Short Questions & Answers Are given below (लघु प्रश्न और उत्तर नीचे दिए गए हैं)
हर कर्म विधिपूर्वक करने से सिद्धि की प्राप्ति
एक तो प्राप्ति का अनुभव होगा। जैसे ज्ञान के सब्जेक्ट हैं तो उससे जो आब्जेक्ट प्राप्त होती है लाइट और माइट, वह प्राप्ति का अनुभव करेंगे। उस नॉलेज के सब्जेक्ट के आधार पर रेस्पेक्ट भी इतना मिलेगा चाहे दैवी परिवार से, चाहे अन्य आत्माओं से। जैसे देखो, आजकल के महात्माएं हैं, उन्हों को इतना रेस्पेक्ट क्यों मिलता है? क्योंकि जो साधना की है, जो भी सब्जेक्ट अध्ययन करते हैं उनकी ऑब्जेक्ट ‘रेस्पेक्ट’ उन्हों को मिलती है, प्रकृति दासी होती है। तो यह एक ज्ञान की बात सुनाई। वैसे योग की भी सब्जेक्ट है। उनसे क्या ऑब्जेक्ट होनी चाहिए? योग अर्थात् याद की शक्ति द्वारा ऑब्जेक्ट प्राप्त होनी चाहिए- वह जो भी संकल्प करेंगे वह समर्थ होगा और जो भी कोई समस्या आने वाली होगी, उनका पहले से ही योग की शक्ति से अनुभव होगा कि यह होने वाला है, तो पहले से ही मालूम होने कारण कभी भी हार नहीं खावेंगे। ऐसे ही योग की शक्ति द्वारा अपने पिछले संस्कारों का बीज खत्म होता है। कोई भी संस्कार अपने पुरूषार्थ में विघ्न नहीं बनेगा, जिसको नेचर कहते हो वह भी विघ्न रूप नहीं बनेंगे पुरूषार्थ में। तो जिस सब्जेक्ट की जो ऑब्जेक्ट है, वह अनुभव होनी चाहिए। आब्जेक्ट है तो इसका परिणाम रेस्पेक्ट ज़रूर मिलेगी। आप मुख से जो भी शब्द रिपीट करेंगे वा जो भी प्लैन बनावेंगे वह समर्थ होने कारण सभी रेस्पेक्ट देंगे अर्थात् जो भी एक-दो को राय देते हैं उस राय को सभी रेस्पेक्ट देंगे क्योंकि समर्थ है। इस प्रकार हर सब्जेक्ट का देखो। दिव्य गुणों की वा सर्विस की सब्जेक्ट है तो उसकी प्राप्ति यह है जो नजदीक सम्पर्क में और सम्बन्ध में आना चाहिए। नजदीक सम्पर्क-सम्बन्ध में आने से आटोमेटिकली रेस्पेक्ट ज़रूर मिलेगा। ऐसे हर सब्जेक्ट की ऑब्जेक्ट को चेक करो और आब्जेक्ट को चेक करने का साधन है रेस्पेक्ट। अगर मैं नॉलेजफुल हूँ तो जि्ासको भी नॉलेज देती हूँ वह उस नॉलेज को इतना रेस्पेक्ट देते हैं? नॉलेज को रेस्पेक्ट देना अर्थात् नॉलेजफुल को रेस्पेक्ट देना है। अगर नॉलेज की सब्जेक्ट में आबजेक्ट है तो और भी किसके संकल्प को परिवर्तन में ला समर्थ बना सकते हैं, तो ज़रूर रेस्पेक्ट देंगे। तो इस रीति हर सब्जेक्ट में चेकिंग करनी है। हर संकल्प में ऑब्जेक्ट और रेस्पेक्ट दोनों की प्राप्ति का अनुभव करते हैं तो परफेक्ट कहेंगे। परफेक्ट अर्थात् कोई भी इफेक्ट से दूर परफेक्ट। इफेक्ट से परे है तो परफेक्ट है। चाहे शरीर का, चाहे संकल्पों का, चाहे कोई भी सम्पर्क में आने से किसके भी वायब्रेशन वा वायुमण्डल – सभी प्रकार के इफेक्ट से परे हो जावेंगे। तो समझो सब्जेक्ट में पास अर्थात् परफेक्ट हैं। ऐसे बन रहे हो ना। लक्ष्य तो यही है ना। अब