(36) Satya Yuga: The lost world of peace, purity and prosperity?

(36)सतयुगःशांति,पवित्रता और समृध्दि की खाेई हई दुनिया?

( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)

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सतयुग: शांति, पवित्रता और समृद्धि की खोई हुई दुनिया 


 संघर्ष से भरी आज की दुनिया

आज बस एक पल को चारों ओर नज़र घुमाइए…
हर तरफ झगड़े, विवाद, मार-काट, क्रोध और असंतोष।

  • पानी नहीं आया — लोग पत्थर फेंकने लगे।

  • अनाज नहीं मिला — दंगे भड़क गए।

  • भूमि विवाद, सत्ता संघर्ष, सामाजिक असमानता…

ये सब दर्शाता है कि हम कलियुग में जी रहे हैं —
अज्ञानता, अहंकार और अशुद्धता का युग।

लेकिन अब, एक क्षण के लिए ठहरिए।

अपनी आँखें बंद कीजिए और कल्पना कीजिए…

 एक ऐसी दुनिया जहाँ केवल शांति है…

वह दुनिया है — सतयुग
जहाँ मनुष्य देवता होता है।
जहाँ पवित्रता ही शासन करती है।
जहाँ हर आत्मा दिव्य है और प्रकृति भी शुद्ध।


 सतयुग — असली रामराज्य

सच्चे रामराज्य में न तो राजनीति थी,
न कानून, न ही पुलिस या जेल की जरूरत।

देवी-देवता वहाँ शासन करते थे —
डर से नहीं, बल्कि प्रेम से।

उनकी सेना नहीं, उनके गुण उनके हथियार थे।

सतयुग में:

  • न हिंसा थी

  • न अन्याय

  • न ही अशांति या असमानता

क्यों?
क्योंकि वहाँ हर आत्मा आत्मचेतना में रहती थी।


 सतयुग की प्रकृति — पाँचों तत्व भी शुद्ध

सिर्फ आत्माएँ ही नहीं, प्रकृति के पाँचों तत्व भी
सतयुग में सतोप्रधान और पवित्र होते हैं।

  • धरती — हर चीज़ भरपूर देती है

  • जल — स्वच्छ, अमृत तुल्य

  • वायु — शांत और सुखदायक

  • अग्नि — कल्याणकारी

  • आकाश — दिव्यता से भरा

यहाँ है:

उत्तम स्वास्थ्य
 अनंत धन
 सम्पूर्ण सुख
 दिव्य दृष्टि — सबमें आत्मा देखना

कोई विरोध नहीं, कोई स्वार्थ नहीं —
बस एकता और दिव्य सहयोग।


 कोई वासना नहीं, कोई हिंसा नहीं — केवल दिव्य प्रेम

आज की दुनिया में अशांति का मुख्य कारण है:

  • वासना और इच्छाओं की हिंसा

  • क्रोध और लोभ से उत्पन्न शारीरिक हिंसा

परन्तु सतयुग में ये दोनों नहीं होते।

👁 वहाँ कोई “अपराधी दृष्टि” नहीं होती।
 रिश्ते शरीर पर नहीं, आत्मा पर आधारित होते हैं।
 प्रेम मौन और आत्मा से जुड़ा होता है — शुद्ध और पवित्र।

कोई विकार नहीं, इसलिए कोई पाप नहीं।


 कोई गुरु, कोई साधु नहीं चाहिए

आज लोग शांति की तलाश में दर-दर भटकते हैं —
गुरुओं, साधुओं, आश्रमों के पीछे भागते हैं।

पर सतयुग में इसकी कोई जरूरत नहीं।

क्यों?

क्योंकि हर आत्मा अपने आंतरिक ज्ञान और पवित्रता से जुड़ी होती है।
उनके “गाइड” उनके अपने दिव्य संस्कार होते हैं।

 न मंत्री की ज़रूरत
 न कानून की ज़रूरत
 न ही शिक्षा की लड़ाई

हर आत्मा स्वभाव से ही सच्चा, पवित्र और निस्वार्थ होती है।


 वह दिव्य दुनिया — कहाँ खो गई?

अब प्रश्न उठता है:

वह सतयुगी रामराज्य कहाँ चला गया?
हम इतनी ऊँचाई से गिरकर इस अंधकार में कैसे आ गए?

उत्तर है — विकार

  • अहंकार

  • वासना

  • क्रोध

  • लोभ

  • मोह

यही हमारे पतन के कारण बने।
हमने आत्मा को भूलकर शरीर को ही सब कुछ मान लिया।


 लेकिन वह दुनिया फिर आएगी

अब एक शुभ समाचार है।

परमात्मा शिव स्वयं इस संगम युग पर अवतरित हुए हैं
हमें फिर से उसी सतयुग के योग्य बनाने।

वह हमें ज्ञान, योग, और पुनः आत्मचेतना का पाठ पढ़ा रहे हैं।


अंतिम संदेश — सतयुग के योग्य बनो

प्रिय आत्मा,
सतयुग कोई कहानी नहीं है।
यह हमारी सच्ची विरासत है।

एक ऐसी दुनिया जहाँ:

