(33)29-04-1984 “Different Characteristics of the Spiritual Stars of the Sun of Knowledge”

अव्यक्त मुरली-(33)01-05-1984 “विस्तार में सार की सुन्दरता”

(प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

01-05-1984 “विस्तार में सार की सुन्दरता”

“बापदादा का दिव्य रहस्य — विस्तार और सार स्वरूप बच्चों की पहचान | फल बनो, पत्ते नहीं |


“विस्तार और सार स्वरूप बच्चों की पहचान”


1. विस्तार और सार स्वरूप बच्चों का गूढ़ रहस्य

बापदादा कहते हैं:

“विस्तार इस ईश्वरीय वृक्ष का श्रृंगार है और सार स्वरूप बच्चे इस वृक्ष के फल स्वरूप हैं।”

यह जगत रूपी ईश्वरीय वृक्ष बहुत विशाल है — इसमें पत्ते हैं, फूल हैं, और फल हैं।
विस्तार रूप आत्माएँ वे हैं जो इस वृक्ष की शोभा बढ़ाती हैं — उनका कार्य सेवा के रूप में रौनक बनाना है।
जबकि सार स्वरूप आत्माएँ — वे हैं जो फल बनकर, शक्ति और ज्ञान का अनुभव कर, दूसरों को भी फलदायक बनाती हैं।

उदाहरण:
जैसे किसी सुंदर पेड़ पर हजारों पत्ते हों, तो वे देखने में मनोहर लगते हैं, परंतु फल ही असली मूल्यवान होता है।
उसी तरह, ईश्वरीय परिवार में बहुत आत्माएँ सेवा करती हैं (विस्तार), परंतु जो सार रूप में स्थित होकर शक्ति और गुणों का फल देती हैं, वही बापदादा की सच्ची उम्मीद हैं।


2. वैराइटी स्वरूप की रौनक और सार स्वरूप की शक्ति

“वैराइटी स्वरूप की रौनक वृक्ष का श्रृंगार जरूर है, लेकिन सार स्वरूप फल शक्तिशाली होता है।”

वैराइटी आत्माएँ अनेक संस्कारों, भाषाओं, संस्कृतियों से आती हैं — यही ईश्वरीय यज्ञ की सुंदरता है।
परंतु शक्ति और मूल्य उस आत्मा का होता है जो एक बाप, एक याद और एक मर्यादा में रहती है।

उदाहरण:
एक विशाल बगीचा हो — उसमें रंग-बिरंगे फूल सुंदरता बढ़ाते हैं, परंतु जो फल देता है, वही पोषण का कारण बनता है।


3. बापदादा का समान बन मिलन का रहस्य

“जब तक समान नहीं बनें, तो साकार मिलन मना नहीं सकते।”

बापदादा प्रत्येक आत्मा से मिलते हैं — कोई प्रेम से, कोई ज्ञान से, और कोई समान स्वरूप से।
परंतु साकार मिलन का अनुभव केवल वही आत्मा कर सकती है, जिसने अपने संस्कारों को बाप समान बना लिया हो।

Murli Point (12 नवम्बर 1982):
“समान स्वरूप बनना ही सच्चा मिलन है। याद का अर्थ है — समान बनना।”


4. देहली का सेवा-संस्कार — स्थापना की धरनी

“सेवा का बीज देहली में जमुना किनारे पर शुरू हुआ और राज्य का महल भी वहीं होगा।”

बापदादा ने देहली को सेवा की जड़ कहा —
क्योंकि यहीं से ईश्वरीय सेवा का बीज पड़ा था।
जमुना किनारा भक्ति में भी पवित्रता का प्रतीक है, और ज्ञान में भी स्थापनास्थान।

उदाहरण:
जैसे किसी वृक्ष का तना मजबूत होता है, तो पूरा वृक्ष सुरक्षित रहता है,
वैसे ही देहली स्थापनाकाल का मजबूत foundation है।
इसलिए देहली निवासी आत्माओं पर बापदादा ने कहा —

“देहली निवासी अर्थात् जिम्मेवारी के ताजधारी।”


5. कर्नाटक की विशेषता — भावना और निर्मान का संगम

“कर्नाटक की धरनी भावना और पद के अधिकारी दोनों ही हैं।”

कर्नाटक की आत्माओं में अति भावना भी है और एज्युकेटेड प्रभाव भी।
बापदादा ने इन्हें सेवा की नांव के दो चप्पू बताए —
भावना और निर्मान।
जब दोनों साथ हों, तभी सेवा की नांव सफलता तक पहुँचती है।

