(42)गीता के ज्ञान को ठीक से समझने कीआवश्यकता – 06
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“गीता का भगवान कौन है? श्रीकृष्ण नहीं, परमात्मा शिव | अध्याय 5-6 की रहस्यपूर्ण व्याख्या |
गीता का सच्चा ज्ञान समझना क्यों ज़रूरी है?
ओम शांति।
आज हम 42वां अभिषेक कर रहे हैं, और इस शुभ अवसर पर गीता के सच्चे ज्ञान को गहराई से समझने की आवश्यकता है।
इसके लिए हम आज गीता के छठे अध्याय — ध्यान योग — का अध्ययन करेंगे।
हम यह जानने का प्रयास करेंगे कि
क्या श्रीकृष्ण ही गीता के भगवान हैं?
या फिर कोई और?
गीता: भारत का पवित्रतम ग्रंथ
हम सभी गीता को भारत का सबसे पवित्र ग्रंथ मानते हैं।
यह जीवन का सार, कर्म का सिद्धांत और मोक्ष का मार्ग सिखाता है।
परंतु एक गंभीर प्रश्न है:
क्या आपने कभी सोचा कि गीता का ज्ञान वास्तव में किसने दिया?
क्या श्रीकृष्ण ही गीता ज्ञानदाता हैं?
आमतौर पर यह माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई थी।
लेकिन ब्रह्माकुमारीज़ की महा मुरली में परमात्मा शिव स्वयं उद्घोषणा करते हैं:
“गीता ज्ञानदाता मैं स्वयं परमपिता परमात्मा हूं।”
वह यह ज्ञान ब्रह्मा के तन द्वारा देते हैं।
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आज हम गीता के दो अध्यायों को देखेंगे — अध्याय 5: सन्यास योग और अध्याय 6: ध्यान योग।
अध्याय 5: सन्यास योग
गीता श्लोक समाप्ति वाक्य:
“सन्यास योगो नाम पंचमो अध्याय”
अर्थ: “सन्यास योग नामक पांचवा अध्याय समाप्त हुआ।”
मुरली प्रमाण (18 जनवरी 2025):
“श्रीकृष्ण तो देवता हैं, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं, परमपिता परमात्मा हूं।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूं।”
इससे सिद्ध होता है कि सन्यास, तपस्या, योग जैसी गहन विधाएं
मनुष्य आत्मा नहीं सिखा सकती।
यह शिक्षा केवल परमात्मा शिव ही दे सकते हैं।
अध्याय 6: ध्यान योग
श्लोक समाप्ति वाक्य:
“ध्यान योगो नाम षष्ठो अध्याय”
अर्थ: “ध्यान योग नामक छठा अध्याय समाप्त हुआ।”
मुरली व्याख्या:
ध्यान अर्थात “योग” —
यह केवल परमात्मा से मिलन है।
और यह मिलन तब होता है जब हम उस निराकार शिव को सही से पहचानते हैं।
गीता का सच्चा ज्ञानदाता कौन है?
-
जब गीता के ज्ञान, कर्म, सन्यास और ध्यान जैसे विषयों को
मुरली की दृष्टि से देखा जाता है,
तभी उनका सत्य अर्थ प्रकट होता है। -
यह ज्ञान श्रीकृष्ण की आत्मा ने नहीं दिया।
यह ज्ञान स्वयं परमात्मा शिव ने ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर दिया।
यही है मुरली की प्रमुख उद्घोषणा —
“गीता ज्ञानदाता है – निराकार शिव परमात्मा।”
Q1: गीता का भगवान कौन है — श्रीकृष्ण या कोई और?
उत्तर:आमतौर पर यह समझा जाता है कि श्रीकृष्ण ने गीता सुनाई, लेकिन ब्रह्माकुमारी मुरली में परमात्मा शिव स्वयं कहते हैं –
“गीता ज्ञानदाता मैं स्वयं परमपिता परमात्मा हूं।”
वे ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर यह ज्ञान देते हैं।
इसलिए गीता का सच्चा भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि निराकार परमात्मा शिव हैं।
Q2: हम गीता को इतना पवित्र क्यों मानते हैं?
उत्तर:गीता को भारत का सबसे पवित्र ग्रंथ माना गया है क्योंकि यह जीवन का सार,
कर्म का विज्ञान, और मोक्ष का मार्ग बताती है।
परंतु इसका सत्य अर्थ तब ही समझ में आता है जब
हम इसे परमात्मा की दृष्टि से समझें — मुरली ज्ञान के माध्यम से।
Q3: क्या कोई मानव आत्मा जैसे श्रीकृष्ण यह ज्ञान दे सकता है?