  • भूमि पर कोई द्वेष नहीं

  • पानी पर कोई हिंसा नहीं

  • इच्छा से उत्पन्न कोई संघर्ष नहीं

  • कोई डर नहीं, कोई अशांति नहीं

आज समय है स्वयं को बदलने का।

 आइए विकारों से मुक्त हों
 आइए पवित्र आत्मा बनें
 आइए शिव बाबा के रास्ते पर चलें

क्योंकि सतयुग तभी आएगा जब हम स्वयं सतयुगी बनेंगे।


🕉 “सतयुग कोई सपना नहीं, यह वह संसार है जिसे परमात्मा फिर से साकार कर रहे हैं — आपके द्वारा।”
– ओम् शांति।

 सतयुग: शांति, पवित्रता और समृद्धि की खोई हुई दुनिया | प्रश्न और उत्तर श्रृंखला 

प्रश्न 1: आज की दुनिया में इतना संघर्ष और अशांति क्यों है?

उत्तर:क्योंकि हम कलियुग में हैं — यह अज्ञानता, अहंकार और अशुद्धता का युग है। यहाँ मनुष्य शरीर-चेतना में जी रहा है, इच्छाओं और विकारों के अधीन है। इसी कारण आज झगड़े, दंगे, हिंसा और भय हर ओर व्याप्त हैं।

प्रश्न 2: क्या वास्तव में कोई ऐसी दुनिया थी जहाँ शांति, प्रेम और समृद्धि थी?

उत्तर:हाँ, वह थी सतयुग — स्वर्ण युग, जिसे असली “रामराज्य” कहा जाता है। वहाँ न युद्ध था, न अपराध, न बीमारी, और न ही कोई दुख। वहाँ देव आत्माएँ राज करती थीं, जो गुणों के बल से शासन करती थीं, न कि सत्ता या कानून के बल से।

प्रश्न 3: सतयुग में शांति और समृद्धि का क्या रहस्य था?

उत्तर:सतयुग में आत्माएँ आत्म-चेतन होती थीं और पवित्रता में स्थित रहती थीं। पाँचों तत्व — जल, वायु, अग्नि, आकाश, और पृथ्वी — भी शुद्ध होते थे। वहाँ हर आत्मा दिव्यता से जुड़ी थी, जिससे सबकुछ स्वतः सुंदर और संतुलित होता था।

प्रश्न 4: क्या सतयुग में कोई कानून, पुलिस, न्यायालय या गुरु होते थे?

उत्तर:नहीं। सतयुग में किसी बाहरी नियंत्रण की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि हर आत्मा स्वयं में ज्ञानी, संयमी और पवित्र होती थी। उनकी अंतरात्मा ही उन्हें सही रास्ता दिखाती थी। कोई भी बुरा कार्य करता ही नहीं था।

प्रश्न 5: आज की दुनिया में हिंसा किससे उत्पन्न होती है?

उत्तर:आज की अधिकांश हिंसा दो प्रकार की होती है:

  1. वासना से उत्पन्न भावनात्मक हिंसा – जो संबंधों को दूषित करती है।

  2. क्रोध और लोभ से उत्पन्न शारीरिक हिंसा – जो समाज को विभाजित करती है।

प्रश्न 6: सतयुग में संबंध कैसे होते थे?

उत्तर:सतयुग में संबंध आत्मा-आधारित और पवित्र होते थे। वहाँ वासना नहीं थी, केवल दिव्य प्रेम और सम्मान था। सभी आत्माएँ दिव्यता से जुड़ी होती थीं, इसलिए कोई “अपराधी दृष्टि” नहीं होती थी।

प्रश्न 7: सतयुग की वह दिव्य दुनिया कहाँ चली गई?

उत्तर:वह दुनिया हमने स्वयं खो दी। अहंकार, वासना, क्रोध, लोभ, मोह — इन पांच विकारों ने आत्मा को पतित बना दिया। आत्मा ने अपनी दिव्यता खो दी और दुनिया भी अपवित्र हो गई।

प्रश्न 8: क्या वह सतयुग फिर से आएगा?

उत्तर:हाँ, यह चक्र है। जब पतन की चरम सीमा होती है, तब स्वयं परमात्मा शिव संगम युग पर आते हैं — आत्माओं को फिर से ज्ञान और पवित्रता प्रदान करने। वह हमें फिर से सतयुग के योग्य बनाते हैं।

प्रश्न 9: हम सतयुग के योग्य कैसे बन सकते हैं?

उत्तर:
आत्म-चिंतन करें,
शिव बाबा द्वारा दिए गए ज्ञान को अपनाएँ,
राजयोग द्वारा आत्मा को शुद्ध करें,
विकारों से मुक्त होकर दिव्य गुणों को धारण करें।

जब हम स्वयं बदलते हैं, तब संसार भी बदलता है। यही सच्चा आध्यात्मिक योगदान है।

अंतिम संदेश:

सतयुग कोई कल्पना नहीं, वह हमारी खोई हुई सच्चाई है।
अब समय है उस रामराज्य को फिर से प्राप्त करने का।
आइए, अपने भीतर की दिव्यता को जाग्रत करें और सतयुग के पुनः आगमन के लिए खुद को तैयार करें।

और स्वर्ण युग – वास्तविक रामराज्य में प्रवेश करने के योग्य बनें।

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