Murli Note:
“भावना में भी निर्मानता हो, और निर्मानता में भी भावना — यही सच्चा बैलेन्स है।”


6. सार स्वरूप फल बनने की शिक्षा

“सदा स्वयं को सार स्वरूप अर्थात् फल स्वरूप बनाने वाले, सदा सार स्वरूप में स्थित हो।”

फल स्वरूप आत्मा वह है जो अपने गुणों से दूसरों को शक्ति देती है।
वह केवल ज्ञान नहीं सुनाती, बल्कि स्वयं ज्ञानमय बन जाती है।
बापदादा कहते हैं —

“सार स्वरूप आत्मा शक्तिशाली होती है, वही दूसरों को भी सार स्थिति में स्थित कर सकती है।”

उदाहरण:
जैसे पका हुआ फल मीठा स्वाद देता है, वैसे ही पूर्ण आत्मा का संस्कार और वाणी दोनों मीठे होते हैं।


7. फरिश्ता स्थिति — मन के बंधन से मुक्ति

प्रश्न: फरिश्ता बनने के लिए किस बंधन से मुक्त होना पड़ेगा?
उत्तर: मन के व्यर्थ संकल्पों से।

“फरिश्ता अर्थात् जिसका मन के व्यर्थ संकल्पों से भी रिश्ता नहीं।”

फरिश्ता स्थिति वही है जहाँ आत्मा किसी संबंध या संकल्प में नहीं बंधती।
मन शुद्ध है, तो स्थिति उच्च है।


8. वरदान और अंतिम संदेश

“सदा झूले में रहने वाले सदा स्वच्छ हैं।”
“झूले में ही खाओ, पियो, चलो — नीचे आने के दिन समाप्त हुए।”

बापदादा ने कहा — अब नीचे उतरने के दिन नहीं रहे।
अब सदा खुशी, प्रेम, और ज्ञान के झूले में झूलना है।
यही झूला ही जीवन को स्वच्छ, सुरक्षित और दिव्य बनाता है।


अंतिम प्रेरणा — गॉड और गुड का संगम

“गॉड की याद ही गुड बनाती है।
अगर गॉड की याद नहीं, तो गुड नहीं बन सकते।”

हर सेकंड, हर संकल्प में गॉड की उपस्थिति हो —
तो जीवन अपने आप गुड बन जाता है।
यही है गॉडली लाइफ का रहस्य।


निष्कर्ष:

विस्तार (सेवा और वैराइटी) आवश्यक है,
परंतु सार (शक्ति, फल, समानता) ही बापदादा की प्रसन्नता का कारण है।
 इसलिए बापदादा कहते हैं —

“विस्तार को देखकर खुश होते हैं, और फल को देखकर शक्तिशाली बनने की आशा रखते हैं।”

प्रश्न 1:बापदादा ने विस्तार और सार स्वरूप बच्चों में क्या अंतर बताया है?
उत्तर:बापदादा कहते हैं — “विस्तार इस ईश्वरीय वृक्ष का श्रृंगार है और सार स्वरूप बच्चे इस वृक्ष के फल स्वरूप हैं।”
विस्तार रूप आत्माएँ सेवा और वैराइटी रूप की रौनक हैं, जबकि सार स्वरूप आत्माएँ शक्ति और फल का अनुभव कर दूसरों को भी शक्ति देती हैं।


प्रश्न 2:वैराइटी स्वरूप आत्माओं की क्या विशेषता है?
उत्तर:वैराइटी स्वरूप आत्माएँ ईश्वरीय परिवार में विभिन्न संस्कारों, भाषाओं और संस्कृतियों से आती हैं।
उनकी विविधता ही इस यज्ञ की शोभा है।
लेकिन बापदादा कहते हैं — “वैराइटी की रौनक श्रृंगार है, परंतु शक्ति सार स्वरूप आत्माओं में होती है।”


प्रश्न 3:बापदादा साकार मिलन के लिए कौन-सी आत्माओं को योग्य कहते हैं?
उत्तर:बापदादा कहते हैं — “जब तक समान नहीं बनें तो साकार मिलन मना नहीं सकते।”
अर्थात जो आत्मा अपने संस्कारों को बाप समान बनाती है, वही सच्चे अर्थ में साकार मिलन का अनुभव कर सकती है।


