(51)भारत की ओर वापसी: शिव बाबा की सेना का दिव्य मार्च
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
भारत की ओर वापसी: शिव बाबा की सेना का दिव्य मार्च
मुख्य भाषण हेडिंग्स और प्रश्नोत्तर शैली में पूरा स्क्रिप्ट:
पाकिस्तान में खामोश साल: अराजकता के बीच एक दिव्य अभयारण्य
प्रश्न: जब भारत-पाकिस्तान का विभाजन हुआ, तब ओम मंडली कहाँ थी?
उत्तर: वे कराची में थे — एक ऐसी जगह, जहाँ हिंसा और डर का माहौल था। लेकिन यह दिव्य तपस्वियों का आश्रम, ईश्वर की छाया में पूरी तरह सुरक्षित रहा।
प्रश्न: मुसलमानों ने उन्हें कैसे स्वीकार किया?
उत्तर: वे समझते थे – यह कोई सामान्य संगठन नहीं, यह परमात्मा का घर है। सरकारी अधिकारी अल्लाह बख्श जी और डॉ. गिडवानी ने कहा – “आप ईश्वर के लोग हैं, हम आपकी सेवा करेंगे।”
ईश्वरीय आदेश: भारत लौटो
प्रश्न: क्या भारत लौटने का निर्णय डर से लिया गया था?
उत्तर: नहीं, यह निर्णय न डर से था, न किसी राजनीतिक योजना से। यह शिव बाबा का आदेश था – “भारत जाओ – सेवा वहाँ विशाल है, और तुम्हारे युद्ध का मैदान वहीं है।”
दिव्य प्रस्थान: फूलों की वर्षा में विदाई
प्रश्न: कराची से भारत आने की यात्रा कैसी थी?
उत्तर: जब 400 योगी बंदरगाह पहुँचे, तो मुसलमान भाइयों ने फूलों की वर्षा की। विदाई एक युद्ध जैसी नहीं, प्रेम और आदर से भरी आध्यात्मिक विदाई थी।
प्रश्न: यात्रा में क्या हुआ?
उत्तर: मुरली चलती रही, योग चलता रहा, ज्ञान बहता रहा – यहाँ तक कि जहाज़ के कप्तान ने पूछा, “मैं आपकी कैसे सेवा कर सकता हूँ?”
माउंट आबू: आत्मा की चढ़ाई का आरंभ
प्रश्न: भारत आने के बाद पहला कदम कहाँ रखा गया?
उत्तर: माउंट आबू – वह पवित्र पर्वत जहाँ 108 योगियों की आत्मा की कथा पत्थरों में खुदी हुई है। दिलवाड़ा मंदिर की मूर्तियाँ उन्हीं आत्माओं का चित्रण हैं।
दिव्य पहचान: मूर्तियाँ और आत्माएँ आमने-सामने
प्रश्न: क्या यह संयोग था कि बीके वही आत्माएँ थीं जो उन मूर्तियों में दिखती हैं?
उत्तर: नहीं। वे आत्माएँ अब अपने जीवित स्वरूप में वहाँ खड़ी थीं – शरीर नहीं, आत्मा की पहचान और शिव बाबा की याद में स्थित।
पांडव युद्ध के मैदान में उतरते हैं
प्रश्न: 1937 से 1950 तक का समय किसका प्रतीक है?
उत्तर: 13 वर्षों का एकांत – बिल्कुल महाभारत के पांडवों जैसा। और फिर भारत की धरती पर शिव बाबा की सेना का सत्य के युद्ध में प्रवेश।
सत्य की कविता: शुक्लजी की पंक्तियाँ
प्रश्न: इस युग की गाथा को किसने शब्दों में ढाला?
उत्तर: कवि शुक्लजी ने –
“शिव माउंट आबू में उतरते हैं,
हर आत्मा के लिए एक उपहार लेकर।”
निष्कर्ष: यह आपकी कहानी है
प्रश्न: यह सब सुनने से क्या लाभ?
