(55)आसत्कि के नाश करने वाले ?
( प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
“आसक्ति कैसे दुख का कारण बनती है? | सच्चा योगी कैसे बनें? | Brahma Kumaris Hindi Speech”
प्रस्तावना: संसार का अदृश्य बंधन
“लोग संसाधनों की कमी से नहीं, आसक्ति से दुखी हैं।”
हम समझते हैं कि हमें परिवार, घर, संपत्ति और रिश्तों की जरूरत है। परंतु इनसे जुड़ी आसक्ति आत्मा को जंजीरों में बांध देती है।
जैसे–एक व्यक्ति जीवनभर एक घर को सजाता है, लेकिन एक बीमारी या भूकंप सब कुछ छीन लेता है। दुख संपत्ति खोने से नहीं, उससे जुड़ी आसक्ति से होता है।
मुख्य वाक्य:
“आज का हर लगाव कल दुख बन जाता है।”
1. सच्चे योगी का कार्य: बंधनों को जलाना
सच्चा योगी वह नहीं जो घर छोड़ देता है, बल्कि वह है जो मन की आसक्तियाँ छोड़ देता है।
वह श्रीमत के अनुसार जीता है, भावनाओं के प्रभाव में नहीं।
वह संपत्ति नहीं, परमात्मा को याद करता है – और इससे उसे मिलती है चिंतामुक्ति।
मुख्य लाइन:
“जो निरंतर भगवान को याद करता है, वह परिस्थितियों का स्वामी बन जाता है।”
2. प्रारंभिक यज्ञ और आत्मा की कसौटी
ब्रह्मा बाबा के साथ प्रारंभिक ब्राह्मणों को बहुत संघर्षपूर्ण स्थितियाँ मिलीं – गरीबी, स्थानांतरण, अस्थिरता।
लेकिन जिनकी बुद्धि भगवान से जुड़ी थी, वे रुके और योगबल से विजय प्राप्त की।
जो भावनात्मक रूप से जुड़े थे, वे विमुख हो गए।
प्रेरक संदेश:
“बुद्धि से बंधा आत्मा रुकता है, मन से बंधा आत्मा भागता है।”
3. भिक्षा काल – वैराग्य की दिव्य परीक्षा
जब यज्ञ में संसाधन नहीं थे, तब भी आत्माएं ईश्वरीय मदद से चमत्कार अनुभव करती थीं।
जैसे महाभारत में द्रौपदी के पात्र में केवल एक पत्ता बचा, फिर भी भगवान ने उसे भर दिया।
संदेश:
“परीक्षा शुद्ध करती है, तूफ़ान मज़बूत बनाते हैं।”
यही क्षण आत्मा को आसक्ति से मुक्त करने के लिए आते हैं।
4. सत्य की नाव: कौन सच्चा यात्री है?
जब यज्ञ में तूफान आया, तो कई लोग भावनात्मक बंधनों से नाव से उतर गए।
जैसे समुद्र में कुछ लोग डरकर लाइफबोट में कूद जाते हैं, वैसे ही कुछ आत्माएं कठिनाई से डर गईं।
पर जिनकी बुद्धि ईश्वर से जुड़ी थी, वे रुके और योग की पतवार से नाव को खेते रहे।
मुख्य बिंदु:
“जिसकी बुद्धि का तार सृष्टिकर्ता से जुड़ जाता है, वह कभी हार नहीं सकता।”
5. लौ जो बुझती नहीं: प्रेम, याद और संकल्प
सच्चे योगियों की प्रेम से जलती लौ तूफान में भी नहीं बुझी।
जैसे हवा से बचा दीपक जलता रहता है, वैसे ही उनकी स्मृति की शक्ति उन्हें अडिग बनाए रखती है।
अनुभव का गीत:
“जो प्रेम से जुड़ता है, वह परिस्थितियों से नहीं टूटता।”
6. वास्तविक वैराग्य: प्रेम नहीं, पर आसक्ति से मुक्ति
आसक्ति को नष्ट करना मतलब प्रेमहीन होना नहीं है।
बल्कि आत्मा को सच्चे ईश्वरीय प्रेम और सेवा भावना से भर देना ही असली वैराग्य है।
संदेश:
“स्मृति में शक्ति, कर्म में हलकापन — यही सच्चे योगी की पहचान है।”
निष्कर्ष: नई दुनिया की आधारशिला
जो आत्माएं आसक्ति के नाशक बनती हैं, वही सच्चे योगी कहलाती हैं।
वे ही संगमयुग में नई दुनिया की आधारशिला बनाते हैं।
अंतिम प्रेरणा:
“स्मृति में ईश्वर, कर्म में सेवा और बुद्धि में वैराग्य – यही है सच्ची विजय।”
प्रश्न 1: संसार में लोग सबसे अधिक किससे पीड़ित हैं—संसाधनों की कमी से या किसी और कारण से?
