(62) कौन हैं सच्चे अर्जुन? क्या शरीर ही रथ है?
“गीता का भगवान कौन? | अर्जुन, रथ और सारथी का असली रहस्य | शिव ही हैं गीता के वक्ता?”
आज हम गीता ज्ञान की 62वीं कड़ी में एक अत्यंत गूढ़ और गहन प्रश्न पर विचार करेंगे:
“गीता का भगवान कौन?”
इस विषय से जुड़ा है एक बड़ा रहस्य:
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अर्जुन कौन है?
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रथ क्या है?
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सारथी कौन है?
आइए इस रहस्य को गहराई से समझते हैं।
1. गीता का दृश्य – प्रतीकात्मक सत्य
हमने गीता को ऐतिहासिक दृष्टिकोण से देखा है, लेकिन उसमें चित्रित युद्ध, रथ, अर्जुन और सारथी असल में प्रतीक हैं।
उदाहरण:
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महाभारत में बताया गया है कि अर्जुन का रथ आकाश में उड़ता था, घोड़े स्वर्ग-पाताल में जा सकते थे।
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क्या यह यथार्थ संभव है?
उत्तर: यह प्रतीकात्मक भाषा है।
2. रथ — शरीर का प्रतीक
कठोपनिषद कहती है:
“आत्मानं रथिनं विधि, शरीरं रथमेव तु…”
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शरीर = रथ
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आत्मा = रथी
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बुद्धि = सारथी
जब परमात्मा शिव किसी मानव शरीर (रथ) में प्रविष्ट होते हैं, तो वही असली सारथी बन जाते हैं।
3. अर्जुन — एक व्यक्ति नहीं, एक अवस्था
अर्जुन कोई विशेष राजा नहीं, बल्कि एक गुणवाचक नाम है।
गीता में अर्जुन को कहा गया है:
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अनघ – निष्पाप
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गुडाकेश – निद्रा पर विजय
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परंतप – महान तपस्वी
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भारत – भा (प्रकाश) + रत (लीन)
ये सारे गुण उस आत्मा में होते हैं जो परमात्मा से ज्ञान लेने के लिए तैयार हो —
जैसे प्रजापिता ब्रह्मा।
4. ब्रह्मा = अर्जुन = रथ
परमात्मा शिव स्वयं कहते हैं:
साकार मुरली (25 जनवरी 1970):
“मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर गीता ज्ञान देता हूँ।”
साकार मुरली (13 दिसंबर 1971):
“ब्रह्मा ही मेरा रथ है। यह बेहद युद्ध है माया से।”
इसका अर्थ है:
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ब्रह्मा बाबा का शरीर = रथ
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ब्रह्मा आत्मा = अर्जुन
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परमात्मा शिव = सारथी
5. त्रिमूर्ति और महाभारत का प्रतीकात्मक रहस्य
त्रिमूर्ति चित्र में:
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ब्रह्मा, विष्णु, शंकर — प्रतीकात्मक रूप हैं।
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इनका रचयिता एक ही है — निराकार शिव।
महाभारत में:
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कौरव = विकारों का प्रतीक
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पांडव = सतोगुणी आत्माओं का प्रतीक
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युद्ध = माया से आत्मिक युद्ध
6. निष्कर्ष
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अर्जुन कोई ऐतिहासिक राजा नहीं, बल्कि पवित्र बनने को तत्पर आत्मा है।
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रथ कोई लोहे का वाहन नहीं, बल्कि मानव शरीर है।
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सारथी श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि परमात्मा शिव हैं, जो ब्रह्मा के तन में आकर गीता का ज्ञान देते हैं।
7. मुरली प्रमाण
25 जनवरी 1970:
“मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर पढ़ाता हूँ। ब्रह्मा मेरा रथ है। तुम ही अर्जुन हो।”
3 फरवरी 1974:
“मैं ही गीता का भगवान हूँ — शिव बाबा, ना कि श्रीकृष्ण।”
8. अंतिम संदेश
अब समय है:
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भ्रम को त्यागें।
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गीता का वक्ता श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि शिव हैं — निराकार, ज्योति स्वरूप परमात्मा।
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अर्जुन बनकर उस ज्ञान को आत्मसात करें जो आज भी हमें चैतन्य गीता के रूप में मिल रहा है।
गीता का भगवान कौन? | अर्जुन, रथ और सारथी का असली रहस्य | प्रश्नोत्तर शैली
प्रश्न 1: गीता का भगवान वास्तव में कौन है?
