रकार होता है?
उत्तर:

  • जन्म बिना पीड़ा के होता है।

  • माता-पिता को योगबल से पूर्व ही पता चल जाता है कि कब और कौन जन्म लेगा।

  • बच्चा “Womb Palace” में आराम से रहता है।

  • जन्म लेते ही संगीत बजता है, और दासियाँ सेवा करती हैं।

  • वहाँ जन्म दुख नहीं, बल्कि दिव्य उत्सव होता है।


प्रश्न 5:स्वर्ण युग में संतान का जन्म कब होता है?
उत्तर:

  • माता-पिता अपनी आधी उम्र (लगभग 75 वर्ष) पार करने के बाद संतान उत्पन्न करते हैं।

  • पहले पुत्र, फिर 8-10 वर्षों बाद पुत्री जन्म लेती है।

  • जीवन पूर्ण नियंत्रित और मर्यादित होता है।


प्रश्न 6:आज के जन्म में और स्वर्ण युग के जन्म में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर:

वर्तमान युग (कलियुग) स्वर्ण युग
पीड़ा, चिंता, डर आनंद, शांति, संगीत
अनियंत्रित संतानोत्पत्ति योगबल से नियोजित संतान
जन्म में पापभाव जन्म में पवित्रता और गरिमा
माता को पीड़ा माता को कोई कष्ट नहीं
गर्भ = जेल गर्भ = राजमहल (Womb Palace)

प्रश्न 7:हम इस पतित दुनिया से दिव्यता की ओर कैसे जा सकते हैं?
उत्तर:परमात्मा ने राजयोग और आत्म-ज्ञान द्वारा हमें फिर से दिव्यता की राह दिखाई है।
यदि हम अपने संकल्पों को पवित्र बनाकर विकारों से मुक्त हो जाएँ, तो हम स्वर्ण युग की स्थापना में भागीदार बन सकते हैं।


निष्कर्ष:धन, नाम और सुविधाएँ होने के बाद भी यह दुनिया इसलिए दुखी है क्योंकि उसने आत्मिक शुद्धता खो दी है।
स्वर्ण युग का सुख केवल भौतिक नहीं, बल्कि आत्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित होता है।
अब समय है, फिर से उसी पवित्र, दिव्य दुनिया को राजयोग की शक्ति से पुनर्स्थापित करने का।

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