प्रश्न 4:देहली की विशेषता क्या बताई गई है?
उत्तर:बापदादा ने कहा — “सेवा का बीज देहली में जमुना किनारे पर शुरू हुआ और राज्य का महल भी वहीं होगा।”
इसलिए देहली सेवा और राज्य दोनों का फाउंडेशन स्थान है।
देहली निवासी आत्माएँ “जिम्मेवारी के ताजधारी” कहलाती हैं।


प्रश्न 5:कर्नाटक की आत्माओं की कौन-सी दो विशेषताएँ हैं?
उत्तर:कर्नाटक की आत्माओं में अति भावना और निर्मानता (नम्रता) दोनों हैं।
बापदादा कहते हैं — “कर्नाटक की नाव के यह दो चप्पू हैं — भावना और निर्मान।
जब ये दोनों साथ चलते हैं, तभी सेवा की नाव सफलता तक पहुँचती है।”


प्रश्न 6:फल स्वरूप आत्मा किसे कहा गया है?
उत्तर:जो आत्मा अपने गुणों से दूसरों को शक्ति और आनंद देती है, वही फल स्वरूप आत्मा कहलाती है।
बापदादा कहते हैं — “सार स्वरूप आत्मा शक्तिशाली होती है और वही दूसरों को भी सार स्थिति में स्थित कर सकती है।”


प्रश्न 7: बनने के लिए किस बंधन से मुक्त होना आवश्यक है?
उत्तर:फरिश्ता बनने के लिए मन के व्यर्थ संकल्पों से मुक्त होना आवश्यक है।
बापदादा कहते हैं — “फरिश्ता अर्थात् जिसका मन के व्यर्थ संकल्पों से भी रिश्ता नहीं।”


प्रश्न 8:‘झूले में रहने’ का अर्थ क्या है जो बापदादा ने बताया?
उत्तर:बापदादा ने कहा — “सदा झूले में रहने वाले सदा स्वच्छ हैं।”
अर्थात आत्मा को हमेशा खुशी, प्रेम और ज्ञान के झूले में झूलते रहना है — नीचे आने का अर्थ है देहभान और माया में फँसना।


प्रश्न 9:बापदादा ने ‘गॉड और गुड’ का क्या संबंध बताया है?
उत्तर:बापदादा ने कहा — “गॉड की याद ही गुड बनाती है।
अगर गॉड की याद नहीं तो गुड नहीं बन सकते।”
इसलिए हर संकल्प, हर सेकंड में परमात्मा की उपस्थिति जीवन को दिव्य और शुभ बना देती है।


प्रश्न 10:विस्तार और सार में कौन अधिक मूल्यवान है?
उत्तर:दोनों आवश्यक हैं, परंतु बापदादा ने कहा — “मूल्य सार स्वरूप फल का होता है।”
विस्तार रौनक देता है, लेकिन सार ही शक्ति और परिणाम देता है।


Disclaimer (डिस्क्लेमर):

यह वीडियो ब्रह्माकुमारिस की अव्यक्त मुरली दिनांक 12 नवम्बर 1982 पर आधारित है।
इसका उद्देश्य केवल ईश्वरीय ज्ञान, आत्म-जागृति और बापदादा के संदेश को सहज और अनुभवपूर्ण रूप में प्रस्तुत करना है।
इस वीडियो का कोई धार्मिक या संगठनात्मक प्रचार उद्देश्य नहीं है।
हमारा उद्देश्य है — आत्मा को उसकी मूल शक्तियों और परमात्मा के सच्चे संबंध से जोड़ना।
Om Shanti 

Game of Drama, Divine Knowledge, Brahma Kumaris, Shiv Baba, Essence of Murli, Knowledge of the Soul, Raja Yoga Meditation, Brahma Baba, Serviceable Children, Habit of Asking, Knowledge Not Grace, Divine Service, Self-Reliance, Depth of Knowledge, BapDada’s Teachings, Sakar Murli, Brahma Kumaris Hindi, Om Shanti,

नाटक_का_खेल, ईश्वरीय_ज्ञान, ब्रह्माकुमारी, शिवबाबा, मुरली_सार, आत्मा_का_ज्ञान, राजयोग_ध्यान, ब्रह्माबाबा, सेवाएबुल_बच्चे, बच्चे_की_आदत, कृपा_नहीं_ज्ञान, ईश्वरीय_सेवा, आत्मनिर्भरता, ज्ञान_की_घराई, भगवान_की_शिक्षा, साकार_मुरली, ब्रह्माकुमारी_हिन्दी, ओम_शांति,