उत्तर:लोग संसाधनों की कमी से नहीं, बल्कि आसक्ति से पीड़ित होते हैं।
घर, रिश्ते, शहर, स्वाद, आदतें और संपत्ति से लगाव ही दुख का कारण बनते हैं।
“आज का हर लगाव, कल दुख बन जाता है।”
प्रश्न 2: क्या कोई वस्तु या रिश्ता हमारे पास स्थायी रूप से रहता है?
उत्तर:नहीं, संसार की कोई भी चीज़ हमारी स्थायी नहीं होती।
उदाहरण के रूप में, एक व्यक्ति पूरा जीवन एक घर को सजाने में लगाता है, लेकिन एक बीमारी, भूकंप या मृत्यु वह सब कुछ छीन सकती है।
दुख नुकसान से नहीं, उस वस्तु से जुड़ी आसक्ति से होता है।
प्रश्न 3: एक सच्चे योगी की पहचान क्या होती है?
उत्तर:एक सच्चा योगी बाहरी त्याग नहीं, बल्कि आंतरिक बंधनों को समाप्त करता है।
वह श्रीमत के अनुसार जीवन जीता है, भावनाओं के अनुसार नहीं।
“जो निरंतर भगवान को याद करता है, वह परिस्थितियों का स्वामी बन जाता है।”
प्रश्न 4: प्रारंभिक यज्ञ काल में किन आत्माओं ने परिस्थितियों का सामना किया और किन्होंने नहीं?
उत्तर:जिनकी बुद्धि में भगवान के प्रति निष्ठा थी, उन्होंने परिस्थितियों को अवसर बनाया।
लेकिन जो आसक्ति से बंधे थे, वे बदलती स्थितियों में विमुख हो गए।
इससे स्पष्ट होता है कि वैराग्य ही सच्ची स्थिरता लाता है।
प्रश्न 5: भिक्षा काल किस बात की दिव्य परीक्षा था?
उत्तर:भिक्षा काल में संसाधन कम हुए, पर आस्था बढ़ी।
यह कोई दंड नहीं था, बल्कि शुद्धि की प्रक्रिया थी।
जैसे महाभारत में भगवान ने एक पत्ते से चमत्कार किया, वैसे ही यज्ञ में भी ईश्वरीय मदद मिली।
“परीक्षण शुद्ध करते हैं, तूफान मजबूत करते हैं, आसक्ति टूटती है।”
प्रश्न 6: सत्य की नाव में कौन टिक पाया और कौन कूद गया?
उत्तर:जो केवल भावनात्मक कारणों से यज्ञ में जुड़े थे, वे तूफानों में डरकर लाइफ़बोट में कूद गए।
लेकिन जिनकी बुद्धि भगवान से जुड़ी थी, वे रुके, संघर्ष किया और सत्य के नौसैनिक बने।
इस नाव के कप्तान स्वयं भगवान थे।
प्रश्न 7: सृष्टिकर्ता से जुड़ी बुद्धि कैसे अजेय बनती है?
उत्तर:“जिसकी बुद्धि सृष्टिकर्ता से जुड़ी है, वह कभी हार नहीं सकता।”
जैसे हवा से बचा दीपक तूफ़ान में भी जलता है, वैसे ही ईश्वर के स्मरण से प्रेम की लौ जलती रहती है।
प्रश्न 8: क्या आसक्ति को नष्ट करना प्रेमहीनता है?
उत्तर:नहीं, आसक्ति को नष्ट करना प्रेमहीनता नहीं, बल्कि सच्चे आध्यात्मिक प्रेम से हृदय को भरना है—ईश्वर और सेवा के लिए।
इससे आत्मा में आती है:
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उद्देश्य में स्पष्टता
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कर्म में हल्कापन
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तूफानों में स्थिरता
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स्मृति में शक्ति
यही है सच्ची विजय—आसक्ति से मुक्ति।
प्रश्न 9: आसक्ति मुक्त योगी नई दुनिया की आधारशिला कैसे बनते हैं?
उत्तर:वे स्वयं को ईश्वर के श्रीमत पर स्थिर रखते हैं, परिस्थितियों में हिलते नहीं।
उनका कर्म, स्मृति और संकल्प ऐसा बनता है कि वे यज्ञ रूपी जहाज़ के खंभे बन जाते हैं।
आसक्ति को जीतने वाले ही सच्चे विश्व-सेवक बनते हैं।
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