अपनी चेकिंग ज्यादा होनी चाहिए। जैसे दूसरों को कहते हो कि समय के साथ स्वयं को भी परिवर्तन में लाओ, वैसे ही सदैव अपने को भी यह स्मृति में रहे कि समय के साथ-साथ स्वयं को भी परिवर्तन लाना है। अपने को परिवर्तन में लाते-लाते सृष्टि परिवर्तन हो जावेगी। अपने परिवर्तन के आधार से सृष्टि में परिवर्तन लाने का कार्य कर सकेंगे। यही श्रेष्ठता है जो दूसरे लोगों में नहीं है। वह सिर्फ दूसरों को परिवर्तन करने के यत्न में हैं। यहां स्वयं के आधार से सृष्टि को परिवर्तन करते हो। तो जो आधार है उसके लिये अपने ऊपर इतना अटेन्शन देना है — सदैव यह स्मृति रहे कि हमारे हर संकल्प के पीछे विश्व-कल्याण का संबंध है। जो आधारमूर्त हैं उनके संकल्प में समर्थी नहीं तो समय के परिवर्तन में भी कमजोरी पड़ जाती। इस कारण जितना-जितना समय समर्थ बनेंगे उतना ही सृष्टि के परिवर्तन का समय समीप ला सकेंगे। ड्रामा अनुसार भले निश्चित है लेकिन वह भी किस आधार से बना है? आधार तो होगा ना। तो आधारमूर्त आप हो। अभी तो आप सभी की नजरों में हो। चैलेंज की है ना 4 वर्ष की! जब यह बातें सुनते हो तो थोड़ा-बहुत संकल्प चलता है कि – ‘‘अगर सचमुच नहीं हुआ तो, यह भी हो सकता है कि 4 वर्ष में ना हो-यह संकल्प रूप में नहीं चलता है? सामना कर लेंगे, वह दूसरी बात है। इसका मतलब यह संकल्प में कुछ है तब तो आता है ना। बिल्कुल पक्का है कि 4 वर्ष में होगा? अच्छा, समझो आप लोगों से कोई पूछते हैं कि विनाश न हो तो क्या होगा? फिर आप क्या कहेंगे? जिस समय समझाते हो तो यह स्पष्ट समझाना चाहिए – ऐसे नहीं 4 वर्ष में कम्पलीट विनाश हो जावेगा। नहीं, 4 वर्ष में ऐसे नज़ारे हो जावेंगे जिससे लोग समझेंगे कि बरोबर यह विनाश हो रहा है, विनाश शुरू हो गया। एक बात सहज लग गई तो दूसरी बातें भी सहज लगेंगी ही। विनाश में भी समय तो लगेगा। स्वयं सम्पूर्ण हो जावेंगे तो कार्य भी सम्पूर्ण होगा कि सिर्फ स्वयं सम्पूर्ण होंगे? एडवांस पार्टी का कार्य चल रहा है। आप लोगों के लिये सारी फील्ड तैयार करेंगे। उनके परिवार में जाओ, ना जाओ, लेकिन जो स्थापना का कार्य होना है उसके लिये वह निमित्त बनेंगे। कोई पावरफुल स्टेज लेकर निमित्त बनेंगे। ऐसी पावर्स लेंगे जिससे स्थापना के कार्य में मददगार बनेंगे। आजकल आप देखेंगे दिन-प्रतिदिन न्यू-ब्लड का रिगार्ड ज्यादा है। जितना आगे बढ़ेंगे उतना छोटों की बुद्धि जो काम करेगी वह बूढ़ों की नहीं, यह चेंज होगी। बड़े भी बच्चों की राय को रिगार्ड देंगे। अब भी जो बड़े हैं वह समझते हैं – ‘‘हम तो पुराने जमाने के हैं, यह हैं आजकल के। उन्हों को रिगार्ड ना देंगे, बड़ा समझ न चलायेंगे तो काम न चलेगा।’’ पहले बच्चों को रोब से चलाते थे, अभी ऐसे नहीं। बच्चे को भी मालिक समझ चलाते हैं। तो यह भी ड्रामा है। छोटे ही कमाल कर दिखायेंगे। एडवांस पार्टी का तो अपना कार्य चल रहा है। लेकिन वह भी आपकी स्थिति एडवांस में जाने लिये रूके हुए हैं। उनका कार्य ही आपके कनेक्शन से चलना है। सारे कार्य का आधार विशेष आत्माओं के ऊपर है। चलते-चलते ठंडाई हो जाती है। आग लगती है, फिर शीतल हो जाते हैं। लेकिन शीतल तो नहीं होनी चाहिए ना? बाहर का जो रूप होता है, मनुष्य तो वह देखते हैं। समझते हैं – ‘‘यह तो चलता आता है, बड़ी बात क्या है? परम्परा का खेल चलता आ रहा है।’’ लेकिन यह चलते-चलते शीतलता क्यों आती है? इसका कारण क्या है? परसेन्टेज बहुत कम है। लेक्चर्स तो करते हैं लेकिन लेक्चर के साथ-साथ फीचर्स भी अट्रैक्ट करें तक लेक्चर का इफेक्ट हो। तो अपने को हर सब्जेक्ट में चेक करो। आजकल लेक्चर में आपका कम्पीटीशन करें तो इसमें कई और भी जीत लेंगे। लेकिन जो प्रैक्टिकल में है उसमें सभी आपसे हार लेंगे। मुख्य विशेषता प्रैक्टिकल लाइफ की है। प्रैक्टिकल कोई भी बात आप बताओ तो एकदम चुप हो जावेंगे। तो लेक्चर्स से फिर प्रैक्टिकल का भाव प्रकट हो जावेगा। तब वह लेक्चर देने से न्यारा दिखाई दे। जो शब्द बोलते हो वह नैनों से दिखाई दें।
यह जो बोलते हैं वह प्रैक्टिकल है, यह अनुभवीमूर्त हैं। तब उसका प्रभाव पड़ सकता है। बाकी सुन-सुन कर तो सभी थक गये हैं। बहुत सुना है। अनेक सुनाने वाले होने कारण सुनने से सभी थके हुये हैं। कहते हैं — सुना तो बहुत है, अब अनुभव करना चाहते हैं, कोई ‘प्राप्ति’ कराओ। तो लेक्चर में ऐसी पावर होनी चाहिए जो वह एक-एक शब्द अनुभव कराने वाला हो। जैसे आप समझाते हो न कि अपने को आत्मा समझो, ना कि शरीर। तो ये शब्द बोलने में भी इतनी पावर होनी चाहिए जो सुनने वालों को आपके शब्दों की पावर से अनुभव हो। एक सेकेण्ड के लिये भी अगर उनको अनुभव हो जाता है; तो अनुभव को वह कब छोड़ नहीं सकते, आकर्षित हुआ आपके पास पहुँचेगा। जैसे बीच-बीच में आप भाषण करते-करते उनको साइलेंस में ले जाने का अनुभव कराते हो, तो इस प्रैक्टिस को बढ़ाते जाओ। उन्हों को अनुभव में ले जाते जाओ। इस पुरानी दुनिया से बेहद का वैराग दिलाना चाहते हो तो भाषण में जो प्वाईंटस देते हो वह देते हुये वैराग्य-वृति के अनुभव में ले आओ। वह फील करें कि सचमुच यह सृष्टि जाने वाली है, इससे तो दिल लगाना व्यर्थ है। तो ज़रूर प्रैक्टिकल करेंगे। उन पंडितों आदि के बोलने में भी पावर होती है। एक सेकेण्ड में खुशी दिला देते, एक सेकेण्ड में रूला देते। तब कहते हैं इनका भाषण इफेक्ट करने वाला है। सारी सभा को हंसाते भी हैं, सभी को श्मशानी वैराग्य में लाते भी हैं ना। जब उन्हों के भाषण में इतनी पावर होती है; तो क्या आप लोगों के भाषण में वह पावर नहीं हो सकती है? अशरीरी बनाना चाहो तो वह अनुभव करा सकते हैं? वह लहर छा जावे। सारी सभा के बीज बाप के स्नेह की लहर छा जावे। उसको कहा जाता है प्रैक्टिकल अनुभव कराना। अब ऐसे भाषण