उत्तर:गीता का भगवान श्रीकृष्ण नहीं, बल्कि निराकार, ज्योति स्वरूप परमात्मा शिव हैं — जो ब्रह्मा के तन में प्रविष्ट होकर गीता का ज्ञान सुनाते हैं।
प्रश्न 2: गीता में “अर्जुन” कौन है? क्या वह एक राजा था?
उत्तर:नहीं, अर्जुन कोई ऐतिहासिक राजा नहीं है। “अर्जुन” एक गुणवाचक नाम है — जिसका अर्थ है:
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पवित्र (अर्जुन)
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निष्पाप (अनघ)
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निद्रा पर विजय प्राप्त करने वाला (गुडाकेश)
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महान तपस्वी (परंतप)
यह आत्मिक अवस्था को दर्शाता है — विशेष रूप से प्रजापिता ब्रह्मा जैसे आत्मा को।
प्रश्न 3: गीता का रथ क्या दर्शाता है?
उत्तर:गीता का रथ प्रतीकात्मक है।
शरीर = रथ,
आत्मा = रथी,
बुद्धि = सारथी
— जैसा कि कठोपनिषद में स्पष्ट बताया गया है।
प्रश्न 4: क्या श्रीकृष्ण ही गीता के सारथी हैं?
उत्तर:नहीं, श्रीकृष्ण नहीं।
सच्चे सारथी परमात्मा शिव हैं,
जो ब्रह्मा के तन में आकर आत्माओं को गीता ज्ञान देते हैं।
प्रश्न 5: क्या गीता का युद्ध ऐतिहासिक था?
उत्तर:नहीं, गीता का युद्ध आध्यात्मिक और प्रतीकात्मक है।
यह युद्ध मन और माया के बीच चलता है — आत्मा के अंदर।
प्रश्न 6: त्रिमूर्ति का असली अर्थ क्या है?
उत्तर:त्रिमूर्ति चित्र में ब्रह्मा, विष्णु और शंकर प्रतीक हैं।
इन तीनों के रचयिता एकमात्र परमात्मा शिव हैं — जो सृजन, पालन और संहार के कार्य को चलाते हैं।
प्रश्न 7: ब्रह्मा, अर्जुन और रथ — इनका आपस में क्या संबंध है?
उत्तर:
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ब्रह्मा का शरीर = रथ
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ब्रह्मा आत्मा = अर्जुन
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परमात्मा शिव = सारथी
शिव बाबा, ब्रह्मा के तन में आकर अर्जुन रूपी आत्मा को गीता ज्ञान सुनाते हैं।
प्रश्न 8: क्या मुरली में भी इस रहस्य की पुष्टि मिलती है?
उत्तर:हाँ, उदाहरण के लिए:
25 जनवरी 1970
“मैं ब्रह्मा के तन में प्रवेश कर पढ़ाता हूँ। ब्रह्मा मेरा रथ है। तुम ही अर्जुन हो।”
3 फरवरी 1974
“मैं ही गीता का भगवान हूँ — शिव बाबा, ना कि श्रीकृष्ण।”
प्रश्न 9: गीता का यथार्थ महत्व कैसे समझें?
उत्तर:जब हम गीता को शिव वाणी समझते हैं, और अर्जुन को गुण विशेष वाली आत्मा मानते हैं, तभी गीता का आध्यात्मिक रहस्य स्पष्ट होता है।
प्रश्न 10: आज हमें अर्जुन क्यों बनना चाहिए?
उत्तर:क्योंकि अर्जुन का अर्थ है वह आत्मा जो परम सत्य को ग्रहण करने के लिए तैयार है।
हमें भी उसी प्रकार पवित्रता, तपस्या और ज्ञान से भरपूर बनना है — जैसे प्रजापिता ब्रह्मा बने।
Disclaimer (अस्वीकरण):
इस वीडियो/पोस्ट का उद्देश्य धार्मिक ग्रंथों की गूढ़ व्याख्या और आध्यात्मिक समझ को प्रस्तुत करना है। यह सामग्री ब्रह्माकुमारीज द्वारा दी गई शिक्षाओं पर आधारित है। हमारा उद्देश्य किसी भी धर्म, व्यक्ति, मान्यता या ऐतिहासिक दृष्टिकोण का खंडन नहीं है, बल्कि एक वैकल्पिक आत्मिक दृष्टिकोण को साझा करना है। कृपया इसे खुले मन और आत्म-चिंतन के साथ ग्रहण करें। ओम् शांति।
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