उत्तर:नहीं।
18 जनवरी 2025 की मुरली में परमात्मा शिव स्पष्ट कहते हैं:
“श्रीकृष्ण तो देवता हैं, लेकिन गीता ज्ञानदाता मैं, परमपिता परमात्मा हूं।
मैं ब्रह्मा तन में प्रवेश कर आत्माओं को ज्ञान सिखाता हूं।”
इससे सिद्ध होता है कि यह ज्ञान किसी मानव शरीरधारी आत्मा से नहीं,
बल्कि स्वतः परमात्मा से मिलता है।
Q4: गीता का अध्याय 5: “सन्यास योग” क्या सिखाता है?
उत्तर:अध्याय 5 को “सन्यास योग” कहा गया है।
श्लोक समाप्ति में लिखा है:
“सन्यास योगो नाम पंचमो अध्याय”
अर्थात – यह सन्यास का योग है।
परंतु सन्यास का सच्चा अर्थ है – संवेदनाओं का संयम और परमात्मा से जुड़ाव,
जो केवल परमात्मा शिव सिखा सकते हैं, कोई मनुष्य नहीं।
Q5: अध्याय 6: “ध्यान योग” का मुरली अनुसार वास्तविक अर्थ क्या है?
उत्तर:“ध्यान योगो नाम षष्ठो अध्याय” — यह छठा अध्याय है ध्यान योग।
ध्यान यानी “योग” — अर्थात आत्मा और परमात्मा का मिलन।
मुरली कहती है:
सच्चा ध्यान तब ही संभव है जब आत्मा निराकार शिव परमात्मा को पहचानकर
उनसे मन-योग लगाए।
यह कोई साधारण ध्यान नहीं — यह राजयोग है, जो परमात्मा ही सिखाते हैं।
Q6: श्रीकृष्ण को गीता का भगवान क्यों माना गया?
उत्तर:यह एक धार्मिक भ्रम है।
क्योंकि श्रीकृष्ण चित्रों में सुंदर रूप में दिखाई देते हैं,
इसलिए यह मान लिया गया कि वे ही गीता सुना रहे हैं।
लेकिन गीता में जो ज्ञान है — वह किसी देवता का नहीं हो सकता।
वह ज्ञान तो सर्व आत्माओं के पिता – परमात्मा शिव का हो सकता है,
जो निराकार हैं।
Q7: गीता का ज्ञान देने के लिए परमात्मा किसका उपयोग करते हैं?
उत्तर:परमात्मा शिव ब्रह्मा के तन में प्रवेश करते हैं।
यही कारण है कि मुरली सुनाने वाला ब्रह्मा बाबा नहीं,
बल्कि उसके द्वारा बोलने वाले शिव बाबा होते हैं।
ब्रह्मा माध्यम हैं — ज्ञानदाता स्वयं परमात्मा।
Q8: गीता और मुरली के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:मुरली = वर्तमान समय में गीता का पुनर्जन्म।
गीता के जो गूढ़ ज्ञान के बीज हैं,
वे मुरली में पुनः प्रकट होते हैं —
जिसे परमात्मा आज के युग में दोबारा सुनाते हैं — संगम युग में।
Q9: क्या यह ज्ञान आज भी चल रहा है?
उत्तर:हाँ।
परमात्मा शिव आज भी ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय में
ब्रह्मा के माध्यम से यह ज्ञान सुना रहे हैं — जिसे साकार और अव्यक्त मुरली कहा जाता है।
यह एक चल रहा ईश्वरीय विश्वविद्यालय है।
DISCLAIMER:
यह वीडियो प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय द्वारा दिये गए आध्यात्मिक ज्ञान पर आधारित है।
इसमें प्रस्तुत विचार, श्लोक व्याख्याएँ एवं मुरली उद्धरण, परमात्मा शिव द्वारा ब्रह्मा तन के माध्यम से दिए गए ज्ञान पर आधारित हैं।
हमारा उद्देश्य केवल गीता ज्ञान की आध्यात्मिक गहराई को उजागर करना है — किसी भी धर्म, व्यक्ति, संस्था, या परंपरा की आलोचना करना नहीं।
कृपया इसे आध्यात्मिक अध्ययन की दृष्टि से देखें।
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