होने चाहिए, तब कुछ चेंज होगी। वह समझें कि इन्हों के भाषण तो दुनिया से न्यारे हैं। वह भले भाषण में सभा को हंसा लेते, रूला लेते, लेकिन अशरीरीपन का अनुभव नहीं करा सकते, बाप से स्नेह नहीं पैदा करा सकते। कृष्ण से स्नेह करा सकते, लेकिन बाप से नहीं करा सकते। उन्हों को पता नहीं है। तो निराली बात होनी चाहिए। समझो, गीता के भगवान् पर प्वाइंट्स देते हो, लेकिन जब तक उनको बाप क्या चीज़ है, हम आत्मा हैं वह परमात्मा है – जब तक यह अनुभव ना कराओ तब तक यह बात भी सिद्ध कैसे होगी? ऐसा कोई भाषण करने वाला हो जो उन्हों को अनुभव करावे – आत्मा और परमात्मा में रात- दिन का फर्क है। जब अन्तर महसूस करेंगे तो गीता का भगवान् सिद्ध हो जावेगा। सिर्फ प्वाइंट्स से उन्हों की बुद्धि में नहीं बैठेगा, और ही लहरें उत्पन्न होंगी। लेकिन अनुभव कराते जाओ तो अनुभव के आगे कोई बात जीत नहीं सकता।
हर कर्म विधिपूर्वक करने से सिद्धि की प्राप्ति
प्रश्न 1: विधिपूर्वक कर्म करने से क्या प्राप्ति होती है?
उत्तर: विधिपूर्वक किए गए कर्म से लाइट, माइट और रेस्पेक्ट की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 2: ज्ञान और योग से क्या ऑब्जेक्ट मिलती है?
उत्तर: ज्ञान से सम्मान और योग से समर्थ संकल्पों की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 3: योग की शक्ति से क्या लाभ होता है?
उत्तर: योग की शक्ति से पूर्वाभास होता है, समस्याओं का समाधान पहले से ही मिल जाता है और संस्कारों का बीज समाप्त होता है।
प्रश्न 4: अपने परिवर्तन से सृष्टि परिवर्तन कैसे संभव है?
उत्तर: जब हम स्वयं को परिवर्तित करते हैं, तो हमारे संकल्पों की शक्ति से सृष्टि परिवर्तन भी सहज हो जाता है।
प्रश्न 5: पूर्णता की पहचान क्या है?
उत्तर: जब व्यक्ति किसी भी बाहरी प्रभाव या परिस्थितियों से प्रभावित नहीं होता, तब उसे परफेक्ट कहा जाता है।
प्रश्न 6: ज्ञान की सच्ची पहचान क्या है?
उत्तर: जब कोई आत्मा दी गई नॉलेज को सम्मान देती है, तो यह ज्ञान की सच्ची पहचान होती है।
प्रश्न 7: सफलता प्राप्त करने के लिए क्या आवश्यक है?
उत्तर: हर कर्म विधिपूर्वक और विधि अनुसार करने से सफलता की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 8: भाषण में शक्ति कैसे लाई जाए?
उत्तर: भाषण में अनुभव और आत्मिक स्थिति की शक्ति होनी चाहिए, जिससे सुनने वालों को आत्मा और परमात्मा का वास्तविक अनुभव हो।
प्रश्न 9: परिवर्तन का सही आधार क्या है?
उत्तर: स्वयं के परिवर्तन से ही संपूर्ण सृष्टि का परिवर्तन संभव है।
प्रश्न 10: ज्ञान और योग को सिद्ध करने का सही तरीका क्या है?
उत्तर: केवल ज्ञान सुनाना पर्याप्त नहीं, बल्कि ज्ञान और योग का अनुभव कराना आवश्यक है ताकि आत्माएं सच्चा परिवर्तन महसूस कर सकें।
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