उत्तर: यह सिर्फ़ अतीत नहीं – यह आपका वर्तमान और भविष्य है। आप भी शिव बाबा की सेना का हिस्सा हैं।
आपका हर पवित्र संकल्प,
हर सच्चा विचार,
हर दिव्य कर्म –
इस ‘दिव्य मार्च’ का हिस्सा है।
प्रश्न 1: विभाजन के बाद कराची में ब्रह्मा कुमारियों का जीवन कैसा था?
उत्तर:विभाजन के समय जब पाकिस्तान में हिंसा और अराजकता थी, तब कराची में ओम मंडली एक शांत और दिव्य तपोभूमि बनी रही। वहाँ के मुसलमानों ने इन आत्माओं की शुद्धता को पहचाना और उन्हें सुरक्षा दी। यह दिखाता है कि जब आत्मा पवित्र होती है, तो सारा विश्व उसकी रक्षा करता है।
प्रश्न 2: कराची से भारत लौटने का निर्णय कैसे हुआ?
उत्तर:यह निर्णय किसी मनुष्य का नहीं था — यह आदेश शिव बाबा का था। उन्होंने कहा, “भारत जाओ, वहाँ सेवा का क्षेत्र बहुत बड़ा है।” यह सिर्फ़ एक स्थान परिवर्तन नहीं था — यह एक नए अध्याय की शुरुआत थी।
प्रश्न 3: 1950 में भारत वापसी के समय कौन-सा दिव्य दृश्य देखा गया?
उत्तर:जब 400 योगी कराची से रवाना हो रहे थे, तो जिन्हें कभी ख़तरा समझा गया था – वही मुसलमान और पठान फूलों की वर्षा कर रहे थे। विदाई प्रेम से भीगी हुई थी — जैसे कि साक्षात देवताओं को सम्मानित किया जा रहा हो।
प्रश्न 4: माउंट आबू क्यों चुना गया, और वहाँ क्या विशेषता है?
उत्तर:माउंट आबू सिर्फ़ एक पहाड़ नहीं, एक गुप्त तीर्थ है। वहाँ के दिलवाड़ा मंदिर की मूर्तियाँ — ध्यानमग्न 108 योगी — शिव बाबा की याद में स्थिर आत्माओं का प्रतिनिधित्व हैं। केवल ब्रह्मा कुमारियाँ ही उनके अर्थ को समझती हैं — क्योंकि वही आत्माएँ अब पुनः उस भूमि पर लौट आई हैं।
प्रश्न 5: क्या यह यात्रा किसी शास्त्रीय कहानी से मेल खाती है?
उत्तर:हाँ, बिल्कुल। जैसे महाभारत में पांडव 13 वर्षों तक छुपे और फिर युद्ध के लिए उभरे, वैसे ही 1937 से 1950 तक ब्रह्मा कुमारियों ने गुप्त तपस्या की और फिर दुनिया में सेवा के लिए निकले। वे योद्धा थे — लेकिन आत्मा, शांति और ज्ञान के।
प्रश्न 6: क्या यह सिर्फ़ इतिहास है, या इसका आज से कोई संबंध है?
उत्तर:यह सिर्फ़ अतीत की गाथा नहीं — यह आज की पुकार है। शिव बाबा की वह सेना आज भी सक्रिय है, और हम सब उसके सिपाही हैं। हमें उनके साहस को सिर्फ़ सुनना नहीं, जीना है।
प्रश्न 7: कवि शुक्लजी ने इस पूरी यात्रा को कैसे व्यक्त किया?
उत्तर:उन्होंने लिखा:
“शिव माउंट आबू में उतरते हैं,
हर आत्मा के लिए एक उपहार लेकर।
गीता फिर से गाई जाती है,
और सतयुग की कल्पना की जाती है।”
यह केवल कविता नहीं — यह यथार्थ का संगीत है।
प्रश्न 8: आज का युवा या साधक इससे क्या सीख सकता है?
उत्तर:कि जब आप आत्मा की आवाज़ सुनते हैं और परमात्मा की आज्ञा मानते हैं, तो सारा ब्रह्मांड आपके साथ चलता है। यह कहानी हमें सिखाती है कि हम केवल दर्शक नहीं — सृजनकर्ता हैं।
हम दुनिया के परिवर्तक हैं।
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